बरसात – माता प्रसाद दुबे

रामू परेशान था। सावन का महीना आने वाला था। बरसात के साथ ही उसके मोहल्ले में मुसीबत आ जाती थी। बरसात के पानी से पूरी सड़क लबालब हो जाती थी। घरों में पानी भर जाता था। गांव के अंदर जाने का मुख्य मार्ग होने के कारण कोई भी गाड़ी सामने से गुजरती तो कीचड़ के छींटे उसके घर तक आती थी। रामू मोहल्ले के चार पांच लोगों के साथ गांव के मुखिया चौधरी साहब से मिलने उनके घर गया था।

 

“चौधरी साहब घर पर है?” गेट पर बैठे चौकीदार से रामू बोला।”क्या काम है कहां से आए हो?”चौकीदार रामू और उनके साथियों को घूरते हुए बोला। “हम लोग गौरा गांव से आए हैं,चौधरी साहब से मिलना चाहते हैं?”रामू ने चौकीदार से कहा। “तुम लोग यहीं रुको मैं मुखिया जी से पूछ कर आता हूं?” कहते हुए चौकीदार कोठी के अंदर चला गया।

 

थोड़ी देर बाद  चौकीदार वापस आकर रामू से बोला। “तुम लोगों में दो आदमी मेरे साथ चल कर मुखिया जी से मिल सकते हो?”चौकीदार निर्देश देते हुए बोला।” ठीक है मेरे साथ एक आदमी ही आएगा?” रामू अपने एक साथी को साथ लेकर चौकीदार के साथ कोठी के अंदर पहुंच चुका था।

 

रामू के सामने चौधरी साहब सड़क का निर्माण कराने वाले ठेकेदार और कुछ लोगों के साथ बैठे हुए थे। “चौधरी साहब प्रणाम?” रामू ने मुखिया का अभिवादन किया। मुखिया ने रामू को देखते हुए सिर हिला दिया।” तुम लोग गौरा गांव से आए हो हमसे क्या काम पड़ गया तुम लोगों का?” मुखिया मजाकिया अंदाज में रामू से बोला। “चौधरी साहब हमारे मोहल्ले की सड़क पर कोई काम नहीं हो रहा है,बरसात आने वाली है?” रामू हाथ जोड़कर मुखिया से बोला। “मैं जानता हूं कि तुम्हारे मोहल्ले की सड़क पर काम नहीं हो रहा है..तुम वही गौरा गांव के रामू नेता हों ना..जिसने गांव वालों को खाने पीने और 500, रूपए लेने से मना कर दिया था..और चुनाव में हमें वोट नहीं दिया था..जिन लोगों ने हमें जिता कर मुखिया बनाया पहले वहां पर सड़क बनवाना मेरा कर्तव्य है,कि नहीं?” मुखिया रामू को घूरते हुए बोला। रामू चुपचाप खड़ा रहा कुछ नहीं बोला। “ठेकेदार साहब यहीं बैठे हैं..अब तुम्हारे मोहल्ले में सड़क बनाने के लिए तुम लोगों को पांच साल तक इंतजार करना पड़ेगा?” मुखिया रामू को डांटते हुए बोला। “जी चौधरी साहब?”रामू बोला। “तुम तो अपने गांव के नेता हों आ गये अपनी औकात मे..तुमने क्या सोचा था मैं चुनाव हार जाऊंगा.. बड़े बेशर्म आदमी हों चलें आए अपना मुंह दिखाने निकल जाओ यहां से नहीं तो जूते मारकर निकालूंगा साले,,,!!”मुखिया रामू को गाली देते हुए अपमानित करते हुए बोला। वहां पर बैठे सभी लोग ठहाके मारकर हंस रहे थे। रामू चुपचाप अपने साथी के साथ बाहर निकल गया। उसे कभी किसी ने इस तरह अपमानित करके जलील नहीं किया था।उसकी आंखें डबडबा उठी वह गम में डूबा अपने साथियों के साथ अपने गांव की ओर चल पड़ा।


 

रात के दस बज रहे थे। सुबह से जोरदार बारिश हो रही थी। बरसात का पानी गौरा गांव को अपनी आगोश में ले चुका था। रामू अपने घर से बरसात का पानी निकालने के लिए संघर्ष कर रहा था। तभी गाड़ी की जोरदार आवाज सुनकर बाहर की ओर दौड़ा। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। “अरे यह क्या?” रामू चौकते हुए बोला। एक लंबी गाड़ी उसके घर के बाहर कच्ची सड़क पर धस चुकी थी। गाड़ी का मालिक अपने नौकर के साथ घबराया हुआ गाड़ी को बाहर निकालने का असफल प्रयास कर रहा था। “अरे जल्दी करो..कोई मदद करो?” वह गिड़गिड़ा रहा था। रामू तुरंत बिना देर किए गाड़ी के पास पहुंच गया। “अरे भाई मेरी मदद करो..मेरी पत्नी की जान बचा लो?” वह रामू से विनती करने लगा। रामू ने गाड़ी के अंदर झांक कर देखा “हे भगवान!!खून से लथपथ गाड़ी के अंदर पड़ी महिला को देखकर रामू बोला। “अरे भाई मेरी पत्नी छत से फिसलकर नीचे गिर पड़ी है..ख़ून बहता जा रहा है..जल्द अस्पताल ना पहुंची तो..उसकी जान बचाना मुश्किल हो जाएगा?” वह व्यक्ति रामू के आगे हाथ जोड़ते हुए बोला। “कुछ नहीं होगा..आप धीरज रखिए?”कहकर रामू ने मोहल्ले के सभी लोगों को बुला लिया। और कुछ ही देर में  गाड़ी कीचड़ से बाहर निकल आई और तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़ी।

 

दो दिन बीत चुके थे। बरसात थम चुकी थी। रामू अपने घर के सामान को व्यवस्थित करवा रहा था। “कोई है क्या?” बाहर से आवाज आई। “अरे चौधरी साहब आइए?”रामू दरवाजे पर खड़े चौधरी को देखकर हैरान होते हुए बोला। “अरे रामू भाई मुझे माफ कर दो..मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है?” चौधरी रामू के आगे नतमस्तक होते हुए बोला। “यह क्या कह रहे हैं.. चौधरी साहब आप किस बात की माफी मांग रहे हैं?”  रामू चौधरी का अभिनंदन करते हुए बोला। “मैं दोषी हूं तुम्हारा तुम इंसान नहीं भगवान हों मेरे लिए..और मैंने भगवान को अपमानित किया जलील किया मेरा जुर्म तो माफी के लायक भी नहीं है..कल रात अगर तुमने मेरी मदद ना कि होती तो आज मेरी पत्नी जीवित नहीं होती?” चौधरी हाथ जोड़कर रामू के आगे गिड़गिड़ा रहा था। रामू हैरानी से चौधरी की ओर देख रहा था। “मैंने इर्ष्या वश इस सड़क का निर्माण रुकवाया था..और तुम लोगों ने निस्वार्थ बरसात में भीगकर कीचड़ में फंसी गाड़ी को निकलवा कर चौधराइन की जान बचाई है..मैं अपराधी हूं तुम सब का..हो सके तो मुझे माफ कर देना?” कहते हुए चौधरी की आंखें डबडबा उठी। “यह तो हमारा फर्ज था चौधरी साहब हमें आपसे कोई शिकायत नहीं है..धन बल के अहंकार में आपने मुझे सबके सामने अपमानित किया था..मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है” रामू विनम्रता पूर्वक चौधरी से बोला। “मैं अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहता हूं..देखो मैंने सड़क का काम चालू करवा दिया है..दो दिन में यह सड़क तैयार हो जाएगी..अब गौरा गांव में कभी पानी नहीं भरेगा?” चौधरी पूरे गांव को विश्वास दिलाते हुए बोला। रामू ने सड़क की ओर देखा लगभग बीस मजदूर युद्ध स्तर पर सड़क पर निर्माण कार्य कर रहे थे। उसके मन में संतोष का भाव छलक रहा था। वह सोच रहा था। अब गौरा गांव के लोग भी बरसात का लुफ्त उठायेंगे बरसात से डरेंगे नहीं।

#अपमान

माता प्रसाद दुबे

स्वरचित मौलिक

लखनऊ,

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