“अंबा! बापू के बातों का बुरा नहीं मानते•• चल कपड़े बाहर निकाल! राधा अपनी बड़ी बेटी जो पेटी में कपड़े डाल वहां से जाने की तैयारी कर रही थी, से बोली। अम्मा! मुझे रूकने के लिए मत बोल भले ही मैं सन्नो जैसी अमीर घर में नहीं ब्याही गई परंतु मेरा भी कुछ स्वाभिमान है! अपने घर #सम्मान की सूखी रोटी ही खाती हूं तब भी खुश हूं !
कहते हुए अंबा की आंखें भर आई ।
बेटी! बापू की आदत ही ऐसी है कोई दो-चार पैसे दिखा दे तो, वह भी उसी का गुणगान गाने लग जाते हैं!
पर मैं तो ऐसी नहीं••? कम से कम मेरे लिए तो रुक जा•• भाई की शादी छोड़ कोई जाता है भला••?
राधा अंबा की पेटी में डाले गए कपड़ों को निकालते हुए बोलीं ।
अम्मा!क्या तु चाहती है कि मैं छोटी बहन और बहनोई के सामने बेइज्जत होती रहूं•• या वह मुझे बेइज्जत करते रहें?
अंबा सुबक-सुबक के रोने लगी ।
ना•• बेटी रोते नहीं! तेरे बापू को मैं समझाऊंगी कि वह ऐसा कुछ नहीं बोलें जिससे तेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचे!
बस शादी तक रुक जा फिर चाहे तब चली जाना मैं नहीं रोकूंगी तुझे!
राधा बेटी की आंखों में आये आंसू को पोंछते हुए बोली ।
मां की जिद के आगे अंबा कुछ भी नहीं कर पाई और मन मार के शादी तक रुकने का फैसला कर तो लिया परंतु मन ही मन वह काफी व्याकुल थी••।
आज बापू की नजर में मेरी कोई औकात नहीं! एक समय था जब हम दोनों बहनों में वह मुझे ही सबसे समझदार और सुयोग्य समझते! सन्नो तो जैसे उनकी आंखों में चुभती•• और चुभे भी क्यों ना ••कितनी अल्हड़ और स्वार्थी हुआ करती! हर त्योहार में उसे नए कपड़े चाहिए होते!
बापू तो कई बार मना कर जाते कि बेटा अभी पैसों की दिक्कत है महीना बाद दिला दूंगा••! पर नहीं उसकी तो जैसे ट्रेन छूटने वाली होती!
एक बार बापू ने खेती के लिए कुछ पैसे महाजन से उधार यह कह कर लिया कि फसल आते ही सारे पैसे चूकता कर दूंगा ••!
पैसों को देख ,सन्नो ने फुलकारी लहंगे की मांग कर दी! इस बार बापू ने एकदम कड़ा रुख अपनाते हुए•• ना कह दिया!
कुछ तो शर्म कर खाने के लाले पड़े हुए हैं और तुझे हरियाली सूझ रही है•• सीख अपनी बड़ी बहन से चार जोड़ी कपड़े में ही खुश है•• और तेरा दिमाग सातवें आसमान पर उछल रहा है!
एक घृणा की दृष्टि सन्नो ने मेरे तरफ डालते हुए बोला हां हां मुझे नहीं बनना इसके जैसा गरीब- गोबर मुझे तो किसी दिन एक सुंदर राजकुमार ब्याह ले जाएगा! अभी कुछ दिन पहले धनिया- काकी ने (पड़ोसन) हाथ देखते हुए कहा था कि तेरी शादी बड़े घराने में तय होगी!
दीदी तो देखने में भी काली और शौक भी काला••! इसे तो कोई गरीब लड़का ही मिलेगा!
चुप कर नासपीटी••! किसे शौक नहीं होता••अच्छा खाने और पहनने की! पर पैर उतनी ही फैलाओ जितनी चादर हो!
