क्या करूं बहन मेरी तो तक़दीर ही फूटी है। – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अरे क्या हुआ भाभी जी आप तो बेटा बहू के पास गई थी ,कब वापस आ गई।आप तो कुछ दिन रहने के लिए गई थी न । कुछ दिन क्या अब तो आपको उन्हीं के पास रहना चाहिए ।विजय भाई साहब की इतनी तबियत खराब रहती है कितना कितना तो उनका आपरेशन हो चुका है कितना करेंगी आप ।

हम लोग तो कितने बरसों से देख रहे हैं आप सबकुछ अकेले दम पर करती आ रही है । लेकिन अब आपकी भी तो उम्र हो रही है 70 के पास पहुंच रही है कबतक करती रहेगी । बेटा नहीं समझता क्या कुछ कि अब मां की भी उम्र हो रही है ।जानकी जी जो इतनी देर से अपने दोनों पडोसिनी की बातें सुन रही थी बोल पड़ी सही कह रही हो तुम दोनों मुझको बेटे बहू के पास रहना चाहिए।

लेकिन जिसकी तकदीर ही फूटी हो वो कैसे सुख से रह सकती है ।और शायद ईश्वर ने मेरी तकदीर में सुख लिखा ही नहीं है। कैसे बेटा बहू , मुझे तो ईश्वर ने अकेले ही जूझते रहने के लिए इस दुनिया में भेजा है । आजकल किसी बेटे बहू को अच्छा नहीं लगता कि सास ससुर साथ में रहे उनकी आजादी में खलल पड़ता है।

            हां जानकी भाभी आप सही कह रही है हर घर का आजकल यही किस्सा हो गया है आपका ही क्या। मिसेज गुप्ता के यहां देख लो एक ही घर में रहते हुए सास ससुर और बेटा बहू का अलग अलग खाना बनता है । जबकि गुप्ता भाभी जी भी कितनी वृद्ध हो गई है । बाकी सब काम को तो नौकर लगे हैं लेकिन खाना बनाने को नहीं लगाती ।

कुछ पुराने लोगों को अभी भी है कि सब काम तो नौकर से करवा लो लेकिन खाना का समझ में नहीं आता ।और अब इस उम्र में कितना सा खाना चाहिए दो दो रोटी खानी है हमें और गुप्ता जी को बस । चलते फिरते कर लेती हूं । हां कभी कभी इच्छा होती है कि बना बनाया मिल जाए लेकिन यह सब सबके नसीब में कहा होता है बेटा।

          और दूर क्यों जाती है कांता जानकी जी बोली अब शुक्ला जी की बहू को देख लो सास को ब्रेन हेमरेज हो गया था लकवा मार गया था । अस्पताल से तो घर ले आए लेकिन शुक्ला भाभी का सबकुछ बिस्तर पर ही हो रहा है ।साफ सफाई खाना पीना और दैनिक कार्यक्रम भी । लेकिन सब कुछ बहू कितने अच्छे से कर रही है ।

अब तो शुक्ला भाभी थोड़ा थोड़ा बैठ भी जाती है और इशारे से बात भी समझ जाती है ।जो जाता है उनके यहां सब बहू बेटा को इतना आशीर्वाद देकर आते हैं कि सबको ऐसी बहू दे कितना ध्यान रखती है बहू भी और बेटा भी ।

अब तो हल्का हल्का सा बोलने भी लगी है । हां कांता बहन दुनिया में सभी की तकदीर नहीं फूटी होती कोई कोई अच्छी तकदीर भी लेकर आती है ।अच्छे बेटा बहू भी होते हैं सभी खराब नहीं होते । लेकिन ये भी किस्मत वालों को ही मिलता है।

               अब क्या बताऊं आपको कांता बहन कल मैं शर्मा जी के घर गई थी । मेरी पहचान है उनसे ।पति तो पहले ही चले गए थे दुनिया से अब शर्मा भाभी जी है 88 साल की उम्र हो रही है उनकी ।चार चार बेटे हैं और एक बेटी है अभी कुछ दिन पहले बीमार हुईं तो पता चला कि आंतें सड गई है गैंग्रीन हो गया है उसका आपरेशन कराना पड़ेगा ।

कोई भी बेटा साथ जाने को तैयार नहीं था । बेटी और दामाद बाम्बे से आए तो उन्होंने आपरेशन कराया ।और एक आपरेशन के बाद कुछ काम्पलीकेशन हो गया तो फिर से दो आपरेशन और कराना पड़ा । कोई भी बेटा बहू देखभाल करने को तैयार नहीं। पैसा भी बेटी ने ही खर्च किया । शर्मा भाभी जी को 50 हजार पेंशन मिलती थी तो सारे लड़के ले लेते थे उसका पैसा मां से ।

आजकल बहुत जमाना खराब आ गया है भाभी जी । जबतक आपके हाथ पैर चलते रहे तो ठीक है नहीं तो कोई नहीं पूछता ।अरे जब हाथ पांव चल रहे हैं तब नहीं कोई पूछ रहा है तो जब बेबस और लाचार हो जाएंगे तो क्या होगा भगवान ही जाने।

             जानकी जी के एक बेटा है ।बड़ी हुलास से शादी की थी बेटे की । कितने सपने संजोए थे ऐसे रखुगीं बहू को वैसे रखूंगी । जबकि बेटा बहू दिल्ली में रहते थे और जानकी जी और उनके पति अपने गृहनगर के घर में रहते थे।बेटे के शादी के बाद वटसावित्री की पूजा आई तो बहू को बताने के लिए जानकी जी पति के साथ बेटे बहू के पास चली गई थी ।

