कितनी खुश थी कुहू आज, आखिर उसकी शादी उसके मनपसंद साथी आखर से हो रही थी। शादी कर ससुराल आई, तो सबसे पहले पग- पडा़ई के रस्म में उसे परिवार के सभी सदस्यों से मिलवाया गया। सबसे पहले ददिया सास-ससुर, फिर उसके सास ससुर, फिर जेठ जी और जेठानी जी और उनके साथ ही थे उनके दो प्यारे प्यारे बच्चे चिंकू मिंकु। सबसे मिलकर तो वह और भी खुश हो गई कि उसका बड़ा भरा पूरा परिवार है, मन लगा रहेगा और वह सबसे छोटी बहुरानी बनकर आई है तो जाहिर है कि सबकी लाडली रहेगी।
तभी वहां बैठी दोनों बुआ सास की आवाज़ आई, छोटी बहुरानी हमारी पग- पडा़ई भूल गई लगता है। उसने सास के इशारे पर उनके भी पैर छुए और नेग दिया। लेकिन यह क्या तभी बुआ सास बोली अरे सिर्फ सौ रुपए हम तो सोचे कमाने वाली बहुरिया आ रही है तो कम से कम 1100 तो देगी ही। कुहू को थोड़ा अजीब तो लगा पर उस वक्त कुछ कहना अनुचित था।
इसी तरह हफ्ता भर गुज़र गया। सभी रिश्तेदार चले गए। अब शुरू होनी थी भाग दौड़ की असली जिंदगी क्योंकि आखर और कुहू दोनों को ही सुबह ऑफिस के लिए 7:00 बजे निकलना होता था।
कुहू ने पहले दिन ही सासू मां को बता दिया था कि मुझे कल से ऑफिस ज्वाइन करना है। सुबह वह 5:00 उठकर रसोई में आई तो सासु मां ने कहा तुम अपनी और आखर की चाय बनाकर ले जाओ ,फिर नहा धोकर तैयार होकर आ जाना मैं सबके टिफिन पैक कर दूंगी। कुहू को लगा वाह तेरी तो चांदी हो गई, पति भी पसंद का और सास भी इतनी को-ऑपरेटिव और समझदार। निकलते समय जब वह ददिया सास के पैर छूने लगी, तो उनका कहना था अरे हमें तो बस जल्दी से तीसरे परपोते का मुंह दिखा दो ताकि तीसरी सोने की सीढ़ी चढ़ जाए। कुहू भी मजाक में लेकर मुस्कुरा कर निकल गई आखर के साथ।
शाम थकी मांदी वही 7:00 बजे घर लौटी, तो सासु मां बोली फटाफट हाथ मुंह धो कर नीचे आ जाओ। रसोई में आई तो जेठानी जी आटा लगाते लगाते बोली कुहू तुम फटाफट गैस पर तवा रख लो दादाजी और दादी जी 8:00 बजे से पहले खाना खा लेते हैं। कुहू का मन तो नहीं था आते ही काम पर लगने का, पर चुंकि घर के नियम कायदे कानून थे तो वह उनके कहे अनुसार लग गई।
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सब काम निपटाकर वह जब 10:00 बजे वापस कमरे में पहुंची तो बिल्कुल थककर चूर हो चुकी थी। आखर उसका इंतजार कर रहा था पर वह कुछ कहने सुनने के मूड में नहीं थी और निढाल हो बिस्तर पर सो गई। इसी तरह हफ्ते दस दिन निकल गए। पर अब कुहू का स्वभाव चिड़चिड़ा और कुनमुना रहता, क्योंकि शादी से पहले ऑफिस से घर आकर वह अपने हिसाब से एक-दो घंटे आराम कर बस अपना ही खाने पीने भर का बनाती थी और अगर कभी अधिक थकी होती तो बाहर से ही खाकर आ जाती।
