माँ मेरी पत्नी की जगह तुम्हारी बेटी होती तो …. – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

“पाना बाई….. ओ पाना बाई…. घर हो क्या?” “हाँ कमला बहन…. आओ… तुम्हारी ही बाट देख रही थी ..। तुम्हारी तो बहू घर का सारा काम संभाल लेती है । मुझे तो सारा काम करना पड़ता है… ।

” कमला बोली “घर का कामकाज मेरे बायें हाथ का खेल है । काम  की कोई बात ही नहीं है । नहीं करे तो ना करो…. पर सुबह जल्दी उठ कर पाठ पूजा करके चाय तो बना दे । मेरे भी सास ससुर थे, चार बजे जागकर झाड़ू फूस करती, गायें दुहती, तुलसी सींचती, बड़ों के चरणस्पर्श करती, ससुर जी को चाय बनाकर देती ।”

               पाना ने कहा “तुम्हारी बहू तो पढी लिखी है । बहन…सही बताओ बात क्या है ?” ” दिन भर मुंह चढाये रखती है, मेरे शरीर में वेदन या दर्द हो तो हाथ पैर या सिर दबाना तो दूर की बात, चाय या काढे का भी नहीं पूछती । हमारे घर को अपना घर समझती ही नहीं है । पाना बाई अब तो पानी सिर से ऊपर तक आ गया है  मेरे ।

धन्नी बाई की बहू कितनी अच्छी है ! मेरी बहू ने तो घर का सत्यानाश कर दिया ।” तभी आशी काकी और आ गयी और कड़ी में कड़ी जोड़ते हुए कहने लगी “सब एक ही थैली की चट्टी बट्टी है । तुम्हारी बहू है तो बड़े घर की । कमला बोली ” बड़े घर की होकर हमारे घर कौनसा धन ले आई?” पानी बोली “पहले दिन से ही तुमने अपनी बहू को सिर चढा लिया..

“मां मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो” – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

. कुछ कहा नहीं.. अब भी संभल जाओ, नहीं तो तुम्हारी एक नहीं मानेगी । ” कमला बोली “देख रही हूँ,  ..आदतें नहीं सुधरेगी तो साफ बता देती हूँ मेरे घर में ऐसी बहू के लिए जगह नहीं है । ज्यादा सहन वाली मैं भी नहीं….. कभी मेरे हाथ की खा  भी लेगी…..।” 

                   अमरनाथ व उसकी पत्नी कमला का मध्यमवर्गीय परिवार इसी मौहल्लै में रहता था । यहाँ महिलाएंं प्रायः एक दूसरे के घर जाकर अपनी बहुओं की बुराई करती और दूसरों के घरों की बड़ाई करके उनसे ईष्या करती । 

“अच्छा मैं जा रही हूँ देखूँ तो सही साहबजादी क्या कर रही है ?” यह कह कर कमला अपनी पड़ौसिन के घर से उठकर अपने घर की ओर रवाना हो गयी  । 

                   अक्षिता मधु की बड़ी बहन थी ।  वह बचपन से ही पढाई व खेलकूद में मधु  से आगे थी ।  उसकी शादी भी परम्परा व रीतिरिवाज से बिना किसी बनावटी तामझाम के  चार साल पहले हुई थी । उसकी ससुराल से कभी उलहाना नहीं मिला । न ही उसने कभी ससुराल वालों की शिकायत की । विवाह के चार माह बाद ही उसका चयन कालेज प्रिंसिपल के पद पर हो गया  ।

पति विवाह से पहले ही विकास अधिकारी के पद पर थे । अक्षिता का स्वाभिमान अडिग था  । वह अपनी ससुराल व पिहर दोनों पक्षों का गौरव थी । घर परिवार के निर्णयों में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती । वह प्रत्येक निर्णय वैज्ञानिकों दृष्टिकोण से लेती । भारतीय संस्कृति और संस्कार उसके प्राण थे । उच्च शिक्षा और सोसाइटी के कारण सभी लोग उसे सौम्य, शिक्षित और सुसभ्य नारी का सम्मान देते थे । 

                         मधु का मन घर के कार्यों में अधिक लगता था, छोटी सन्तान होने के कारण वह माता पिता की कुछ ज्यादा ही लाडली थी । उसके पिता ने कह दिया “पढाई के लिए ज्यादा दबाव डालने की जरूरत नहीं है । वैसे भी लड़कियां तो आंगन की चिड़याएं हैं, इन्हें तो पराये घर जाना है । ” मधु कम पढ़ी लिखी होने के कारण उसकी शादी मध्यमवर्गीय परिवार में अभिषेक से हुई । वह इनकमटैक्स विभाग में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत था । 

                        मधु के विवाह को अभी एक साल ही हुआ हैं और वह सास की आंखों में खटकने लगी । उसकी माँ सोचती काश ! वह भी पढ लिखकर कर जीवन स्तर की ऊंचाइयों तक  पहुँच जाती तो आज हमें व उसे ये सब नहीं सुनना पड़ता । 

ज़िन्दगी की तल्ख हकीक़त – मधु झा

                     कमला ने रसोई से बिल्ली को निकलते देखा तो जोर से आवाज लगाई “अरे, कहाँ मर गये सारे! बिल्ली दूध पीकर रसोई से निकली है । बहू ओ बहू…. ” वह ड्राइंगरूम में गयी तो देखा मधु की मोबाइल पर बात चल रही थी, उसकी आंखें नम थी ।

