एक फैसला आत्मसम्मान के लिए – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

विजय कान्त के दोनों बेटों का अच्छा कारोबार था । हों भी क्यों नहीं, इंसान को आधी सफलता तो उनके कुशल व्यवहार व हंसमुख स्वभाव से ही मिल जाती है । 

        लोकेश के दिल्ली में स्विफ्ट कारों की एजेंसी थी और धीरज  सूरत में साड़ियों का होलसेल व्यापार करता था । 

          विजय कान्त व उनकी पत्नी  पुष्प लता अपने छोटे बेटे के साथ ही रहते थे ।  

           प्रिया अपने सास ससुर को देवतुल्य मानकर सेवा में कभी कमी नहीं आने देती । न तो धन माया का घमंड और न अपनी योग्यता पर अहंकार! सुशील, सुन्दर और सहज स्वभाव की बहू पर पुष्प लता गर्व करके और बड़ाई करते नहीं थकती  । दयालुता और सदाचार के गुण तो मानो उसमें कूट कूट कर भरे थे ।

बड़ी महिलाओं के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेना, बच्चों से स्नेह मौहल्लै में अपनत्व व भाईचारा रखने के कारण वह सबकी आँखों का तारा बन गयी । आसपास के घरों में  किसी के भी उत्सव या समारोह हो, प्रिया से सलाह अवश्य ली जाती थी और उसके के आने से उस परिवार की शोभा बढ जाती । 

        कुनेश के विवाह में सभी को आने दिल्ली आने के लिए भाभी ने कई  बार समाचार कर दिए । अब तो विवाह होने में दो दिन बचे हैं, पर प्रिया का मन वहाँ न जाने का देखकर उसके सास ससुर ने भी कह दिया “बहू के बगैर हम कोई नहीं जायेंगे ।”  प्रिया ने अपनी सासु माँ को साफ साफ कह दिया मैं नहीं जाती विभा भाभी के घर दिल्ली !    

इस कहानी को भी पढ़ें:

“दो कप चाय” –  कविता भड़ाना : Moral stories in hindi

एक साल पहले की ही तो बात है, भाभी ने   अपने बड़े बेटे दिनेश के विवाह में बड़े थाल की रस्म पर कुटुबं की देवरानियों जेठानियों को ढूंढ ढूंढ कर बहू  के साथ भोजन करने के लिए बुलाया, मुझे कहा तक नहीं…..!”  क्या मैं उनके देवर से विवाह करके नहीं आई ? क्या मैं उनके  खानदान की बहू नहीं ?      

उन्होंने कुटुम्ब परिवार व रिश्तेदारों में मेरी उपेक्षा करके अच्छा नहीं किया । अब मैं उनके घर की दहलीज पर पांव रखने वाली भी नहीं हूँ ।” 

विभा उसे मनाते हुए फोन पर कहने लगी । ” आज तुम हमारे नहीं आओगीं तो हम भी तुम्हारे किसी फंक्शन में नहीं आएंगे । सोच लेना ।”

        तभी घर की वैल बजी पुष्प लता ने दरवाजा खोला तो लोकेश बाहर खड़ा था, उसने माँ जी के पांव छुए और गेस्ट रूम में जाकर पिताजी को प्रणाम किया । 

           जब विजयकान्त ने कुनेश के विवाह की तैयारी के बारें में पूछा तो कुनेश ने कहा “सब तैयारी आपके वहाँ जाने पर ही होगी । क्या व कैसे करना है, वह सब आपकी देखरेख में ही होगा? 

          लोकेश ने दूसरे कमरे में बैठी बहु को सुनाते हुए कहा  अपनी माँ को आवाज लगाई ” माँ! प्रिया बहू को कह दो, धीरज के साथ अभी दिल्ली रवाना हो जाये, विभा उसकी रहा देख रही है, उसने तो कह दिया प्रिया बहू के आने से पहले मैं कुनेश के विवाह की तैयारी नहीं करूंगी ।” दो दिनों से उसने खाना भी नहीं खाया है । 

यदि वह घर भी तुम्हारा है और कुनेश तुम्हारे बेटे के समान है तो जाओ । नहीं तो मैं भी यहीं हूँ । अपनत्व के आगे प्रिया का स्वाभिमान जाग गया और वह अपने  पति के साथ दिल्ली रवाना हो गयी ।

         विजय कान्त कहने लगे, “वाह! सबने अपना आत्मसम्मान बचा लिया । ” सभी हंसने लगे ।

    नेमीचन्द गहलोत

                   नोखा, बीकानेर (राज.

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!