बहू, फिर से शॉपिंग !!अभी दस दिन पहले ही तो तुम गई थी, और ये सेल का इतना सामान फिर से ले आई इनमें पैसे बर्बाद मत किया करो, भारती जी ने समीक्षा को टोका तो उसका पारा चढ़ गया।
मम्मी जी, मेरा घर है, मेरा पति कमा रहा है, आपको क्या तकलीफ़ हो रही है? मैं कहीं भी खर्च करूं? मेरी मम्मी ने कभी ना टोका, फिर आप क्यों टोक रही है?
मैंने आपसे तो पैसे नहीं लिए थे, मैं अपनी इच्छाओं के लिए समझौता नहीं करती हूं।
समीक्षा की बेबाकी सुनकर भारती जी का चेहरा उतर गया, समीक्षा जो सामान लाई थी वो जरा भी काम का नहीं था, सिर्फ सेल में जाकर सामान बटोरकर लाने को तो शॉपिंग नहीं कहते हैं।
आशुतोष की अच्छी सैलेरी है तो वो समीक्षा को हर महीने कुछ खर्च के पैसे देता था, समीक्षा उन रूपयों को पन्द्रह दिन में ही खर्च कर देती थी, जरा भी बचत की आदत नहीं थी। समीक्षा अपने माता-पिता की इकलौती संतान रही है तो उसने अपनी सभी इच्छाएं पूरी की है।
समीक्षा और आशुतोष की लव मैरिज हुई थी,वो पैसे वालों की बेटी है जबकि आशुतोष एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता है, दोनों ने जब शादी के लिए कहा तो भारती जी ने मना कर दिया था, क्योंकि समीक्षा अमीर घराने से थी, उन्हें लगता था वो इस परिवार मे रह नहीं पायेगी, पर दोनों ने जिद पकड़ ली और शादी कर ली।
समीक्षा के घरवालों ने महंगें जेवर , वस्तुएं और कपड़े दिये थे, पर घर तो हर महीने समझदारी से चलता है,इसका गुण समीक्षा में नहीं था। जब भी मॉल में सेल लगती थी वो कुछ भी उठाकर ले आती थी, कई कपड़े और सामान तो बिल्कुल काम का ही नहीं होता था।
रसोई कैसे चलाते हैं? सामान को कैसे काम में लेते हैं?
इसका एक भी गुण नहीं था समीक्षा में।
आशुतोष और समीक्षा की शादी को साल भर होने को आया था, पर अभी तक समीक्षा घर के हिसाब से नहीं रह रही थी, भारती जी को ये सब फिजुलखर्ची लगती थी।
आशुतोष के पिता के निधन के बाद उन्होंने बेहद ही समझदारी से घर चलाया था, कुछ बचत पति की थी पर वो कितनी चलती? ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थी, इसलिए अपने सिलाई का हुनर काम में आया। लोगों के कपड़े सिलने लगी और पैसा आने लगा पर वो भी बहुत ज्यादा तो नहीं था, पाई -पाई का हिसाब रखती थी।
तीनों बच्चों को अकेले पालना, उनकी पढ़ाई लिखाई करवाना सब कुछ आसान तो नहीं था।
बड़ी हिम्मत रखी धैर्य रखा, दोनों बड़ी बेटियों को पढ़ाया और वो स्कूल में टीचर बन गई, अपने पैरों पर खड़ी तो थी तो ज्यादा दहेज लिएं बिना ही उनका विवाह कर दिया, फिर भी विवाह में बाकी के खर्चे भी तो होते हैं, वो सब उधारी पर किया। सबको आश्वासन दिया था कि आशुतोष की नौकरी लगते ही सब चुका दूंगी।
आशुतोष थोड़ा पढ़ाई में तेज था, उसकी अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई थी, वो कमाने लगा था, पर भारती जी के माथे पर अभी बेटियों के विवाह का कर्ज था, जिससे वो जल्दी ही मुक्त हो जाना चाहती थी।
उन्हें इसका भी समय नहीं मिला, नौकरी लगते ही आशुतोष ने अपनी कॉलेज में साथ पढ़ने वाली समीक्षा से शादी कर ली, इधर आशुतोष के विवाह में भी पैसा लगा था।
अब इन सब कर्जों से भारती जी जल्दी ही मुक्त होना चाहती थी। भारती जी घर देखकर चलती थी, उनका मानना था कि जो चीज घर पर रखी है पहले उसे काम में लिया जाए फिर नई चीज लाई जाएं, या जिस चीज की जरूरत ही नहीं है वो तो कभी ना लाई जाएं। वो कंजूस नहीं थी।
वो मितवययी थी। समीक्षा को उनकी मितव्ययिता जरा भी पसंद नहीं थी, वो शुरू से खुले हाथों से खर्च करती थी। शादी के कुछ महीनों तक तो उसे मनमानी करने दी, लेकिन बाद में आशुतोष और भारती जी ने उसे समझाया भी था कि है देखकर चलना चाहिए और इतना कर्ज चुकाना है।
ये सुनकर समीक्षा ने कहा कि, कर्ज आपने लिया है? तो इसके लिए मैं अपनी इच्छाएं क्यों मारूं? मैं क्यों समझौता करूं? आपने अपनी बेटियों के लिए कर्जा लिया है, आप चुकाओं। मैं किसी भी हाल में समझौता नहीं करूंगी।
भारती जी चुप ही रहती, उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी और आंखों से कम दिखने लगा था, इसलिए उन्होंने अपना सिलाई का काम भी बंद सा कर दिया था।
अब घर में कमाने वाला एकमात्र आशुतोष ही था।
भारती जी को कोई भी चीज बर्बाद हो ये पसंद नहीं था।
समीक्षा खाना तो बना लेती थी पर बहुत ज्यादा बना लेती थी, फिर उसे फेंक देती थी, सब्जियां और राशन का सामान इस तरह फेंकना भारती जी को रास नहीं आता था, वो टोका- टोकी करती रहती थी।
उनकी टोका-टोकी से समीक्षा चिढ़ी हुई थी, मम्मी जी ये आपकी बचत का फंडा आपके ही पास रखिएं, मुझे इस तरह की कंजूसी जरा भी पसंद नहीं है, जब मेरा पति इतना अच्छा कमा रहा है तो मैं कहीं भी खर्च करूं? मैं क्यों समझौता करूं?
आप मुझसे पैसों का हिसाब मत मांगा कीजिए।
भारती जी के पास कोई विकल्प नहीं था, अपनी बहू की कड़वी बातें वो आशुतोष को भी नहीं बताती थी, वो नहीं चाहती थी कि घर में क्लेश हो, बेटा और बहू आपस में लड़ें और टकरार करें।
वो समीक्षा को ही समझाती थी कि, बचत करनी चाहिए इससे बुरे वक्त में सहारा मिलता है केवल तुम ही आशुतोष की जिम्मेदारी नहीं हो, वो मेरा बेटा भी है, उसकी इस घर के प्रति भी जिम्मेदारी है।
अब जो कर्ज लिया है वो आशुतोष ही चुकायेंगा, और पत्नी होने के नाते तुम्हें भी समर्थन करना चाहिए और
एकजुटता से मिलकर इस कर्ज को उतारना चाहिए, बस कुछ ही समय की बात है पर समीक्षा के दिमाग में यह बात घुसती नहीं थी।
आशुतोष भी उसे समझाता था कि सोच समझ कर खर्च करो पर उसने तो ठान रखा था कि वो किसी की बात नहीं मानेंगी।
कुछ महीनों बाद एक दिन उसकी मम्मी का फोन आता है कि समीक्षा हम कल दूसरे घर में रहने जा रहे हैं?
मम्मी, पर क्यों? अपना इतना अच्छा घर है आप इसे छोड़कर क्यों जा रहे हो?
समीक्षा, अब ये घर हमारा नहीं रहा, तेरे पापा को बिज़नस में बहुत घाटा हुआ है, सब माल लेकर बैठ गयें और पैसा भी नहीं दे रहे हैं, अब इन पर भारी कर्ज चढ़ गया है, हमने हमारा घर बेच दिया है, इससे पैसा चुका देंगे और हम किराये के घर में रह लेंगे।
मम्मी की बात सुनकर समीक्षा रोने लगी, पर मम्मी आप इतने बड़े घर में रहने वाली एक छोटे से घर में कैसे रहोगी? कर्ज तो पापा ने लिया है, तो तकलीफ आप क्यों सहोगी? आप क्यों समझौता करोगी?
समीक्षा, पत्नी पति के हर सुख दुःख की भागीदार होती है, पति के सिर पर कर्ज हो तो पत्नी कैसे सुख से रह सकती है? ये उसकी भी जिम्मेदारी होती है कि वो पति के कर्ज को चुकायें और अपनी तरफ से हर प्रयास करें।
आखिर पति जो भी करता है परिवार और पत्नी के लिए ही तो करता है। हर पति की यही कोशिश रहती है कि वो हर तरह से पत्नी को खुश रखें, उसकी इच्छाएं पूरी करें, उसकी जरूरत का ध्यान रखें, तो पत्नी का भी फर्ज होता है, वो अपने पति का सुख में ही नहीं दुःख में भी साथ दें।
समीक्षा ने फोन रख दिया, अपने मम्मी और पापा के लिए वो बहुत दुखी थी, उसे आज समझ आया कि पति के कर्ज में पत्नी भी साझेदार होती है। पति परेशान हो तो पत्नी कैसे सुखी रह सकती है?
