“अरे! आओ जिज्जी! बड़े दिनों बाद चक्कर लगा!सब ठीक-ठाक तो है ना?”शीला जी ने बड़ी बहन मीना को टैक्सी से उतरते देख कर पूछा!
“क्या बताऊं बहना दोनों बहुओं ने नाक में दम कर रखा है!
उतरते ही शीला के गले लग कर रूआंसी होकर मीना ने अपनी रामकहानी शुरु कर दी!
कहने को चचेरी बहनें हैं !बड़ी बहू सुधा ने खुद ही मेरे पीछे पड़ पड़कर मेरे रत्न का रिश्ता सुमन से करवाया था!कहती थी जानी बूझी लड़की है ,एक घर से आई है!मिल जुलकर रहेगी!पर यहाँ तो रोज ही किसी ना किसी बात को लेकर महाभारत मचा हुआ रहे है!”
“अच्छा लो पहले ठंडा पानी पियो आराम से बैठो ,शांत हो लो तब बताना बात क्या है” शीला ने मीना को कूलर के आगे बैठाकर अपनी बहू नीता को आवाज दी!”नीता बेटा देखो मौसी आई हैं!
तब तक नीता ट्रे में नाश्ता और शर्बत लेकर आ गई!
मीना जी ने रो रोकर अपना बहू पुराण शुरु कर दिया!
बेटों के ब्याह के बाद उन्होंने घर के कामों की सारी जिम्मेवारी तो बहुओं के ऊपर डाल दी थी!पर घर का कंट्रोल अपने हाथ में रखा!
शीला जानती थी कि उसकी बहन मीना अपनी बहुओं को शुरू से ही दबा कर रखती थी,कोशिश करती कि कहीं बेटे अपनी पत्नियों के चंगुल में फंसकर सास को किनारे ना कर दें! वे उनको बिना पैसे की नौकरानी सी रखतीं!
बेटों ,रिश्तेदारों और आस पडोस के लोगों से बहुओं की बुराई करना उनका प्रिय शगल था!
अपने ही घर में दोनों बहुओं से एक दूसरे की चुगली कर “डिवाइड एंड रूल”की पालिसी अपना कर मीना जी खूब खुश रहतीं!
अपने लालची स्वभाव के कारण मीना जी जिस बहू के मायके से कम लिया दिया जाता उसे हेय दृष्टि से देखती उसके सामने दूसरी के मायके का गुणगान करती न थकती!
दोनों बहुऐं मीना जी से एक दूसरे की बुराई सुन सुनकर आपस में अलग होती चली गईं!दोनों में 36का आंकड़ा हो गया!वे एक दूसरे को फूटी आंख ना सुहाती!बहुओं की आऐ दिन की तू तू मैं मैं की वजह से दोनों भाईयों के रिश्ते में भी दरार आने लगी! बच्चे भी एक दूसरे से मार पीटकर घर में कोहराम मचाऐ रखते!
हर वक्त की चखचख और उनके व्यवहार के कारण घर में कलह का वातावरण रहता,घर की चैन शांति भंग हो गई!
मीना जी की लगाई गई आग में जब वे खुद ही झुलसने लगी तो भागकर शीला के पास चली आईं!
शीला जी के घर आकर मीना यह देख कर दंग थी कि कैसे नीता ने शीला के बिना कुछ कहे पूरा घर संभाला हुआ था!
मीना जी ने देखा शीला की बड़ी बहू नैना गायनोकोलोजिस्ट थी वह हस्पताल जाती थी!उसका एक साल का बेटा था!जिसे नीता और शीला जी मिलकर दिन भर संभाला करतीं!
नैना हस्पताल जाने से पहले और शाम को लौट कर यथासंभव किचन का काम करती! वह बेफिक्र होकर अपने काम पर जाती क्योंकि वह जानती थी कि उसके बच्चे की दादी और चाची बच्चे को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हैं!
शीला जी अपनी बहुओं में कोई भेदभाव ना रखतीं!
मीना जी ने देखा राखी पर नीता का भाई आया!नैना ने हस्पताल से छुट्टी लेकर सारा नाश्ता खाना बनाया जिससे नीता और उसके भाई को कुछ देर साथ बैठने को मिल जाए!
मीना जी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि नीता के भाई ने नीता के साथ साथ नैना
से भी राखी बंधवाई!नीता की मां ने नीता और नैना के लिए एक जैसी साड़ी भेजी थी!
शीला जी ने बताया नैना के कोई भाई नहीं है!जब से ब्याह हुआ नीता का भाई ही उससे राखी बंधवा रहा है!
जब नीता मां बनने वाली हुई तो नैना ने उसके खाने पीने दवाई आदि टाइम से खिलाने का जिम्मा खुद ले लिया!शीला जी ने भी नीता को घर का काम बंद कराकर ज्यादा से ज्यादा आराम करने करने को कह दिया!
नैना के मां-बाप बहन भाई कोई नहीं था ! इसीलिए परिवार में सबसे बहुत लाड-प्यार मिलने की वजह से वह भी सबका जी जान से ख्याल रखती!
शीला जी और नीता के होते हुए उसे कभी महसूस नहीं हुआ कि उसके मायके में कोई नहीं है!
एक कामयाब डॉक्टर होने के बावजूद अभिमान उसे रत्तीभर भी छू नहीं गया था!
नैना नीता को सगी छोटी बहन का प्यार दुलार देती!
तो नीता भी उसे सगी बहन सा मान देती!
दोनों के बीच अपना तेरा और दुराव की भावना नहीं थी!
एक दूसरे की छोटी से छोटी पसंद नापसंद का ख्याल रखतीं!
वे बेहिचक कोई भी बात एक दूसरे से कर लेतीं!
उन्हें देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वे बहने नहीं देवरानी जेठानी हैं!
दोनों भाईयों में तो खैर खून का रिश्ता था परन्तु दो अलग अलग घर से आई पराई लड़कियों ने घर को एक सूत्र में पिरोकर मिसाल कायम कर रखी थी!
उन दोनों के आपसी प्यार की वजह से शीला जी के दोनों बेटों में भी प्रेम और सौहार्द बना हुआ था!
शीला जी अपने को बहुत भाग्यशाली समझती कि उन्हें ऐसी सौम्य,सुशील,स्नेहिल,सद्गुणी,संभ्रांत और संस्कारी बहुऐं मिलीं!जिनके कारण उनके घर में सुख,शांति और समृद्धि का वास है!
वे स्वयं, उनके अड़ोसी पड़ोसी और उनके जान पहचान वाले कहते नहीं थकते कि ये बहुऐं बहनों की तरह रहती हैं!
मीना जी को आत्मग्लानि हुई यह देख कर कि एक उनका घर है जहां दो बहुऐं दो दुश्मनों की तरह रहती हैं एक शीला जी का घर है जहां बहुऐं बहनों से भी बढ़कर हैं!काश उन्होंने दोनों बहुओं के मन में दुर्भावना का बीज न बोया होता जिसका कड़वा फल उन्हें खुद को ही चखना पड़ रहा है!
अब पछताने से कोई फायदा नहीं!
अक्सर गृह कलह का कारण सास बहू या देवरानी जेठानी के आपसी संबंध होते हैं!अगर इन रिश्तों को धैर्य ,बर्दाश्त,आपसी समझ और जिम्मेदारी से निभाया जाए तो घर शायद स्वर्ग से भी सुंदर बन जाए! जरूरत है तो दिलों में गुंजाइश रखने की!
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कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक