मन की गाँठ खुल गई – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“मां मन को मार के खुश नहीं रहा जा सकता ये बात समझो तुम!” श्वेता अपनी मां शैलजा जी से बोली।

” तो मैं कौन सा उसका मन मार रही हूं। जो चाहती वो कर तो रही!” शैलजा जी तुनक कर बोली।

” ये मन मारना ही तो है मां … भैया को ऑफिस से आ घंटों अपने पास बैठाए रखना उन दोनों को कहीं बाहर ना जाने देना…नई शादी हुई है उनकी एक दूसरे के साथ समय बिताएंगे तभी तो खुश रहेंगे … वरना उनके दुखी रहने से क्या ये घर खुश रह पाएगा सोचो आप!” श्वेता बोली।

” मतलब तुझे ये लगता मेरा बेटा मेरे पास बैठ समय बिताता है ये गलत है उसे आते ही अपनी बीवी के पास चले जाना चाहिए … फिर मेरा क्या मैं तो घर में अकेली पड़ जाऊंगी ना एक बेकार फर्नीचर की तरह!” शैलजा जी थोड़े गुस्से मे बोली।

” उफ्फ मां आप कहां की बात कहां ले जाते हो मैं ये नहीं कह रही के भैया आपके कमरे में ना आ सीधा भाभी के कमरे में जाएं… पर थोड़ी देर बाद उन्हें भेज दिया करो ना कभी कभी दोनों को खाना साथ खाने दिया करो आपके पास भाभी सारा दिन रहती है उनसे बातें किया करो आपका भी मन लगा रहे उनका भी !” श्वेता फिर बोली।

” उस कल की आई से क्या बात करूं मैं । मेरा बेटा मुझे समझता है मुझसे बात कर उसे भी खुशी मिलती है !” शैलजा जी बोली।

” वो कल की आई अब जिंदगी भर यहीं रहने वाली है मां … मैं अपने ससुराल में हूं भैया सारा दिन जॉब पर रहते बची कौन आपके पास बस भाभी । उन्हें दिल से अपनाओगी तो वो भी आपको अपनाएगी वरना मन मे गांठ पड़ गई ना भाभी के तो आप दोनों के रिश्ते में जो दूरी आएगी उससे भैया सबसे ज्यादा परेशान रहेंगे !” श्वेता फिर बोली।

” हम्म तो तेरी नजर में मुझे क्या करना चाहिए ?” कुछ सोचते हुए शैलजा जी ने बेटी से सवाल किया।

” आप भाभी को मेरी तरह अपने सुख दुख का साथी बनाओ। उनको जताओ ये घर उनका भी है । उन्हे खुद से कभी कुछ लाकर दो , कभी उनकी तारीफ़ करो , कभी भैया के साथ घूमने भेजो ।” श्वेता बोली।

” क्या मैने कभी उसे कहा कि ये घर उसका नही या मैने किसी चीज के लिए रोका है ? ” शैलजा जी बोली।

” मम्मी भाभी नई नई है भैया के ऑफिस जाने के बाद अकेली हो जाती है । वहाँ मायके मे उनका भरा पूरा परिवार था यहाँ सारा दिन बस आप और भाभी रहती हो । शाम होने पर भाभी को भी इंतज़ार रहता होगा भैया से अपने सुख दुख बांटे वो ।  अच्छा ये बताओ जब आपकी शादी हुई थी आप नहीं चाहती थी पापा आपके साथ ज्यादा वक़्त बिताएं। आपको नहीं लगता था दादी आपको प्यार से सब सिखाए जैसे नानी सिखाती थी आपको। क्या मन की पूरी नहीं होने पर आप खुश रहतीथी।?” श्वेता ने मां से पूछा।

” अरे तेरी दादी तो चाहती नहीं थी तेरे पापा उन्हें छोड़ मेरे पास आएं … और कोई गलती होने पर कितना सुनाती थी वो मुझे सिनेमा का कितना शौक था पर तेरी दादी ने कभी जाने ही नहीं दिया की बहुएं अच्छी नहीं लगती ऐसे सिनेमा देखने जाते हुए!” शैलजा जी जैसे अतीत में खो गई।

” मां आपको नहीं लगता आप भी कहीं ना कहीं भाभी के साथ यही कर रहे हो!” श्वेता मां की गोदी में लेटती हुई बोली।

” ओह… सही कहा तूने कम उमर में तेरे पापा मेरा साथ छोड़ गए अकेले तुम्हे पाला पोसा। तुम्हारी शादी बाद तुम दूर चली गई जो स्वाभाविक है पर मुझे लगने लगा कहीं शलभ भी मुझसे दूर ना हो जाए शादी के बाद … शायद अपने इसी स्वार्थ में मैं मानसी के साथ तो अन्याय कर ही रही हूँ  साथ साथ शलभ के साथ भी । दोनो मुझे कुछ बोलते नही पर मन मे गाँठ तो पड़ ही रही होगी दोनो के !” शैलजा जी बोली।

” मां हम सब आपको बहुत प्यार करते हैं आपने हमारे लिए को त्याग किए सब याद हैं हमें हम आपको कभी अकेला नहीं होने देंगे … भाभी भी बहुत अच्छी है आपके बारे में सोचती हैं तभी चुप रहती पर उनके चेहरे की उदासी मैने महसूस की है बस इसलिए आपसे ये बात की मैने !” श्वेता बोली।

” मुझे अपनी गलती का एहसास है बेटा साथ ही ये खुशी भी है कि मेरी लाडो इतनी समझदार हों गई जो अपनी मां को गलत करने से रोक रही।” शैलजा जी बेटी का माथा चूमते हुए बोली।

बाहर मानसी जो चाय लेकर आ रही थी ये बात सुन उसकी आंख भर आई …वो खुद से सोचने लगी ” कौन कहता है ससुराल में बेटी अकेली होती है श्वेता दीदी जैसी समझदार ननद हो तो हर भाभी को सहेली मिल जाती है … और मम्मी जी ठीक है थोड़ी सी गुस्से वाली हैं पर उनका सोचना भी गलत नहीं मैं खुद आगे बढ़ अब अपनी इस सुंदर सी ससुराल रूपी बगिया में खुशी के फूल खिलाऊंगी साथ ही मम्मी जी को एहसास दिलाऊंगी जैसे शलभ और दीदी के लिए वो खास है वैसे मेरे लिए भी है  !” ये सोच उसने अपने आँसू पोंछ लिए।

” लीजिए मम्मी जी , दीदी चाय पीजिए !” कमरे में आ मुस्कुराते हुए मानसी बोली।

” आइए ना भाभी आप भी हमारे साथ पीजिए!” श्वेता बोली।

” वो दीदी खाने की तैयारी करनी सोच रही हूं मम्मी जी की पसंद के लौकी के कोफ्ते बना लूं!” मानसी बोली।

” कोई जरूरत नहीं कोफ्ते बनाने की तुम चाय पियो फिर तैयार हो जाओ शलभ आता ही होगा आज घूम आओ थोड़ा खाना बाहर ही खा आना यहां हम देख लेंगे !” शैलजा जी बोली।

” नहीं मम्मी जी घूमने जाएंगे तो सब साथ !” मानसी बोली।

” नहीं भाभी आपकी नई शादी है आपको भैया के साथ अपना रिश्ता मजबूत करना चाहिए उनके साथ समय बिताकर !” श्वेता प्यार से बोली।

” दीदी रिश्ता तो आप सबके साथ भी मजबूत करना चाहती हूँ मैं क्योकि आप लोग भी तो मेरे लिए उतने ही जरूरी है जितने शलभ जी  !” मानसी श्वेता का हाथ पकड़ते हुए बोली।

” देखा मां कितनी समझदार भाभी है मेरी !” श्वेता भाभी को प्यार से गले लगा बोली।

” हां तो बहू किसकी है आखिर!” शैलजा जी हंसते हुए बोली और बेटी बहू को गले लगा लिया।

” क्या बात है आज बहू पर ज्यादा ही प्यार आ रहा है मामला क्या है ?” तभी शलभ घर मे घुसते हुए सुखद एहसास से भरते हुए बोला। 

” हां तो आपको क्यो जलन हो रही है मत भूलो भैया भाभी आपसे ज्यादा मम्मी के साथ वक्त बिताती है तो वो ज्यादा पास हुई ना उनके !” श्वेता उसे चिढ़ाते हुए बोली । शलभ जान बुझ कर मुंह फुला बैठ गया। 

” चल चल नौटंकी मत कर हाथ मुंह धो और मेरी बहू को फिल्म दिखा ला । मैं भी अपनी बेटी के साथ थोड़ा वक्त अकेले बिता लूं !” शैलजा जी मुस्कुराते हुए बोली । और जबरदस्ती मानसी को तैयार होने भेज दिया । 

हमेशा मुरझाया सा रहने वाला मानसी का चेहरा आज सच में खिले फूल जैसा हो गया था। 

दोस्तों शैलजा जी की तरह बहुत सी माओं की सोच होती के शादी के बाद बेटा दूर हो जाएगा .. पर अगर जरा सी समझदारी से चला जाए तो बेटा तो अपना रहता ही है बल्कि बहू के रूप में एक बेटी , एक दोस्त भी मिल जाती वरना तो बहू के मन मे सास को ले जो गाँठ पड़ जाये वो आजीवन नही खुलती । दूसरी तरफ बहू का भी फर्ज है अपने ससुराल को एक माला मे पिरो कर रखे क्योकि उसका पति किसी का बेटा और भाई भी है ।

यहाँ कुछ लोगो के मन मे आएगा सास इतनी जल्दी नही सुधरती पर ऐसा नही अगर श्वेता जैसी ननद हो तो सास बहू के रिश्ते मे ज्यादा दिन गाँठ कैसे पड़ी रह सकती है । 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

#मन की गाँठ

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