सुरभि बारहवीं पास करने के बाद अपनी मांँ से बोली…. मांँ मुझे अब आगे नहीं पढ़ना, मुझे नौकरी करनी है। घर वालों ने बहुत समझाया कि वह अभी पढ़ाई कर ले नौकरी करने के लिए सारे जीवन पड़ा हुआ है।
सुरभि के दिमाग में नौकरी ही नौकरी चल रही थी। घर वालों के समझाने का जब कोई असर नहीं हुआ तो पिता ने उसे एसएससी कोचिंग ज्वाइन करने के लिए कहा।
दो साल के बाद उसे क्लर्क की नौकरी घर के नजदीक मिल गई। सुरभि बहुत प्रसन्न थी, जैसे यही उसका जीवन का सपना हो।
खुशी- खुशी उसने संस्थान में जॉइनिंग किया।
घर से ऑफिस का माहौल बिल्कुल अलग था। नयी होने के कारण कामकाज का कुछ पता नहीं था।
जतिन सेक्शन का इंचार्ज था। उसकी देखरेख में सुरभि ने मन लगाकर कामकाज सीखना प्रारंभ कर दिया।
देखते ही देखते दो साल व्यतीत हो गए । सुरभि को अपनी नौकरी बहुत अच्छी लग रही थी।
जतिन के आकर्षक व्यक्तित्व से वह ज्यादा दिन दूर न रह सकी। मन ही मन जतिन के प्रति एक विशेष लगाव महसूस करने लगी। धीरे- धीरे यह आकर्षण प्रेम में परिवर्तित हो गया। जतिन भी उसे बहुत पसंद करता था।
सुरभि जतिन की पसंद न पसंद सब अच्छे से समझने लगी थी । दफ्तर का पर्सनल काम भी जतिन सुरभि को ही सौंपता था।
जतिन दूसरे शहर से इस शहर में नौकरी करने के लिए आया था। घर पर उसकी मांँ और बड़े भैया भाभी थे। बड़े भैया की नौकरी न होने के कारण समस्त भार जतिन पर ही था।
सुरभि और जतिन का प्रेम परवान चढ़ रहा था। सुरभि ने अपने भावी भविष्य में जतिन को ही जीवनसाथी चुनने का फैसला लिया। वह जतिन के अलावा किसी और के बारे में नहीं सोच सकती थी।
एक दिन जतिन ने सुरभि से कहा कि यहांँ पर कितना दिन किराए पर रहेंगे?
काश!! अपना भी एक छोटा सा घर होता तो कितना अच्छा रहता । सुरभि ने कहा क्यों नहीं… सब कुछ संभव है। हम दोनों मिलकर एक सुंदर सा घर खरीद लेंगे…. जहां विवाह के उपरांत हम दोनों साथ- साथ रहेंगे।
सुरभि के दिमाग में फ्लैट घूमने लगा। वह मन ही मन यह सोच रही थी कि इस बार जन्मदिन में वह जतिन को फ्लैट की चाबी गिफ्ट करेगी। जतिन कितना खुश होगा उसके चेहरे के भावों को देखकर मुझे बहुत सुकून मिलेगा। यह सोच कर सुरभि आसमान में उड़ने लगी आखिर वह फ्लैट तो भविष्य में हम दोनों का ही होगा।
वह कई जगह जा जाकर फ्लैट देखने के पश्चात एक जगह उसे बहुत पसंद आया। यह फ्लैट वह जतिन के जन्मदिन में उसे उपहार देने वाली है।
सुरभि के घरवाले… सुरभि और जतिन के रिश्ते के संबंध में जानते थे। और यह भी जानते थे कि निकट भविष्य में वह दोनों विवाहित जीवन मैं बंद जाएंगे। सुरभि ने घरवालों को स्पष्ट रूप से कह दिया था कि वह जतिन के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेगी।
सुरभि के घर वालों को जतिन बहुत पसंद था।
सुरभि ने अपने पिता से कुछ रुपयों की पेशकश की।
अपनी जमा पूंँजी और पिता से पैसे लेकर बाकी रुपयों के लिए उसने बैंक से लोन ले लिया।
जतिन के जन्मदिन के एक दिन पहले वह जतिन को लेकर उस फ्लैट पर गई और चाबी थमाते हुए बोली यह मेरी तरफ से “जन्मदिन का तोहफा”
जतिन को अपनी आंँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि सुरभि ने इतना बड़ा उपहार दिया है। वह सुरभि को बहुत धन्यवाद दे रहा था, उसके चेहरे की खुशी देखकर, सुरभि बहुत खुश हो रही थी।
यह फ्लैट तुम्हारे नाम है इसलिए कल रजिस्ट्री में तुम्हारे हस्ताक्षर चाहिए…. इसलिए सुबह जल्दी आ जाना। नहीं… नहीं….सुरभि रजिस्ट्री तुम्हारे नाम होगी….!
