सुरभि आज कल बहुत ख़ुश थी क्योंकि अभी तक वो अपने ससुराल में सबसे छोटी बहू थी जो पूरे परिवार की दुलारी थी , लेकिन कुछ ही दिनों के वो # जेठानी बनने वाली थी।
सुनिधि का ब्याह एक बड़े परिवार में हुआ था। उसके ससुराल में सास-ससुर और उसकी तीन बड़ी जेठानी और चार बड़ी ननद और एक छोटा देवर है।
सुनिधि जब ब्याह के अपने ससुराल पहुँची तो तीनों जेठानी ने उसका स्वागत -सत्कार बड़े अच्छे से किया। सास थोड़ी गुस्से वाली थी, और लेकिन तीनों जेठानी संभाल लेती थी। सबसे बड़ी ननद और जेठानी उसकी माँ के बराबर की थी । सबसे छोटी ननद सुरभि से चार साल बड़ी थी, सब उसका बहुत ख्याल रखते थे।
मायके के सुनिधि सिर्फ दो बहनें ही थी और मम्मी-पापा और यहाँ ससुराल एक संयुक्त परिवार था। सभी पाँचो भाई और सास-ससुर साथ में ही रहते थे ।सास को भी अपने बहुओं पर बहुत नाज़ था… वो सदैव बड़े गर्व से सबसे कहती कि…# मेरी बहुएँ आपस में सगी बहन जैसी रहती है । और यह सच भी होता था।
सुनिधि ने तभी सोच लिया था कि… जब मेरे देवर का ब्याह होगा तो… मैं भी जेठानी बनूँगी और बहन जैसा प्यार-दुलार मुझे अपनी तीनो जेठानीयों से मिला है वैसा ही मैं अपनी देवरानी से करूँगी।वो जेठानी बनने की ख़ुशी में एक हफ़्ते पहले ही पार्लर में जाकर फेशियल के साथ-साथ स्पेशल मेनी-पेडीक्योर भी करवाई थी, कि…देवरानी पैर छूवेगी मेरा… ।
कुछ दिन बाद… वो पल भी आया और वो खूब सज-धज कर और हर रस्मों ख़ुशी से निभाते हुवे अपनी देवरानी को लेकर आई । सारे रस्मों के बाद वो भी पल आया जब देवरानी ने उसके पैर छूये तो सुरभि ने उसे गले लगाकर कहा …” मायके में मेरी एक छोटी बहन थी अब यहाँ ससुराल में भी मेरी एक छोटी बहन आ गयी!”सच…
सब अच्छे से चल रहा था.. कहते है ना… कभी-कभी अपनी ही नज़र लग जाती है…ऐसा ही इस घर में हुआ… सास-जेठानी की उम्र हो रही थी… अब घर के काम-काज सुरभि और स्नेहा पर अधिक थी… जो शायद कल ही आयी स्नेहा को रास नहीं आ रही थी… एक तो उन दोनों की लव-मैरिज थी, दूसरे स्नेहा अपने मायके में इकलौती थी। हालांकि उसका एक # संयुक्त परिवार है था, पर एक ही घर में सबकी रसोई अलग-अलग थी।
इन दो सालों में उसमे बहुत अंतर आ गया था। बात -बात पर मुंह फुला लेना और छोटी-छोटी बातों में बहस करना… वो अपने पति और अपने बच्चों को ही अपना परिवार समझती थी। अपनी चारों जेठानियों को “सासू माँ की चमची “ कहना…
सुरभि कुछ कहना और समझाना चाहती तो… सासू माँ ही मना कर देती और कहती …” अपनी इज्जत अपने हाथ “ पलट कर जवाब मिल गया तो.. और भी दुख होगा।
सासू माँ एक तो ससुर जी के जाने से दुखी थी अब उन्हें अपना घर-परिवार टूटता नज़र आ रहा था…वो सुरभि को समझाते हुवे कहती. …”” कहते है ना… एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है…, संयुक्त परिवार तभी सफल होता है… जब सब एक हो , एक मत हो , एक-दूसरे को समझे और सबकी सुनी जाए, जहाँ किसी एक में चालाकी और छल मन में आया… वहाँ # संयुक्त परिवार… परिवार नहीं … # पाटीदार बन जाता है… और शुरू हो जाता है … एक- दूसरे को नीचा दिखाने का खेल।”
ऐसा ही होने लगा था अब..
सबके बच्चे भी बड़े हो रहे थे…. समय की नज़ाकत देखते हुवे सासू माँ ने सबको घर छोटा पड़ने का हवाला देकर सबको अलग-अलग रहने को कहा… जैसे सब इसी दिन का इंतज़ार कर रहे हो… सब राज़ी-ख़ुशी अलग हो गए… सुरभि और उसकी मँझली जेठानी को दर्द का अहसास हुआ क्योंकि वो दोनों ही # एकल परिवार से आई थी… तो उन्हें यहाँ # संयुक्त-परिवार में बहुत अच्छा लगता था।
आज सब भाई अलग-अलग है पर प्यार-सम्मान है सब में..हर एक के सुख-दुख में एक साथ रहते है… शायद समय की यही माँग है… या सासू माँ का अनुभव…
सच! घर के बड़े -बुजुर्ग यदि समझदार हो तो… वही घर … घर नहीं … मंदिर बन जाता है।
सुरभि की सासू माँ ने समय रहते ही समय की नज़ाकत समझते हुवे और एक बहू के बदलते व्यवहार को समझते हूवे… बेटो तक बात ना पहुँचने देकर…सब बेटों को अलग कर दिया।और अपने घर को # मंदिर बने रहने दिया और सभी बहुओं को # बहन जैसा ही रहने दिया।
लेखिका : संध्या सिन्हा