मोहताज – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

मै इन्दु, मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हूँ ।बहुत उम्र हो गई है ।लेकिन पता नहीं कबतक कष्ट भोगना लिखा है ।पन्द्रह साल की थी तब पिता जी ने एक अच्छा घर वर देख कर ब्याह दिया ।ससुराल में सब अच्छे थे।सासू माँ  नहीं थी।ससुर जी थे।लेकिन और चचेरे परिवार ने खूब प्यार दिया ।मै बहुत खुश थी।

दो साल के बाद मै माँ भी बन गई थी ।और एक एक करके चार बेटे की माँ भी बन गई थी ।पति बहुत खुश हो गये थे ।कहा,” इन्दु चारो बेटे सौ सौ रूपये देंगे तो चार सौ हो जायेंगे ।तब चार सौ बहुत बड़ी बात थी ।जीवन सुचारु रूप से गुजर रहा था ।पति अच्छी नौकरी पर थे।किसी बात की कमी नहीं थी।

जहां नौकरी कर रहे थे हमें भी ले गये ।पति अकसर कहते ” हमारे चारों बेटे हमेशा खयाल रखेंगे तो किसी का मुहताज नहीं होना पड़ेगा ।फिर समय आगे बढ़ गया बच्चे बड़े होते गये ।उनकी शिक्षा पूरी हुई तो शादी भी हो गई ।हंसी खुशी के बीच हमारे जीवन में ग्रहण लग गया ।एक दिन पति आफिस से लौट रहे थे तभी एक ट्रक के चपेट में आ गये ।

उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई थी ।एक महीने बीत गए ।पति के मिले पैसे से बेटे ने एक घर खरीद लिया ।और फिर मेरे लिए तू तू मै मै होने लगी ।जिन बेटों पर नाज था,उनहोंने मेरा भी बंटवारा कर लिया ।सब की रसोई अलग हो गयी।और तय हुआ कि एक एक महीने माँ को रख कर खिलाया करेंगे ।

मै चारों बेटे के पास घूमती रही, खाने के लिए ।एक महीने से एक दिन भी अधिक नहीं ।चारो बाल बच्चे दार हो गये ।अब उनका जीवन अपने ही पत्नी और बच्चों के बारे घूमने लगा ।मुझे क्या चाहिए, मेरी तबियत खराब है,कपड़े फट गये इन बातों पर किसी का ध्यान नहीं था।मै फटेहाल, और बीमार रहने लगी ।

मुझे घर में पीछे आँगन वाला एक कमरा दे दिया गया ।कुछ कपड़े और एक बिस्तर, एक थाली ।बस यही मेरी जमा पूंजी थी।उसी कमरे में एक नल लग गया ।जिसमे मै स्नान करने लगी ।एक दिन पैर फिसल गया और पैर टूट गया ।हाथ में भी चोट लगी ।अब चूंकि अपने दिन चर्या में दिक्कत होने लगी तो मेरे सिर के बाल मुड़वा दिया गया ।

एक दिन पड़ोस के बंटी की अम्मा मिलने आई तो पहचान ही नहीं पायी।फिर बड़ी बहू ने बताया कि अम्मा बीमार रहने लगी है सिर में कंघी नहीं कर पाती है तो बाल कटा दिया ।कोई मिलने आता तो बाहर से ही हाल चाल बता दिया जाता और कहा जाता कि बात नहीं कर पायेगी ।मेरा अब किसी से मिलना मुश्किल हो गया ।

समय पर थाली में भोजन मिलता, मै भूखी रहती तो खा लेती, और खुद ही बर्तन धो लेती।क्योकि ऐसा ही करने को कहा गया था।अपनी दुर्दशा पर रो लेती कभी कभी ।आँसू भी तो सूख गए थे ।चार चार बेटे की अम्मा थी मै ।जिस पर मेरे पति को बहुत नाज था।जो बच्चे अपने छुटपन में लड़ते, कहते ” मेरी अम्मा, मेरी अम्मा “।

अब कहने लगे “तेरी अम्मा, तेरी अम्मा ” कुदरत का खेल था यह।मेरे दवा दारु के लिए चारो लड़ते ।कोई खर्च नहीं करना चाहता।मै दिन रात सोचती, बहुएं तो परायी घर की थी पर मेरे बेटे तो मेरे अपने खून थे,फिर क्यों उनका खून ठंढा हो गया ।मेरा शरीर गिरता गया ।उम्र बढ़ती गई ।मै अब खाट पर आ गई ।उठना बैठना मुश्किल हो गया ।

बेमन से कोई बहू आकर कपड़े बदल देती ।गन्दगी फैलने का डर था तो सफाई करना जरूरी हो जाता है ।हालत सुनकर मेरी भतीजी मिलने आई और मुझे देख कर रोने लगी थी ।मै भी बहुत रोयी उस दिन ।फिर वह अपने घर चली गई ।उसके अपने भी परिवार थे।उन्हे भी तो देखना था।मेरे पास कोई कबतक रहता ।

अब करीब एक महीने से मेरा खाना पीना लगभग छूट गया है ।दो चार चम्मच कुछ दे दिया जाता है ।लोग इन्तजार कर रहे हैं कि मुझसे कब छुटकारा मिलेगा ।लेकिन लगता है कि आज ही मेरी आखिरी सांस होगी ।आखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा है ।पता नहीं क्यों हिचकी भी आ रही है ।आवाज़ लगाना चाहती हूं, कोई दो घूँट पानी पिला देता।

लेकिन मेरे पास कोई नहीं है करने वाला ।आह!,हे ईश्वर!अब और सजा मत दो।न जाने पूर्व जन्मो का कौन सा बुरा कर्म था मेरा जो इतना कष्ट भोगना लिखा है ।सोचा था जीवन अच्छा से गुजर जायेगा ।किसी का मोहताज नही होना पड़ेगा ।लेकिन यह जीवन तो बहुत ही बदतर हो गया है ।आँखे धीरे-धीरे बंद हो रही है ।शायद यही अंत है ।—हे,राम–! सुरंग में जा रही हूँ । 

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित ।मौलिक ।

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