“मन की गांठ” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

निधि बेटा… अगले महीने की 15 तारीख को चाचा जी के बेटे विजय की शादी है तो तुम अभी से ही सारी तैयारियां शुरू कर देना फिर ऐन टाइम पर साड़ियों की मैचिंग या थोड़ा बहुत सामान छूट ही जाता है छोटी बहू रश्मि तो चल नहीं पाएगी क्योंकि उसका तो सातवां महीना शुरू हो गया है तो वैसे भी वह अपनी डिलीवरी के लिए अपने मायके जाएगी ऐसी हालत में वह बेचारी कुछ कर भी तो नहीं सकती, हमारा भी शादी में जाना जरूरी है घर की शादी है! वाह मम्मी जी.. फिर तो इस बार भी भैया को काजल लगाने का, द्वार रुकाई का या और भी सारे नेग जो बड़ी भाभी के होते हैं वह मैं ही करूंगी!

हां हां तुम ही करना और है ही कौन तुम्हारे अलावा…!  मम्मी जी मैं सोच रही हूं मैं अच्छा सा डांस भी सीख लूं आखिरकार बड़ी  भाभी हूं दूल्हे की! निधि की खुशी देखकर पूरा परिवार खुश हो रहा था कैसी बच्चों जैसी उत्साहित हो रही थी शादी में जाने के लिए, मन तो निधि की देवरानी मानसी का भी बहुत था किंतु क्या करती जिस समय उसकी डिलीवरी का समय था उसी समय शादी थी और उनके यहां रिवाज था की पहली डिलीवरी मायके में ही होती है तो वह तो अभी 15 20 दिन बाद ही अपने मायके चली जाएगी

! खैर.. जो किस्मत में नहीं है उसका दुख मानने से भी क्या फायदा! घर में जोर-शोर से शादी की तैयारी हो रही थी, अगले महीने शादी से 4 दिन पहले ही सभी लोग शादी में पहुंच गए शादी वाले दिन काजल लगाने की रसम होने वाली थी निधि तो पहले से ही बहुत ज्यादा उत्साहित थी, अपने देवर की काजल लगाई में भी उसकी सास ने उसे सोने के सुंदर से टॉप्स दिए थे, उसे पता था इस बार भी अच्छा सा नेग मिलेगा, हालांकि नेग से ज्यादा तो उसे दूल्हे की बड़ी भाभी होने पर खुशी थी,

तब बुआ जी ने कहा.. अरे भाई काजल लगाने के लिए आगे आओ, जैसे ही निधि आगे जाने लगी की बुआ जी बोली… नहीं निधि तुमने तो अपने देवर की शादी में काजल लगा दिया था हां अगर मानसी होती तो वह इस  रसम को निभाती किंतु अब मानसी तो आई नहीं शादी में तो यह रसम दूल्हे की चाची करेगी! निधि को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका भयंकर अपमान कर दिया हो और उसके नीचे से जमीन खींच ली हो, ठीक है छोटी चाची जी से  करवा रहे थे तो साथ में उसे भी तो बुला लेते आखिरकार भाभी तो भाभी ही होती है,

इस कहानी को भी पढ़ें:

जानकी जीवनधारा – मनीषा देबनाथ

भाभी के होते हुए चाची से  नेग करवाना कहां का न्याय है बसनिधि का तो मन उचट गया शादी से और वह पूरी शादी में अनमनी सी ही रही, अपने पति और सासू मां से उसने कह दिया कि मैं सुबह होते ही चली जाऊंगी आप लोग भली बाद में आ जाना, उसकी सास को भी यह बात बुरी लगी की बड़ी बहू के होते हुए चाची से नेग करवाया, अगले दिन बहू के आते ही निधि ने कहा.. मां मैं जा रही हूं! इतने में उसकी चाची सास और बुआ साथ बोली …अरे बहू अभी तो बहुत सारी रश्म बाकी हैं अभी तो तुम्हें दुल्हन की झूठी थाली उठानी है और दुल्हन को तैयार करना है,

निधि के मन में तो गांठ पहले से ही थी और उसे गुस्सा भी आ रहा था तब उसने कहा… नहीं चाची जी बुआ जी मुझे कुछ जरूरी काम है और वैसे भी कौन सी रसम ऐसी है जो भाभी को करना जरूरी होता है आजकल तो भाभी की जगह चाची भी रसम कर ही देती हैं तो आप यह सारी रसमें चाची जी से ही करवा लीजिए उसकी बातें सुनकर सभी ने उसे खूब रोका की…

नहीं नहीं भाभी की रसम तो भाभी ही करेगी किंतु अब निधि कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी एक बार मन में जो गांठ पड़ जाती है वह इतनी आसानी से कहां खुलती है और निधि वहां से अपने घर वापस आ गई! आज देवर की शादी हुई 10 साल हो गए निधि सभी कामों में जाती है हस्ती बोलती है किंतु वह मन की गांठ जो उस समय लगी थी वह आज तक नहीं खुल पाई! 

हेमलता गुप्ता स्वरचित

.  कहानी प्रतियोगिता (मन की गांठ)

       “मन की गांठ”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!