“बहू, कहां रह गईं थीं तुम अब तक……गौरी ने भी तुम्हें कितने फोन किए….लेकिन हर बार तुम्हारा ये उत्तर सुन सुन कर कि अभी आ रही हूं, अभी आ रही हूं…बेचारी थक गई और अब अपनी सहेली के साथ पार्लर गई है तैयार होने के लिए….पता नहीं वहां कितनी देर लगेगी….बारात निकलने में सिर्फ 1 घंटा बाकी है….”सविता ने गुस्से से अपनी बहू गीता से कहा
” तो दीदी मेरे पास आ जाती पहले ही…मैं कर देती तैयार …मना तो नहीं किया था मैंने…..अब मैं भी तैयार ही हो रही थी….फिर बेटे बेटी को भी तैयार किया तो देर हो गई….”
“हां….हां…सब तेरे ही यहां तो चले आते….जैसे यहां तो कोई काम है ही नहीं….चल अब मेरी साड़ी सही से बांधने में मेरी मदद कर दे….और फिर जल्दी से बच्चों को कुछ खिला पिला दे नहीं तो फिर भूखे ही गए बारात में तो रास्ते में परेशान हो जाएंगे….”
“मां जी पहले मैं बच्चों को कुछ दे देती हूं….नहीं तो फिर आप मुझसे ही कहेंगी कि तेरी ही देर रहती है फिर आपको तैयार कर दूंगी…..”कहते हुए गीता सविता के कुछ बोलने से पहले ही वहां चली गई और सबिता जी अरे ….अरे …लेकिन ही कहती रह गईं लेकिन आज गीता ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया।
आज गीता किसी की नहीं सुन रही थी उसे तो केवल अपने दिल की ही आवाज सुनाई दे रही थी जो कह रहा था कि सबके लिए बहुत जी ली अब खुद के लिए भी जीना सीख….आखिर कब तक सबका करके भी बेवजह डांट सुनती रहेगी…..
उसके दिमाग में कल की ही बातें घूम रहीं थीं जब सबके सामने सविता जी ने डांट लगा दी कि तुम पर अभी तक तैयार नहीं हुआ गया हमेशा तुम्हारी वजह से देर होती है …..जबकि उसकी तो कोई गलती भी नहीं थी…. उसे याद था कि आज उसके छोटे देवर शुभम की बारात जानी थी और कल मेंहदी और हल्दी का कार्यक्रम था….सब एक के बाद एक उससे तैयार हो रहे थे जिससे उसे खुद तैयार होने में देर हो गई और सासू मां सविता जी जो कि खुद उससे तैयार हुई थीं
इस कहानी को भी पढ़ें:
उन्होंने ये कहते हुए सबके सामने डांट लगा दी कि इसका तो शुरू से यही हाल है कोई भी काम हो समय से तैयार ही नहीं हो सकती…..ये आज पहली बार नहीं था कि ऐसा पहली बार हुआ हो लेकिन सबके सामने इस तरह कहना आज उसे अखर गया और आज से उसने खुद को बदल लिया….वह इस घर की बड़ी बहू थी जब वह यहां विवाह के बाद आई तो कुछ समय बाद उसने पार्लर खोलने की इच्छा जाहिर की लेकिन सबने ये कह कर कि इस परिवार में महिलाएं नहीं कमाती,
इसके लिए पुरुष ही बहुत हैं पार्लर खोलने से मना कर दिया लेकिन घर परिवार यहां तक कि रिश्तेदारी में कोई भी कार्यक्रम होता तो ज्यादातर लोगों को तैयार करने की जिम्मेदारी गीता पर ही आ जाती और चूंकि वह बहू भी थी तो अन्य जिम्मेदारियां भी उसी की होती जैसे कहीं बाहर जाना हो तो सबके लिए पैकिंग भी उसी को करनी….खाने का प्रबंध भी उसे करना….जैसे वो कोई इंसान न होकर मशीन हो…अपनी नन्द गौरी के विवाह में गौरी को तैयार करने की भी जिम्मेदारी उसी की थी लेकिन तक उस पर खुद के बच्चों की जिम्मेदारी नहीं थी तो सब संभल भी जाता था
लेकिन जब बड़े देवर की शादी हुई तब उस पर एक बेटा था तो उसे थोड़ी मुश्किल हुई लेकिन जैसे तैसे उसने संभाल लिया…. चूंकि घर छोटा था तो देवर के विवाह के बाद घर से ही 2 किमी.की दूरी पर ही उसके पति अभय ने दूसरा घर ले लिया और और अभी 4 साल से ही अभय, गीता अपने 2 साल के बेटे के साथ वहां शिफ्ट हुए जिसके बाद उनके एक बेटी भी हो गई…..लेकिन कोई भी तीज त्यौहार या फंक्शन होता तो बड़े बेटे बहू की जिम्मेदारी उन्हीं पर आ जाती
और जरा सी कमी होने पर सबकी सुनना पड़ता वो अलग और फिर वह खुद जल्दी जल्दी में तैयार होती उसके लिए भी उसी को सुनना पड़ता कि ठीक से तैयार भी नहीं हुआ जाता किसी फंक्शन में जबकि उसका भी बहुत मन होता कि वह भी अच्छे से सज संवर कर तैयार हो लेकिन इतनी जिम्मेदारियों और छोटे बच्चों के कारण वो खुद के लिए फॉर्मेलिटी करती ….कल भी छोटे देवर शुभम के मेंहदी फंक्शन में कुछ ऐसा ही हुआ जिससे गीता को बहुत दुख हुआ कि उसकी बड़ी देवरानी मीनू भी कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही….
बस खुद तैयार होकर अपने बेटे को तैयार कर लिया और उसी का उदाहरण देकर सासू मां ने सबके सामने उसे डांट लगा दी कि मीनू भी तो इस घर की बहू है वो भी तो समय से तैयार हो गई लेकिन तुझ पर तैयार नहीं हुआ जाता…तुझे तो समय का होश ही नहीं रहता….कहीं जाना हो तो भी तेरी ही देर रहती है….
सविता जी की बातें सुन गीता की आंखों में आंसू आ गए जिन्हें छिपाते हुए वह तैयार होने चली गई और आज भी पहले अपना और अपने बच्चों का ध्यान रख रही थी
इस कहानी को भी पढ़ें:
वह बच्चों को नाश्ता करवाते हुए इन बातों को सोचती जा रही थी कि तभी अभय की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ उसने देखा अभय के साथ उसकी सासू मां सविता जी उसके सामने खड़ी थीं
“ये क्या तमाशा बना रखा है तुमने …तुम्हें पता है न कि बारात निकलने ही वाली है और तुमने मां को तैयार भी नहीं किया और वो गौरी भी पार्लर गई है….तुम्हे हो क्या गया है ये….”
“मुझे कुछ नहीं हुआ है बस आज पहले मैं तैयार हो गई थी जिससे सबके सामने मां जी की डांट नहीं सुननी पड़े कि मैं समय से तैयार नहीं होती और वैसे भी मां जी की साड़ी तो कोई भी बांध सकता है, मीनू से ही बंधवा लेती….”
“तो बहू ऐसी बात थी तो तुम थोड़ी और जल्दी तैयार होती कम से कम मेरी बेटी को समय से तैयार तो कर देती….”
“लेकिन क्यों मां जी मैं ही क्यों….अगर मैं ज्यादा देर पहले अपने बच्चों को तैयार कर देती और खुद तैयार होकर सबकी तैयारी करती तो मेरे बच्चे तो कपड़े ही खराब कर लेते और खुद मेरा भी मेकअप बिगड़ जाता तो मैं ही क्यों इन सबके लिए समझौता करूं….कोई खुद को क्यों नहीं बदल सकता, गौरी दीदी सुबह मेरे पास आकर तैयार होकर आ जाती तो मैं क्या मना करती लेकिन नहीं उन्हें भी समय पर तैयार होना था और अब से मैं भी समय से तैयार हूंगी….अब से मैं किसी के लिए कोई समझौता नहीं करूंगी ….”कहते हुए गीता वहां से अपने बच्चों को लेकर बारात में जाने को चल दी।
प्रतिभा भारद्वाज‘प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश)