” क्या दीदी इतने दिनों बाद आई हो मायके को भूल ही गई थी । लगता है जीजाजी से बहुत प्यार मिलता है जो हम लोगो की तो बिल्कुल याद ही नही आती आपको । पर ये तो गलत है ना जीजाजी का प्यार अपनी जगह , हम लोगो का अपनी जगह !” नताशा के गले लगती स्वाति नम आँखों से बोलती ।
” बस स्वाति माँ के बाद यहां आने मे एक झिझक होती है !” नताशा बोली।
” झिझक ? कैसी झिझक दीदी ये भी तो आपका घर है मम्मी नही यहां पर हम लोग तो है ना आपके भाई , मैं , बच्चे क्या हम सबसे मिलने का मन नही करता !” स्वाति बोली।
” करता है ना इसलिए तो आई हूँ !” नताशा केवल इतना बोली।
” अब आई है तो कुछ दिन रुक कर जाइएगा । हमें सेवा का मौका तो मिले।” स्वाति मुस्कुरा कर बोली।
ये क्या बोल रही है स्वाति पहले तो जब भी नताशा दो दिन के लिए भी अगर आ जाती थी तो स्वाति को लगता था उसकी आज़ादी छिन गई । क्योकि अक्सर नताशा शनिवार इतवार को आती थी और स्वाति के पति और नताशा के भाई नमन की छुट्टी होने के कारण स्वाति चाहती थी वो लोग घूमने जाये और नमन जो अपनी बड़ी बहन से बहुत प्यार करता था
वो बहन के आने पर उसके साथ वक्त बिताना चाहता था। हालाँकि नताशा उसे बहुत कहती स्वाति के साथ जाने को पर वो ये कह उसे चुप करा देता कि आप कौन सा रोज रोज आती हो घूमने तो अगले हफ्ते भी चले जाएगे हम । इस बात पर स्वाति का मुंह बन जाता था और वो नताशा से सीधे मुंह बात तक नही करती थी नमन उसे बहुत समझाता पर वो सुनती नही ।
लेकिन नताशा ठहरी एक बेटी एक बहन वो मायके के मोह मे फिर भी खिंची आती थी । फिर धीरे धीरे उसने मायके मे रुकना बंद कर दिया सुबह आती और रात को चली जाती ।
माँ , भाई बहुत कहते रहने को पर वो बहाना बना देती । अभी छः महीने पहले वो काफी समय बाद मायके मे रुकी थी क्योकि परिस्थितियां ही ऐसी थी माँ जो छोड़ कर चली गई थी । वो माँ जिससे नताशा का मायका था। कितना रोई थी वो भाई से लिपट कर । क्योकि माँ के जाने के साथ साथ मायका खोने का दुख भी था।
माँ को अंतिम विदाई दे जो वो गई तो आज आई है वो भी नमन के बहुत कहने पर ।
” नही नही स्वाति मैं शाम को वापिस चली जाऊंगी , तुम लोगो को अपने भी बहुत काम होंगे मेरी वजह से तुम परेशान होंगी !” नताशा अतीत की यादो से बाहर आ बोली।
” दीदी मैं जानती हूँ अतीत की बातें आपको यहाँ आने से रोकती है । पर वो अतीत था तब मैं इस घर की बहू थी , समझ नही थी मुझे बचपना कर जाती थी । अब मैं इस घर की केवल बहू नही हूँ मम्मी की जिम्मेदारी भी मुझे उठानी है , आपका मायका आपको लौटाना है वो मायका जिसमे हर बेटी की जान बसती है ।” स्वाति बोली।
नताशा नही जानती थी स्वाति का हृदय परिवर्तन क्यो हुआ पर ये परिवर्तन उसे सुखद लग रहा था । उसने स्वाति के जिद करने पर अपने पति राजन को रात फोन कर एक दिन मायके मे रुकने की बात बता दी।
” चलो दीदी आप हाथ मुंह धो आओ मैं इतने खाना लगाती हूँ !” स्वाति ये बोल वहाँ से रसोई मे चली गई।
” स्वाति ये क्या तुमने इतना सब बनाया है वो भी मेरी पसंद का ? पर तुम तो ना करेले खाती ना मूंग की दाल !” खाने की मेज पर नताशा अपनी पसंद की चीजे देख हैरानी से बोली।
” आलू की सब्जी भी तो है दीदी मैं वो खा लूंगी !” स्वाति मुस्कुरा कर बोली। नमन स्वाति का बदला हुआ रूप देख बहुत खुश था आज।
नताशा फिर अतीत मे चली गई जब माँ नताशा की पसंद की चीजे बनाती थी तब स्वाति कितना गुस्सा हो जाती थी और अब खुद से वही चीजे बना रही है ।
हंसी खुशी के मोहोल मे खाना खत्म हुआ पर नताशा के मन मे ढेरों सवाल थे जिनके जवाब जानने को वो उत्सुक थी। जिसका मौका भी उसे जल्द मिल गया।
” दीदी क्या मैं आ सकती हूँ ?” रात को स्वाति नताशा के कमरे के दरवाजे पर दस्तक दे बोली।
” अरे स्वाति तुम्हारा घर है ये तुम बिना पूछे आ सकती हो यहाँ पर इस वक्त यहाँ आने की वजह ?” नताशा बोली।