कुछ दिन रहने की सोचकर गई थी । लेकिन वहां तो कुछ और ही माहौल था।बहू भी नौकरी करती थी तो उसको सास ससुर नहीं चाहिए ।बेबाक तरीके से रहना, अपनी मनमानी करना , ऊटपटांग कपड़े पहनकर घूमना । सिर्फ अपनी चाय बना कर कमरे में चली जाती थी। बाकी दिन तो आफिस रहता लेकिन छुट्टी वाले दिन दोपहर के दो बजे तक उठना।

घर में कोई आया है कोई मतलब नहीं जानकी जी बस बच्चों के उठने का इंतजार करती रहती कि उठे तो कुछ खाना नाश्ता का पता चले ।और छुट्टी वाले दिन दोपहर को दोनों तैयार होकर कमरे से बाहर निकलते और घूमने चले जाते। जानकी जी से कोई मतलब नहीं ।जब पूछा जाता तो बोलते अब पांच दिन तो समय मिलता नहीं है हम लोगों को तो दो दिन घूमने फिरने में निकाल देते हैं ।

नहीं मम्मी पापा के खाने पीने की कोई चिंता अब पता तो है कि मम्मी सब कर लेती है तो खाना का क्या बना लेंगी।जब ऐसे ही चलता रहा तो जानकी जी पति के साथ वापस घर आ गई। लेकिन बाद में बेटे बहू का आपस में पटरी नहीं बैठी तो ढाई साल बाद बेटे का तलाक हो गया ।

आजकल के समय में तलाक एक मामूली सी बात होकर रह गई है नहीं पट रही है तो तलाक ले लो । समझौता करने की कोई कोशिश नहीं होती फिलहाल।

            अब बेटे के तलाक के दो साल बाद बेटे की फिर शादी का सोचा । मां बाप की बच्चे के प्रति जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती। फिर शादी की तो जानकी जी ने सोचा शायद अब ठीक रहेगा लेकिन जब तकदीर फूटी हो तो कुछ भी अच्छा नहीं होता है। जबकि जानकी जी ने बेटा न बहू किसी पर भी किसी तरह से आश्रित नहीं थी

वो अपना सबकुछ खुद करने में सक्षम थी। लेकिन यदि मां बाप बेटा बहू के घर गए हैं तो बड़े होने के नाते कुछ तो तवज्जो चाहिए होती है ।अब अचानक से जानकी जी के पति का घुटनों का आपरेशन कराने जाना पड़ा और फिर इस बहू के पास पहली बार गई । वहां पापा को मेदांता में भर्ती करा कर बेटा सब देखता रहा। यहां जानकी जी घर में सबका खाना नाश्ता सब बनाती रही ।

सुबह उठती तो बर्तन नहीं होता था चाय बनाने को क्योंकि बहू को आदत थी बार बार काफी पीने की तो वो सारे चाय के पैन झूठे करके रख देती थी ।

सुबह जब जानकी जी उठती थी तो पहले चाय का पैन और कप साफ करती थी तब जाकर चाय बनाती थी ।बहू अपने कमरे में ऐसी चला कर बैठी रहती थी बाहर ही न निकलती थी। सबके खाने के साथ बहू का भी खाना बना कर रखती थी । सबकुछ देखती रही पर शांत रही ।

         अस्पताल से पति के घर आ जाने पर एक हफ्ते बाद फिर से चेकअप कराना था तो वहां रूकना पड़ा।एक दिन रसोई में कुछ सामान खत्म हो गया था तो जानकी जी ने बहू से कह दिया कुछ काम नहीं करती तो कम से कम जो सामान खत्म हो गया है देखकर उसे ही मंगवा लो तो बहू ने तपाक से उत्तर दिया खाना आप बना रही है

तो आप देखो ये मेरा काम नहीं है । जानकी जी ने कहा तो क्या मैं तुम्हारे घर की नौकरानी बन कर आई हूं क्या, नौकरानी की क्या बात है बहू बोली अपने घर में खाना बनाती थी सो यहां भी बना लिया तो कौन सी बड़ी बात हो गई ।

आप सास लोगों को तो बस बहू से झगड़ा करने का बहाना चाहिए होता है। देखिए मुझे अकेले रहने की आदत है मेरा जब मन होगा तब मैं करूंगी वरना नहीं मैं तो बाजार से मंगवा लूंगी। जानकी जी चुप रह गई क्योंकि पति बीमार थे।एक हफ्ते बाद वो पति का दुबारा चेकअप करा कर अपने घर वापस आ गई ।

            घर आकर सोचने लगी कि मेरी तो तक़दीर ही फूटी है। मेरे  नसीब में ईश्वर ने  सुख लिखा ही नहीं है।बेटे की दो दो शादी हुई लेकिन किसी से सुख मिला ही नहीं। जानकी जी के वापस आने पर बहू बेटे में झगड़ा हो गया ।बेटे ने बहू से कुछ कहा होगा कि मम्मी आई थी तो तुमने गलत व्यवहार किया तो बहू ने जानकी जी के फोन पर कहा रही थी मेरी सुखी गृहस्थी में आग लगाने आई थी आप ,

आपकी वजह से आपका बेटा मुझसे लड़ रहा है ।आप लोग अब मत आना यहां मेरा घर तोडने । जानकी जी कांता से बोली अब बताओ मेरी किस्मत फूटी है कि नहीं । हां भाभी जी क्या कहूं इसको तकदीर का फूटना ही तो कहेंगे न दो दो शादी के बाद भी बहू बेटे का सुख न मिल सका।अब मैं अपने घर और वो अपने घर में रहे बस इसी में शांति है जानकी जी बोली , हां भाभी जी आप सही कह रही है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

24 मई

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