ज़रूरी तमाचा – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

सीमा, सीमा कहाँ हो? तुम्हे सुनाई नहीं दें रहा है? इतनी देर से पानी माँग रहा हूँ और तुम हो कि कुछ सुन ही नहीं रही हो। कहाँ मर गईं, पानी दोगी? ड्राइंग हॉल मे बैठा संजय लगातार चिल्लाए जा रहा था, परन्तु पता नहीं सीमा कहाँ थी जो सुन ही नहीं रही थी। अपने कमरे मे बैठे उसके माँ – पापा भी उसे  इस तरह से चिल्लाते सुन रहे थे।

जब सीमा ने कोई जबाब नहीं दिया तो संजय के पापा अपनी पत्नी से बोले कहाँ है तुम्हारी बहुरानी? पानी लाकर क्यों नहीं दें रही? पता नहीं तुम औरते दिनभर घर मे बैठकर क्या करती हो? आराम करके बोर नहीं होती? ऐसा नहीं कि पति दिनभर काम करके शाम को घर आए तो उसके आने से पहले ही चाय पानी लेकर सामने हाजिर हो जाए, लेकिन नहीं तुमलोग तो कोई काम समय पर कर ही नहीं सकती।

तुम औरतो को जब कहाँ जाएगा तो कोई काम करोगी। अपना तो जैसे दिमाग़ ही नहीं है। अब बेचारा काम से थका आया है, प्यास लगी है फिर भी चिल्ला चिल्लाकर गला सूखा रहा है,पर तुम्हारी बहुरानी को तो आराम करने से ही फुरसत नहीं है। जाओ जाकर देखो क्या कर रही है । तुमसे तो यह भी नहीं होगा कि खुद उठकर चली जाओ जब कहूँगा तो जाओगी।

पति की कड़वी बातो को सुनकर खून का घूंट पीते हुए वे बाहर आ गईं क्योंकि उन्हें पता था कि पति से कुछ भी कहना बेकार है। उनके अनुसार औरतो को करना ही क्या होता है बस खाना बनाओ, कपड़े धोओ और बच्चे सम्भालो। यही तो बस करती है, मर्द के जैसे बाहर जाकर काम करना पड़ता तो समझ आता कि काम करना होता क्या है।

रंग में भंग –  मुकुन्द लाल

उनसे यदि कहो कि ये काम नहीं है?तो तुरंत कहेंगे ” यह तो औरतो को करना ही पड़ता है, औरतो का काम ही है पति की सेवा करना। उनकी जिंदगी मे ऐसा कभी नहीं हुआ है कि वे बीमार हो इसलिए उन्हें काम नहीं करना पड़ा हो। बीमार होने पर उनके पति कहते कि  मेरे सामने नखरा पसारने की जरूरत नहीं है,ज्यादा आराम करने से देह दर्द कर रहा है, शरीर मे जकड़न हो गईं है,

काम करोगी तो सब ठीक हो जाएगा। कितना भी बीमार रहो,घर के काम समय पर होने ही चाहिए । वही यदि उनके पति को थोड़ा छींक भी आ जाए तो तुरंत डॉक्टर के पास भागेंगे, कहेंगे शरीर कमजोर हो जाएगा तो काम कैसे करूंगा। घर मे बैठ जाऊंगा तो खाना सब, देखता हूँ,क्या खाओगे। पत्नी की किसी भी दर्द को दर्द नहीं समझने कि उनकी आदत थी।

संजय की खातिर हर परिस्थिति मे समझौता करते हुए उन्होंने जीवन के इतने वर्ष गुजर दिए थे. पहले तो कभी -कभी कुछ जबाब भी दें दिया करती थी परन्तु बाद मे यह सोचकर कि किसी भी बात का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है बोलना ही बंद कर दिया है। ऐसे ही उन्होंने पूरी जिंदगी काट दी थी।यह सब मन ही मन सोचते हुए वह अपनी बहू के कमरा मे गईं, पर बहू वहाँ नहीं थी।

फिर वे रसोईघर मे गईं। वहाँ जाकर देखती है कि बहू जमीन पर बैठी है और कुछ बोल नहीं पा रही है। यह देखकर वे घबरा गईं और चिल्लाने लगी। इधर आओ संजय देखो बहू को क्या हो गया है । उनके चिल्लाने के बावजूद संजय आराम से आया और बोला कुछ नहीं माँ ऐसे ही बैठी होंगी,काम नहीं करने का यह सब बहाना है।

इज्ज़त – सुषमा यादव

फिर पत्नी की तरह मुँह करके बोला, उठो, यह क्या नखरा कर के बैठी हो, मै ऑफिस से आकर चाय पानी का इंतजार कर रहा हूँ और तुम यहाँ नाटक लगाई हो, चाय बनाओ। तभी उसकी माँ ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा – बहू की तबियत खराब है, उसे चक्कर आ रहा है, उससे उठा नहीं जा रहा, बोला नहीं जा रहा और तुम बोल रहे हो कि नाटक कर रही है।

तुम्हारे बाप को तो मै कुछ नहीं बोली, सब सह गईं परन्तु अपने बेटा को उनके जैसा नहीं बनने दूंगी। बहुत दिन से देख रही हूँ तुम्हारा बहू के प्रति ऐसा व्यवहार पर सोचा की खुद समझ जाओगे पर नहीं तुम भी एकदम अपने पापा की तरह बनते जा रहे हो, लेकिन मै अपनी बहू का अपमान  होते हुए नही देखूंगी।

माँ की बातो को सुनकर संजय को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और वह तुरंत अपनी पत्नी को लेकर अस्पताल गया। डॉक्टर ने चेकअप  के बाद कहा कोई खास दिक्कत नहीं है आपकी पत्नी थोड़ी कमजोर है इसलिए ऐसा हुआ। थोड़ा बी पी डाउन हो गया था।बहुत लोगो को ऐसे समय मे ऐसा होता है बस आगे से इनका ध्यान रखिएगा नहीं तो बच्चे के उपर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

बच्चा होने वाला है यह सुनकर सभी बहुत खुश हुए। संजय ने माँ और पत्नी से माफ़ी मांगते हुए कहा पता नहीं मै पापा को गलत कहते कहते कब पापा जैसा ही बन गया, पता ही नहीं चला । मैंने माँ के संस्कार को शर्मसार कर दिया,लेकिन आज मै आपसे वादा कर रहा हूँ कि मै अपनी पत्नी को बराबर का दर्जा दूंगा।

जिस तरह बचपन मे पापा के द्वारा माँ के  साथ किये गए गलत व्यवहार को देखकर मै पापा से मन ही मन नफ़रत करता था वैसा मै अपने लिए अपने बच्चो को नहीं करने दूंगा हम मर्द यह भूल जाते है कि यदि औरत अच्छे से घर नहीं संभाले तो मर्द  घर के बाहर जाकर चैन से काम नहीं कर सकता। उसके आँखो मे पश्चताप के आँसू देखकर और उसकी बातो को सुनकर दोनों सास बहू ने उसे माफ कर दिया।

ससुर जी माफ़ी तो नहीं मांगे पर संजय की बातो को सुनकर  उनमे भी बहुत सुधार हो गया। अब वे भी बिना बात अपनी पत्नी का अपमान नहीं करते थे। और बहुत हद तक अपना काम स्वयं करने की कोशिस करते थे। यही उनका प्रायश्चित था।

लेखिका : लतिका पल्लवी

शब्द –  “प्रायश्चित”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!