मासूम फूल मुरझाने ना पाए – संगीता अग्रवाल 

निशा अपनी बेटियों के कमरे मे बैठी एक कॉपी लिए लगातार आंसू बहा रही थी। वो कॉपी थी उसकी बड़ी बेटी श्रेया की। वो श्रेया जो कभी निशा की जान थी पर जबसे उसकी दूसरी बेटी पीहू आई तबसे ना जाने निशा को क्या हो गया वो बात बात पर श्रेया के साथ भेदभाव करती थी। निशा जाने कब तक आँसू बहाती रहती कि तभी….

” निशा मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है …निशा क्या हुआ तुम रो क्यो रही हो ?” तभी उसके पति तरुण ने आकर उसको झंझोड़ा।

” वो …मैं ..ये !” निशा जैसे होश मे ही नही थी अपने उसने वो कॉपी तरुण के आगे कर दी । 

” ये तो श्रेया की कॉपी है क्या लिखा है ऐसा इसमे ?” ये बोल तरुण उसमे लिखा नोट पढ़ने लगा।

” भगवान जी आप तो अच्छे बच्चो की बात सुनते हो ना तो मेरी भी बात सुन लो । मम्मा को मुझे देखकर अब गुस्सा आता है मम्मा मुझे कोई चीज भी नही लेने देती अब पहले मम्मा मुझे कितना प्यार करती थी पर अब उनकी अच्छी वाली बेटी पीहू हो गई तो अब मम्मा को मेरी जरूरत नही आप मुझे अपने पास बुला लो !” निशा और तरुण की आठ साल की बेटी ने अपनी कॉपी के पीछे यही लिख रखा था जिसे पढ़ तरुण सकते मे आ गया। 

” निशा मैं तुमसे पीहू के होने बाद से ही बोल रहा हूँ श्रेया के साथ तुम जो भेदभाव कर रही हो वो सही नही है वो भी सिर्फ इसलिए कि वो गोद ली हुई है । पर तुम भूल गई उसी गोद ली बच्ची ने हमें माता पिता बनने की खुशी दी थी वो भी तब जब हम हर जगह से निराश हो गये थे। और ये उसी बच्ची का भाग्य है जो हमें शादी के इतने सालो बाद पीहू के रूप मे मिला !” तरुण नोट पढ़ने के बाद ठंडी आह भरते हुए बोला ।

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” सच कहा तुमने तरुण मैं कैसे भूल गई वो मासूम बच्ची जो ये जानती तक नही कि वो गोद ली हुई है उसके साथ मैं ऐसे भेदभाव कर रही हूँ । क्या बीत रही होगी उसपर जो वो नन्ही सी बच्ची भगवान से मौत मांग रही है !” ये बोल निशा फूट फूट कर रो दी। तरुण उसे दिल्लासा दे फिलहाल ऑफिस के लिए निकल गया। निशा उसे भेज वापिस बच्चो के कमरे मे आ गई और श्रेया की तस्वीर उठा अतीत मे खो गई।

शादी के सात साल बाद भी निशा की गोद सूनी की सूनी थी कितना इलाज कराया कितनी मन्नते मांगी पर नतीजा जीरो। फिर थक हार कर उन्होंने बच्चा गोद लेने की सोची ओर काफी प्रयासों के बाद श्रेया उनकी सूनी जिंदगी को रोशन करने आ ही गई । दो माह की प्यारी सी बच्ची थी श्रेया जिसे निशा एक पल भी खुद से दूर ना करती प्यार तो तरुण भी बहुत करता उसे लेकिन निशा की तो सारी दुनिया श्रेया के इर्द गिर्द सिमट गई थी। वक़्त के साथ श्रेया बड़ी होने लगी और उसके चार साल का होते ही निशा ने अपने भीतर नव जीवन की आहत महसूस की । कितना खुश थे वो दोनो । इसे ईश्वर के चमत्कार के साथ साथ श्रेया के शुभ कदमो का प्रताप मानते थे वो जो शादी के इतने साल बाद निशा की गोद भरी थी। श्रेया भी खुश थी कि अब उसका भी भाई या बहन आएंगे। 

