आफिस से आते ही रमण दरवाजे पर ताला देख झुंझला उठा,” यह कोई समय है…ताला बंद कर बाहर तफरी करने का… माधवी भी न।”
रमण बैग उलट-पुलट कर चाभी ढूंढने लगा… नहीं मिला…जेब में भी नहीं मिला… थका-हारा इंसान…इस समय कहां जाये… आज ही पैंट चेंज किया था लगता है चाभी उसी में रह गई। उसे अपनी जल्दीबाजी और हड़बड़ी पर गुस्सा आया।
अब वह क्या करे…वापस चला जाये… पड़ोसी से पूछे… मोबाइल भी डिस्चार्ज हो गया है…उसे माधवी के इस गैरजिम्मेदाराना हरकत पर मन ही मन क्रोध होने लग
उसी समय माधवी साग-सब्जी राशन-पानी के साथ हांफती हुई रिक्शे से आती दिखाई दी… रमण का सारा क्रोध हवा हो गया…कारण दो दिनों से माधवी निहोरा कर रही थी…” जरुरी राशन खत्म हो गये हैं… आलू और सब्जियां भी… कुछ पैसे दे देते…या आफिस से आते वक्त लेते आते… वरना बच्चों को क्या खिलाऊंगी …लंच कैसे दूंगी।”
रमण ने लापरवाही से सिर हिला दिया था…” देखता हूं।”
घर के सारे पैसे खत्म थे… कुछ विभागीय हेरा-फेरी जांच-पड़ताल के वजह से चंद महीनों से रमण का तनख्वाह भी रुका हुआ है।एक एक पैसे की दिक्कत हो गई है… वैसे में खर्च चलाना सब का पेट भरना मुश्किल है… आज भी कोई जुगाड़ नहीं हुआ…बास ने दो टूक सुना दिया ” जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती सच्चाई सामने नहीं आ जाता… मैं कुछ मदद नहीं कर सकता।’
माधवी ने किसी से पैसे उधार लिये कहां से सामान लाई रमण सोच में पड़ गया।
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इधर माधवी रोज पति को आफिस दोनों बच्चों को स्कूल भेज…घर का काम निपटा … अपनी पुरानी परिचित के सिलाई सेंटर पहुंच कर… सिलाई कढ़ाई फाल पीको के काम में लग जाती थी। पहले उसकी पहचान वाली उसे देख चौंक पड़ी थी,” तुम्हें क्या जरूरत आ पड़ी… यहां सिलाई कढ़ाई करने की।”
” अगर काम है तो दीजिए नहीं तो कोई बात नहीं ” माधवी का उदास स्वर… फिर उन्होंने कुछ नहीं पूछा।
माधवी के काम में सफाई था।रोज के रोज पैसे मिल जाते। वह घर कैसे चला रही है… रमण ने खोजबीन नहीं की…मन ही मन शर्मिंदा भी था। शायद जेवर बेंचे होंगे।
जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाता वह कुछ भी कहने सुनने की स्थिति में नहीं था।
एक दिन वहां आने वाली कारीगर दो दिनों बाद आई। मालकिन भड़क उठी,” कहां रह गई थी… ग्राहक रोज चार बातें सुनाकर चले जा रहे हैं।”
” असल में मेरे गांव से दो लड़कियां पढ़ने के लिये आइ हैं उन्हीं के रहने के लिये जगह ढूंढ रही हूं… थोड़ा सस्ता और सुरक्षित” उसने धीरे से कहा और काम में लग गई।
दूसरी सुबह माधवी की नजर अपने घर के उपरी तल्ले पर गई… जीर्ण शीर्ण अवस्था में….।
विपरीत परिस्थितियों ने सीधी सरल माधवी को जागरूक कर दिया। वह छज्जे पर चढ़ी। दरवाजा खिड़की सब ठीक था… थोड़ी सफाई और पेंट करने से रहने लायक हो जायेगा। अटैच बाथरूम भी है… पानी का नल ठीक करवाना होगा।
सिलाई सेंटर पहुंच उसने अपने साथ काम करने वाली से पूछा,” लड़कियों को मकान मिल गया।”
” नहीं अभी कहां मिला है… दोनों अभी मेरे घर पर ही है।”
” अगर आप बुरा न मानें तो मेरे घर के उपरी तल्ले पर एक पुराना हाल और साथ में अटैच बाथरूम है… जबतक कोई अच्छी जगह नहीं मिल जाता है तब तक के लिये… उसमें रह सकती हैं।”
लड़कियों ने माधवी का घर देखा और मजबूरी में हां कर दी… अब सवाल भोजन का था… माधवी ने स्वयं दोनों शाम के खाने का जिम्मा ले लिया,” लेकिन पैसे लगेंगे “
लड़कियां सहर्ष तैयार हो गई। बिस्तर और सोने का तख्त उन्हें स्वयं लाना था…किराये में पैसा काट लेना तय हुआ।
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हाल बड़ा था… लड़कियां चार सहेली और ले आई।अब छः लोगों का अतिरिक्त भोजन उसपर सिलाई सेंटर का काम… माधवी परेशान होने लगी।
उसने सिलाई सेंटर वाली से बात की ” मैं अपने हिस्से का काम अगर अपने घर ले जाकर करुं तो कोई दिक्कत है।”
” समय पर तुमने कपड़े नहीं लौटाये तब मैं ग्राहक को क्या जवाब दूंगी…”।
” आप भरोसा रखिये… आपने बुरे वक्त में मेरा साथ दिया है… मैं ऋणी हूं आपकी ” निवेदन सुन सिलाई सेंटर वाली मालकिन निरुत्तर हो गई।
माधवी ने करण को सारी बात बताई और हिम्मत रखने की सलाह दी ” जब हमने कुछ गलत नहीं किया तब हमारे साथ भी कभी बुरा नहीं होगा “।करण अपनी पत्नी की सूझबूझ और जीवटता पर कुर्बान हो गया।मन से हीन-भावना निकल गई और पूरे जोश से अपनी कंपनी के जांच-पड़ताल में लग गया।
दो-तीन महीने में नियमित आमदनी…हाथ में चार पैसे… माधवी ने वह कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता है।
दिन फिरते ही करण के विभाग के जांच का रिपोर्ट भी आ गया… दोषी पकड़े गये।बास,करण और उसके निर्दोष सहकर्मियों ने चैन की सांस ली। एक मुश्त मोटा रकम पाकर…करण के खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
उसी पैसों से उपर का हाल और दो कमरे और बनवाये गये… छात्राओं के भोजन बनाने के लिये दो उम्रदराज औरतें बहाल की गई।
माधवी हास्टल का रख-रखाव… सुरक्षा… सुस्वादु भोजन… छात्राओं अभिभावकों की पहली पसंद बनी।
” हमारा बुरा वक्त हमें नई दिशा दे जाता है “हंसते हुए करण और भारती ने एक साथ कहा।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा
हमारा बुरा वक्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है