भावना जी और शीला जी दोनों सगी बहनें थी। दोनों के ही दो दो विवाहित बेटे थे। शीला जी की दोनों बहुएं एक ही घर में ऊपर नीचे रहकर भी लड़ती ही रहती थी।
दोनों बहुओं की लड़ाइयों को सुलझाना और बहुओं को उलझाकर अपनी चौधराहट सिद्ध करना उनका एकमात्र शौक था। शीला जी के पति बहुत सालों पहले स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु पति की पेंशन इंश्योरेंस के पैसे एवं मकान गहने उनके पास किसी चीज की कमी नहीं थी।
शीला जी और भावना जी के इकलौते भाई रमन के बेटे का विवाह था। दोनों बहने साथ ही चली जाएंगी और विवाह के लिए कुछ खरीदारी मिलकर कर लेंगे ऐसा विचार करते हुए शीला जी अपनी बड़ी बहन भावना के घर एक सप्ताह पहले ही आ गई थी।
भावना जी की दोनों बहुएं बड़ी बहू विधि और छोटी नम्रता एक ही रसोई में खाना बनाती थी। विधि सरकारी स्कूल में टीचर थी। भावना जी के पति वर्मा जी की फर्नीचर की बहुत बड़ी दुकान थी। उनके दोनों बेटे भी उसी शोरूम में जाते थे। घर में एक ही रसोई थी। भावना जी की बड़ी बहू विधि के स्कूल जाने वाले एक बेटा और बेटी थे और छोटी नम्रता का बेटा 2 साल का था । उनके घर में सब प्यार से रहते थे।
शीला जी देख रही थी कि नम्रता सवेरे से ही रसोई के काम में लगी रहती थी। भावना जी भी उसके हर काम में मदद करती थी। घर के साफ सफाई के काम के लिए सुबह शाम शांताबाई सहायिका भी आती थी। शीला जी को आदतन अपनी बहन के घर की शांति हजम नहीं हो रही थी।
सुबह जब भावना जी नहाने धोने और पूजा करने में लगी थी और नम्रता खाना बना रही थी तभी शीला जी ने भी रसोई में आकर नम्रता को कहा तुम्हारे साथ इस घर में बुरा व्यवहार हो रहा है, तुम सारा दिन घर के काम में लगी रहती हो और तुम्हारी जेठानी मजे से लंच लेकर स्कूल चली जाती है। उसकी तो मौज है ।
तुम कोई इस घर की नौकर हो जो सारा काम करती हो। जीजी भी सारा काम तुमसे ही कहकर तुम्हारे साथ में पक्षपात कर रही है। मेरी बहुएं तो एक दूसरे का काम कभी भी ना करें , फिर उन्होंने अपना बहू पुराण तब तक जारी रखा जब तक कि भावना जी अपने पोते के साथ रसोई में नहीं आ गई।
शाम को मौका मिलने विधि को भी रसोई में काम करते हुए जब देखा तो उसके कान भरते हुए कहने लगी तुम तो सरकारी नौकरी करती हो, तुम्हारे दोनों बच्चे स्कूल से आने के बाद छोटी बहू के छोटे बच्चों को ही खिलाते रहते हैं ।इससे अच्छा तो तुम भी हमारी बहू के जैसे करो, जीजी के इस दो मंजिले मकान में ऊपर इतना बड़ा जिम और थिएटर बनाने का क्या फायदा? तुम ऊपर अलग हो जाओ और अपने बच्चों के और खुद के लिए कुक रखो। तुमको नम्रता का एहसान लेने की क्या जरूरत है?