तय समय पर निशा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने पीहू रखा । सब कुछ अच्छा था पर अब एक चीज अच्छी नही थी। श्रेया के प्रति निशा का व्यवहार । श्रेया बहन के साथ खेलने आती तो निशा उसे दूर हटा देती। श्रेया पीहू का कोई खिलौना हाथ मे लेती तो निशा गंदा हो जायेगा कह छीन लेती । शुरु शुरु मे तरुण ने सोचा इतने सालो बाद माँ बनी है शायद इसलिए निशा पीहू को ले ज्यादा सावधान है वक़्त के साथ सब ठीक हो जायेगा । पर नही वक़्त के साथ सब ठीक होने की जगह और बिगड़ता जा रहा था । 

” मम्मी मम्मी मुझे कलर बॉक्स चाहिए !” पीहू के दो साल का होने पर एक दिन श्रेया बोली।




” क्या करने है कलर का बेफिजूल कॉपी भरती फिरोगी पढ़ाई करो जाकर चलो !” निशा ने डांटते हुए कहा। वो मासूम बच्ची सहम सी गई उसे पेंटिंग का शौक है ये निशा भी जानती है फिर भी । ये सिर्फ कलर बॉक्स की बात नही थी अब निशा को श्रेया का हर खर्च अखरने लगा था। जिस श्रेया के लिए निशा खुद एक एक चीज चुन कर लाती थी अब उसकी जरूरत की चीजे दिलवाने से भी कतराने लगी थी।। श्रेया माँ के पास आना चाहती तो निशा उसे दुत्कार देती , यहाँ तक की वो तरुण से भी दूर रखना चाहती उसे । तरुण कितना समझाता पर उसका नतीजा दोनो की तकरार होता और श्रेया को निशा से और दूर कर देती ये तकरार। वो नन्ही मासूम शायद समझ ही नही पा रही थी ये उसके साथ क्या हो रहा है। वो तो अपनी माँ से उसी तरह लाड चाहती है जैसे उसकी बहन को मिलता है लेकिन यहाँ लाड तो क्या उसे तो प्यार के दो बोल ना मिलते माँ से।

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 अभी कल की ही तो बात है वो दोनो पति पत्नी पीहू का एडमिशन करवाने के बाद उसके लिए बैग, बोतल और बाकी जरूरी सामान की सूची बना रहे थे।

” श्रेया बेटा आप भी बता दो आपको क्या क्या चाहिए ?” तरुण श्रेया से बोला। 

” क्या जरूरत है इसके पास सब है तो !” श्रेया के बोलने से पहले निशा बोल पड़ी।

” पर मम्मा मुझे न्यू पेंसिल बॉक्स और बैग चाहिए !” श्रेया बोली।

” कुछ नही मिलेगा समझी तुम पहले ही बहुत कुछ दे रखा है हमने तुम्हे उसका ही एहसान मानो !” निशा गुस्से मे बोली।

” निशा क्या बोल रही हो तुम …दिमाग़ तो सही है तुम्हारा बच्ची है वो !” तरुण निशा पर् चिल्लाया।




” हाँ तुम भी मुझपर चिल्लाया करो ये ही तुम्हारे लिए सब कुछ है मैं और पीहू कुछ नही ऐसा है तो सुबह होते ही चले जाएंगे हम दोनो यहाँ से !” निशा गुस्से मे जाने क्या क्या बोलने लगी। श्रेया रोती हुई कमरे मे आ गई। तभी उसने रोते रोते ये नोट लिखा था और सो गई थी। 

निशा ने गौर से देखा उस कॉपी पर अभी भी सूखे आंसुओ के निशान थे । तभी दरवाजे की घंटी बजी ।

” आ गई तुम दोनो !” निशा भागकर आई और दरवाजा खोला । पीहू मचलते हुए माँ के गले लग गई और श्रेया भरी आँखों से उन दोनो को देखने लगी क्योकि कभी निशा उसे भी स्कूल से आने पर ऐसे ही गले लगाती थी। 

” श्रेया बेटा तुम मम्मा के गले नही लगोगी !” मासूम बच्ची की नम आँखे देख निशा का मन बहुत कचोट रहा था उसे। 

” ??” बिना कुछ बोले श्रेया माँ को अपलक देखने लगी ।

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” आओ ना बेटा मम्मा के गले लग जाओ !” निशा ने प्यार से कहा। 

” मम्मा !” इस बार श्रेया भाग कर माँ के ऐसे गले लगी मानो ये कोई सपना है और टूट जाये उससे पहले उसे जीभर जी ले वो।

निशा ने भी बच्ची को यूँ भींच लिया खुद से मानो वो जरा ढीली पकड़ करेगी तो खो जाएगी बच्ची । 

” चलो अब दोनो हाथ मुंह धोकर खाना खाओ फिर हम बाज़ार चलेंगे !” निशा बोली और थोड़ी देर बाद दोनो को अपने हाथ से खाना खिलाने लगी। श्रेया को ये सब अच्छा तो लग रहा था पर वो अभी भी उदास ही थी। 




खाना खा कपड़े बदल दोनो को ले निशा बाज़ार चली गई। पीहू के लिए निशा ने एक बैग , लंच बॉक्स , बोतल सब पसंद की। श्रेया एक साइड खड़ी सब कुछ देख रही थी बस ।

” श्रेया बेटा ये बैग कैसा है ? और ये पेंसिल बॉक्स बताओ तुम्हे पसंद है या कोई दूसरी देखनी है ?” निशा ने उसकी पसंद की बार्बी का एक बैग श्रेया को दिखाते हुए पूछा।

” ये मेरे लिए है ?” श्रेया हैरानी से बोली उसकी आँखे नम थी पर उनमे चमक भी थी जिसे देख निशा के अंदर जो थोड़ी बहुत कठोरता बची भी थी तो वो भी बह गई। 

” हाँ बेटा आप पीहू की बिग सिस्टर हो आपका हक पहले है हर चीज पर इसलिए जो भी आपको पसंद है आप ले लो समझे !” निशा आँखों के कोरों को पोंछती हुई बोली।

” thank you मम्मा !” ये बोल श्रेया निशा से लिपट गई । 

” मेरी सबसे अच्छी वाली बच्ची !” निशा ने उसे गले से लगा लिया। 

” ओल मैं त्या पलोसियों ती हूँ ( ओर मैं क्या पड़ोसियों की हू ) !” पीहू रूठते हुए तोतली जबान मे बोली। पीहू कि बात सुन सभी हँसने लगे ।

” नही भई तुम हमारी ही हो और हमें श्रेया की तरह प्यारी भी हो !” तभी तरुण जो कि बहुत देर से सब देख रहा था पीहू को गोद मे उठा बोला (असल मे घर से निकलने से पहले निशा ने उसे भी आने के लिए फोन कर दिया था। ) 

सबने शॉपिंग करने के बाद आइसक्रीम खाई और घर आ गये आज श्रेया ने वापिस से पहले वाला माँ का प्यार पा लिया था क्योकि वक़्त रहते निशा को अपनी गलती का एहसास हो गया। वरना बहुत से घरो मे एक मासूम फूल हमेशा को मुरझा सा जाता है। 

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दोस्तों बच्चा गोद लेना एक सुखद एहसास के साथ साथ बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है सिर्फ खुद को माँ बाप का दर्जा दिलाने को बच्चा गोद लो और जब किसी चमत्कार से आपकी खुद की गोद भर जाये तो उस मासूम फूल को मुरझाने को छोड़ दो ये कहा का न्याय है जिस बच्चे ने आपको माँ बाप का दर्जा सबसे पहले दिया आपकी जिंदगी मे उसका अधिकार हमेशा रहना चाहिए। गोद लो  तो ध्यान रखो एक मासूम फूल मुरझाने ना पाए। 

#भेदभाव 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल 

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