कमला ने झट से मोबाइल छीना और बोली “हेलो, कौन बोल रहा है? सामने से मधु की मां बोली ” पांव लागूं समधन जी! कैसे हैं आप…? कमला ने जवाब दिया “मरे तो नहीं हैं समधन! पर बाकी कुछ नहीं रहा ।

आशीष की शादी में पानी की तरह पैसा बहाया हमने… सोचा था बड़े घर की बहू आ रही है सब ठीक हो जायेगा…. आज भी आशीष अपने पुराने स्कूटर से आफिस जाता है…. सभी पूछते हैं शादी में गाड़ी नहीं दी क्या?  बेचारा चुपचाप वहाँ से निकल जाता है, कुछ नहीं बोलता ।”

समधन बोली “असली धन तो बेटी होती है जी, वह पाल पोष कर आपको दे दी ” कमला बोली “ना समधन  ! जैसा हमने सोचा था वैसी बहू आई नहीं । चलो बाद में फोन करती हूँ ।”

             तनी भृकुटि से कहने लगी ” बस थोड़ा सा मौका मिलना चाहिए ! क्या चुगलियां कर रही थी अपनी माँ को?” मधु बोली “माँ जी, पिताजी की तबियत ठीक नहीं…. मिल आती… । कमला कहने लगी ” अच्छा तो तूं डाक्टरनी है..??? …तो तेरी माँ से बोल यहाँ काम करने के लिए कोई नौकरानी रख दे! और अपने पिताजी के साथ  तूं भी अपने दिमाग का इलाज करवा ले ।

लगता है तुझे भी मानसिक बीमारी है..  तुम्हें यह भी सुधबुध नहीं है कि रसोई में बिल्ली दूध पी रही है, गैस पर सब्जी जलने की गंध आ रही है । बस दिन भर माँ बेटी की फोनों पर बातें चलती रहती है । लगता है तेरे माँ बाप में भी संस्कार नहीं है ।

फिर तूं कहाँ से सीखेगी?” मधु तिलमिला कर बोली “ऐसा मैंने क्या कर दिया माँ जी….. ” कमला क्रोध में लाल पीली होकर कहने लगी  “लो! अब इसकी जुबान और खुल गयी, यही एक कमी थी ।”

       कमला का पति अमरनाथ सास बहू की नौंकझौंक सुनकर बोला “मुझे लग रहा है, यह घर नहीं बसेगा । दोनों में से एक तो चुप रह जाओ । कमला रोने लगी ” हाँ ..हाँ.. मैं ही बुरी हूँ । सास को तो आज तक संसार में किसी ने भली कहा ही नहीं!  फिर भला मैं क्या चीज हूँ । “रसोई इसको करनी आती नहीं, लाज-शर्म और मर्यादा नाम की इसके कोई चीज नहीं ।

नयी पहचान – मधु झा

कल सारा दूध उफन गया पर ये अपने कमरे में बैठी अखबार पढती रही । मैं बुखार में पड़ी थी, बेचारी पाना पाड़ोसन ने मेरे सिर पर बर्फ लगाकर बुखार उतारा, ये मेरे पास भी नहीं आई । हाथ पैर कितने दर्द कर रहे थे, मैं रो रो कर रह गयी, दबाना तो दूर की बात है इसने तो पूछा तक नहीं कि तुम्हारे क्या हुआ है ? “

       अमरनाथ कहने लगे “तो मैं कब  कह रहा हूँ कि बहू की गलती नहीं है, पर ऐसा होता तभी है जब दोनों में अनबन हो ।” बहू अपनी सास से कहने लगी “आई तो थी, आपने ही तो कहा था, बाहर चली जा यहाँ से!”

        कमला क्रोध में अपना आपा खो बैठी पास में रखे पीतल के लोटे मधु की ओर फेंकते हुए बोली “झूठ और बोल रही है कलमुहे ।” दुर्भाग्य से लोटा की बहू के सिर में इतनी जोर से लगी कि उसकी किनारी उसके सिर में चुभ गयी जिस कारण उसके सिर से रक्त आने लगा । मधु का हाथ और साड़ी का किनारा भी लाल हो गये ।

दर्द के मारे उसके मुंह से चीख निकल पड़ी । तभी आशीष आफिस से लौटकर घर में घुसा तो ये सब देखकर भौचक्का रह गया । वह धर्म संकट में फंस गया । किसे कहूँ? क्या कहूँ? मधु का दु:ख देखकर उसकी आंखें डबडबा गयी ।

वह अपनी माँ से बोला ” माँ, मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो…… ”  कमला का सोया वात्सल्य जाग उठा उसकी आँखों से पश्चताप के आंसुओं की धारा बहने लगी । वह मधु का गला पकड़ कर रोने लगी ।” मुझे माफ कर दे बेटी! मैं गुस्से में अनर्थ कर बैठी! 

        कमला ने मधु को अपनी गोद में सुलाया व प्राथमिक उपचार पेटिका में से दवा निकाल कर पट्टी बाँधी । सास बहू दोनों एक दूसरे का गला पकड़ कर रोने लगी । उन आंसुओ से दोनों के मन का मैल धुल गया ।

     नेमीचन्द गहलोत

                   नोखा, बीकानेर (राज.

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