बस अब और नहीं – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

पायल! पायल!तेजी से श्याम चीखा तो घबरा के पास आती वो बोली, क्या हुआ जी! क्या कह रहे हैं?

क्या कह रहे हैं? गुस्से में उसकी नकल करता उसका पति श्याम बोला..भोली तो ऐसे बनती हो जैसे बड़ी सीधी

हो..ये बच्चियां शोर कर रही हैं इन्हें कौन संभालेगा? पता नहीं मेरे ऑफिस का काम कितना ज्यादा होता है,

जरा सा आराम करने लेट क्या जाओ इन बच्चियों को शोर करने भेज देती हो!!

जी..मैंने भेजा इन्हें..? मैं तो नन्हें को सुला रही थी..मुझे तो पता भी नहीं…

अब जुबान लड़ाओगी मुझसे?श्याम लाल पीला होते बोला।

पायल ने झट दोनो लड़कियों को अपनी तरफ खींचा और चल दी कमरे से…उसकी आंखों में आंसू भर आए

थे…वो यथासंभव कोशिश करती कि श्याम जब घर आते तो बच्चों को शांत रखे पर छोटे छोटे तीन बच्चों को

अकेला संभालना काफी कठिन होता।श्याम खुद तो कुछ करते नहीं लेकिन पायल का दिल जरूर छलनी

करते रहते अपने व्यंग बाणों से।

पायल पढ़ी लिखी लड़की थी,हां!कुछ गरीब थी,बेसहारा थी, उसके रिश्तेदारों ने उसकी शादी श्याम से करा दी

थी,शायद श्याम उसी का बदला लेता था उससे कि इसे कुछ भी कहे,कोई नहीं है इसका जो इसकी बात

सुनेगा या मुझे गलत कहेगा।

कुछ दिनों बाद श्याम की मां कुछ दिन उनके साथ रहने चली आई।उन्होंने भी नोटिस किया कि श्याम बात

बेबात पर बहू पर नाराज़ होता, बेचारी दिन रात,सीधी गाय सी काम करती और वो जब तब उसे जलील

करता।

एक दिन श्याम को पायल के किसी दूर के रिश्तेदार मामा के यहां फंक्शन का न्यौता आया..पहले तो श्याम

को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये कौन मामा निकल आया इस कंगली का जो शादी के वक्त नहीं था,पायल बहुत

उत्साहित थी और उसे उम्मीद थी कि उसके मामाजी जो विदेश से आए थे और काफी सुलझे हुए भी थे,

श्याम को जरूर समझाएंगे कि उसे पायल से ऐसे दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए।

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यूं तो श्याम जाना नहीं चाहता था पर जब उसकी मां ने जोर दिया तो वो पायल और सब बच्चों के साथ वहां

जाने को राजी हुआ और उस दिन के ट्रेन के टिकट ले आया।

सब सामान रखने की आपाधापी में पायल ने कोई जरूरी सामान नहीं रखा कि श्याम का पारा हाइ हो गया।

इस ने बेवकूफ औरत के साथ जा तो रहा हूं मां पर ये कोई कांड जरूर करेगी रास्ते में..तुम देख लेना मां!वो

गुस्से से बोला।

अरे! उस पर तीन छोटे बच्चों की जिम्मेदारी है,गलती हो जाती है,ऐसे क्यों बिगड़ता है तू उस पर?हर समय

दुर्वासा का रूप धारण करना जरूरी है?

मां!श्याम भौंचक्का हुआ…आपको भी मेरा कुसूर दिख रहा है? इसने जरूर आपको मेरे खिलाफ भड़काया है…

देख बेटा! उसकी मां बोली, ये सीधी लड़की है,अगर तुझे पलट के जबाव नहीं देती तो इसका मतलब ये नहीं

कि वो गूंगी है, उसकी भी कुछ भावनाएं,इच्छाएं हैं…हर वक्त क्यों नाराज़ होता है…किसी दिन उसे गुस्सा आया

तो सम्भाल नहीं पाएगा उसे..कहे देती हूं।

इसे गुस्सा आया??क्या मजाक करती जो मां तुम भी!!श्याम हंसा.. और पायल से बोला..अब चलें अगर सब

तैयारी कर ली हो आपने मैडम?

उसकी टोन में व्यंग छुपा था लेकिन पायल कुछ न बोली बस चुपचाप हां में सिर हिला दिया।

बच्चियां पहली बार ट्रेन का सफर कर रही थीं,बड़ी खुश और उत्साहित थीं। शोर मचाते एक एक खिड़की की

सीट हथिया ली उन दोनो ने।

श्याम जब डिब्बे में घुसा..चीखते हुए बोला..जरूर तुम्हारी बे अकल मां ने तुम्हें बैठाया होगा यहां, चलो हटो उधर

से..बीच सीट पर बैठो,उन्हें साइड कर वो खुद खिड़की की सीट पर पसर गया।

बेचारी पायल, सामान भी लिए थी और छोटे बच्चे को भी।उसकी आँखें छलछला आई पति की

संवेदनहीनता पर..एक पुरुष होकर सीट पर पसरा पड़ा था और वो छोटे बच्चों के साथ सामान भी सेट कर

रही थी और उसकी कड़वी बातें भी सुन रही थी।

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अगले स्टेशन पर एक खूबसूरत सी महिला डिब्बे मे चढ़ी।

पायल उसे देखने लगी,गुलाबी रंग की साड़ी ब्लाउज में वो काफी सुंदर लग रही थी,बालों पर काला धूप का

चश्मा अटका था,होंठों पर लाल लिपस्टिक,कंधे पर झूलता पर्स और लंबी चोटी कमर पर बल खाती हुई थी।

उसने देखा कि दिन के समय ही ये आदमी (श्याम) पूरी सीट पर आराम से पसरा हुआ था,पायल सहम गई की

कहीं ये उसके पति से जगह न मांग ले बैठने की वो जरूर झिड़क देगा उसे।

लेकिन पायल को जोर का झटका लगा जब उस औरत ने श्याम से सीट मांगी और श्याम उछल के बैठ गया

और उसको बिना विरोध अपनी सीट पर बैठा लिया,यहां तक भी ठीक था,उसने अपने तौलिया से सीट को

झाड़ कर साफ भी किया उसके लिए।

ओहो! ऐसी कौन तोप है ये जो उसका पति तक डर गया उससे। पायल उसे गौर से देखने लगी। वो सोच रही

थी कि इस औरत ने न तो मांग भर रखी है और न ही बिंदी लगा रखी है..कहीं ये विधवा तो नहीं?

तभी श्याम बोला…आप कहां जा रही हैं मैडम?

जहां ये ट्रेन के जाए…वो कह कर फीकी सी हंसी हंस दी।

कमाल का सेंस ऑफ ह्यूमर है आपका ..श्याम बोला…कहां काम करती हैं आप?टीचर हैं या ऑफिस में हैं

किसी?

पायल को गुस्सा आ रहा था पहली बार..कैसे लगातार बोल रहा है उससे…वो भी बोल पड़ी..छुट्टियों में जा रही

होंगी.. पीहर या सुसराल?

तभी श्याम बोला..बेवकूफों की तरह बोलना जरूरी है बीच में?इस समय किस बात की छुट्टी?

नहीं,वो औरत बोल पड़ी…सही कह रही हैं आप…छुट्टी तो नहीं हैं पर मैं जरूर छुट्टी लेकर जा रही हूं और मैं नर्स हूं

एक हॉस्पिटल में।

उस औरत ने पहली बार श्याम को थोड़े गुस्से में देखा जो अपनी पत्नी को सार्वजनिक रूप से डांट रहा था और

वो भी बिना बात के।

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वो श्याम की निगाहों से समझ गई थी कि वो बिना बात उसकी तारीफ कर बस उसकी समीपता चाह रहा था

और अपनी पत्नी को जलील कर रहा था।उसे पायल के लिए बहुत बुरा लगा।

तभी स्टेशन आया और वो झांक कर किसी की प्रतीक्षा करने लगी।एक आदमी उसकी तरफ आया और वो

साथ साथ सामने वाली सीट पर जा बैठे।उनकी घनिष्ठता बता रही थी कि वो अच्छे दोस्त हैं और काफी करीब

हैं।

पायल के दिल में एक हूक सी उठी…कैसे वो आदमी,उस औरत का ख्याल रख रहा था और वो प्यार भी नजरों

से एक दूसरे को देख रहे थे।एक उसका पति श्याम था जिसके लिए उसने सब कुछ किया पर उसकी आंख

तले उसका किया कभी आता ही नहीं था।तीन बच्चे पैदा किए पर उनकी जिम्मेदारी अकेली वो उठा रही

थी…हर समय उसे नीचा दिखाता,आज एक अजनबी औरत के आगे बिछने को तैयार था?

पायल ने देखा उसका पति श्याम फिर खर्राटे मार कर सो रहा था,उसका नन्हा बेटा रोया,शायद उसे प्यास

लगी थी,पायल खामोशी से उसे दूध पिलाने लगी क्योंकि अगर समय रहते उसे न चुप करा पाती वो तो श्याम

उसे बुरा भला कहता,सामने वो आदमी,उस औरत के लिए नीचे से पानी की बोतल और कुछ खाने को

लाया।

आखिर उनका स्टेशन आ ही गया और वो अपने रिश्तेदार के घर पहुंचे।पायल के मामा का घर बड़ा शानदार

था, वहां उन्होंने उन सबकी खातिरदारी अच्छे से की, वो जब श्याम से मिले तो कुछ ही देर में पायल के लिए

श्याम का व्यवहार समझ गए।

उन्होंने अकेले में पूछा पायल से श्याम के बारे में और वो थोड़ी देर में ही टूट गई…मामाजी! ये बहुत कठोर हैं मेरे

प्रति लेकिन अब तीन तीन बच्चों के साथ मैं कहां जाऊं?

तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं,इसका दिमाग तो मैं काबू में लाऊंगा।कहकर उन्होंने श्याम को बुलाया।

देखिए श्याम जी! पायल अब आपके साथ नहीं जाएगी लौटकर,हमने देख लिया है कि आपको वो बहुत कम

अक्ल और बेवकूफ दिखती है,शायद वो आपके लायक नहीं।

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जी..श्याम हड़बड़ा गया लेकिन अपनी बात ऊपर रखते बोला…ठीक पहचाना आपने,ये फूहड़ है जिसे आपके

घर वालों ने मेरे जिम्मे मढ़ दिया था लेकिन मुझे मेरा बेटा चाहिए,बेटियां आप रख लें।

तुम संवेदनहीन हो,बदतमीज हो ये मुझे शुरू से लगा था लेकिन इतने गिरे हुए भी हो,ये अब पता चला..मेरी

भांजी हम पर बोझ नहीं…समझे!!जाओ अब कोर्ट जाओ और अपना लड़का ले कर दिखाओ हमसे।

श्याम के होश उड़ गए ये सुनते ही..उसने पायल को देखा,थोड़ा घूरा शुरू में गुस्से में…डर जाएगी वो ये सोचकर

लेकिन पायल के चेहरे पर आज कोमलता नहीं थी,उसका चेहरा पत्थर की तरह सपाट और कठोर था।

पायल! सुन लो..तुम्हारे मामाजी क्या कह रहे हैं?आज मेरे साथ न गई तो कभी पलट कर नहीं आऊंगा..उसने

धमकाया उसे।

परवाह नहीं..पायल बोली,बहुत समझौते किए पूरी जिंदगी मैंने तुम्हारे साथ लेकिन अब और नहीं करूंगी..एक

सहारे और मार्ग दर्शन की जरूरत थी मुझे और आज वो मुझे मिल गया है…मैं पढ़ी लिखी हूं,कहीं नौकरी कर

कमा कर अपने बच्चों को पाल ही लूंगी लेकिन तुम्हारे जैसे लंपट आदमी के साथ और नहीं रहूंगी…रास्ते

चलती औरते तुम्हें पसंद हैं और अपनी औरत जो इज्जत और सम्मान करते नहीं थकती,उसमें दोष ही

निकालते मन नहीं भरता। जाओ!आज मैं तुम्हें छोड़ती हूं।

पायल के चेहरे पर एक दृढ़ता थी ,वो अपनी नई जिंदगी शुरू करने जा रही थी जिसमें ऐसे लोगों की बिल्कुल

जरूरत नहीं थी जो उसके आत्मबल को तोड़ने का काम करते आए थे।

समाप्त

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

#अब समझौता और नहीं

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