” दीदी मुझे पता है आपके मन मे बहुत से सवाल है तो सोचा उनके जवाब दे दूँ । फिर आपसे माफ़ी भी तो मांगनी थी !” स्वाति नताशा के पास बैठती हुई बोली।
” सवाल तो बहुत है पर माफ़ी किस चीज की ?” नताशा हैरानी से बोली।
” दीदी मेरी शादी को छः साल हो गये इन छः सालो मे मैने जो किया उसकी माफ़ी । करेंगी ना आप माफ़ । चलिए उससे पहले आपके सवालों के जवाब देती हूँ । आप यही जानना चाहती है ना कि मैं इतना बदल कैसे गई , जिस भाभी को ननद के घर आने से चिढ थी वो अचानक उसे रुकने को क्यो बोल रही है ?” स्वाति बोली।
” हाँ …नही ..ऐसी बात नही स्वाति !” नताशा इसकी बात सुन समझ नही पाई क्या बोले।
” दीदी आप तो जानती है अभी चार महीने पहले मेरे भाई की शादी हुई है !” स्वाति बोली।
” हां कैसी है तुम्हारी भाभी , रह कर आई तुम शादी के बाद ?” नताशा ने पूछा।
” दीदी मेरी भाभी बहुत अच्छी है , मुझसे तो बहुत अच्छी । आपको पता है मेरी शादी से पहले उस घर मे सिर्फ मेरा राज था क्योकि भाई तो बाहर पढ़ता था तो मम्मी पापा का पूरा ध्यान मुझपर रहता था । मेरी पसंद – नापसंद को तवज्जो दी जाती है जिसने मुझे स्वार्थी बना दिया। शादी करके यहाँ आई तो आपके आने पर जब आपको तवज्जो मिलती तो मुझे जाने क्यो गुस्सा आ जाता था ।
मेरे गुस्से को देखते हुए आपने यहाँ आना ही कम कर दिया जिससे मुझे आत्म संतुष्टि मिलती थी …खुश थी मैं ये सोच कि यहाँ भी मेरा राज है । मैं स्वार्थी बन गई थी दीदी सच मे बहुत स्वार्थी । फिर मेरी भाभी आई और उन्होंने मेरे अंदर की स्वार्थ की धूल को पल मे साफ कर दिया।।” इतना बोल स्वाति चुप हो गई।
” इतना मत सोचो स्वाति जो हुआ भूल जाओ !” नताशा स्वाति से बोली।
” नही दीदी अभी आपके सवालों के जवाब बाकी है । आपको पता है जब मेरी भाभी आई मुझे तब लगा कि जैसे मेरे आने से आपका इस घर मे आना जाना कम हो गया वैसे मेरा भी अब उस घर मे कम हो जायेगा । मेरी भाभी को भी मेरा आना पसंद नही आएगा क्योकि वो तो मुझसे भी ज्यादा लाड मे पली है मेरा भाई है पर वो बिल्कुल अकेली थी मायके मे ।
पर मैं गलत थी नियति ने मुझे ननद नही एक बड़ी बहन सा सम्मान दिया मुझे खुद से बुलाती है , मेरे लिए तोहफ़े लाती है । मेरे मना करने पर एक दिन उसने कहा ननद भाभी का रिश्ता तो सहेलियों का , बहनो का होता है लोग बेवजह इस रिश्ते को बुरा बोलते है जबकि इससे बेहतर रिश्ता कोई नही उस पल दीदी मुझे लगा वो भले उम्र मे मुझसे छोटी है
पर दिल उसका मुझसे बहुत बड़ा है । तब मुझे आपकी याद आई साथ ही याद आया आपके साथ किया अपना व्यवहार । बस इसलिए नमन से आपको फोन कर बुला लिया आपसे माफ़ी जो मांगनी थी !” स्वाति नताशा का हाथ पकड़ बोली।
” नही स्वाति तुम्हे माफ़ी मांगने की कोई जरूरत नही मुझे तुमसे कोई गिला नही !” नताशा केवल इतना बोली।
” तो मुझसे वादा कीजिये जैसे आप इस घर मे मेरे आने से पहले आती थी वैसे आएँगी । मम्मी जी नही यहां पर मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ आपका वही मायका आपको यहाँ मिलेगा । मम्मीजी से माफ़ी माँगने का मौका मैने खो दिया पर मुझे यकीन है वो अपनी नादान बहू को माफ़ कर देंगी ।” स्वाति लगभग रोते हुए बोली।
” स्वाति तुमने इतना कह दिया वही काफी है !” नताशा उसे गले लगाती हुई बोली।
” नही दीदी आप वादा करो आप मेरी ननद नही बड़ी बहन बन मुझे प्यार दोगी मेरा साथ दोगी और मैं भी वादा करती हूँ आपका मायका हमेशा आपका मायका ही रहेगा वो घर जहाँ एक बेटी हमेशा मुस्कुराती है !” स्वाति बोली।
नताशा को आज अपनी भाभी पर बहुत प्यार आ रहा था देर से ही सही उन्होंने एक ननद की मायके मे एहमियत स्वीकार ली थी इसके लिए वो मन ही मन स्वाति की भाभी को धन्यवाद दे रही थी ।
दोस्तों हर भाभी बुरी नही होती ना हर ननद अच्छी होती है पर हम चाहे तो इस रिश्ते को एक खूबसूरत रिश्ता बना सकते है बस जरूरत है थोड़े से प्यार और सम्मान की।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल