“टूटी तकदीर के रंग” – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

गाँव की पगडंडी पर नीरा की चप्पलों के निशान उसकी ज़िंदगी की तरह धुँधले पड़े थे। पिता का देहांत होने पर घर में रखा कुम्हार का चाक टूट गया था। माँ कहती, “हमारी तकदीर फूट गई है, बेटी।” पर नीरा की उँगलियाँ मिट्टी को सहलाने के लिए बेचैन रहतीं। एक दिन उसने टूटे चाक के पास बैठकर मिट्टी के टुकड़ों से गुड़िया बनाई। सूखी मिट्टी पर आँसू गिरे तो गुड़िया के गालों पर रंग उभर आए।  

गाँव के बुजुर्ग कारीगर शंकर दादा की नज़र जब नीरा के हाथों में चमकते रंगों पर पड़ी, तो वे ठहर गए। उन्होंने नीरा के कंधे पर हाथ रखा, “तकदीर टूटती नहीं, बस रास्ता बदल देती है। ये टूटा चाक तेरी किस्मत नहीं, तेरे हौसले का आईना है।” उन्होंने नीरा को पुराने कागज़ और रंग दिए। नीरा ने मिट्टी की गुड़ियों को कागज़ पर उतारना शुरू किया। हर सुबह वह पेड़ों की छाल, फूलों के रस, और चाय की पत्तियों से नए रंग गढ़ती।  

एक साल बाद शहर से आए एक कलाप्रेमी ने नीरा की “मिट्टी की मुस्कान” नामक पेंटिंग देखी। उसकी आँखें चौंधिया गईं। नीरा की कला की प्रदर्शनी हुई, और गाँव के टूटे चाक के पास अब रंग-बिरंगे कागज़ों का ढेर लगा था। शंकर दादा ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, “देखा बेटी, तकदीर के टुकड़ों से जो मोती पिरोता है, किस्मत उसी के हाथ चमकती है।”  

नीरा ने मुस्कुराकर अपनी तूलिका उठाई। उसकी नई पेंटिंग में एक टूटा चाक था, जिससे उगते हुए रंगों के फूल आसमान छू रहे थे.

डॉ० मनीषा भारद्वाज

ब्याड़ा (पालमपुर)

हिमाचल प्रदेश ।

#तकदीर फूटना मुहावरा प्रतियोगिता

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!