किस्मत वाली – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

पूरे चार साल तक कैंसर जैसी गहन बीमारी से जूझते रहने के बाद आखिर अस्पताल के बैड पर ही सरिता जी ने आखिरी सांस ली,उस समय उनके पास उनकी सहेली जैसी बहू अमिता के अलावा कोई नही था। जबकि डॉक्टर ने दो घंटे पहले ही यह कह दिया था था कि इनके पति व बेटे को बुला लीजिए क्योंकि इनके पास अब अधिक समय नहीं है।

लाचारअमिता के पास बेवजह फोन घुमाने के अलावा कोई चारा भी नहीं था।सरिता जी का एकलौता बेटा टूर पर गया हुआ था ,हांलांकि मां को इस हालत में छोड़ कर वह जाने को कतई तैयार नहीं था लेकिन जब सरिता जी ने कसम दी तो से जाना पड़ा।रही पति हरेश की बात तोअमिता ने कितने ही फोन घुमाए अपने ससुर जी को हर बार फोन स्विच ऑफ का ही जबाव आता। शायद अपनी किसी महिला मित्र केसाथ अय्याशी में मग्न रहे हों

अमिता ने ही हिम्मत जुटाई और अस्पताल के सारे बिल क्लीयर करके अपनी जान से प्यारी सासूमां को घर लेआई

अड़ोस पड़ोस में सबको खबर कर दी ,आनन फानन में ही पूरा मोहल्ला जमा हो गया, क्योंकि सरिता जी एक मिलनसार व सरल ह्रदय की हंसमुख स्वभाव की महिला थी। सबसे उनकी मित्रता थी हमेशा सबकी मदद को तैयार रहती थी।इस बीच में सरिता जी के पति भी घर पंहुच चुके थे और फटी फटी आंखों से सरिता जी के शव को देख रहे थेइतनाही नही उनका आंखों से निरंतर आंसू भी बहते जारहे थे।

सभी मिलने बालों की जबान पर यही शब्द सुनाई दे रहे थे। कुछ भी कहो अपनी सरिता बहुत ही #किसमत वाली थी#जो अपने पति के कंधों पर ही अंतिम यात्रा तय करेगी। वर्ना सबको कहां नसीब होता है पति का कंधा।अमिता मन ही मन सोचरही थी,पति का कंधा ही तो मिला मेरी देवी जैसी सास को,साथ तो कभी मिला नही

सभी के मुंह से यह शब्द सुनकर अमिता फूट फूट कर रो रही थी क्योंकिB अपनी सास के जीवनकाल की सच्चाई सिर्फ उसे ही मालूम थी।

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अमिता को इस घर में बहू बन कर आए तकरीबन दस साल हो चुके थे,तब एक दिन रात के समय जब अमिता अपने कमरे से पीने के लिए पानी लेने रसोई की तरफ जारही थी तो देखा सरिता जी दरबाजे के पास खड़ी थीं,पास जाकर अमिता ने पूछा कि क्या बात है मां कया पापाजी अभी तक घर नहीं लौटे।जिस पर सरिता जी ने कहा कि हां आजकल ऑफिस में शाम अधिक होने के कारण अक्सर देर हो जाती है बैसे तो फोन कर देते हैैं लेकिन आज शायद भूल गए होंगे,तुम जाकर सो जाओ।

यही बात जब कईबार हुई तो अमिता ने अपनी सास से कहा मां लगता है आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं ,सच बताएं न आखिर बात क्या है।अमिता के बहुत आग्रह करने पर सरिता जी ने जो बताया उसको सुन करअमिता के पैरों तले जमीन खिसकती सी लगी।

सरिता जी ने अमिता से कसम लेली कि इस बात का खुलासा वह कभी किसी से नही करेगी,मैने अपनी किस्मत से समझौता कर लिया है।

हमारी शादी तो इनके परिवार बालों व इनकी सहमति से ही हुई थी, शादी केशुरू में तो सब कुछ ठीक था,हां आफिस में काम बहुत था आज कह घर अक्सर घर देर से लौटते मुझे भी इनके ऊपर पूरा विश्वास था।सब कुछ ठीक ही चल रहा था इस बीच मैंने अपने शरीर में कुछ हलचल महसूस की इनको बताया तो डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने चैक करके बताया कि करता मां बनने बाली है ।खुश तो ये भी बहुत थे

यह जानकर कि हमारे घर एक नन्हा जीव आने वाला है।तभी एक दिन देर से आने पर तुम्हारे ससुर जी ने मुझे बताया कि सरिता मैं तुम्हें किसी तरह के धोखे मेंनहीरखना चाहता,औरतें मेरी कमजोरी हैं,मेरी बहुत सारी महिला मित्र हैं जिनसे मैं रोज मिलता हूं।मैं उनसे मिलता जरूर हूं लेकिन मेरी धर्मपत्नी तो सदैव तुम्हीं रहोगी।इस घर में तुम्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी,जेबर , कपड़ा मकान व जीने की अन्य सुविधाएं तुम्हें पत्नी की तरह मिलेंगी परंतु शायद मेरा साथ न मिल पाए।

यह सुन कर मुझे बुरा तो बहुत लगा था,रोई भी चीखी चिल्लाई भी, प्यार से समझाया भी बहुत लेकिन ये अपने पर अडिग थे।मां के मुंह से यह सब सुन करमै जब रोने लगी,तो मां ने कहा , अरे पगली तू क्यों रो रही है, इन्हीं बिसंगतियो का नाम हीतो जीवन है।इस संसार में कोई भी पूरा सुखी नहीं है। परिस्थितियों कोजानकर उन्हें मान लेना हीजीवन है,रोने धोने से जीवन नहीं चलता,।

परंतु यह सब जानने केबादभी आपने यह सब क्यों बर्दाश्त किया, छोड़ घर चली कयों नहीं गई,बहू अमिता ने पूछा?

उस समय मैंने तेरे पति को कंसीव किया हुआ था।मैं नहीं चाहती थी कि मेरी संतान किसी तरह के अभाव में जन्म ले।इनके घर में मुझे किसी तरह का कोई अभाव नहीं था न कोई रोक टोक थी ,ये अपना जीवन अपने हिसाब से जीरहे थे तो मैं भी अपनी जीवन अपनी हिसाब से छीने को स्वतंत्र थी।

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समाज कीनजरों में हम आदर्श पति-पत्नी थे,साथ रह रहे थे ,सामाजिक व पारिबारिक उतसबो में साथ जाते। अडौस, पड़ोस के लोगहमें आदर्श जोड़ी की उपाधि से नवाज तो तोमन

हां सच जानने के बाद मैंने अपना समय अपने बेटे कोपालने में लगाया,जब यह नर्सरी में जाने लगा तो मैंने अपने जीवनके बारे में सोचा,अपने दुखों के ऊपर रोने केबदले हंसकरजीने को अपना मकसद बना लिया।अपना ध्यान अपने बचपन के हुनर में लगाया। मुझे बचपन से ही पेंटिंग बनाने काबहुत शौक था।बस बेटे को बड़ा करके एक अच्छा इन्सान बनाने के साथ पेंटिंग में भी महारत हासिल की। धीरे धीरे मेरी बनाईं

पेंटिंग की प्रदर्शनी भी लगने लगी, तुम्हारे पापाजी भी देखने जाते, खुश भी होते कि मैं अपने जीवन में व्यस्त होगी हूं।एक इन्सान के पीछे अपना जीवन नरक बनाने की बजाय,अपनेजीवन की बागडोर अपने हाथों में लेकरखुश रहना सीख लिया।दुनिया में सभी को सब कुछ नहीं मिलता।जोभी मिला है उसी में खुश रहना ही जिंदगी है।दुनिया बालों की नजरोंमें तो मैं बहुत #किसमतबाली हूं।क्योंकि दुनिया को दिखाने को तो सब कुछ था

मेरे पासहै एक पति,एक बेटा और तुम्हारे जैसी सहेली जैसी बहू,धन धान्य से भरपूर घर, और क्या चाहिए जीने के ,लिए।हां यह बात जरूर है कि ज़िन्दगी जीने के लिए शारीरिक जरूरतों के अलावा कुछ मानसिक ज़रूरतें भी होती है, परंतु सभी को सब कुछ कहां मिलता है इससंसार में ।

स्वरचित व अप्रकाशित

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

# किसमतवाली

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