विमला जी ने अपना बिखरा सामान समेट कर बैग में रख लिया और अटैची में अपने कपड़े करीने से लगा दिए । टेबल पर रखी पति की फोटो भी उठा कर रख ली और बाहर निकल पड़ी । गार्ड को फ्लैट की चाबी दी और नारायण राय जी के साथ कैब से स्टेशन आ गई ।अब विमला जी को नारायण राय जी ने ट्रेन में बैठा दिया और कहा पहुंच कर भाभी फोन कर देना ।
अच्छा भइया ।और विमला जी आ गई अपने घर ।घर पहुंचीं ताला खोला तभी आहट सुनकर जेठ जी की बड़ी बहू आ गई और विमला जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और बोली चाचाजी आप अकेले कैसे आ गईं । अकेले दुकेले क्या होता है बहू तेरे चाचा जी के दोस्त नारायण राय आते थे न यहां हां हां देखा है मैंने चाचा जी से मिलने आते थे बस उन्हीं ने ट्रेन में बिठा दिया और आ गई ।
अब इतनी भी अनपढ़ गंवार नहीं है तेरी चाची । अच्छा अच्छा आप हाथ मुंह धो लें मैं चाय नाश्ता ले आती हूं और हां रात का खाना भी हमारे साथ ही खा लेना अब अकेले बनाने न लग जाना। इतना कहकर अमिता बहू चली गई।
चाय नाश्ता करने के बाद विमला जी आराम करने लग गई तभी फोन बजा उठा उधर से बेटे शिवम् का फोन था और कहा है मां ये फ्लैट की चाभी गार्ड को देकर कहां चली गई आप । अपने घर आ गई बेटा , अपने घर तो क्या यहां आपका घर नहीं था क्या । नहीं बेटा अपना घर तो ये है जहां मैं तेरे बाबूजी के साथ ब्याह कर आई थी ।
जिंदगी के इतने साल बिताए ।ये अलग बात है कि तेरे बाबूजी पूरे सफर में मेरा साथ नही निभा पाए और बीच राह में छोड़ कर चले गए । लेकिन सम्मान से जीना सीखा गए वो हमेशा कहते थे कि सम्मान से जीना चाहें नमक रोटी खा कर रह लेना लेकिन अपमान सहकर मत रहना । इसलिए बेटा मैं अपने घर में सम्मान की सूखी रोटी खाकर रह लूंगी,
तेरे यहां के अपमान के छतीस व्यंजन भी हमारे लिए बेकार है।बहू तो बहू तू भी मेरा अपमान करने से नहीं चूकता था ।अब मैं यही रहूंगी और यही से मेरी अंतिम यात्रा भी निकलेगी कहकर विमला जी ने फोन रख दिया ।
और सोचने लगी कितने मनुहार करने पर मैं बेटे शिवम् के साथ उसके घर गई थी। अचानक पति श्यामलाल जी चल बसे । शिवम् इकलौता बेटा था तो अपनी जिम्मेदारी समझ कर मां से कहने लगा कि अब यहां अकेले कैसे रहोगी चलो मेरे साथ ।
विमला जी ने मना भी किया कि अकेली कहां हूं यहां तेरे ताऊ जी का परिवार है ।भले अब ताऊजी और ताई जी नहीं है तो क्या बड़ी बहू और बेटा मेरा खूब ख्याल रखते हैं मैं यह लूंगी। लेकिन शिवम् नहीं माना ।
श्यामलाल जी की किराने की दुकान थी । पैसा संभाल कर खर्च करते थे कुछ जोड़कर बैंक में भी रखा था विमला को बताते रहते थे कि यदि हममें से कोई एक न रहा तो कुछ पैसे बैंक में जमा है जिंदगी बसर हो जाएगी । लेकिन बेटे के बहकावे में आकर सब पैसा उसको मत दे देना अपने लिए रखना। वैसे जेठ के बेटा बहू कहते रहते थे
