सुनहरा प्यार –   संगीता श्रीवास्तव

बात उन दिनों की है, जब नैना और निशांत स्कूल की पढ़ाई के बाद कॉलेज में दाखिला लेने पहुंचे थे। दोनों अपने -अपने पापा के साथ आए थे। नैना और निशांत के पापा जब आमने-सामने दिखे, तो दोनों एक साथ बोल पड़े थे, अरे…… तुम ….. तुम … कहते हुए एक दूसरे से लिपट गए थे। जमाने बाद मिले थे दोनों।

          “यहां कैसे? ट्रांसफर हो गया है तुम्हारा?”नैना के पापा ने पूछा।

  “हां, 1 महीने पहले। मैंने सोचा, तुम्हारे घर पहुंच तुम्हें सरप्राइज़ दूं। तुम तो यहीं मिल गये यार!! चलो कोई बात नहीं।”

निशांत के पापा ने कहा।

“यह मेरी बिटिया, नैना है। इसके एडमिशन के लिए आया हूं।” नैना के पापा ने कहा।

“मैं निशांत।”निशांत बीच में ही तपाक से बोल पड़ा। नैना और निशांत दोनों एक दूसरे को देख मुस्कराये।

   ‌ नैना ‌के पापा पढ़ाई समाप्त करने के बाद बिजनेस ‌करने लगे‌ और निशांत के पापा सरकारी नौकरी।जब छुट्टियां होती थी तब दोनों दोस्त मिलते थे। निशांत के पापा का ट्रांसफर होता रहता था। कुछ महीनों से निशांत के दादाजी की तबीयत खराब रहने लगी थी। बहुत प्रयास के‌ पश्चात ट्रांसफर होम डिस्ट्रिक्ट में हो पाया था जिससे कि वे अपने बाबूजी की देखरेख कर सकें।

दाखिला के बाद दोनों का मिलना जुलना होते रहा क्योंकि इनका संकाय एक ही था। दोनों के पापा की दोस्ती होने के बावजूद नैना और निशांत एक दूसरे के घर नहीं जाते थे। नैना की मां पुराने खयालात की थी। उन्हें लड़का – लड़की की दोस्ती पसंद  नहीं थी इसलिए नैना न निशांत के यहां जाती थी और ना ही निशांत नैना के यहां।

   नैना और निशांत एक दूसरे को पसंद करते थे। धीरे-धीरे इनमें लगाव बढ़ता गया और लगाव धीरे धीरे प्यार में बदल गया।

निशांत, नैना और अपने प्यार की बात अपने मम्मी पापा तक  पहुंचा




चुका था, पर नैना नहीं…..।

   एक दिन निशांत ने नैना से कहा -“क्या तुम मेरे घर आओगी? आओगी न? मैं अपने मम्मी पापा से मिलवाऊंगा। मेरे मम्मी पापा बहुत अच्छे हैं। मैंने सब कुछ उन्हें बता दिया है कि कैसे तुमने मुझे लूट लिया है।”धत्! क्या कह रहे हो तुम!

सच ही तो कह रहा हूं। तूने मेरे मन को लूट लिया, मेरे दिल को लूट लिया……, कितने जतन से संभाल कर रखा था मैंने अपने दिल को…….. और तुम तो बहुत बड़ी चोरनी निकली रे….। दिल को ही चुरा लिया।” नैना उसे मारने दौड़ी तो निशांत भागने लगा और नैना भी पीछे -पीछे भागने लगी थी। हांफते  हुए नैना ने कहा,”अब रुक भी जाओ, अब मैं नहीं दौड़ पाऊंगी।”वह खड़ी हो हांफने लगी।

“अच्छा बाबा, अब नहीं भागूंगा।”कहते हुए निशांत ने उसे अपने बाहुपाश में ले लिया। कुछ देर शांत हो दोनों एक दूसरे की धड़कनों को सुनते रहे। इन दोनों का प्यार उफान पर था, लेकिन संयमित था। कुछ घंटे साथ रहने के बाद दोनों अपने अपने घर को चल दिए।

   नैना के मम्मी पापा को इनके प्यार के बारे में कुछ भी भनक नहीं थी।

बी.एससी. करने के बाद नैना किसी प्राइवेट सेक्टर में जॉब करने लगी और निशांत एयरफोर्स में लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर जॉब करने लगा। अलग -अलग रहने पर भी इनके प्यार अलग नहीं हुए। निशांत जब छुट्टियों में आता था तब दोनों का मिलना हो पाता था। निशांत अपने मम्मी -पापा को नैना से प्यार के बारे में बता चुका था। समय बीतता गया। निशांत के पापा सोच रहे थे कि अब निशांत की शादी कर देनी चाहिए। क्यों न नैना के घर जा उसकी इच्छाओं को जानू। सो ,एक दिन निशांत के पापा नैना के यहां धमक पड़े। नैना के पापा से घंटो बातें होती रहीं। बातचीत का सिलसिला चलता रहा। तभी, नैना चाय- नाश्ता के साथ पहुंची और निशांत के पापा के पैर छू चली गई। मौका देख निशांत के पापा ने कहा,”अच्छा यार ,ये बताओ, बिटिया की शादी कब करोगे?”




