मुझे एक बार झारखंड के चाईबासा शहर के पास एक छोटे से कस्बे में एक माइनिंग दफ्तर में जाने का अवसर मिला।
ट्रेन से उतरने के बाद दफ्तर जाने के 2 ही साधन थे, निजी वाहन या साइकिल रिक्शा। मैं बिना बताए ही आया था अतः मैंने साइकिल रिक्शा से ही जाना उचित समझा।
मैंने रिक्शा वाले से माइनिंग गेस्ट हाऊस चलने के लिए पूछा। वो बोला चलेंगे, फस्ट क्लास के 50 रु, सेकंड क्लास के 35 रु ओर थर्ड क्लास के 20 रु, बोलो किसमें चलना है?
मैंने बस / ट्रैन में फर्स्ट / सेकंड क्लास तो सुना था, पर ये रिक्शा में, कुछ समझ नहीं पाया, फिर भी बोल दिया, फर्स्ट क्लास में, ओर साथ मे ये भी पूछ लिया कि फर्स्ट क्लास , सेकंड क्लास में क्या फर्क है ?
रिक्शा वाला बोला, लगता है आप इधर पहली बार आये हैं, तो सुनो, माइनिंग गेस्ट हाउस जाने के दो रास्ते हैं। एक सड़क मार्ग है, जो काफी लंबा पड़ता है, ओर दूसरा शॉर्टकट जो खेतों से होकर गुजरता है।
फर्स्ट क्लास में हम सड़क मार्ग से जायेगे, टेप रिकॉर्डर पर गाने सुनाएंगे ओर बैटरी वाले पंखा की हवा भी देगें।
सेकंड क्लास में शॉर्टकट से खेतों के रास्ते से होकर जायेगे, पंखा, गाना सब बन्द रहेगा, रास्ते के गड्डों में अगर रिक्शा फस जायेगी,
तो आपको उतर कर धक्का लगाना होगा। मेरी उत्सुकता ओर बढ़ गई, मैंने पूछा कि थर्ड क्लास में क्या है? वो मुस्कुराया ओर बोला,
थर्ड क्लास में आप रिक्शा चलायेंगे ओर हम बैठेंगे। मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था, की अच्छा हुआ मैंने फस्ट क्लास बोल दिया था, वर्ना बेज्जती हो जाती।
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh )
स्वरचित, अप्रकाशित, मौलिक
6 May 25