मतभेद भले हो, मनभेद नहीं – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

मतभेद भले हो, मनभेद नहीं-कहानी

“ ओहो, निशू, आज फिर दूध उफन गया, तेरा ध्यान किधर रहता है , देवर जी को बाहर तक छोड़ तो आई थी?”

सरू ने निशू को मीठी डांट पिलाते हुए कहा।

“ वो दीदी, क्या है कि दूध को भी मुझसे प्यार हो गया लगता है, ज़रा सी नजर हटा लूं तो मुझे ढ़ूढ़ते हुए बाहर बरामदे तक आ जाता है” निशू ने हंसते हुए कहा और रसोई साफ करने लगी।

     सरू और निशू  देवरानी जेठानी थी, सरू की शादी के सात साल बाद उसके देवर अंकुर की शादी निशू से हुई थी। सरू और उसके पति हिमाशुं सरकारी नौकरी में थे, जबकि अंकुर ने एम. बी. ए. के बाद अच्छी प्राईवेट फर्म जाईन की हुई थी। निशू भी अच्छी पढ़ी लिखी थी, उसे बिजनेस का शौक था, शादी से पहले भी वह आनलाईन रेडीमेड कपड़े बेचती थी, अब भी उसका वही काम था, जो कि काफी अच्छा चला हुआ था। सारा काम फोन पर ही हो जाता था। 

       सरू के  पांच और दो साल के दो बेटे थे । ममता , यानि की सरू की सास ने दोनों बहुओं को बड़े प्यार से रखा हुआ था। घर के मुखिया राजीव जी भी पूरे परिवार का ध्यान रखते। आजकल अक्सर सयुंक्त परिवार कम है, अगर होते भी हैं तो लड़ाई झगड़ा एक आम सी बात है, या फिर हर कोई अपने में मस्त रहता है, लेकिन यहां बात और थी। राजीव जी ने शुरू से ही घर में कुछ नियम बनाए हुए थे, जिसका पालन सब करते थे। ममता ने भी हर समय उन्का साथ दिया।

       शादी के बाद ममता का ससुराल भी सयुक्तं परिवार था, राजीव जी दो भाई और तीन बहनें थे। धीरे धीरे सबकी शादियां हो गई और अत्यंत प्रेमभाव से सबको उन्का बनता अधिकार और जायदाद दोनों मिले।

इसका मतलब यह भी नहीं कि कभी घर में कोई समस्या नहीं रही और हर काम अपने आप होता चला गया। यह तो कभी हो ही नहीं सकता, लेकिन इस घर का एक असूल था कि घर के झगड़े घर के अंदर ही निपटा लिए जाए। जितनी घर की बात बाहर जाएगी, उतना ही तमाशा खड़ा होगा। 

      तो यही असूल राजीव और ममता ने अपनाए और अपने बच्चों को भी सिखाए। इन्की एक बेटी मायरा भी थी, दूसरे नं पर, लेकिन उसकी शादी पहले ही हो गई थी। ममता ने बहू बेटियों में कभी कोई फर्क नहीं किया और शादी के समय मायरा को भी अच्छी शिक्षा दी। मायरा भी मायके में अपनी सीमाएं जानती थी।

        अक्सर बड़े परिवारों में काम को लेकर, खर्च को लेकर या और भी कई प्रकार के छोटे मोटे झगड़े, मनमुटाव होना एक आम सी बात है, लेकिन अगर घर के बड़े सूझ बूझ से काम ले तो काफी हद तक इन सब बातों को टाला जा सकता है। ममता समझदार और कर्मशील थी और भगवान की दया से उसकी सेहत भी अच्छी थी। 

           मायरा  की शादी के साल बाद हिमाशुं की शादी हुई तो ममता ने नौकरी करती सरू का पूरा साथ दिया, सरू भी घर में पूरी तरह रच बस गई थी। सब इकट्ठे भी थे और प्राईवेसी भी थी।

आमदन , खर्च का बंटवारा भी किया हुआ था। जब अंकुर की शादी हुई तो जिम्मेवारी और बढ़ गई। अकुरं की शादी को लव कम अरेंज मैरिज कह सकते है। निशू विजातीय भी थी, लेकिन सबने सहर्ष ये रिशता स्वीकार किया और विभिन्न रीतिरिवाजों के होते हुए भी सब खुशी खुशी सम्पनं हुआ। 

     शादी के वक्त भी और बाद में भी    रिशतेदारों, पास पडौसियों की कई बातें ममता के कानों में पड़ी।किसी की खुशी भी तो कहां बर्दाश्त होती है।” अब पता चलेगा, जब दो दो बहुओं से पाला पड़ेगा” या फिर” एक को सभांलना तो आसान है, अब दो हो गई, चार दिन में ही बर्तन अलग हो जाऐगें, और फिर जात बिरादरी भी अलग”। लेकिन ममता ने किसी बात की और ध्यान नहीं दिया। 

         निशू और सरू की भी आपस में बनती थी, कभी कुछ उंच- नीच हो जाती तो ममता जी संभाल लेती। खर्च की काम की सब सैटिंग की हुई थी। राजीव की पैंशन भी अच्छी खासी थी, दोनों बेटे भी अपना अपना हिस्सा देते । सारा हिसाब किताब राजीव, ममता के पास रहता, मेड, बिजली पानी का बिल, घर खर्च सब सही था यानि कि किसी को किसी चीज की कमी नहीं थी। निशू को थोड़ा देर से उठने की आदत थी तो सरू थोड़ी मूडी थी। आफिस से आने के बाद वो काफी देर किसी से बात नहीं करती थी। 

     बच्चे तो बच्चे ही होते है, शरारती न हो तो उन्हें बच्चे कौन कहे। बड़ा शान तो स्कूल जाता लेकिन छोटा रोमी तो घर पर ही था। इसी प्रकार निशू को भी समय असमय फोन पर आर्डर आते और उसे पूरे करने होते। कई बार उसे घर से बाहर भी जाना पड़ता सामान देखने के लिए।खाने पीने की आदते भी सरू और निशू की अलग अलग थी, लेकिन फिर भी अच्छा सामजस्यं था।

         कुछ दिन पहले ममता की छोटी  बहन रागिनी आई, दरअसल उसके पति किसी काम के लिए तीन चार उसी शहर में आने वाले थे तो रागिनी भी साथ हो ली। उनका  रहने का इंतजाम तो कंपनी की तरफ से होटल में था लेकिन रागिनी बहन के पास रहना चाहती थी। निशू की शादी के बाद वो एक बार ही आ पाई थी। उसकी आदत थोड़ी सी दूसरों के घरों में झांकने की भी थी। ममता यह बात अच्छे से जानती थी। 

     खैर सबको मासी के आने की खुशी थी। रागिनी की पैनी नजर दोनों बहुओं पर रहती, उसके अपने बेटे की अभी शादी नहीं हुई थी। वो देख रही थी कि दोनों बहुएं कभी बड़ी खुश तो कभी चुप होती है। उसने देखा कि कैसे निशू सरू के बच्चों को सभांलती है और कल आईसक्रीम खाने पर डांट भी रही थी। एक दिन रात को सरू देर से घर आई तो  निशू का मुंह फूला हुआ था। लेकिन चाय पीते वक्त सब ठीक था। वो दूध उफनने वाली बात भी मौसी की मौजूदगी में हुई थी। बातों ही बातों में वह बहन ममता के दिल की तह तक पहुंचना चाहती थी। सब कुछ जानते हुए भी ममता अनजान बनी रहती। जाने से एक दिन पहले रागिनी ने बहन से बहुओं के बर्ताव की टोह लेनी चाही तो उसने मुस्कराते हुए कहा” मेरी दोनों बहुएं तो आपस में बहनों की तरह रहती है”।

   “ लेकिन दीदी, मुझे तो नहीं लगता”, रागिनी ने बुरा सा मुहं बनाते हुए कहा।

“ एक बात बता, शादी से पहले क्या हम दोनों बहनों में कभी झगड़ा नहीं हुआ था”।

“ याद कर, जब पैपर से एक दिन पहले तूने मेरे नोटस छुपा दिए थे, और एक बार गुस्से में मैनें तेरा मनपंसद कुरता खराब कर दिया था, और एक बार तो तेरे हाथ पर मुझसे गर्मा गर्म चाय गिर गई थी, तो क्या हम बहने नहीं है”। “ न जाने ऐसे कितने ही किस्से तब थे और आज शादी के बाद भी हमारी नोकझोंक चलती ही रहती है”

“ यह सब तो जिंदगी का हिस्सा है, मत भेद हो जाए, मन भेद नहीं होना चाहिए मेरी प्यारी बहना”। 

    और रागिनी की समझ में सब आ गया, कल को उसकी बहू भी आने वाली है, मन ही मन वो ममता की समझदारी की तारीफ कर रही थी और परिवार को जोड़ कर रखने का गुर भी सीख लिया था।

प्रिय पाठकों, छोटे मोटे  झगड़े तो हर घर में होते है, उसे आटे में नमक के समान समझना चाहिए, परिवार में एकता हो तो बाहर का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

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