मीनाक्षी के कानों में अब भी वे ही शब्द गूंज रहे हैं — ‘ अंतर्जातीय विवाह ‘। इससे वह बहुत ही परेशान है। अन्यमनस्क जैसी रहने लगी है।मानो जीवन से वैराग्य ले लिया हो। उसकी दिनचर्या बिलकुल बदली बदली हुई सी। उसकी ऐसी मनोदशाओं को देख देख गोपाल आश्चर्य में पड़ गये थे। उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिरकार क्यों
अचानक ही ऐसा करने लगी। एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया। उसने पहले तो कुछ बतलाने से इंकार किया। किंतु बहुत दबाव दिया गया था तो उसने कहा -” आप एक सप्ताह पहले उससे जो बातें कर रहे थे तो विनोद ने तो अंतर्जातीय विवाह के संबंध में ही तो कहा था।”
इससे क्या फर्क पड़ता है। यदि वह ऐसा ही विवाह पसंद करता है तो उससे कौन सा पहाड़ टूट जायेगा। तुम तो एक समाजशास्त्री हो। समाज विज्ञान में पीएचडी कर चुकी हो। चारों तरफ घूम घूम कर प्रचार प्रसार किया करती हो कि समाज में बदलाव की जरुरत है। लड़के-लड़कियां अपने जीवन को सफल बनाने के लिए अपनी पसंद की शादियांँ कर सकते हैं।
उनको ऐसा करने से कोई भी रोक कैसे सकता है और जब विनोद के मन ऐसी बात है तो फिर उसे रोका क्यों जा सकता है? केवल दूसरे के लिए ही यह सिद्धांत है कि तुम इसे अपने पर भी लागू करोगी।
मीनाक्षी ने कहा — ” तीन तीन बेटियांँऔर दो दो बेटे हैं। उनका का क्या होगा? सभी तो ऐसा ही करने लगेंगे। परिवार तो एकदम अलग तरह का हो जायेगा। लोग हमारी खिल्लियांँ उड़ाने लगेंगे।”
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गोपाल ने समझाया कि — ” समाज बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस तेज गति से चलने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। एक समय ऐसा आयेगा जब हमारे जैसे लोगों की एक खूबसूरत सी पहचान बन जायेगी। अनेक प्रकार की सरकारी सुविधाएंँ हमें ही मिलेगी। मैं तुम्हें इसीलिए तो कहता हूंँ कि वह भी एक मनोचिकित्सक ही तो है।”
विनोद एक साफ्टवेयर इंजीनियर है।
अमेरिका की कंपनी में कार्यरत है और उसी कंपनी में रश्मि प्रभा भी नौकरी करती है। रंग रूप में साफ-सुथरी और स्वभाव से मिलनसार भी है। लम्बी और छरहरी काया वाली है। देखने में सुंदर और आकर्षक छवि की है। गोपाल ने कहा —” यदि ऐसी लड़की तुम्हारी बड़ी बहू बन जाये तो इसमें हर्ज ही क्या?”
गोपाल और मीनाक्षी दोनों संध्या में चाय पी रहे थे।साथ ही बातचीत भी हो रही थी। गोपाल ने कहा इस होली में विनोद आ ही रहा है उससे सभी जानकारियांँ प्राप्त हो जायेंगी। और तुम अपने को बिलकुल सही ट्रैक पर लाओ। मन में किसी भी तरह का अगर-मगर मत रखो। तुम्हारे लिए लोगों के भीतर श्रद्धा का भाव है। लोग यह मानते हैं कि वह सिद्धांतों को पालन करने वाली महिला हैं। तो फिर तुम उन पर कुठाराघात क्यों करोगी। विनोद की अंतर्जातीय शादी करके उनके भरोसे को जीत सकती हो।
होली से तीन दिन पहले विनोद घर पहुंँच गया। दस दिनों की छुट्टी लेकर आया था। पूरा परिवार एक साथ बैठकर चाय पीते हुए बातें कर रहा था। मीनाक्षी ने कहा कि बेटा विनोद तुम्हारे पापा जी कह रहे थे कि — ” विनोद की कंपनी में रश्मिप्रभा नामक लड़की नौकरी करती है। उसके बारे में कुछ बतलाओ।”
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विनोद ने कहा — ” माँ , सच पूछो तो वह अपनी विरादरी की नहीं है। लड़की बातचीत से ठीक ठाक लगती है। व्यवहार कुशल है। वह झारखंड की रहने वाली है। उसके पिता जी मिलिट्री में कर्नल और माँ सदर अस्पताल झारखंड में सिविल सर्जन के पद पर कार्यरत हैं। एक बार वह अपने कैरियर के संबंध में जो कुछ भी बतला रही थी उससे तो यही लगता है कि वह तुम्हारी तरह से सामाजिक जीवन जीना पसंद करती है।”
उसके लिए मीनाक्षी अपने मन मिज़ाज को अनुकूल बना रही थी, उससे संबंधित और कुछ भी जानने की उत्सुकता जब जाहिर करने लगी तो विनोद के भीतर जो कुछ भी संशय की जो स्थिति थी वह समाप्त हो गयी। वैसे उसके संदेह को अब तक किसी ने भांपा नहीं था। वहीं पर बैठी हुई मीरा भी अपनी होने वाली भाभी के बारे में विनोद से जानना चाहती थी।
