जबसे बच्चों के स्कूल सुबह साढ़े छह बजे से हुए थे…
शालिनी को सुबह के पांच बजे हीं जागना पड़ता था…
और संयोग तो देखिए कि दोनों देवरानियां भी मायके चली गई हैं एक साथ….
दोनों के मायके में फंक्शन पड़ गया है….
शालिनी सुबह पांच बजे उठी तो सर्वप्रथम गैस पर ससुर जी और ननद के लिए चाय चढ़ा दिया और स्वयं के लिए धनिये वाली चाय चढ़ा दी…
देवरानियां अपने बच्चों समेत चली गई थीं फिर भी घर में अभी दस लोग थे….
सबकी पसंद और नापसंद के अनुसार हर चीज चाहिए…
यहां तक की चाय भी…
ननद को तेजपत्ते वाली तो ससुर जी को कालीमिर्च वाली वो खुद भी सुबह में सबसे पहले धनिया की चाय पीया करती…
सास को बिना चीनी की …
पतिदेव को ढेर सारी चीनी वाली तो देवर को चाय के बदले गरम दूध…
घर में एक मझले देवर और शालिनी हीं ऐसे थे जो हर प्रकार की चाय पीते थे….
शालिनी ने चाय चढ़ा कर तुरंत झाड़ू उठा लिया क्यों कि वो हर दिन बासी मुंह हीं झाड़ू लगाया करती है….
चाय ससुर जी को दे कर आई और तुरंत बच्चों समेत सबके लंचबॉक्स की तैयारियां करने लगी…
यहीं गनीमत थी कि लंचबॉक्स सबका एक जैसा होता था….
भिंडी काट कर कढ़ाई में डाल कर ब्रश करने लगी…
ब्रश करने के उपरांत आटा गूंथते हुए अपनी धनिये वाली चाय की घूंट भी भरती जा रही थी…
इधर बीच-बीच में घड़ी भी देखती जा थी क्यों कि बच्चों को जगाना भी था…छह बजने वाले थे.. अगर समय से नहीं उठाया तो तैयार कैसे होंगे….
शालिनी के बच्चों की एक आदत बड़ी अच्छी थी कि वो सुबह जागने के बाद नखरे बिल्कुल भी नहीं करते थे…
स्वयं ब्रश करना कपड़े और जूते पहनना…
ये सब कर के वो तैयार रहते तो शालिनी सबके बाद बनाती…
बैग देती और स्कूल छोड़ने जाती….
सबका लंच पैक करने के बाद वो बच्चों को तैयार कर के स्कूल छोड़ने चली गई…
बच्चों के साथ हीं उनके चाचा बुआ और पापा भी स्कूल के लिए निकल जाते क्यों कि वो भी शिक्षक हीं थे…
बच्चों को स्कूल छोड़ कर शालिनी जैसे हीं घर आती थकान से बदन टूटने लगता….
मगर आराम कैसे करें आराम तो हराम है क्यों कि अब सासु मां और मंझले देवर के चाय का समय हुआ है…
शालिनी भी काम के मामले में पूरी की पूरी रोबोट है…
अपने एक भी काम में कभी चूकती नहीं है और सब-कुछ समय के साथ….
स्कूल से आकर गैस पर चाय चढ़ा कर अखबार ले कर बैठ गई…
तब तक ससुर जी आ गए…
तुम अखबार पढ़ रही हो….
मेरे दुबारा चाय पीने का समय हो गया…
शालिनी अखबार हाथ में लिए रसोई में आ गयी…
मन हीं मन सोच रही थी कि आपने तो एक बार भी पीया है मैंने तो वो भी नहीं पीया परन्तु क्या कहे…
ये तो रोज का है….
सबको चाय दे कर और स्वयं अखबार के साथ चाय लेकर वो कमरे में आ गयी….
उचटती निगाहें अखबार पर डाल कर और कुछ जरुरी खबरें पढ़ कर फिर से रसोई में पहुंच गयी….
मंझले देवर का लंचबॉक्स अभी तैयार करना बाकी हीं था और दोपहर के खाने के लिए कुछ सब्जियां दाल वगैरह बनाना भी अभी रह हीं गया था….
इतना सबकुछ निपटा कर वो नहाने जाने की तैयारी कर हीं रही थी कि, नगरनिगम की गाड़ी आ गई…
लो अब कचरा भी डालना है…
ये भी कर हीं लूं ये सोच वो कचरा डाल कर फिर नहाने चली गई…
नहाना कपड़े धोना धोकर सुखाने के लिए डालना पूजा करना ठाकुर जी का भोग बनाना इतने सारे काम निपटाते हुए वो सोचती जा रही थी कि,से भगवान उसे इंसान बनाया है या रोबोट समझ में नहीं आता…
अभी तो ये सिर्फ एक ट्रेलर था पूरी पिक्चर अभी बाकी थी….
दाल चावल चढ़ा कर स्वयं के लिए नाश्ता लेकर वो कमरे में आई और खाते-खाते ही अपना मोबाइल भी देख लिया…
मन में अभी चल रहा था कि बरतन धोने हैं सास-ससुर को खाना खिलाना है….
मतलब अभी भी उसे चैन मिलने वाला नहीं था….
बरतन धो हीं रही थी कि सासु मां भोजन के लिए आ गईं…
गरम-गरम रोटियां सेंक कर उन्हें खिला कर वो थोड़ी देर के लिए बिस्तर पर लेट गई…
तब तक बच्चों के स्कूल से आने का समय हो गया…
बच्चों के घर आने का मतलब था कि सारा काम छोड़कर उनकी सेवा में लग जाना…
बच्चों को खिला पिला कर और उनके द्वारा फैलाएं गये रायते को समेट कर शालिनी फिर रसोई में पहुंच गई क्यों कि अब खाने की बारी ससुर जी की थी…
अपनी झुंझलाहट को छुपाते हुए उसने रोटियां सेंकी और ससुर जी को खाना परोस दिया…
शालिनी को हर काम अच्छा लगता था परन्तु ये पूरे दिन दो चार रोटियां सेंकते रहने से अजीब सी झुंझलाहट होती थी..
मगर अभी कहां अभी तो पतिदेव जी के हिस्से की रोटियां सेंकनी बाकी हीं थी….
पूरे दिन इन रोटियों का सिलसिला खत्म हीं नहीं होता था…
ये सारे तो अभी दिन के काम थे शाम और रात के सारे काम तो अभी बाकी थे…
ऐसे हीं पूरे दिन रोबोट की तरह काम करते हुए शालिनी तो जैसे भूल हीं गई थी कि वो एक इंसान है….
और उसे भी आराम की जरूरत है….
हर दिन का वहीं दिनचर्या और वहीं काम ….
फिर भी कभी-कभी सास-ससुर और घरवाले कहने से बाज नहीं आते कि, बड़ी बहू काम तो सारे करती है मगर कभी हमारे साथ बैठकर कुछ हंसी-मजाक नहीं करती…
एक मंझली बहू है जो कितनी विनोदी स्वभाव की है….
अब उन्हें कौन समझाए कि जितनी देर आपकी ये मंझली बहू अपने कामकाज छोड़कर आपके साथ हंसी-मजाक करती है उतनी देर बड़ी बहू घर और रसोई की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहती है….
शालिनी ये सब सुन कर बस इतना हीं कहा करती –
आपको बहू नहीं चलता फिरता रोबोट चाहिए….
वो रोबोट जो हर काम समय पर करता रहे जिस दिन ये रोबोट केवल हास्य विनोद में व्यस्त हो जाएगा उस दिन में सारी बातें बेमानी हो जाएंगी….
डॉली पाठक