सुमेधा जी की नौकरीपेशा बहू रजनी हरदम कोशिश करतीं कि मम्मी जी को कोई परेशानी न हो,समय से पहले सारे काम निपटा कर आफिस जाती, और आकर रात का खाना बनाती .. रजनी के बच्चे तीन बजे तक स्कूल से आते … सुमेधा जी को बस उन्हें खाना परोसना होता था ….
लेकिन जब भी सुमेधा जी की बेटी रागिनी आती … मां को भाभी के खिलाफ पट्टी पढ़ाकर जाती … मां देखो,भाभी तो आराम से पर्स लटकाकर शाम को सात बजे आतीं हैं,और आपको बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है … आपकी बिल्कुल चिंता नहीं है उन्हें .,..बस मां रागिनी के बहकावे में आकर रजनी से बात बात में नाराज होने लगती …
एक दिन राघव घर पर था ..जब रागिनी मां के कान भर रही थी … उसने सब सुन लिया ….
बाहर आकर बोला-दीदी आप ऐसी बातें बोलकर क्यों परिवार में जहर घोल रही हो..और मां आप तो जानती हो, रजनी आपका कितना ख्याल रखती है, सारे काम निपटा कर जाती है… फिर भी आप दीदी की भड़काऊ बातें सुनकर रजनी को भला बुरा कहने लगती हो…
दीदी आपने तो छह महीने में ही बुजुर्ग सास को छोड़कर अपनी गृहस्थी अलग कर ली थी ….यह भी नहीं सोचा वो कैसे सब काम करतीं होगी … पहले अपनी सास का ध्यान रखना सीखो दीदी .. फिर यहां आकर कुछ कहना ….आज राघव ने दोनों को सच से रूबरू करा दिया….
सुमेधा जी को अपनी ग़लती का एहसास हो गया ….वो बोली -बेटा रागिनी, तुम तुम्हारे घर-परिवार का ख्याल रखो… मेरे लिए रजनी और तुम में कोई अंतर नहीं है … रागिनी चुपचाप अपने घर चल दी…इस बार मां ने भी उसे नहीं रोका .।
पट्टी पढाना.
ममता चित्रांशी