              “यार, तुमने तो मेरे मन की बात कह दी। मैं तुमसे इस बारे में बात करने ही वाला था।”

“बता, कोई अच्छा -सा लड़का!”

         “लड़का क्या बताना, तुम तो जानते ही हो?”

      “कहां है, कौन है?बताओ।?

“अरे, वही निशांत शर्मा।”निशांत के पापा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“क्या अपना निशांत?”नैना के पापा ने कहा।

“हां यार! अपना निशांत ।”निशांत के पापा ने कहा।

“बात तो सही कहा, नैना से तो पूछ लूं !! नैना….. नैना,इधर आ बेटा।”नैना के पापा ने बुलाया। नैना आई। उससे इधर उधर की बातें करने के बाद निशांत के पापा ने पूछा

-“अच्छा बिटिया, यह बता निशांत तुम्हें पसंद है? करेगी उससे शादी?”

नैना शर्माती हुई, सिर को हिलाते हुए हामी भर दी और दौड़कर अंदर चली गई। दोनों दोस्त एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुराने लगे।

शुभ मुहूर्त पर नैना और निशांत की शादी हो गई। दोनों बहुत खुश थे और निशांत के मम्मी -पापा बेहद खुश क्यों कि नैना ने अपने स्वभाव से सबको जीत लिया था।

‌चूकि नैना भी नौकरी करती थी इसलिए वह निशांत के पास नहीं रहती थी।वह ससुराल में ही रहती थी।




                            शादी के बाद की दूसरी होली…. निशांत का फोन आया,वह होली में नहीं आ रहा। छुट्टियां नहीं मिली। नैना उदास थी, खामोश थी…..।

मोहल्ले वालों के साथ उसने रंग खेला लेकिन निशांत के बिना होली अधूरी लग रही थी। होली मिलने जिनको आना था आए और चले भी गए।

    लोगो के चले जाने के बाद…..

बालकनी में खड़ी नैना अपनी पनीली नैनों से एकटक शून्य में देखें जा रही थी, सबसे बेखबर………खूद से बेखबर।

शादी के बाद निशांत के साथ की पहली ‌होली की याद आने लगी थी……कि कैसे.. सबके बीच में उसे खींच कर रंगों से सराबोर कर दिया था और नाचते हुए,”रंग बरसे भींगे चुनर वाली रंग बरसे….. गाने लगा था।तब नैना मारे शर्म से लाल, नहीं.. नहीं,सूर्ख लाल हो गई थी।

नैना बेचैन हो बालकनी से अपने कमरे में आ दरवाजा बंद कर लेट गई।

बहुत प्रयास से, निशांत को एक दिन की छुट्टी मिल गई। वह बिना बताए फ्लाइट से घर पहुंचा। वह नैना को सरप्राइस देना चाहता था। मम्मी -पापा से मिल, उन्हें इशारे से चुप करा, सीधे नैना के कमरे की तरफ रंगों से भरी बाल्टी लेकर भागा।

दरवाजे पर आकर उसने फोन की घंटी बजाई। ट्रिन….. ट्रिन…। नैना ने झट से फोन उठाया… हेलो…

उधर से निशांत ने हौले से कहा -“दरवाजा खोलो, सामने खड़ा हूं।” क्यों झूठ बोल सता रहे हो मुझे? नैना ने रुंआसे होकर कहा।

  ” सच,सच मैं आ गया हूं। अरे, अचानक से मेरी छुट्टी ‌को मंजूरी मिल गई और मैं भागा-भागा चला आया।अब तो दरवाजा खोलो।ठीक है, नहीं खोलती, तो जाता हूं।”

“अरे, नहीं.. नहीं, खोलती हूं।”

जैसे ही नैना ने दरवाजा खोला, रंगों से भरी बाल्टी को नैना पर उढेल दिया और उसे गोद में उठा गोल -गोल घूम गया।तब नैना का तन ही नहीं ,मन भी रंग गया था….।

  संगीता श्रीवास्तव

  ‌ लखनऊ।

स्वरचित, अप्रकाशित।

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