Moral stories in hindi :
थोड़े समय बाद जब बीमारी पर थोड़ा नियंत्रण हुआ तो स्कूल भी खुल गए। तीनों बच्चे एक साथ स्कूल जाते और आते। बच्चों के स्कूल आने पर अमृता अपने दोनों बच्चों को गले से लगाती पर पीहू को देखकर जैसे पत्थर हो जाती।वो बच्ची भी पता नहीं जैसे सब कुछ जान रही थी।
बिना कुछ कहे कपड़े बदलकर आ जाती और दोनों भाई-बहन के साथ खाने बैठ जाती। कई बार अमृता महसूस करती कि पीहू ने ज़िद करना, अपनी पसंद और नापसंद बताना तो जैसे छोड़ ही दिया था। पढ़ाई में भी कुछ समझ नहीं आता तो दोनों भाई बहन या सुधाकर से पूछ लेती पर किसी को भी तंग नहीं करती थी। कभी अमृता पेंटिंग भी बना रही होती तो चुपचाप अपनी ड्राइंग की कॉपी और कलर्स लेकर बैठ जाती। खूब ध्यान से अमृता के रंग संयोजन और ब्रश चलाना देखती।
एक दिन सुधाकर को बैंक के कार्य के चलते दो-तीन दिन के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा। सासू मां और ससुर जी को भी किसी पारिवारिक आयोजन में हिस्सा लेने गांव जाना पड़ा। घर पर अमृता और तीनों बच्चे ही थे। आज अमृता की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। उसका सारा शरीर दर्द से टूट रहा था।
उसने दोनों बच्चों से भी कहा पर दोनों ही उसको दवाई खाने और आराम करने की नसीहत देकर अपनी दोस्तों के घर पार्टी करने चले गए। घर पर सिर्फ अमृता और पीहू रह गए। अमृता का बुखार जब थोड़ा बढ़ा तो वो जाकर लेट गई। वो हल्की सी बेहोशी की अवस्था में थी।
ऐसे में पीहू ने बर्फ के पानी की पट्टी तैयार की और तब तक उसके पट्टी करती रही जब तक उसका बुखार कम नहीं हुआ। जब बुखार कम होने पर उसकी अवस्था में थोड़ा आराम आया तो उसे भूख लग रही थी।ऐसे में पीहू ने अमृता के लिए चाय बनाई और ब्रेड के दो पीस हल्के से सेक कर ले आई।
ऐसे में यही चाय और ब्रेड अमृता को किसी अमृत से कम नहीं लग रहे थे। अब अमृता को अपनी हालत में थोड़ा सुधार लग रहा था वो सोचने लगी दोनों बच्चे तो फिर भी अपने दोस्तों के यहां खा पीकर आ जायेंगे पर पीहू भी तो भूखी होगी। वो जैसे ही उठने लगी तब पीहू ने उसको उठने नहीं दिया। उसके बिना बोले ही कहा मामी मेरे को मैगी बनानी आती है।
मैं अपने लिए और आपके लिए बना लूंगी। आप आराम कीजिए। ऐसा कहकर मैगी बनाकर ले आई और दोनों ने एक साथ बैठकर वो खाई। आज अमृता के दिल में पीहू के लिए जो दीवार थी वो कहीं ना कहीं पिघल रही थी। आज पीहू ने उसके कोखजाए बच्चों से भी ज्यादा उसका ख्याल रखा था।
दवाई लेने के बाद उसकी कुछ देर के लिए आंख लगी तब भी पीहू उसका सिर दबाती रही। अगले दिन तक वो पूरी तरह मन और तन दोनों से स्वस्थ थी। कुछ दिन बाद पीहू के स्कूल मीटिंग थी।हमेशा तो कुछ भी होता था तो सुधाकर ही जाते थे पर इस बार अमृता भी गई। अमृता ने भी बहुत दिनों पीहू के चेहरे पर मुस्कान देखी थी।
जब अमृता पीहू की टीचर्स से मिली तो सबने पीहू की बहुत प्रशंसा की। ड्राइंग वाली टीचर ने तो यहां तक कहा कि ये बहुत अच्छी चित्रकारी करती है और कहती है कि ये सब इसने अपनी मामी से सीखा है।घर आते ही अमृता ने पीहू को अपने गले से लगा लिया और फूटफूट कर रोने लगी।
अब तक जो भी आवेग उसके हृदय में दबा था वो सब आंसू के रूप में बाहर निकल आया। इन आंसुओं से उसके मन में छिपे सारे पुराने गुब्बारों को धो दिया था। वो तो जाने कब तक रोती पर पीहू ने उसके आंसू पोंछते हुए जब उसे बोला कि कितना रोती हो मां? तब बरबस ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
सासू मां तो पहले ही अपने किए पर पछतावे की आग में जल रही थी। उन्होने भी अपने किए पर अमृता से हाथ जोड़ माफ़ी मांगी। अब सबके सामने अमृता ने कानूनन पीहू को अपनाने की बात कही। सुधाकर और पूरे परिवार की इसमें सहमति थी।अमृता की सास ने तो यहां तक कहा कि चूंकि पीहू का स्कूल में नाम धरा है अब से इसका पूरा नाम धरा अमृता सिंघानिया होगा क्योंकि ये अब अमृता की ही तो कलाकृति है।
इसके मासूम बचपन को अमृता ने ही पुनः आबाद किया है। वैसे भी सदियों से हमारे यहां पालने वाले का अधिकार जन्म देने वाले से ज़्यादा रहा है। उनकी ऐसी बातें सुनकर सब ताली बजाने लगे। वैसे भी अमृता के दोनों बच्चों के लिए तो पीहू एक प्यारा खिलौना थी जिस पर वो जान छिड़कते थे।आज पूरा परिवार बहुत खुश था।
सुधाकर के दिल में अमृता के लिए इज्ज़त कई गुना और भी बढ़ गई थी। वो ये सब सोच ही रही थी कि इतने में घड़ी ने सुबह का अलार्म बजा दिया। रात भर ना सोने के बाद भी वो पूरी तरह तरोताज़ा थी क्योंकि आज पीहू मतलब धरा अमृता सिंघानिया कानूनन उसकी हो जायेगी।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?समय का पहिया कब घूम जाए पता नहीं चलता,कुछ बंधन कुदरत ने पहले से तय किए होते हैं। ये बात भी सौ प्रतिशत सही है कि जन्म देने से ज्यादा अधिकार पालने वाले का होता है क्योंकि बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें सुंदर कलाकृति का रूप देने में पालनपोषण की बहुत बड़ी भूमिका होती है।
कलाकृति (भाग 2 )
डॉ पारुल अग्रवाल,
नोएडा
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