विनोद ने बताया कि — ” जब उसका नामांकन ‘एस पी एम जी कालेज , सिंदरी’ में इंटरमीडिएट में हुआ था तब उस समय महाविद्यालय में कम ही लड़कियांँ कक्षाओं में आती थीं । शिक्षक छात्राओं की कम उपस्थिति होने का बहाना बना कर पढ़ाते नहीं थे। इस बात से वह चिंतित रहने लगी। अपने माता-पिता को बताया कि वह इस शहर में उन लड़कियों से मिलने की इच्छा करती है जिनने अपना नामांकन कराया है। माता-पिता की अनुमति मिलते ही
वह अन्य छात्राओं को अपने साथ लेकर पूरे शहर में घूम घूम कर वर्ग में उपस्थित होने के लिए प्रेरित करने लगी। उनके अभिभावकों ने रश्मि के इस उत्साहवर्धक कार्य की सराहना की।
अपनी बेटियों को महाविद्यालय में भेजने लगे। धीरे-धीरे उनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी। शिक्षकों ने भी रश्मि के इस साहसिक कदम का उत्साहवर्धन किया। महाविद्यालय में अच्छी खासी संख्या हो गयी। कायदे से पढ़ाई लिखाई होने लगी और पूरे शहर तथा आस-पास में चारों ओर रश्मि की चर्चा लोग करने लगे थे।”
समय के साथ रश्मि प्रभा ने इंटरमीडिएट पास करने के उपरांत इंजीनियरिंग में दाखिला हेतु प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन किया। कुछ दिनों के बाद परीक्षा हुई। उसमें उत्तीर्ण हुई। उसका नामांकन ‘ बी आई टी सिंदरी ‘ में हुआ। कंप्यूटर साइंस की छात्रा थी। अत्यंत ही मेधावी होने के कारण उसे छात्रवृत्ति भी मिलने लगी थी। एक्स्ट्रा एक्टीवीटी में भी हिस्सा लेती थी जिससे उस महाविद्यालय के शिक्षक और छात्र उसे जानने वाले हो गये थे।
चार साल बीतते बीतते उसका कैंपस सेलेक्शन एक अमेरिकी कंपनी के लिए हो गया।
उसके इस तरह से इतिहास को जानकर सबकी राय बनी कि यह लड़की बहुत ही योग्य है। ऐसी लड़की यदि हमारी बड़ी बहू के रूप में आयेगी तो फिर किसी को भी यह कहते हुए नहीं सुना जा सकता है कि यह तो एक अंतर्जातीय विवाह हुआ है बल्कि लोगों को तो यह कहते हुए सुना जायेगा कि उनकी बड़ी बहू तो बहुत ही हिम्मती, साहसी और समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने वाली है। पूरा परिवार इसके लिए सहमत हो गया।
होली बीतने के बाद जब मंगल कार्य करने का समय आया तो विनोद का विवाह रश्मि प्रभा के साथ बड़े ही धूमधाम से किया गया। बराती और घराती के साथ साथ इष्ट मित्र तथा सगे संबंधी सभी ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की।
सबके भीतर एक विश्वास पैदा हुआ कि समाज में बदलाव किया जा सकता है यदि रश्मि प्रभा की तरह ही और भी लड़कियांँ आगे आयें।
लगभग सात आठ साल तक नौकरी करने के पश्चात् रश्मि प्रभा ने एक योजना बनायी कि वह चाहे तो एक ‘ ‘कोचिंग सेंटर फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी ‘ की स्थापना करके छात्राओं को इंजीनियर बनने के लिए तैयार कर सकती है। उसने अपनी योजना को सबके सामने प्रस्तुत किया साथ ही उसने यह भी बतलाया कि वह इस पर किस तरह से काम करेगी और सफल भी बनेगी।
उसने सबकी सहमति से काम करना आरंभ कर दिया। अपनी सासु मां को उस सेंटर का डायरेक्टर बना दिया और अपनी ननदों को उनके लिए भी विशेष रूप से व्यवस्था बना दी। गोपाल जी उसके सर्वेसर्वा हो गये। इस तरह से सब के सब एक सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों से अपने को जुड़ा हुआ महसूस करने लगे और सर्वत्र उस परिवार की उपलब्धियों की चर्चा होने लगी।
समय समय पर विनोद के साथ घर आती ही रहती थी और उसके लिए आवश्यक निर्देश और सामग्रियों की व्यवस्था भी सुनिश्चित किया करती थी। उसकी व्यवहार कुशलता और आपसी तालमेल तथा सहयोगपूर्ण कार्यप्रणाली के कारण वह सबकी प्रिय बन गयी थी। विनोद के दोनों भाइयों अर्थात् अपने देवरों को पढ़ाने लिखाने में भरपूर सहयोग किया।
उन लोगों को भी समय के साथ इंजीनियर बना दिया। अपनी ननदों की शादी में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अपने माता-पिता की प्यारी दुलारी तो थी ही अपने आचरण से माता पिता समान सास ससुर की भी अतिप्रिय हो गयी। एक बेटी को माता पिता के लिए जो कुछ भी करना चाहिए वह सब कुछ रश्मि प्रभा ने अपने सास – ससुर जी को किया।
उसने अपने को यह साबित किया कि बड़ी बहू का क्या मतलब होता है। परिवार के सदस्यों ने भी इसकी प्रतिभा को पहचाना, उसका लाभ लिया और उसके लिए किसी भी नकारात्मक सोच को अपने मन में आने नहीं दिया और अंतिम समय तक इसे ‘ बड़ी बहू ‘ के दर्जा से सम्मानित किया जाता रहा।
अयोध्याप्रसाद उपाध्याय, आरा
मौलिक एवं अप्रकाशित।