उसने ठंडे दिमाग से सोचा और अपनी डिग्रियां संभाली । एक दो जगह नौकरी के लिए आवेदन कर दिया। घर में बिना बतायें वो साक्षात्कार के लिए चली गई पर उसका कहीं भी सलेक्शन नहीं हुआ।
वो आजकल नम्र हो गई थी, एक दिन उसकी सहेली का फोन आया कि, शॉपिंग के लिए चले? मॉल में सेल लगी है तो उसने अपने कपड़ों की अलमारी देखी जो जरूरत से ज्यादा भरी हुई थी तो उसने अपनी सहेली को मना कर दिया कि उसे शॉपिंग पर नहीं जाना है, भारती जी को ये सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ, और मन ही मन वो बहुत खुश हुई।
रात को जब खाना बन रहा था तो समीक्षा ने आज भारती जी से कितना आटा लूं? और कितनी दाल लूं? जिससे अन्न बर्बाद ना जाएं , ये पूछा तो उन्हें हैरानी हुई, क्योंकि समीक्षा ना तो कभी नाप पूछती थी बस मनमर्जी का बना लेती थी, फिर वो फेंकने में जायें तो चला जाएं।
रात के खाने के बाद समीक्षा तो अपनी सहेलियों के साथ घुमने चली गई, भारती जी ने आशुतोष से समीक्षा में आये हुए बदलाव के बारे में बताया तो उसे भी आश्चर्य हुआ उसने पहली बार भारती जी के मुंह से समीक्षा के लिए इतनी तारीफें सुनी।
आशुतोष ने समीक्षा के आते ही पूछा, कल डिनर के लिए बाहर चलें, मूवी भी देख आयेंगे, तुम हर शनिवार को मूवी देखने जो जाती हो।
हां, जाती थी पर अब नहीं, अब से केवल महीने में एक बार ही जायेंगे, हर हफ्ते मूवी देखना और बाहर होटल में खाना ठीक नहीं है, पैसों की बर्बादी होती है।
समीक्षा ने कहा तो आशुतोष को मम्मी की बात पर विश्वास हुआ।
समीक्षा तुम अचानक से कैसे बदल गई? और इतनी समझदार हो गई?
उस दिन मम्मी से जब बात हुई तो मैंने भी सोचा कि शादी का मतलब सिर्फ साथ रहना, सैर सपाटा, मौज मस्ती नहीं होता है, शादी का मतलब यह भी होता है कि जो भी घर में समस्या है, परेशानी है, उसे पति पत्नी दोनों मिलकर हल करें।
मैं अपनी इच्छाओं का बोझ तुम पर लादती रही, मम्मी जी मुझे इतना समझाती रही पर मैं सबकी उपेक्षा करती रही। मम्मी इतने ऐशो आराम से रहती थी पर पापा को बिज़नस में घाटा लगा, वो लोग छोटे से घर में आ गये पर मम्मी ने उफ तक नहीं की,वो पापा के साथ आज भी बहुत खुश हैं, क्योंकि पापा कर्जमुक्त है, मम्मी ने उस घर को कितने अरमानों से सजाया था, एक -एक चीज अपनी पसंद की लाई थी, उस घर से उन्हें कितना प्यार था, पर पापा को चिंता मुक्त देखने के लिए वो घर बेच दिया, एक क्षण भी देर ना लगाई।
इधर आप और मम्मी जी इतनी बचत करते हो ताकि दीदी की शादी का और आपकी शादी का कर्ज चुक जाएं पर मैंने तुम्हारे दुःख और चिंता की जरा भी परवाह नहीं की, मैं अपनी ही दुनिया में मस्त रही, पैसे लुटाती रही, मम्मी जी को इतना सुनाती रही, मैंने बहुत बुरा व्यवहार किया, सबके दिल को दुखाया, मैं मम्मी जी से कैसे माफी मांगूं?
वैसे ही जैसे एक बेटी अपनी मां से माफी मांगती है…..कमरे के अंदर आते हुए भारती जी बोली, उन्होंने समीक्षा के आंसू पौंछे और उसे गले से लगा लिया।
समीक्षा, आज तुम सही मायने में आशुतोष की पत्नी बनी हो, तुम्हें अपने पति के दुःख और चिंता का अहसास हुआ है, तुम जीवनसंगिनी बनी हो जो अपने पति के सुख दुःख की भागीदार हो, तुम दोनों ऐसे ही खुश रहो।
मम्मी जी, मुझे अपनी गलतियों के लिए माफ कर दीजिए, अब आशुतोष और मैं हम दोनों मिलकर सारा कर्ज चुका देंगे। मैंने कई जगह नौकरी के लिए आवेदन किया था, सब जगह से मना हो गई थी पर आज सुबह ही एक जगह से हां हुई है। आशुतोष की हर जिम्मेदारी अब मेरी भी जिम्मेदारी है।
समीक्षा ने नौकरी कर ली, दोनों ने दिन रात मेहनत की और भारती जी के सिर पर चढ़ा सारा कर्ज उतार दिया।
अब समीक्षा भी मितव्ययता से काम लेने लगी थी, वो कहीं भी फालतू पैसा खर्च नहीं करती थी।
एक सुबह वो चक्कर खाकर गिर पड़ी, डॉक्टर ने बताया कि वो मां बनने वाली हैं, घर में खुशी की लहर दौड़ गई, दोनों ननदें,भारती जी, आशुतोष भी खुश था क्योंकि वो अब कर्जमुक्त हो गये थे और नई जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार थे।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
# समझौता अब नहीं