शर्त – बीना शर्मा : Moral Stories in Hindi

“मुझे छोड़ दो मैं तुम्हारे साथ वापस  घर नहीं जाऊंगा यहां पर रहूंगा यहीं पर रहूंगा अपने भाई के पास “रात के वक्त जब सोहनलाल अपने घर में गहरी नींद में सोए हुए थे तो अचानक यह आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गई थी उन्होंने कमरे से बाहर आकर देखा तो आश्चर्य से उनकी आंखें फटी की फटी रह गई थी

उनका बड़ा भाई मोहनलाल जो कभी अच्छे-अच्छे वस्त्र पहन कर रहा था आज उनके शरीर पर कपड़ों के नाम पर  सिर्फ एक निक्कर ही था जिसके कारण अपनी शर्मिंदगी को छुपाने के लिए उन्होंने एक बड़ी पॉलिथीन जिसे कपड़ों के नाम पर उसके बेटे बहु ने उसे बिस्तर पर बिछाने के लिए दे रखा था

से अपने पूरे शरीर को ढक रखा था उन्हें देखकर ऐसे लग रहा था जैसे सुबह से उन्हें रोटी का एक टुकड़ा भी ना मिला हो वह हाथ जोड़कर सोहनलाल  से बोले ” मैं सुबह से भूखा हूं मुझे  खाने को रोटी दे दो”मोहनलाल की बात सुनकर उसका बेटा रवि गुस्से में बोला”आप चुपचाप मेरे साथ घर चलते हो कि नहीं।”

        रवि की बात सुनकर उसके चाचा सोहनलाल को बड़ा दुख हुआ था मोहनलाल उनका बड़ा भाई था जो उनकी भाभी ममता के साथ  उनके साथ रहता था लेकिन कुछ समय पहले भाभी के मरने के बाद रवि उन्हें यह कहकर कि “आप हमारे साथ शहर चलो वहां मैं आपकी बहुत सेवा करूंगा” अपने साथ शहर में ले गया था

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मोहनलाल के एक ही बेटा था रवि जिसे उसका डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने दिन रात खेतों में हल चला कर बड़ी मेहनत से पाल पोस कर बड़ा किया था बेटा स्वस्थ और मजबूत  हो इसके लिए उन्होंने एक गाय भी बांध रखी थी जिसका सारा दूध वो रवि को ही पिला देते थे जब रवि डॉक्टर बन गया

तो उन्होंने उसकी पसंद की लड़की मालती से उसका विवाह करवा दिया था जिसे लेकर वह शादी के कुछ दिन बाद ही शहर में चला गया था और वहीं पर अपना मकान खरीदकर  रहने लगा था काफी दिनों बाद भाई को इस दशा में देखकर  दुखी स्वर में वह रवि से बोले”बेटा यह क्या हालत बना रखी है तूने अपने पापा की? ना तन पर कपड़ा है ना पेट में रोटी…. 

    ’चाचा जी यह झूठ बोल रहे हैं इन्होंने सुबह खाना खाया था हम इन्हें ज्यादा खाना इसलिए नहीं देते कि कहीं यह कपड़े खराब ना कर दे बुढ़ापे में जरूरत से ज्यादा खाना खाने पर पेट खराब हो जाता है और रही बात कपड़ों की तो कई बार पेट खराब होने के कारण यह अपने सारे कपड़े खराब कर देते हैं इसलिए इन्हें पहनने को सिर्फ निक्कर और बिस्तर पर बिछाने के लिए यह पॉलिथीन दे रखा है ताकि मालती को ज्यादा कपड़े साफ न करना पड़े….

      “अच्छा जब तुम्हारा इनसे स्वार्थ था तब तो तुम दोनो इनकी बड़ी सेवा करते थे तुम्हारे पास मकान खरीदने के पैसे नहीं थे तब तुम इनसे पूछ पूछ कर इनकी पसंद का खाना बनवाते थे और जब इन्होंने अपने हिस्से का मकान बेच कर तुम्हें पैसे दे दिए तो तुम्हारी सोच बदल गई बचपन मे एक बार बुखार के

कारण जब तुम कमजोर हो गए थे तब तुम्हारी कमजोरी दूर करने के लिए इन्होंने एक गाय खरीद ली थी उसको सारा दूध निकाल कर यह तुमको पिला देते थे गाय का बिना पानी मिला दूध पीकर कई बार तुम्हारा पेट खराब हो जाता था और तुम अपने सारे कपड़े खराब कर लेते थे तब बिना किसी संकोच के ये तुम्हारे कपड़े खुद साफ कर देते थे

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और आज जब इन्हें तुम्हारी सेवा की जरूरत है तो तुम्हें इनके कपड़े साफ करने में शर्म आती है धिक्कार है ऐसी औलाद पर… जो पेट खराब होने के डर से अपने पिता को भरपेट रोटी भी नहीं दे सकती….

   शुक्र है यह रात के समय पर यहां आए हैं इस वक्त गांव के सभी लोग सोए हुए हैं यदि गांव के लोग इन्हें इस हालत में देख लेते तो तुम्हें कितनी गालियां देते जिन्होंने अपने बेटे के लिए अपना सारा जीवन दांव पर लगा दिया वह इतना स्वार्थी निकला की जरा सी सेवा करने के नाम पर बाप को  ना भरपेट खाना देता है

और ना ही तन पर कपड़ा पहनने को देता है मैं पहले इन्हें भरपेट खाना खिलाऊंगा फिर तुम्हारे साथ इस शर्त पर वापस भेजूंगा कि तुम आज के बाद कभी भी इनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करोगे इन्हें दोनों वक्त भरपेट खाना दोगे और पहनने के लिए पुरे वस्त्र दोगे यदि मंजूर है तो ठीक नहीं तो मैं इन्हें अपने पास रखूंगा।”

     चाचा की बात सुनकर रवि शर्मिंदा हो गया था कहीं पूरे गांव के सामने उसके चाचा उसकी पोल ना खोल दे यह सोचकर वह उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगते हुए बोला”चाचा जी मुझे आपकी शर्त मंजूर है आप गांव में किसी के सामने यह बात मत कहना वरना मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा

मैं इन्हें दोनों वक्त भरपेट  खाना भी दूंगा और पहनने के लिए पुरे वस्त्र भी दूंगा”रवि के मन में पश्चाताप की भावना देखकर उसके चाचा ने उसे माफ कर दिया था अपने भाई को भरपेट भोजन खिलाकर उन्होंने उसे रवि के साथ भेज दिया था। इस रचना के माध्यम से मैं यही संदेश देना चाहती हूं कि कभी भी अपनी

सारी दौलत या फिर जमीन अपने बच्चों के नाम ना करें क्योंकि दौलत मिलने पर बच्चे स्वार्थी और लापरवाह हो जाते हैं उन्हें लगता है कि अब सब कुछ तो हमारे नाम हो गया फिर सेवा क्यों करें? इसलिए अपने बुरे वक्त के लिए अपने पास कुछ संपत्ति जरूर बचा कर रखें ताकि बेटे बहु पर निर्भर ना रहना पड़े।

स्वार्थी संसार

बीना शर्मा

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