कि चाची अब अलग क्या बनाती है हमारे संग खा लिया करो बुढ़ापे में कितना सा खाना होता है ।तो विमला जी कभी जेठ के बेटे बहू के यहां तो कभी अपने आप बना लेती थी।जेठ के दो बेटे थे जिसमें बड़े बेटा बहू बड़े संस्कारी और बड़ों को मान सम्मान देने वाले थे।
शिवम् के मनुहार करने पर विमला जी शिवम् के घर आईं थीं । वहां आकर दो कमरे के फ्लैट में समझ नहीं आ रहा था कि कहां सामान रखें । फिर शिवम् बोला मां अभी बैठो आपके लेटने बैठने का इंतजाम अभी करता हूं ।शिवम् अंदर गया जो अभी तक बाहर निकल कर विमला जी से मिली भी नहीं थी शिवम् मेघा से बोला अब मां को तो ले आया हूं पर समझ नहीं आ रहा है मां को कहां जगह दूं ।
मेघा ने चिढ़कर कहा अब पता है फ्लैट में जगह नहीं है तो क्यों लेकर आए ।अब खुद ही व्यवस्था करो मुझे मालूम नहीं है।शिवम् ने बाहर बरामदे में शेड के किनारे एक गद्दा डाल दिया और मां का सामान वहीं रख दिया जमीन पर । मां तुम यहीं सो जाना कहकर शिवम् कमरे में चला गया ।
दूसरे दिन सुबह जब मेघा सोकर उठी तो देखा मां जी अंदर सोफे पर सिकुड़ी हुई पड़ी थी । मेघा ने शिवम् को आवाज लगाई ये देखो तुम्हारी मां सोफे पर सो रही है सारा सोफ़ा खराब हो जाएगा सोफ़ा कोई सोने की जगह है क्या।
मां मां सोफे पर क्यों हो रही हो ,वो बेटा वहां मच्छर बहुत लग रहे थे और वारिश भी आ गई थी तो छींटे पड रहे थे कपड़े गीले हो रहे थे इसलिए यहां आ गई थी। अच्छा मां मैं आपके लिए आज एक फोल्डिंग पलंग ले आऊंगा और मच्छर का भी कुछ इंतजाम कर दूंगा ।
विमला जी को उठे बहुत देर हो गई लेकिन न अभी तक एक कप चाय ही मिली न कुछ नाश्ता । मेघा और शिवम् जल्दी जल्दी तैयार होकर अपना टिफिन लेकर आफिस को निकल गए । फिर खुद ही विमला जी ने एक कप चाय बनाई और कुछ बिस्किट लेकर बैठ गई। फिर नहा धोकर पूजा पाठ भी कर ली । दोपहर हो गई भूख लगने लगी
लेकिन खाने को कुछ नहीं था तो दो परांठे सेंके और अचार के साथ खा लिया।शाम को जब शिवम् और मेघा आफिस से आए अपने कमरे में घुस गए । विमला जी से दो दिन से कोई बात नहीं हुई थी
मेघा और शिवम् की । मेघा बोली शिवम् खाना बनाने का बिल्कुल मूड नहीं है पिज्जा आर्डर करो । पिज्जा आया और दोनों खा पीकर सो गए विमला जी से किसी ने पूछा भी नहीं । ऐसे ही चलता रहा कभी शाम को खाना बनता तो दो रोटी रखी रहती कभी सब्जी है तो कभी नहीं है वो दोनों कमरे में ही खा लेते विमला जी से कोई पूछता ही नहीं था।
ऐसे ही एक हफ्ता बीत गया एक दिन भी बेटा बहू से बात नहीं हुई।आज संडे था तो दोनों तैयार होकर बाहर जा रहे थे तो विमला जी ने पूंछ लिया बेटा कहीं जा रहे हो क्या हां मां आज छुट्टी है तो सारा दिन घूमने का प्लान है मूवी देखेंगे , शापिंग करेंगे फिर बाहर ही खाना खाकर फिर लौटेंगे और मेरे खाने का क्या होगा,आप अपने लिए कुछ बना लेना और घर की साफ सफाई कर देना मेघा बोली और रसोई भी ठीक ठाक कर देना। बेटा एक हफ्ता हो गया एक दिन भी ढंग से खाना नहीं मिला। कभी दो सूखी रोटी