भावना जी की दोनों बहुएं यह सब सुनकर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थी और वैसे ही घर का काम सुचारू गति से चल रहा था। चार दिन बाद शुक्रवार को शीला जी ने देखा कि नम्रता आज बिस्तर से भी नहीं उठी थी।
भावना जी और विधि ने ही मिलकर जल्दी से बच्चों का टिफिन बनाया और अपने परांठे बना कर विधि स्कूल चली गई थी। शीला जी को लगा शायद यह सब उनके सिखाने का ही असर है कि अब दोनों बहुओं में झगड़ा हो गया और उनमें से एक ने बिस्तर पकड़ लिया। अब उनके घर के जैसे ही यहां भी आरोप, प्रत्यारोप, और लड़ाइयां होंगी।
अपनी प्रसन्नता को छुपाते हुए उन्होंने भावना जी से कहा जीजी मैं कहती हूं कि दोनों के बीच में काम करके क्यों थकी जाती हो, इन्हें अलग करो और दोनों से अपनी सेवा करवाओ। दोनो घरों में से जहां अच्छा खाना बना हो वहां खाओ। भावना जी ने शीला जी से पूछा, तुम्हें मिल गया दो घरों का खाना ?
याद कर लो तुमने ही तो मुझे बताया था कि एक बार छोटी बहू के घर खाना खाते हुए तुमने बड़ी से हलवा मंगवा कर उसके हलवे की तारीफ कर ली थी तो छोटी ने गुस्से में बड़ी बहू को भी खरी खोटी सुनाई और यह भी कह दिया कि आप एक ही जगह खाना खाओगी? घर को होटल मत बनाओ। उसके बाद भी दोनों बहुएं लड़तीं रही।
लड़ें तो लड़ लें मैं तो तुम्हारी तरह से गृहस्थी के कोई काम नहीं करती। किसी के बालक नहीं संभालती।मंदिर जाती हूं पार्क में जाती हूं मनमानी करती हूं। आप जीजी अब अपनी शांताबाई के साथ मिलकर पूरे घर का खाना बनाना, कहकर मुंह बिचकाती हुई शीला जी दूसरे कमरे में चली गई। भावना जी चाय बनाकर अपने पोते को अपने साथ लेकर नम्रता के कमरे में उसे प्यार से चाय देने को चली गई।
शीला जी बड़बड़ाती रही,भैया इतनी गुलामी मेरे से तो ना होए।
थोड़ी देर में बनी हुई सब्जियां और गर्म रोटियां लेकर बाहर भोजनालय से एक आदमी आया था। शांताबाई ने हमेशा के जैसे सारा खाना डाइनिंग टेबल में पर जमा दिया था। शीला जी को हैरान होते देख भावना जी ने कहा आज नम्रता की तबीयत खराब थी ना तो इसलिए विधि ने स्कूल जाते हुए बस में से ही बने हुए खाने के आर्डर कर दिए होंगे।
वर्मा जी तो हमेशा से कहते हैं कि कुक भी रख लिया जाए परंतु नम्रता को सबको खाना खिलाना और खाना बनाने का बहुत शौक है।मेरी दोनों बहुएं आपस में बहन जैसी रहती है और एक दूसरे का बहुत ख्याल रखती हैं। शीला जी ने देखा भावना जी की बड़ी बहू स्कूल से आते ही सबसे पहले नम्रता का हाल पूछने गई।
उसे चाय बना कर बुखार की दवाई दी और शाम के खाने की तैयारी करने लगी। नम्रता बाहर भी आई तो विधि उससे कहा कल और परसों मेरी छुट्टी है मैं देख लूंगी, तुम आराम करो। शीला जी को तो लगा था उनकी योजना सफल हो गई परंतु यहां तो और भी ज्यादा प्यार गहरा रहा था। भावना जी ने शीला से कहा जीजी प्यार पाने के लिए प्यार करना भी पड़ता है।
तुम खुद ही बहुओं को अलग-अलग करकर लड़ाई को हवा देती रहोगी तो कैसे तुम्हारी दोनों बहू आपस में प्रेम कैसे करेंगी। घर में आपसी सामंजस्य बिठाने के लिए प्रेम और त्याग भी जरूरी होते हैं।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
मेरी बहुएं आपस में बहन जैसी रहती है प्रतियोगिता के अंतर्गत।