वो पराया अपना –  बालेश्वर गुप्ता

           अरे प्रवीण ये रमेश कई दिनों से कॉलेज नही आ रहा है,क्या हुआ है उसे,बीमार तो नही है।तुम्हारे घर के पास ही तो रहता है।कुछ पता है, उसके बारे मे—

      इतने सारे प्रश्न विक्रम ने एक ही सांस में अपने खास दोस्त रमेश के बारे में उसके पड़ौसी प्रवीण से पूछ लिये।

       विक्रम एक सम्पन्न घराने का और रमेश एक गरीब घर से संबंधित थे,पर दोनों में पता नही क्या चुम्बकीय आकर्षण पैदा हुआ कि दोनों दोस्त बन गये। विक्रम रमेश के आत्मसम्मान का पूरा ध्यान रखता था।उसका विशेष ध्यान रहता कि रमेश में उसकी संपन्नता के कारण कोई हीन भावना न आने पाये।विक्रम परेशान था कि रमेश के दिन से कालेज नही आ रहा था।

     प्रवीण बोला अरे तुझे पता नही ,रमेश अब कॉलेज नही आयेगा, उसके चाचा ने उसे अपने यहां काम करने को रख लिया है।उसके पिता उसकी फीस भरने में असमर्थ थे ,वो रमेश के चाचा यानि अपने सगे भाई से उसकी पढ़ाई के लिये मदद मांगने गये थे, उन्होंने पढ़ाई में मदद न करके रमेश को अपने यहां नौकरी का प्रस्ताव रख दिया।रमेश के पिता के पास अन्य कोई विकल्प ना होने के कारण उन्होंने अपने भाई का प्रस्ताव मान लिया।अब रमेश अपने चाचा का नौकर है।

     इसका मतलब तो यह हुआ प्रवीण कि अगले सप्ताह ही जो उसके PMT का परिणाम आना है और उसमें यदि वो सफल भी होता है तो भी वो कभी डॉक्टर की पढाई नही कर पायेगा।



     हाँ ये हकीकत है,चाचा की नौकरी करते हुए वो आगे कैसे पढ़ पायेगा।प्रवीण अफसोस जाहिर करते हुए वहां से चला गया।

      विक्रम एक गहरे सोच में डूब गया।वो रमेश के सुनहरे भविष्य को समाप्त होते देख रहा था।विक्रम को कोई भी उपाय सूझ ही नही रहा था,जिससे वह रमेश के भविष्य को बचा सके।अनमना सा विक्रम भी घर वापस आ जाता है।

     इसी उहापोह में एक सप्ताह गुजर गया।जो विक्रम और रमेश अपना अधिकतर समय एक साथ बिताते थे,वो आज एक दूसरे से अलग थे।आज ही पीएमटी का परिणाम आ गया।विक्रम तो खुशी से उछल पड़ा, रमेश का चयन हो गया था।विक्रम खुश था अब उसका दोस्त डॉक्टर बन जायेगा।

तभी उसे ध्यान आया कि वो तो नोकरी कर रहा है वो कैसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेगा?सोच कर विक्रम उदास हो गया, उसके चेहरे पर ही अवसाद के चिन्ह दिखायी देने लगे।कई दिनों तक विक्रम यूं ही बेतरतीब सा घर में पड़ा रहा।उसको इस हाल में देख विक्रम के पिता ने पूछा, क्या बात है विक्रम क्या तबियत खराब है?क्या हाल बना रखा है?बेटा कोई भी परेशानी हो तो बताओ,मैं दूर करूँगा।

     पिता से सहानुभूति पा विक्रम अपने पापा से लिपट गया और रोते रोते रमेश के अंधकारमय भविष्य के बारे में बताया।विक्रम बोला पापा रमेश क्या घरेलू नौकर ही बन कर रह जायेगा, क्या वो डॉक्टर नही बन पायेगा, उसका क्या कसूर है पापा?उसको इतनी बड़ी सजा भगवान ने क्यूँ दी?

      विक्रम के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए उसके पापा बोले, बेटा इंसान के लिये यदि एक रास्ता बंद होता है तो भगवान उसके लिये दूसरा रास्ता खोल देता है।तू चिंता मत कर विक्रम मैं हूँ ना ,तेरा दोस्त डॉक्टर जरूर बनेगा।सुन अकॉउंटेंट से पचास हजार रुपये लेकर रमेश के दाखले की प्रक्रिया शुरू कर,उसके लिये बैंक से शिक्षा लोन की अपनी जमानत पर व्यवस्था करता हूँ।



    यह सुनकर विक्रम के मानो पंख लग गये और वो दौड़ लिया रमेश के घर की ओर।रमेश के पिता से उसका पता लेकर विक्रम रमेश के पास पहुंच गया और उसे देख उसे खींचकर अपने सीने से लगा लिया।रमेश इतना बड़ा बोझ लिये यहाँ चला आया,एक बार भी अपना दर्द अपना दुख मुझसे साझा नही किया,पराया था ना।

     नही विक्रम नही,तू ही बता क्या कहता ?गरीब हूँ ना, देख चाचा तो अपने है उन्होंने कितना अहसान किया हम पर मुझे अपने यहां नौकरी दे दी।

    रमेश अब तू ये चाकरी नही करेगा, डॉक्टर बनेगा तू।मैं तुझे लेने आया हूँ,सब व्यवस्था हो गयी है यार।चल मेरे साथ।

       रमेश आश्चर्य से विक्रम को देख रहा था।आंखों में आँसुओ के साथ सोच रहा था रमेश, अपना कौन है, अपना चाचा या फिर पराया विक्रम??

       बालेश्वर गुप्ता

                 पुणे (महाराष्ट्र)

मौलिक,अप्रकाशित

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