अम्मा को मेरे पक्ष में खड़ा देख सन्नो और भी चीड़ गई और ना खाने-पीने का प्रण कर ,अपने जिद पर अड़ी रही!
आखिर•• “छोटी बेटी” से बापू को लगाओ भी पूरा था उनका मानना था कि इसके पीठ पर ही तो “दानी”(भाई) हुआ है! मेरी “भाग्यवान बेटी”!
फिर क्या•• उसके जिद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और सन्नो को “फुलकारी लहंगा” मिल गया!
“बेटी तुझे भी चाहिए”••?एक बुझते आवाज में बापू ने मुझसे पूछा और शायद वह मेरा जवाब भी जानते थे!
नहीं बापू••! मेरे पास सब कुछ है आप चिंता मत करो!
बापू की लाडली बने रहने के लिए मैं अपने सारे शौंक की तिलांजलि दे जाती और अपने आदर्श बनने का सन्नो के सामने नाटक करती! भले ही यह मेरा नाटक होता पर बापू की नजर में मैं एक समझदार सुयोग्य बेटी बन जाती । यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार होता!
धीरे-धीरे••मेरे लिए सन्नो के मन में जलन पैदा होने लगी!
“जीजी”! मुझे भी पता है कि तुम्हें वह सब कुछ चाहिए जो मैं बापू-अम्मा से जिद करके ले लेती हूं पर तुम तो बापू की नजर में महान बनने के चक्कर में लगी रहती हो कहीं ऐसा ना हो कि जिंदगी भर ऐसे ही गरीब बनकर रह जाना••!
यही तो फर्क है तुझमें और मुझमें•• !
तू बापू की विवशता को नहीं समझती! मुझे सब कुछ समझ आता है! तुझे बापू की हालात नजर नहीं आती कि वह हम तीनों भाई बहनों को कितने कष्ट से पाल-पोस रहे हैं !
तू है कि अपनी जिद मनवाने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है••और तेरी जिद बापू-अम्मा इसलिए भी पूरी करते हैं क्योंकि मैने अब तक उनसे कुछ नहीं मांगा ! ऐसा बोलकर मैं निकलने ही वाली थी कि••
कहीं ऐसा ना हो जीजी की तुम सिर्फ ‘बलिदान की देवी’ कहलाओ!
कहते हुए सन्नो वहां से चली गई! काश मैं उसकी उन बेहूदे बातों को समझ पाती तो मुझे भी अपने मायके में वह सम्मान मिलता जो हमेशा से उसे मिलता आया!
समय बीतता गया हम शादी करने योग्य हो गये!
सन्नो मुझसे साल भर ही छोटी थी इसलिए बापू को हम दोनों के शादी की चिंता सताने लगी!
“राधा” हमारी दोनों बेटियां अलग-अलग स्वभाव की हैं अंबा एक समझदार, सुशील लड़की है परंतु सन्नो ठीक इसके विपरीत! बापू अम्मा से गंभीर होते हुए बोले।
मुझे भी उसकी ही चिंता सताती है! अम्मा बोली।
हां वह तो है परंतु अपनी अंबा के लिए मैं बात कर आया हूं!
कहां? अम्मा झट से पल्लू खींचते हुए आश्चर्य में बोली।
वह अपने पास वाले गांव में हरदेव जी, जो मेरे जिगरी दोस्त के साथ-साथ एक जाने-माने वैद्य हैं! भौजी को मरे हुए 2 साल हो गए! बेटा खेत संभालता है••और जल्द ही वह उसकी शादी करना चाहते हैं ताकि घर संभालने वाली आ जाए!
यह तो हमारी अंबा के लिए अच्छा रिश्ता है!
अम्मा ने भी इस शादी के लिए अपनी रजामंदी दे दी ।
कुछ महीनो बाद मेरी शादी हो गई! मेरी शादी के बाद बापू को सन्नो के शादी की चिंता भी सताने लगी।
“राधा! हमने अपनी मर्जी से अंबा की तो शादी कर दी•• परंतु सन्नो के तेवर तो देखो! वह ऐसी- वैसी में नहीं रह पाएगी! इसलिए हमें सोच समझकर उसका रिश्ता पक्का करना होगा!