पड़ी है न दाल है न सब्जी है ,न कुछ नाश्ता है आप बना लो अपना क्या किसी ने रोका है क्या अब मैं अपने लिए अलग से कुछ बनाए जो खाना बनता है मेघा बनाती है उसी में थोड़ा मेरा भी बना लिया करें ।अब मेघा को आफिस जाना होता है मां उसके पास इतना समय कहां है। हां बेटा सही कह रहे हो मेरे लिए दो रोटी बनाने को कहां समय है ।इस तरह बेटा बहू की बेरूखी देखकर विमला जी को बहुत दुख हुआ।इस तरह अपमान सहकर रहने से क्या फायदा । इससे तो अपना छोटा सा घर ही अच्छा था।भले ही अपने पेट से मैंने जेठ के बेटे को जन्म नहीं दिया था लेकिन बेटा और बहू मेरा कितना ख्याल रखते थे।। ज्यादा नहीं था लेकिन सम्मान से दो रोटी तो खा रहे थे।भले ही पति ने बहुत पैसे नहीं छोड़े थे लेकिन जो था उससे गुज़ारा हो जाता।
यहां आकर विमला जी अपने को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी लेटी थी अपने बिस्तर पर तभी नारायण राय जी का फोन आया जो श्यामराव जी के बड़े अच्छे मित्र थे। पूछने लगे अरे भाभी जी आप कहां है घर गया था मैं तो पता लगा आप बेटे के पास आई हैं।हां भइया अभी बीस दिन हुए हैं यही आए हुए शिवम् ले आया था।अब तो मेरा दोस्त नहीं है तो आपको अकेले न रहकर बेटे के साथ ही रहना चाहिए नारायण राय जी बोले। नारायण का बेटा भी दिल्ली में कहीं नौकरी करता था तो वहां आना जाना होता रहता था।और शिवम् भी दिल्ली में ही था। फिर विमला जी ने सोचा कमी न नारायण जी से कुछ मदद ली जाए और वो बोली नारायण भाई कुछ काम है आपसे हां बोलिए भाभी ,मुझेअपने घर जाना है क्या आप मेरा टिकट करा देंगे और टेन में बिठा देंगे। क्यों बेटे के पास कुछ तकलीफ़ है क्या नहीं घर की याद आ रही है विमला देवी बोली। अच्छा भाभी मैं कल बेटे के पास आ रहा हूं किसी डाक्टर से चेकअप कराना है तो आपका काम कर दूंगा।
और फिर विमला जी अपने घर आ गई ।अब फिर से बेटे के पास न जाने का वादा करके। विमला जी के घर में तीन कमरे थे तो एक कमरा बरामद अपने पास रखकर दो कमरे और रसोई किराए पर उठा दिया। अपना क्या कमरे में ही एक कोने में गैस रख ली जब कुछ खुद बनाना होता तो बना लेती वरना जेड की बहू तो ख्याल रखती ही थी।
विमला जी सोच रही थी अपने से बढ़कर तो पराए ख्याल रख रहे हैं । यहां आकर सम्मान की सूखी रोटी ही सही इज्जत से तो खा रही हूं । किसी की मोहताज तो नहीं हूं ।और यहां चार लोग जान पहचान को है सबसे बोलते चालते समय निकल जाता है।और बाकी समय अपना भगवान के ध्यान पूजा में लगा दिया। वहां बेटे के यहां बरामदे में लावारिस सी पड़ी थी न बहू ने बेटा कभी हार चाल पूछते थे।
पाठकों इंसान सबकुछ सही सकता है लेकिन अपमान और तिरस्कार नहीं। सम्मान की तो नमक रोटी भी किसी पकवान से कम नहीं लगती। आपकी क्या राय है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर
20 मई