वनफूल – विनीता महक गोण्डवी : Moral Stories in Hindi

ज्ञानचंद जी इंटर कॉलेज में अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। उनके पांच संताने थी ।जिसमें तीन पुत्र दो पुत्रियां। ज्ञानचंद जी अपने माता पिता के एकलौते संतान थे। उनके पिताजी का देहांत बचपन में ही हो गया था। जब वो 2 वर्ष के थे। उनकी माता गायत्री देवी ने बड़े संघर्ष से उन्हें पढ़ाया लिखाया था। मॉं गायत्री देवी जी के कारण ही वो आज इंटर कॉलेज में गणित के अध्यापक के रूप में सेवारत है। ज्ञानचंद जी के पांचों बच्चे पढ़ने लिखने में ठीक-ठाक थे।

     वो बेटियों को केवल शादी के लिए पढ़ना चाहते थे और बेटों के लिए ऊंचे ऊंचे ख्वाब  देख रखे थे ।बड़ा बेटा राकेश एमएससी करके सर्विस में आ गया था। उसकी पोस्टिंग मुम्बई  में हो गई थी। दूसरे नंबर की बेटी नीता ने इस वर्ष  इंटर की परीक्षा पास की थी। ज्ञानचंद जी जल्द से जल्द नीता की शादी करना चाहते थे ।जब भी लड़का देखने जाते तो लौटकर घर पर बहुत झगड़ा करते। कहते की बेकार में पढ़ा दिया, अनपढ़ रहती तो कहीं भी कांडा पाथने वाले के घर कर आता।

ज्ञानचंद जी को किसी भी लड़के वालों के सामने झुकना अच्छा नहीं लगता था इसलिए वो हमेशा झगड़ा करते रहते थे और सुन सुनकर  नीता को बहुत दुख होता पर उस घर में किसी को जवाब देने की हिम्मत नहीं थी। एक दिन नीता समाचारपत्र पढ़ रही थी तभी उसने देखा महिला पुलिस की  भर्ती निकली हैं ।यह महिला भर्ती का प्रथम बैच  था ।उसमें लिखित और शारीरिक दोनों परीक्षा थी । नीता स्कूल के समय दौड़ की कई प्रतियोगिता में भाग लेकर गोल्ड मेडल लाई थी। नीता की छोटी बहन गीता जो

इस वर्ष हाई स्कूल में थी। उसने नीता से कहा… दीदी आप प्रयास करो शायद हो जाए ।हम सब पापा को कुछ नहीं बताएंगे। पुलिस भर्ती पास में ही होनी थी। नीता ने हिम्मत करके सुनिश्चित तिथि को वहां पर गई। नीता का लिखित और शारीरिक दोनों में चयन हो गया ।अब कॉल लेटर आना था ट्रेनिंग के लिए। 

   जब कॉल लेटर घर पर आया तब उसके पिता ज्ञानचंद जी को पता चला। पहले तो उन्होंने बहुत विरोध किया फिर आस पड़ोस के कहने पर तैयार हो गये। नीता के प्रशिक्षण में जाने की घड़ी भी आ गई। जब नीता दूसरे शहर में ट्रेनिंग के लिए गई। ट्रेनिंग बहुत कठिन थी ।बीच में बड़े भाई राकेश नीता से मिलने गए तो ट्रेनिंग की कठिनाई को देखकर कहा….. नीता घर वापस चलो परंतु घर का कलहेपूर्ण  वातावरण से ये कठिनाई भी प्रिय लग रही थी नीता ने कहा…. नहीं भैया अभी नहीं ट्रेनिंग पूरी कर करके आएंगे।

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पापा तो बैठे हैं ऐसी वैसी जगह शादी करने के लिए। उस कष्ट से ये कष्ट सही है और नीता की ट्रेनिंग के बाद कोलकाता पोस्टिंग हो गई। उसके पिताजी वऐसे ही लड़के देखते कोई बेरोजगार कोई काम पढा। इस तरह से समय अपनी गति से चल रहा था। इधर राकेश के भी रिश्ते आ रहे थे पिताजी ने नीता का रिश्ता छोड़कर राकेश की शादी तय कर ली थी ।राकेश की शादी बहुत धूमधाम से हुई ।नीता के मन में एक डर बैठ गया था ।अब पिताजी कहीं ऐसे वैसे लड़के से शादी न कर दे मेरी ।कुछ समय बाद नीता के सामान कैडर के लड़के  देव ने शादी का प्रपोज रखा।

कुछ दिन वो एक दूसरे को जानने के बाद, नीता ने अपने घर पर ये बात बताइए परंतु ज्ञानचंद जी तैयार नहीं हुए क्योंकि देव दूसरी जात का लड़का था । ज्ञानचंद जी ने कहा….अब तुम्हें नौकरी भी नहीं करनी है और नीता को वापस नौकरी पर नहीं जाने दे रहे थे।एक दिन नीता मौका देखकर घर से निकल गई और वहां जाकर देव से कोर्ट मैरिज कर ली। ज्ञानचंद जी नीता के इस निर्णय से बहुत नाराज़ थे और उन्होंने नीता से पूर्ण रूप से संबंध खत्म कर दिए। ज्ञानचंद जी का बीच वाला बेटा अधिक नहीं पढ़ पाया तो ज्ञानचंद जी ने उसे सौंदर्य प्रसाधन की दुकान करा दी।

नीता की शादी के बाद उसकी छोटी बहन गीता की भी पढ़ाई ज्ञानचंद  जी ने प्राइवेट करा दी। गीता जब भी पिताजी से पढ़ाई में कुछ पूछने जाती तो वो छोटे भाई  को  पढ़ाने लगते और ज्ञानचंद जी गीता को डांट कर भगा देते और उसकी किताबें फेंक देते।  लेकिन गीता ने भी साहस नहीं छोड़ा उसने बीए बीएड करके वो भी नौकरी में आ गई। ध्यानचंद जी के मन में लड़कियों के प्रति कोई स्नेहा नहीं दिखता था, बस समाज के सामने दिखावा करते थे। गीता की नौकरी के बाद भी उसकी शादी एक ठेठ गांव में कर दी गई जहां न बिजली थी न कोई स्तर था परन्तु कहते हैं…..

जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है ।पिता की अवेहलना ने दोनों बेटियों को और साहसी बना दिया था ।गीता ने अपने गुणों से उसे घर को स्वर्ग बना दिया। पति की शिक्षा पूरी कराकर नौकरी में सहयोग किया और नौकरी भी लग गई। एक दिन ज्ञानचंद जी की बहुत तबीयत खराब हुई। नीता और गीता के पास राकेश ने सूचना दी कि पापा की बहुत तबीयत खराब है। वो तुम दोनों को देखना चाहते हैं। बेटियों का हृदय फूल की तरह होता है। मायके में चाहे कितना कष्ट मिले वह सब भूलकर, नीता और गीता दूसरे दिन पापा को देखने पहुंच गई ।ज्ञानचंद जी के आंखों में आंसू थे।

दोनों बेटियों से माफी मांगते हुए उन्होंने कहा….. यदि हम तुम लोगों को सही से पढ़ते तो आप दोनों कलेक्टर होती। नीता ने कहा…. छोड़िए पापा सब ठीक है। आप जल्दी से अच्छे हो जाओ। बेटियां तो बनफूल होती हैं जो जंगलों में भी  उग जाते हैं और अपनी महक और खूबसूरती से जाने जाते है उनको खाद पानी मिले या ना मिले वो खिलते रहते हैं। हम लोग वही बनफूल है पापा ।हमारी नौकरी ही हमारा आत्मविश्वास है। हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है। और नीता और गीता की आंखों में आंसू आ गए।

स्वरचित विनीता महक गोण्डवी

#संयुक्त परिवार

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