बापू अम्मा से बोले।
हां पर हमारी औकात कहां? जैसा अंबा का विवाह किया है वैसा ही सन्नो की भी कर देंगे! अम्मा ने आहे भरते हुए कहा।
नहीं ••अंबा की मां! मुझे नहीं लगता कि ऐसे-वैसे घर में वह रह पाएगी इसलिए मेरे दिमाग में एक उपाय आया है!
वह क्या? अम्मा ने झट से पूछा।
मुझे कमाने शहर जाना होगा•• हमारे जमुना दास जी है ना•• जो शहर में ठेकेदारी का काम करते हैं उन्होंने मुझे आने को कहा है! बोले यहां अच्छे पैसे मिलेंगे! अब पैसे कमा कर ही सन्नो की शादी करूंगा!
ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी !
दो साल बाद जब बापू कमा के लौटे तो सन्नो का भाग्य तो देखो जल्द ही उसकी शादी एक अमीर घराने में तय हो गई !
वह कहते हैं ना की कोई जन्म से ही किस्मत लिखवा कर आता है•• नहीं तो एक घर ,एक ही मां-बाप परंतु दोनों की किस्मत भगवान ने अलग-अलग बनाई! वह इस गरीब मां-बाप के साथ भी बड़ी लाड से पली-बढ़ी और मैं तब भी वही थी और अब भी वही !
आज मुझे सन्नो के बात से ज्यादा बापू की मजबूरी खराब लगी! हमेशा से मुझे उनका प्यार और सहयोग मिला और आज भी ‘मैं’ ऐसा ही कुछ उम्मीद कर रही थी!
मेरी गलती सिर्फ ये थी कि मैं अपने होने वाली ‘भाभी’ के लिए ‘महंगे उपहार’ ना ला सकी! और सन्नो द्वारा लाया गया उपहार पूरे गांव वालों को दिखाया जा रहा था!
इस बात को लेकर सन्नो ने मेरा अपमान किया!
बापू को क्या जरूरत थी हम दोनों बहनों की बीच “तुलना” करने की ! ना तुलना होती और ना वह इतना बढ़-चढ़कर बोलती!
अरे अंबा की मां! सन्नो ने तो हमारी इज्जत में ‘चार चांद’ लगा दिया! देख “सोने का सेट” और “अनाजों से भरी कितनी सारी बोरियां दी है!”
जीजी ने क्या दिया••! एक बोरी चावल एक, बोरी गेहूं और 10 केजी चीनी कहते••?
सन्नो ने तपाक से पूरे गांव के सामने बोल दिया।
बापू ने तब एक शब्द भी उसे नहीं बोला•• शायद उसने अपने एहसान तले उन्हें भी दवा दिया!
उसने कभी किसी भी मोड़ पर कोई समझौता नहीं किया और ना ही करेगी! परंतु मैंने अपनी इच्छाओं को मार कर बापू की मजबूरी समझा तो बदले में मुझे ‘अपमान’ मिला!
नहीं••अब सहन नहीं कर सकती! मानती हूं कि मैं अमीर नहीं पर अपने #घर सम्मान की सूखी रोटी खाकर भी मैं स्वाभिमान के साथ जी सकती हूं!
मुझे जाना है, मुझे जाना है!
कुछ समय पश्चात राधा अंबा के कमरे में आती हैं।
बेटी ••! जल्दी-जल्दी तैयार हो जा बारात जाने वाली है••अब जो भी रस्में बची है वो तुझे और सन्नो को ही पूरी करनी होगी!
जवाब में उन्हें” पीछे का द्वार ” खुला दिखाई दिया ।
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धन्यवाद ।
मनीषा सिंह