वह बोली रजिस्ट्री मेरे नाम हो, या तुम्हारे नाम क्या फर्क पड़ता है…. फ्लैट तो हम दोनों का है।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर जतिन तैयार हो गया। सुरभि ने उसे जन्मदिन विश किया… और दोनों रजिस्ट्री के लिए चले गए। फ्लैट में कुछ काम करवाने के बाद जतिन उस फ्लैट में शिफ्ट कर गया।
कुछ दिन के बाद जतिन की मांँ बीमार पड़ी। जतिन के भाई मांँ को शहर ले आए। अब समस्या यह थी उनकी देखभाल कौन करेगा?
सुरभि बोली तुम चिंता मत करो जतिन! मैं छुट्टी ले लेती हूंँ।
जतिन ने सुरभि के आंँखों में झांकते हुए कृतज्ञता दिखाते हुए कहा- तुम मेरी हर समस्या का समाधान बनकर हमेशा मेरे साथ रहती हो!
तुम्हारे एहसानों का बदला मैं कैसे चुका पाऊँगा?
इसमें एहसान वाली बात क्या है? मांँ तो मेरी होने वाली सासू मांँ है और उनकी सेवा करना हमारा फर्ज है।
घर आकर जतिन ने माँ से कहा- कल से तुम्हारी देखभाल के लिए एक नर्स रखी है, वह तुम्हारा ध्यान रखेगी।
दूसरे दिन सुरभि आयी। वह सुबह से शाम तक मांँ की देखभाल करती, खाना बनाती, समय-समय पर दवाइयां और खाना पीना का ध्यान देती।
सुरभि के सेवा एवं समय- समय पर दवा दिये जाने के कारण जतिन की मांँ आठ- दस दिन में ठीक हो गई। जतिन की मांँ ने सुरभि से कहा….. कि तुम बहुत अच्छी नर्स हो। तुमने मेरे स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखा। अपनी ड्यूटी के अलावा तुमने खाना पीना भी बहुत अच्छा- अच्छा बना कर खिलाया, सचमुच हम तुम्हारे आभारी हैं।
मांँ की बात सुनकर सुरभि को झटका लगा। जतिन ने अपनी मांँ को कुछ भी नहीं बताया क्या?
“मांँ मुझे एक नर्स समझ रही हैं।”
उसने जतिन से पूछा- तुमने मेरा परिचय मांँ को नहीं दिया?
माँ यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि…… जतिन बोला।
“उन्हें एक ना एक दिन पता चलना ही है तो तुम्हें मांँ से झूठ नहीं बोलना चाहिए था।”
एक दिन सुरभि फ्लैट में गई तो जतिन की मांँ ने कहा- बेटी अब तुम्हें आने की जरूरत नहीं, क्योंकि मैं अब ठीक हो गई हूंँ।
इस बार जतिन को हम साथ गांँव लेकर जा रहे हैं क्योंकि वहांँ इसके रिश्ते की बात पक्की कर दी है। मांँ ने बोला।
सुरभि को बहुत बड़ा झटका लगा।
मांँ मैं आपसे कुछ कहना है?
क्या बात है… बोलो बेटी! पैसे कम मिले हैं क्या?
मांँ मै नर्स नहीं हूंँ।
तो तुम कौन हो? बिना स्वार्थ के तुमने मेरी इतनी सेवा की है इतनी सेवा तो मेरी बेटी भी नहीं करती।
“बेटी हम तुम्हारे जिंदगी भर एहसानमंद रहेंगे।”
बोलो बेटी! तुम कौन हो?
मांँ मैं जतिन से प्यार करती हूंँ यह बात जतिन बोलने में संकोच कर रहे हैं। हम लोग तीन साल से एक दूसरे को जानते हैं एवं अब शादी करना चाहते हैं।
मांँ की आंखें फटी की फटी रह गई गरजते पर बोली….. तेरा दिमाग तो ठीक है न!!
तू दूसरे जाति की….!! .
“मैं दूसरी जाति की लड़की के साथ अपने बेटे का विवाह नहीं कर सकती?”
क्यों मांँ मुझ में क्या कमी है?
अभी तक तुम मेरी प्रशंसा करते नहीं थक रही थी अचानक मुझ में बुराई कहांँ से दिखाई पड़ गई।
मैं और जतिन एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं।
प्रेम अपनी जगह लेकिन शादी घरवालों की पसंद से होती है समझी…
जतिन को चुपचाप देख कर…..तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो!! स्वाति जोर से चिल्लाई।
जतिन मांँ के सामने एकदम चुपचाप खड़ा था। उसकी कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी।
सुरभि अंदर गई और एक सिंधोरा और मंगलसूत्र अलमारी से उठा लाई।
यह देखो मांँ हम लोग बहुत जल्दी शादी करने वाले हैं।
सिंधोरा और मंगलसूत्र हाथ में लेकर वह जतिन के सामने खड़ी हो गई और बोली यह लो सिंदूर…. मेरी मांग में लगाओ और मंगलसूत्र पहनाओ।
इतनी हिम्मत है पहना कर देखें?? जतिन की मांँ बोली।
जतिन कुछ नहीं बोल रहा था।
माँ ने सिंदूर और मंगलसूत्र दोनों उठा कर फेंक दिये और कहा दोबारा इस घर में कभी दिखाई नहीं पड़ना।
वह जतिन से पूछती रही कि तुम मुझसे शादी करोगे या नहीं?
जतिन ने हां, या न में कोई जवाब नहीं दिया चुपचाप बुत बनकर खड़ा रहा।
तो मैं क्या समझूंँ जतिन… एक बार तुम्हारे मुख से सुनना चाहती हूंँ। कुछ तो बोलो??
जैसा मांँ चाहेंगी वही मैं करूंँगा… जतिन का इतना बोलना था मानो सुरभि के ऊपर पहाड़ टूट पड़ा हो।
ऐसा मत कहो जतिन!! मैंने तुम्हारे सिवाय किसी और को नहीं चाहा है…. अब मैं जी नहीं पाऊंगी तुम्हारे बिना। वह जतिन से अपने प्यार की भीख मांग रही थी।
लेकिन जतिन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
सुरभि ने आखरी बार जतिन को भरपूर नजर से देखा । उसे विश्वास नहीं हो रहा था…. यह वही जतिन है। जो दिन रात उसके नाम की माला जपता था। मेरे बिना जीने की कल्पना तक नहीं कर सकता था।
ओह!!
कितना बड़ा छलावा किया तुमने जतिन!!