इसी तरह एक दिन सुबह 6:00 बजे आंख खुली, तो रसोई में जाकर देखा कि सासू मां लगी हुई है पर चेहरा देखकर लग रहा था कि गुस्से में थी और कुछ बोली नहीं। कुहू ने फटाफट उनकी बनाई रोटी सब्जी से अपना और आखर का टिफिन पैक किया और ऑफिस के लिए निकल गई। शाम घर लौटी तो उसने देखा कि घर का माहौल कुछ गरमाया हुआ है। वह चुपचाप जाकर रूटीन के अनुसार काम में लग गई। सब काम करके जब ऊपर कमरे में पहुंची, तो आखर ने उसके करीब आकर कहा कुहू आगे से टिफिन पैक करो
तो अपने साथ-साथ बड़े भैया पापा जी और चिंकू मिंकु का भी कर दिया करो। कुहू इरिटेट तो पहले से ही थी, ऊपर से आखर के यह कहने पर उसने कहा तुम्हें यह किसने कहा?आखर भी शादी के बाद से ही महसूस कर रहा था की कुहू अब उसे पहले की तरह ना तो समय देती है ,
ऊपर से घर वालों की शिकायत अलग तो उसने भी चिड़चिड़ा कर जवाब दिया तुम्हें जितना कहा है तुम उतना समझ लो यार! कुहू को भी सुनने की आदत नहीं थी तो उसका कहना था जिसने तुम्हें यह समझाया है वह मुझे भी समझा सकती थी, बजाय के तुमसे शिकायत करने के। इसी तरह वे लड़ झगड़ कर सो गए। अब उनका यह अक्सर था कभी सलाद नहीं काटने पर, कभी ऑफिस से लेट हो जाने पर, कभी एक दूसरे को समय न देने पर तो कभी घर वालों की इच्छाओं का सम्मान न करने पर, हफ्ते में एक बार उनका झगड़ा तय था।
ऊपर से घर के अन्य सदस्यों को लगता के इतवार छुट्टी के दिन कुहू बाकी घर के सभी काम निपटाए और घर वालों को समय दे जबकि कुहू को लगता कि वह पूरे हफ्ते की थकान उतारे। इसी तरह एडजस्ट करते करते साल भर बीत गया और सबको पता चला की कुहू मां बनने वाली है ।
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इस दौरान उसे घर के कामों से कुछ सहूलियत मिल गई आखर भी उसका अधिक ख्याल रखता। सस और ददिया सास भी आनेवाले पोते के मोह में अब कम ही नाराज होती और चीजें कुछ संभल गई। समय आने पर कुहू एक प्यारी सी बेटी की मां बनी। पर यह क्या घर में इस बात की कोई खुशी नहीं थी। किसी तरह कुहू का एक महीने का जापा निकला और फिर वह 2 महीने के लिए मायके चली गई।
वापस लौटी तो सास के पास अब पोती खिलाने का काम था, तो घर के काम की जिम्मेदारी कूहू और जेठानी जी पर आ गई। कुहू ने अधिक काम भी नहीं किया था और उसकी बेटी भी छोटी थी इस चक्कर में काम को लेकर जेठानी जी और उसके बीच तनातनी ही रहती क्योंकि जब जेठानी जी के बच्चे छोटे थे
उसे दौरान ददिया सास और सास मिलकर काम कर लेती थी तो उस पर भी कभी काम का अधिक दबाव आया नहीं था। अब घर के काम और बच्चे की जिम्मेदारियों के बीच कुहू एकदम परेशान हो गई थी और उसे लगता कि कब मैटरनिटी खत्म होगी और वह ऑफिस जॉइन करेगी क्योंकि घर में वह जब भी कोई काम करती उसमें मीन मेख ही निकलता।
6 महीने की छुट्टी खत्म होने पर एक तरफ जहां कुहू को बेटी को पहली बार छोड़ने का दुख था वहीं दूसरी तरफ यह खुशी भी थी कि अब वह वापस वह काम कर पाएगी जिसमें वह अच्छी थी और इसके लिए उसे मान सम्मान भी मिलेगा। इसके लिए उसने सासू मां से कहा भी की गुड़िया की अच्छे से देखरेख हो
सके इसलिए घर में झाड़ू पोंछें और बर्तन के अलावा भी एक काम वाली और लगा लेते हैं। पर सासू मां ने कहा नहीं घर में हम चार महिलाएं हैं तो मिलजुल कर निपटा लेंगे और अधिक खर्च क्यों बढ़ाना। कुहू ने कहा कि कामवाली के पैसे मैं दे दूंगी, तो जेठानी जी बीच में बोल पड़ी के पैसे का रौब ना दिखाओ हमें। तू तू मैं मैं होते-होते और बात बिगड़ गई।
अब कुहू के ऑफिस ज्वाइन करने के बाद भी लगभग यह है रोज का होता, उसे लगता कि वह घर आकर अपनी बेटी को समय दे। परंतु घर की अन्य महिलाओं खास तौर जेठानी और सास को लगता कि वह घर में पूरे दिन से कम कर रहे हैं, बच्चों को संभाल रही हैं तो अब घर आने के बाद घर की जिम्मेदारी कुहू संभाले। और कुहू को इतने जनों का सिर्फ खाने का काम निपटाने में ही 11:00 बज जाते और वह कमरे में पहुंचती तब तक बिटिया सो चुकी होती।
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अब उसकी सुबह की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थी क्योंकि सासू मां पोती को लेकर बैठ जाती और कुहू रसोई से संबंधित और काम निपटाती। जेठानी जी सुबह शाम बस दिखाने भर का काम ही निपटाती क्योंकि उनको लगता कि वह पूरे दिन घर के सभी लोगों के खाना पीना, चाय, कपड़ों संबंधी सभी जिम्मेदारियां संभालती हैं। रोज-रोज की चिक चिक से परेशान हो सासू मां ने काम का बंटवारा कर दिया कि एक बहू सुबह का काम संभालेगी जबकि दूसरी शाम का। पर इससे भी बात नहीं बनी क्योंकि इतने लोगों का खाने का भी काम किसी भी एक महिला के लिए अकेले निपटाना मुश्किल था।
गर कभी कुहू अपनी परेशानी कमरे में आकर पति को बताती भी तो भी वह घर में महिलाओं से संबंधित मामले में चुप ही रहता। इसी तरह लड झगड़कर चिक चिक में कुहू की बेटी 3 साल की हो गई और स्कूल जाने लगी। पर परेशानियां थी कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी,
जहां अब उसकी बेटी समझने लग गई थी तो आते ही मां के पास आने के लिए छटपटाती और कुहू को भी लगता कि उसके सोने से पहले वह उसके स्कूल में क्या हुआ इससे संबंधित बातें उससे करें। हर तरह की कोशिशें के बाद भी किसी तरह सामंजस्य बैठ ही नहीं पा रहा था। कुहू को घर एवं बाहर के काम के दबाव की वजह से कुछ अन्य स्वास्थ्य संबंधित इश्यूज भी होने लगे थे। घर का माहौल भी दिन-ब-दिन बद से बदतर होता जा रहा था।
कुहू को लगता कि उसके कामकाजी होने के वजह से वह घर की अन्य महिलाओं के साथ फिट नहीं बैठ पाती है ,ना ही उनके पास कुछ विषय होते हैं बातचीत के लिए। समय की कमी और काम के दबाव के कारण घर के छोटे-मोटे फैसलों से वह अनभिज्ञ रहती और वह उपेक्षित महसूस करती। वह अपनी बेटी एवं अपने से संबंधित छोटे-बड़े खर्च सभी स्वयं उठाती जबकि उसे लगता कि जेठानी जी की यह सभी ज़रूरतें सासू मां पूरी करती थी। वहीं जेठानी को लगता कि वह घर के काम में पूरे दिन टूटी रहती है जिसका उसे कोई पैसा नहीं मिलता जबकि कुहू अपने पैसे पर ऐश करती है और घर के काम से भी बची रहती है।
अब कूहू और जेठानी जी को बस लड़ने को बहाना चाहिए था।
कोई बात होने पर क्योंकि जेठानी जी एवं सास का अधिक समय साथ गुजरा था तो उनकी आपसी समझ बेहतर होने की स्थिति में वे चुपचाप भी जेठानी जी का ही साथ देती। कुहू की किसी भी शिकायत पर भी उनका रवैया ढुलमुल ही रहता। और वह संयुक्त परिवार जो कुहू का लग रहा था कि उसके कामकाजी होने में मददगार साबित होगा एवं उसके सभी के साथ मधुर संबंध रहेंगे उसके गले का फांस बन गया था।
एक दिन इसी तरह बुआ सास के आने पर जेठानी जी और कुहू दोनों की रसोई में कोई बहस हो गई और बुआ सास अपने बड़बोलेपन की वजह से कह गई के जब से छोटी बहुरिया आई है मां बताती है घर का माहौल ही खराब हो गया है। अब कुहू के लिए यह बर्दाश्त से बाहर हो गया था कि वह रिश्तेदारी में भी खराब कर दी गई है। और उसने सासू मां को कह दिया कि मांजी अगर इतनी ही दिक्कत है तो दोनों बेटों को अलग क्यों नहीं कर देती? जेठानी जी भी शायद इसी ताक में बैठी थी , वहीं सासू मां को भी लग रहा था कि वह दोनों बहूओं के बीच में पिस रही है। रात को जब घर के सभी बड़े बैठे तो उनका फैसला भी यही था कि दोनों भाइयों में दरार बढे़ और मनमुटाव लंबा खिंचे इससे बेहतर है कि समय रहते दोनों को अलग-अलग कर दिया जाए।
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यही सोचकर अगले दिन सासू मां ने समय की जरूरत समझते हुए दोनों बहूओं को बिठाकर दोनों की रसोई अलग-अलग कर दी और स्वयं वह अपने सास ससुर के साथ, बड़ी बहू के साथ हो गई। इस फैसले से दोनों ही बहुएं खुश थी। जहां बड़ी बहू को लग रहा था कि ससुरजी एवं दादा ससुर की पेंशन से उसका घर-घर पहले की तरह आराम से चलता रहेगा एवं सभी रिश्तेदारों में भी उसका दबदबा रहेगा की घर के सभी बड़े उसके साथ हैं वहीं छोटी बहू कुहू को लग रहा था
कि अब वह अपने पति एवं बेटी को अधिक समय दे पाएगी क्योंकि यदि उसे काम के लिए मदद की आवश्यकता होगी तो वह अपने हिसाब से और कामवाली लगा सकती है, कामकाजी होने के कारण पैसे की उसे वैसे भी तंगी नहीं थी। बस ददिया सास के मन में कहीं ना कहीं थोड़ा मलाल था कि उनके दोनों पोते अलग हो गए और उनका संयुक्त परिवार बिखर गया पर घर के बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी समझ उन्होंने भी सब्र कर लिया।
अब दोनों बहुएं तीज त्यौहार आपस में एक साथ मिलजुल कर खुशी-खुशी रहती और सास को भी लगता कि रोज-रोज के झगड़ों से बेहतर है उनका संयुक्त परिवार कभी-कभी मिलकर आपस में साथ खुशी मनाए। अब भी कभी कभार परिवार के सभी सदस्यों को एक दूसरे से छोटी-मोटी शिकायत होती परंतु रिश्तो में थोड़ी दूरियों के कारण अब बात ज्यादा बढ़ती नहीं थी। इस प्रकार संयुक्त एवं एकल परिवार के मिले-जुले रूप का बीच का सा हिसाब अब सभी को ज्यादा रास आ रहा था और सभी पहले की बजाय अधिक मेलजोल एवं प्रेम से रहने लगे।
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)