वही हार – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

सच ही कहते है कि जब तक ख़ुद पर न बीते असलियत समझ नहीं आती। कैसे हम

दूसरों की छोटी से छोटी बात में आसानी से बड़े बड़े नुक़्स निकाल लेते है, लेकिन जब वही काम ख़ुद करना पड़ता है,

तो पता चलता है कि कैसी कैसी रूकावटें सामने आती हैं।रूचि के बेटे व्यास की शादी को सम्पन्न हुए आज चार दिन

हो गए है। नया जोड़ा हनीमून के लिए बैंकाक की उड़ान भर चुका था, सिर्फ़ बड़ी भुआ, और सास को छोड़कर सब

मेहमान भी विदा हो गए है। यहाँ तक कि उसकी अपनी बेटी सुहानी भी , अगले हफ़्ते आने का वादा करके चली गई।

जल्दी जल्दी में अपने नेग लेकर भी नहीं गई, सिर्फ़ मिठाई और फल लेकर ही गई। रूचि कि कोशिश थी कि वो दो

चार दिन रूक जाए लेकिन उसकी अपनी,अपने घर परिवार की मजबूरियाँ । पति गौरव ने भी काम पर जाना शुरू

कर दिया। शुक्र है, कि सास और बुआ सास कुछ दिन रूकने के लिए मान गई।गौरव की नौकरी शहर में थी।रूची और

गौरव ने बहुत कोशिश की , कि माँ उनके पास शहर में रहे, लेकिन उन्हें अपने गाँव वाले घर मे रहना ही पंसद था।

दोनों औरते बुज़ुर्ग है, ज्यादा काम तो नहीं कर सकती , लेकिन रूचि को उन दोनों का बहुत सहारा रहा।

सब कुछ अच्छे से निबट गया, लेकिन सारा घर अभी भी बिखरा सा लगता है। बहुत सा समान मिल

नहीं रहा। बेटे व्यास का कमरा तो जैसे बंद ही पड़ा है। नेग में आए सामान, तोहफ़ों को खोलना तो दूर देखने तक की

फ़ुरसत भी नहीं मिली।अभी तो सारे फ़ंक्शन होटलों में हुए हैं। सिर्फ़ एक छोटा सा ढोलकी वाला लेडीज़ संगीत ही उसने

घर पर रखा था। जिसमें सारे मुहल्ले की औरतें और उसकी कुछ पुरानी सहेलियाँ ही शामिल थी। कैसे मज़े ले ले कर

सबने लोकगीत गाए। जैसे पुराने दिन ही लौट आए , आजकल का संगीत और नाचगाना तो उसकी समझ से कोसो दूर

है। सिर्फ़ कानफोड़ू संगीत । लेकिन चलो जमाने के साथ तो चलना ही पड़ता हैl

आज का जरूरी काम निबटा कर रूचि ने सोचा कि चलो आज व्यास का कमरा ठीक किया जाए। चार

दिनों बाद तो बेटा बहू लौट आएँगे, और फिर उनकी छुट्टियाँ भी तो खत्म होने वाली थी। दोनों के आफिस पास पास

थे। एक तरह से व्यास और सारा की लव कम अरेंज मैरिज थी। आज कल तो जो बच्चों की पंसद, वो माँ बाप की

पंसद। विश्वसनीय मेड मीरा को उसने व्यास के कमरे की साफ़ सफाई और सेटिंग करने के लिए बुला लिया। शादी

ब्याह में कई बार चोरी चकारी के किस्से सुनने को मिलते है, इसलिए रूचि ने दोनों बच्चों की शादियों में ख़ास

एहतियात बरती। उसको ये याद करके हँसी आ गई कि एक रिशतेदार की शादी में तो कितने सारे मिठाई के डिब्बे ही

ग़ायब हो गए थे। उसने तो शादी का क़ीमती और जरूरी समान रखकर एक कमरा बंद ही कर दिया था। ज़रूरत पड़ने

पर वो स्वंय, बेटी सुहानी या फिर उसकी छोटी बहन ही कमरा खोल कर सामान निकालती थी। इस तरह ज़रूरत

पड़ने पर सामान भी आराम से मिल जाता। मीरा की मदद से काफी हद तक व्यास का कमरा ठीक हो गया था।

सारे तोहफ़े यथा स्थान रखे जा चुके थो। सिर्फ़ शगुन के लिफ़ाफ़े और नेग के ज़ेवर देखने बाक़ी थे। रूचि ने सोचा कि

शगुन के लिफ़ाफ़े तो रात को गौरव के साथ बैठकर खोलेगी, क्यूकिं उसे साथ साथ डायरी में नोट करना भी जरूरी था।

कल को बढ़ा कर शगुन लौटाना भी तो होता है। लिखा हो तो आसानी रहती है, वरना तो वो अब भुलक्कड़ हो गई है।

थक तो वो बहुत गई थी, लेकिन गहने देखने की स्त्री सुलभ लालसा कहीं न कहीं मन में जरूर थी। घर

में सब दहेज के ख़िलाफ़ थे, लेकिन कितना भी मना करो, लड़की वाले कहाँ मानते है। और फिर सारा अपने माँ बाप

की ईकलौती संतान । ज़ाहिर है बहुत लाड़-प्यार से पली होगी। कितना भी कह लो, जितना मर्ज़ी पढ़ी लिखी हो, हमारे

समाज में बेटियों को ख़ाली हाथ नहीं भेजते। सारे चाव भी तो पूरे करने की इच्छा होती है, और फिर दोनों परिवारों

की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी।रूचि ने गहनों के दो डिब्बे देखे, काफी सुदंर डिज़ाइन थे। नए पुराने डिज़ाइनों

का मिश्रण लगा।एक सैट रूचि और एक सैट सुहानी का भी था। और रिश्तेदारों के नेग भी थे, जो कि विदा होते समय

सबको दे दिए गए थे।

कुछ डिब्बे देखने अभी बाक़ी थे। मन में तो आया कि बाक़ी कल देखेगी, अभी अलमारी में रखने की

सोची।अलमारी में रखते वक़्त एक विशेष अलग डिज़ाइन के सुंदर से डिब्बे पर उसके नाम की पर्ची लगी देख वो उसे

खोले बिना ना रह सकी। लेकिन अंदर वाला हार देख कर तो जैसे उसके होश उड़ गए। हाथों पैरों की ताक़त खत्म सी

होती लग रही थी। वो तो जैसे जड़ सी हो गई। वही उसकी शादी वाला पंसदीदा हार उसके सामने था। लेकिन ये वो

हार कैसे हो सकता है, वो तो आज से तीस साल पहले उसकी नन्द के दहेज में दिया जा चुका था।पुरानी बातें चलचित्र

 

की तरह उसके सामने घूमने लगी।सोच सोच कर उसका सिर फटने को आया। बड़ी मुशकिल से मीरा को एक कप चाय

का लाने को बोलकर वो धम्म से सोफ़े पर गिर पड़ी। आँखें स्वंय ही बंद हो गई। पुरानी बातें याद करके दोनों आँखे

आँसुओं से भर उठी। पता ही न चला कि कब मीरा चाय रख कर चली गई। धीरे धीरे उसके अरमानों की तरह चाय भी

ठंडी हो गई।

तब हालात आज जैसे नहीं थे।ज्यादा अमीर तो उसके मायके वाले भी नहीं थे, लेकिन ससुराल के हालात थोड़े

खराब थे। उसके ससुर बहुत पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए थे , उनकी फ़ैमिली पेंशन सास को मिलती थी।

कुछ गाँव में ज़मीन थी। ठीक सा गुजारा हो जाता था। गौरव की दो बहने थी। बड़ी दी की शादी तो उसकी शादी से

पहले ही हो गई थी, हालांकि वो भी गौरव से छोटी थी।बड़ी दी बाणी अपने ससुराल में बहुत खुश और मस्त थी, और

कम ही आती थी, जबकि छोटी नीलू बहुत चंचल और वाचाल थी। उसकी शादी रूचि की शादी के दो साल बाद तय हुई

थी। लड़का अच्छा था, लेकिन नीलू की सास बहुत लालची प्रवृति की औरत थी। वैसे तो रूचि की सास का स्वभाव

बहुत अच्छा था, पढ़ी लिखी भी थी, लेकिन वो बेटियों को बहुत सारा दहेज देने के हक़ में थी। उनका विचार था कि

बेटियों को जितना ज्यादा दहेज दिया जाए उतना ही वो ससुराल में खुश रहती है। उनका ज्यादा मान इज़्ज़त होता है।

वैसे उन्होने रूचि को कभी कुछ नहीं कहा। रूचि से वो ख़ूब प्यार भी करती थी। हमारे देश में वैसे भी माँ बाप कहाँ

मानते है। रूचि अपने दो भाईयों की इकलौती बहन थी। बिना माँगें ही हर तीज त्यौहार पर सब हाज़िर होता था।

रूचि की शादी के दो साल बाद नीलू की शादी अच्छे से निपट गई। इसके लिए गौरव

को आफिस से बहुत सा लोन लेना पड़ा । सोचा, कोई बात नहीं, धीरे धीरे किशतों में चुक जाएगा। लेकिन मुशकिल तब

आन पड़ी जब नीलू की सास ने पंरपंरा के नाम पर उनके हाथ में साल भर में आने वाले त्यौहारों पर देने वाले नेग की

लिस्ट एडवांस में ही पकड़ा दी। लिस्ट पढ कर गौरव और रूचि के तो होश ही उड़ गए। सास ने तो बस इतना ही कहा,

कि जब बेटी का घर बसाना है तो ये सब तो करना ही पड़ेगा। धीरे धीरे नीलू का लालच भी बढ़ता गया। गौरव की माँ

के आगे बोलने की हिम्मत नहीं थी, और छोटी लाड़ली बहन को मना करना उसे अच्छा नहीं लगता था।गौरव तो पहले

ही लोन ले चुका था, अब रूचि को भी लेना पड़ा । पहले ये सोच कर नहीं लिया था कि गौरव की तनख़्वाह कम होगी,

तो रूचि के पैसों से घर चल जाएगा, लेकिन साल भर नेग देने का मतलब हर महीने कोई न कोई त्यौहार , जन्मदिन

या व्रत इत्यादि । कपड़े मिठाई तो आ जाते लेकिन मुशकिल तब पड़ती जब साथ में कोई ज़ेवर भी देना पड़ता। तब

तक व्यास का जन्म भी हो चुका था और माँजी की तबियत भी ठीक नहीं रहती थी। पिताजी की पेंशन भी कुछ ख़ास

नहीं थी। गौरव की शादी, मकान की मुरम्मत में भी काफी ख़र्च हो चुका था। साल से पहले नीलू भी जब बेटे की माँ

बन गई तो मजबूरन रूचि को अपना ये प्यारा कुंदन का हार भी बहुत सारे सामान के साथ देना पड़ा। किसी ने उससे

माँगा तो नहीं था, लेकिन इस समय सोना खरीदने की हिम्मत नहीं थी। रिवाज अनुसार नीलू का पहला बच्चा मायके

में ही होना था, तो विदाई के समय उसके इस प्यारे से हार की भी विदाई हो गई थी।

जब से शादी हुई है, रूचि के मन में कभी भी सास नन्दों के साथ की भावना

नहीं आई, सब कुछ साँझा ही समझा उसने। नीलू तो उसके कपड़े गहने सैंडिल सब मज़े से जब जी चाहता पहनती थी,

दोनों का नाप भी लगभग एक ही था, लेकिन ये हार देते समय रूचि का मन पहली बार खराब था। दरअसल ये हार

उसे बहुत पंसद था। उसकी ममी ने भी बहुत ही चाव से उसके लिए ये हार पंसद किया था। साथ में मेल खाते हुए

झुमके और अँगूठी भी थी। अभी तो उसने जी भर कर हार पहना भी नहीं था। मजबूरी थी, खर्चे इतने बढ गए थे कि

सोना खरीदना वश से बाहर था। मांजी के पास भी पहनने भर के गहने ही बचे थे।वैसे भी माँ से ऐसी बात कभी की

नहीं थी। हार और झूमके ही नेग में नीलू को दिए गए। अँगूठी काफी पहनने के कारण थोड़ी पुरानी सी लगने लगी थी,

इसलिए नहीं दी गई। एकदम से उठकर उसने अपने कमरे में जाकर अपनी अलमारी खोली और वो अँगूठी निकाली।

हार से जाकर मिलाई, कि कहीं उसका भ्रम तो नहीं । लेकिन अंदर की और लगी हुई छोटी सी दुकानदार की मुहर भी

स्पष्ट थी।

समय पंख लगा कर उड़ता रहा। बाद में धीरे धीरे हालात ठीक हो गए। कोई कमी नहीं रही।

बहुत से गहने भी बन गए, मगर रूचि की यादों में उस हार की कसक कहीं न कहीं बाकी रह गई।नीलू भी अपनी घर

गृहस्थी में मगन हो गई। तीज त्यौहारों पर ही आना होता था। लेकिन उसे इतना पता था कि नीलू ने भी वो हार

अपनी नन्द की शादी में दे दिया था। उसके बाद तो वो हार पुराण को भूल ही चुकी थी। लेकिन आज फिर पुरानी यादें

उसके सामने आ गई।

 

अब तक रूचि थोड़ा सँभल चुकी थी।उसके होंठों पर फीकी सी मुस्कान तैर गई। सोचा, कभी मौका लगा

तो बहू से तरीके से इस हार के बारे में बात करेगी।हो सकता है आगे से आगे ये नेग के रूप में ही कई मंज़िले तय

करता हुआ वापिस उसके पास आ गया या फिर न जाने कितनी बार बिक चुका हो। और ये भी हो सकता है कि

कितनों को खुश करता और कितनों का दिल तोड़ता हुआ वापिस ये हार उसके पास नेग बन कर गया और नेग के रूप

में ही वापिस आ गया।हार की चमक आज भी वैसी की वैसी थी, लेकिन रूचि के अरमान इन तीस बरसों में बहुत

बदल चुके थे।

विमला गुगलानी

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