सुरभि के जाने के बाद एकदम सन्नाटा छा गया।
कुछ दिन के बाद मांँ ने जतिन की का विवाह एक अमीर लड़की के साथ कर दिया। लड़की बहुत नखरेवाली थी लेकिन साथ में दहेज में बहुत मोटी रकम लाई थी ।
मांँ इतनी रकम पाकर बहुत खुश थी लेकिन बहू ने उसे अपने इशारे पर नचाना शुरू कर दिया।
कुछ दिन के पश्चात सुरभि ने फ्लैट के पेपर एवं लोन जतिन के नाम करने के पश्चात, सभी पेपर चौकीदार को सौंपते हुए बोली… यह सब पेपर जतिन साहब को दे देना और नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
माता पिता को अपनी इकलौती पुत्री का यह दुख देखा नहीं जा रहा था। वह भी बहुत परेशान थे जमा पूंँजी बेटी ने फ़्लैट में लगा दी थी।
सुरभि गुमसुम अपने कमरे में बंद रहती । किसी से कोई बात नहीं करती थी इस तरह से कई माह निकल गए।
एक दिन सुरभि की बचपन की सहेली रुमी उससे मिलने आई।
उसकी हालत देखकर उसे भी बहुत दुःख हुआ। रुमी ने उसे इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सुझाव दिया और कहा-
“तुम अपनी अधूरी पढ़ाई को दुबारा शुरु करो”। पढ़ लिख कर जतिन के मुख पर एक जोरदार तमाचा मारना है,और उसके घमंड को चूर- चूर करना है।
सुरभि को उसकी बात अच्छी लगी।
उसने कॉलेज में एडमिशन ले लिया और अपनी समस्त ऊर्जा उसने पढ़ाई में लगा दी।
उसका परिश्रम का फल से उसका यूनिवर्सिटी में सेकंड स्थान आया।
तत्पश्चात उसने यूपीएससी के लिए कोचिंग कर ली। अब उसे कुछ कर ने का जुनून था।
एक साल के बाद उसने यूपीएससी का परीक्षा दी जिसमें उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
कठिन प्रशिक्षण के पश्चात उसकी प्रथम पोस्टिंग उसके होमटाउन में हुई।
ऑफिस में उसे एक मास भी नहीं हुआ था कि एक दिन एक व्यक्ति उसके पास आया वह अपनी फाइलों में व्यस्त थी उसने ध्यान नहीं दिया। वह व्यक्ति भी सुरभि को पहचान नहीं पाया और अपने एक के बाद एक शिकायतें बताने लगा और उससे निजात पाने के लिए बार-बार गुहार लगाएं लगा।
सुरभि ने उसकी तरफ देखा तो वह व्यक्ति और सुरभि दोनों दूसरे को देखकर चौक गए। वह कोई और नहीं जतिन था।जतिन सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उसका सामना इस तरह सुरभि के सामने होगा।
कुछ सालों में जतिन की यह क्या हालत हो गई बालों में सफेदी और चेहरे से बुढ़ापा झलक रहा था।
वह सुरभि से बोला मैंने तुम्हें कितना खोजा…. लेकिन तुम नहीं मिली।
क्यों?
“अपनी रखैल बनाने के लिए।”
“नहीं सुरभि माफी मांगने के लिए”
“मेरे कर्मों की सजा मुझे मिल गई।”
मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया…. इसीलिए ईश्वर ने मुझे इतनी बड़ी सजा दी।
मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ… जिससे मेरा विवाह हुआ वह लड़की पहले से ही शादीशुदा थी। उसके पति ने उसे बदचलन होने के कारण छोड़ दिया था।
“थोड़ा सा सुरभि अतीत में चली गई।” फिर उसने झटक कर उन विचारों को दरकिनार कर दिया।
जतिन बोलते- बोलते उसके सामने वाली सीट पर बैठ गया।
सुरभि ने डांटते हुए उसे उठकर खड़े होने के लिए कहा और बोला…. तुम्हारी इतनी औकात नहीं जो हमारे सामने बैठ सको। “तुम्हारी घर की बातें सुनने के लिए सरकार हमें तनख्वाह नहीं दे रही है” और हांँ यह सुरभि- सुरभि क्या रट लगा रखी है मैडम बोलो!!
असली माजरा क्या है वह बाहर जाकर बाबू को बताओ और जो भी दस्तावेज हैं उसे दे दो । और हांँ मेरे सामने आने की कोशिश मत करना ।
टेबल बेल बजाकर उसने अर्दली को बुलाया और कहा “तुम ऐरो गैरों को क्यों हमारे पास भेज देते हो।”
मुंँह लटकाए हुए जतिन बाहर आ गया और सोचने लगा मैंने सुरभि जैसी देवी का बहुत अपमान किया है इसलिए मुझे इतनी बड़ी सजा मिली।
खुशी इस बात की है कि सुरभि के ऊपर मेरे दुर्भाग्य का कोई साया नहीं पड़ा।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल