दो दिन से घर में मातम परसा था । मिथलेश ने तीसरी बेटी को जन्म क्या दे दिया कि ससुराल वालों ने तो जैसे उसका हुक्का- पानी ही बंद कर दिया था । वो तो अच्छा हुआ कि जचगी के बाद घर की नाइन उसके पास आ गई थी और मिथलेश ने आबोहवा पहचान कर उसे कह दिया था—-
कमलेश! पंद्रह दिन निकलवा दे मेरे , दोनों वक़्त आ ज़ाया करना । तू तो देख रही है कि पानी पूछने वाला भी नहीं इस घर में ….. बड़ी लड़की तो नाना के घर भेज दी थी पर ये दूसरी मेरे बिना कहीं रहती नहीं ।
चिंता मत कर जीजी , आ ज़ाया करूँगी । ये मत सोचना कि लालच में आऊँगी….. तेरी हालत का अंदाज़ा है …. बस इसी ख़ातिर ।
और सचमुच जब तक कमलेश ना आती । प्रसूता को सास- ननद चाय-पानी तक नहीं पूछती थी । पति ने तो अंदर की कोठरी में आकर ….देखा तक नहीं कि जो औरत वहाँ अकेली पड़ी है, वो उसकी पत्नी है। ख़ैर….. ग्यारहवें दिन हवन करवाया गया और मिथलेश ने चैन की साँस ली —
शुक्र है….रसोई में तो आ-जा सकती हूँ ।
जब उसने अपना बक्सा खोलकर कमलेश को देने के लिए दो साड़ी निकाली तो सास गरजती हुई बोली थी —-
नाइन को देने के लिए साड़ी निकाल ली । ये जो ननद महीने भर से अपना घर छोड़ के बैठी है….. उसे लेने-देने की भी होश है या नहीं ?
मिथलेश का दिल तो किया कि कह दे—-
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ननद ने अपनी भतीजी का मुँह भी देखा या नहीं…. अपनी भाभी को एक प्याला चाय भी बना के दी या नहीं….. और लेन-देन के नाम पर , साड़ियाँ निकाल के दे दूँ ।
सास सारा दिन नन्ही सी जान को कोसती रहती थी—-
पता नहीं, सारी दुनिया की लड़कियाँ इसी घर में जन्म लेंगी । तीन- तीन लड़कियों का बोझ पड़ गया मेरे बेटे के कंधों पर …. अकेला करता- करता समय से पहले ही बूढ़ा हो गया । मुझे तो पहले ही इसके लछन दिख रहे थे कि लड़की जनेगी ।
मिथलेश चुप रहती । मायके से पिता रिवाज के नाम पर कुछ सामान लेकर आए तो सास ने उनके सामने ही रोना शुरू कर दिया—-
मिथलेश तो अपनी माँ पर गई है । इसकी माँ ने तुम्हारा वंश नहीं चलाया और इसके भी यही लछन लग रहे है।
ऐसा क्यों कहती हो समधन ? बेटा- बेटी देना तो भगवान की मर्ज़ी है । मेरा तो काम हल्का था , छोरी को पढ़ा ना सका पर तुम्हारे पास तो भगवान की दया से कोई कमी नहीं….. तुम्हारी पोतियाँ पोतों से कम नहीं रहेगी ।
रहने दो….. ये बात दूसरों को कहने के लिए होती हैं । लड़कियों से कभी अगत नहीं चलते ….
सास की बात सुनकर मिथलेश को आभास हो गया कि सास मानने वाली नहीं… दिन- रात की कलह करके उस पर फिर माँ बनने का दबाव बनाएगी । शादी के बाद पाँच सालों में तीन बच्चे….. इसलिए पिता के साथ जाने की इच्छा प्रकट करते हुए कहा—
माँ, कुछ दिन के लिए पिता जी के साथ चली जाऊँ क्या ?
चली जा …. वहीं आराम कर लेना । देख … ये जो तेरी माँ ने खाने के गोंद के लड्डू भेजे हैं… इनको मत ले जाना । तेरी ननद ले जाएगी…. वैसे भी ज़्यादा से ज़्यादा किलो भर हैं ।
मिथलेश ने सोच लिया था कि अब बच्चा पैदा नहीं करेगी चाहे जो हो जाए । उसने मायके पहुँच कर अपनी माँ से यह बात कही—-
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पर तेरी सास को पता चल गया तो वो तुझे घर में नहीं घुसने देंगी ….. एक बार दामाद जी से बात कर ले , मिथलेश ।
अगर तुम्हारे दामाद जी में इतनी अक़्ल होती तो दुख ही क्या था ….. वो तो माँ के कहे में चलता है । उसे और उसकी माँ को लड़के चाहिए । पर मुझमें अब हिम्मत ना रही माँ….. खाने के नाम पर सूखी रोटियाँ और हर साल बच्चा ….. मैं पैदा नहीं कर सकती । घर में दो-दो भैंस बँधी है पर छटाँक भर घी भी जचगी के बाद नहीं खिलाया …. तुमने पता नहीं, कैसे- कैसे करके लड्डू बनाकर भेजे ….. वे भी मुँह तक नहीं जाने दिए ….
इतना कहकर मिथलेश रोने लगी थी । बेटी के आँसू देखकर माँ का दिल पिघल गया और उसने मिथलेश की ज़िद के आगे घुटने टेकते हुए उसका आपरेशन करवा दिया । मिथलेश को पता था कि एक बार ससुराल पहुँच गई तो सास पल भर के लिए भी आराम नहीं करने देगी और ऊपर से पति की ज़ोर-ज़बरदस्ती अलग ….. आपरेशन के बाद डॉक्टर ने तीन महीने का परहेज़ और आराम बता रखा था । मिथलेश ने झूठ- सच का सहारा लेकर बड़ी मुश्किल से तीन महीने निकाले और ससुराल पहुँच गई । जिस बात का डर था, वही हुई …. सास ने कहना शुरू कर दिया—-
पता नहीं…. जीते जी पोते का मुँह देखूँगी भी कि नहीं । सारी-सारी रात नींद नहीं आती, यही सोच के कि इस ज़मीन- जायदाद को कौन सँभालेगा ? लड़कियाँ तो एक दिन अपने घर चली जाएँगी…..
सुबह- शाम एक ही राग सुन सुनकर मिथलेश के मुँह से एक दिन पति के सामने निकल ही गया —
अपनी माँ को कह दो …. ये जो रात-दिन की हाय- तौबा मचाए रखती है ना ….. उससे कोई फ़ायदा नहीं । मेरी बेटियाँ ही बेटे हैं …..
जैसे ही सास के कानों तक यह बात पहुँची, उसने तो रो-रोकर आसमान सिर पर उठा लिया—-
नाश हो जाए इस कुलछनी का ….. मर जाए इसके माँ-बाप , अपने अगत का तो नाश करे बैठी इसकी माँ…. मेरा भी उजाड़ दिया । किससे पूछ के इसने आपरेशन करवाया? निकल मेरे घर से ….. हाय ! इतना भी ना सोचा कि घर का इकलौता बेटा है, एक पोते की आस थी वो भी तोड़ दी….. बुला इसके बाप को , अभी भेजूँगी इसे इसके पीहर ।
और सास तब तक आसन-पट्टी लिए पड़ी रही जब तक उसके बापू ना आ गए ।
समधी ! भुगतना तो पड़ेगा इसे भी और तुम्हें भी ….. तुम्हारी मर्ज़ी है, या तो छोटी बेटी का ब्याह मेरे किशन से करो …. नहीं तो मिथलेश को अपने साथ ले जाओ ….. मैं अपने वंश का सत्यानाश नहीं करूँगी ।
मिथलेश के पिता ने समझाने की बहुत कोशिश की, सास के सामने हाथ जोड़कर विनती कि पर वह टस से मस नहीं हुई । अचानक मिथलेश ने पिता के जोड़े गए हाथों को पकड़ कर कहा—पिताजी! आप क्यों इनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं ? चलिए…उठिए! ये मुझे क्या निकालेंगे…. मैं खुद यहाँ से जाऊँगी…..और दूसरी शादी की बात सोच भी नहीं सकते ये लोग , एक शिकायत की देर है सारी उम्र जेल में सड़ेंगे ।
नहीं बेटी …. इतनी सी बात पर ….
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मिथलेश ने पिता की बात भी पूरी नहीं सुनी और अंदर जाकर अपनी दोनों बेटियों के साथ बैग लेकर पिता के साथ चली गई । पति और सास को उम्मीद थी कि दो- चार महीने में शायद खुद ही लौट आएगी….. बाप की कहाँ इतनी हैसियत कि चार जनों का अतिरिक्त भार उठा ले । पर मिथलेश तो कभी न लौटने के लिए ही गई थी । जिस तरह वह पति और सास को धमकी देकर गई थी, उस कारण उन्होंने दूसरी शादी की बात भी नहीं सोची ।
पिता के घर मिथलेश ने सिलाई का काम शुरू कर दिया । शादी से पहले भी वह सिलाई करती थी । धीरे-धीरे काम जम निकला और उनके दिन फिरने लगे । छोटी बहन का भी नर्सिंग में दाख़िला करवा दिया था । बेटियाँ भी स्कूल जाने लायक़ हो गई थी…. यही सब सोचकर मिथलेश माता-पिता के साथ दूसरे शहर में जाकर रहने लगी क्योंकि गाँव और शहर की कमाई में दिन- रात का अंतर था ।
एक साल में उसकी मेहनत और व्यवहार के बलबूते पर शहर में भी काम जम गया । कभी-कभी मिथलेश की माँ कह देती थी —
मिथलेश! गलती की माफ़ी माँग लेती तो शायद उस दिन तुझे अपना घर ना छोड़ना पड़ता …. दामाद जी को प्रेम से समझाती तो …. जाना नहीं था तो उसे तलाक़ दे देती ।
माँ! ये खुद को झूठी तसल्लियाँ देनी बंद कर दो ….. तलाक़ देकर उन माँ बेटे को आज़ाद कर देती ताकि वे किसी ओर लड़की के अरमानों का गला घोट डालते …..माँ! हमारा बुरा वक़्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है ।अगर वे दोनों माँ- बेटा मुझे घर से निकालने की बात ना करते या दूसरे ब्याह का ज़िक्र ना छेड़ते तो मुझे तो कभी पता ही ना चलता कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हूँ ।
गुजरते समय के साथ मिथलेश की तीनों बेटियाँ आत्मनिर्भर बन गई । अब मिथलेश के सिलाई सेंटर का स्थान शहर के एक मँहगे मिथिला बुटीक ने ले लिया था । जिसे उसकी बड़ी बेटी ने फ़ैशन डिजाइनिंग के बाद सँभाल लिया था । अपनी ससुराल वाली सहेली कमलेश से मिथलेश को वहाँ की सारी जानकारी मिलती रहती थी । उसी ने एक दिन बताया कि किशन तो एक रात शराब के नशे में ऐसा गिरा कि तुरंत दम तोड़ दिया….. बस बुढ़िया माँ रात- दिन रोती रहती है और खुद को कोसती रहती है कि उसने ही बेटे का घर उजाड़ दिया….. पोते के लालच में पोतियों को भी देखने से तरस गई ।
एक दिन कमलेश का फ़ोन आया—-
जीजी ! आज मेरी बात मत टालना । बेचारी बेसहारा हो गई है तुम्हारी सास ….. अब माफ़ कर दो उसे । पता नहीं कितने दिन बचे हैं, अपने घर लौट आओ जीजी …. तुम्हें मेरी क़सम ।
आज मिथलेश अपनी उस सहेली की बात नहीं टाल सकी जो उसके बुरे दिन की साथी रही थी । उसने बड़ी बेटी से कहा —-
अर्पिता! अपनी दादी से मिलने चलने की तैयारी कर लो बेटा ! कल सुबह हम अपने असली घर चलेंगे ।
करुणा मलिक
# हमारा बुआ वक़्त हमारे जीवन की दिशा बदल देता है ।