गलती – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 दूसरों की गलती निकालना और उस गलती की भरपाई या सुधार के लिये उसे बाध्य करना इंसान की फितरत होती है।मालती का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही था।ठेले पर चुन-चुनकर फल- सब्ज़ियाँ खरीदना और बेचने वालों से मोल-भाव कराने में उसे बहुत आनंद आता था।खुद चाहे फ़्रीज़ में दस दिन तक पालक सड़ाकर फेंक दे लेकिन अगर गलती से भी उसके पास कोई टमाटर सड़ा हुआ आ जाए

तो अगले दिन वो याद करके उस ठेलेवाले को वापस कर देती और एक फ़्रेश टमाटर ले लेती।उसकी पड़ोसिनें कहती भी कि ये बेचारा इतनी कड़ी धूप में चलकर हमारे घर तक हमें सब्ज़ियाँ पहुँचा दे देता है..इसे कम पैसे देना, मतलब इसका हक मारना है लेकिन वो उनकी बातों को अनसुना कर देती।

     एक दिन उसने गैस पर दूध उबालने के लिये रखा था।आँच धीमी थी, यह सोचकर वो अलमारी में कपड़े रखने लगी।तभी उसे दूध गिरने की महक आने लगी तो वो किचन में दौड़ी।तब तक एक चौथाई दूध गिर चुका था।यही काम उसकी मेड या पति से होता तो वो उन पर बरस पड़ती।मेड को तो शायद सप्ताह तक चाय भी न देती लेकिन अपनी गलती पर किसको डाँटे..।

बेमन-से वो गैस के स्टैंड और चूल्हे के नीचे गिरे दूध को एक कपड़े से पोंछ-पोंछकर एक बरतन में निचोड़ने लगी।तब उसने देखा कि वो पाव भर(250 ml) दूध था।तब उसे याद आया कि जब कभी दूध वाले से भगोने में दूध डालते समय दो चम्मच भी दूध गिर जाता तो वो उससे तुरंत एकस्ट्रा दूध अपने बरतन में डलवा लेती थी।

हालांकि दूधवाला कहता भी कि कल ले लीजियेगा.., लेकिन वो एक न सुनती थी।लेकिन आज तो उससे ही इतना दूध बह गया है…ये भरपाई कैसे…।

       तब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ कि जो गलती आज उससे हुई , वो तो किसी से भी हो सकती है।इंसान हैं तो गलती होना स्वाभाविक ही है..उसके लिये किसी से झगड़ना या हुज्जत करना तो उचित नहीं है।उस दिन के बाद से उसने न तो कभी ठेले वाले से मोल-भाव किया और न ही दूधवाले से एकस्ट्रा दूध लेने की डिमांड की।

                                   विभा गुप्ता

                               स्वरचित, बैंगलुरु

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