तुझे सब है पता, है ना माँ! – सुषमा तिवारी

कोचिंग क्लास से लौटते समय वेदांत के कदम और भारी हो चले थे। जाने क्यों आज मन ही नहीं हो रहा था कि घर वापस लौटे। यूँ तो वह परिवार में घुल मिलकर रहने वाले बच्चों में से था पर आज क्लास में भी उसका मन कुछ खास नहीं लग रहा था। उसे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक से परिवार में सब लोग खासकर माँ हर समय उसे समझाते ही रहती थीं, सलाह देती रहती थीं, सही बुरे के बारे में बताती रहती थीं। एक तरफ तो वह खुद कहती थी अब तुम बड़े हो गए हो और दूसरी तरफ हर वक्त बच्चों की तरह टोका करतीं।

सत्रहवे साल में प्रवेश करते ही वेदांत को लगने लगा था कि जैसे उसकी फिक्र किसी को भी नहीं है और हर समय सब उसमें गलतियां ही खोजने में लगे रहते हैं। जहाँ उसके दोस्तों को हर चीज की आजादी थी वहाँ उसे सौ तरह के अनुशासन की लिस्ट पकड़ा दी गई थी। बुआ जी भी उस दिन कह रही थी वेदांत चिड़चिड़ा रहने लगा है काउंसलिंग करा दो। हद है!! मेरी काउंसलिंग क्यों होगी भला? वह लोग अपनी काउंसलिंग क्यों नहीं कराते? सब के सब एक साथ मेरे ऊपर भिड़ गए हैं।

मन ही मन बड़बड़ाते हुए वेदांत घर की ओर बढ़ने लगा। मोहल्ले में घुसते ही उसे विक्रम दिखाई दिया। हालाँकि बीते कुछ दिनों में हालातों के चलते दोस्तों से मिलना जुलना काफी कम हो चला था। विक्रम काफी घुमक्कड़ किस्म का लड़का था और माँ वैसे भी उससे कम मिलने जुलने की सलाह देती थी। पर आज तो जैसे भूत सवार था उनकी सलाह का उल्टा करने की तो विक्रम को देखते ही मुस्कुराते हुए वेदांत में हाथ हिलाया।

“क्या बात है वेदांत? आज तुम मुझे देखकर कन्नी काटकर नहीं गया?”

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, आज फुर्सत थी तो सोचा तुझ से बात कर लूँ।”

“तेरे लिए बुरा लगता है यार! तेरे हम उम्र के हम सब बच्चे कितनी ऐश करते हैं, अरे यही तो उम्र है खाओ पियो ऐश करो… वरना बढ़ती उम्र के साथ ही जिम्मेदारियों के बोझ तले दबना ही है अपने पैरंट्स की तरह, तो क्यों ना जिंदगी खुलकर जिया जाए और तुझे पता है मेरी मम्मी तो बड़ी कूल है पार्टीज करती हैं और मुझे पार्टीज करने की खुली छूट दे रखी है। “

“ऐसी बात नहीं है विक्रम! पार्टीज करने के लिए तो मेरे यहाँ भी कोई मनाही नहीं है, हमारे यहां हर महीने दो तीन फैमिली गेट टुगेदर हो ही जाते हैं और हम फैमिली पिकनिक पर भी जाते हैं, अब पिछले दिनों समय ऐसा था कि दोस्तों से मिलना जुलना कम ही रहा… करेंगे पार्टी अब।”

“अरे तो हाथ कंगन को आरसी क्या? इंतजार किस बात का? आज रात ही हम एक खास पार्टी में जा रहे हैं, बड़े-बड़े लोग आएंगे… पता है अभी सही अपनी पहचान बनानी बहुत जरूरी है आगे काम आएगी। वरना ताउम्र चप्पले घिसते रह जाओगे मिलना कुछ नहीं है।”




“ठीक है विक्रम मैं आ रहा हूँ। “

बिना सोचे वेदांत ने हामी भर दी। यह तो उसके मन का विद्रोह था जो उसके मुँह से बोल रहा था वरना माँ से पूछे बिना वह बर्थडे पार्टी में भी नहीं जाता था विक्रम की खास पार्टी तो बहुत दूर की बात थी।

एक हाई-फाईव देकर विक्रम अपने रास्ते को हो लिया।

“चल ठीक है! मैं तुझे रात को पिकअप करता हूँ, हॉर्न बजाऊंगा तो नीचे उतरना, तेरी गेट के पास ही रुकूँगा। ज्यादा टाइम मत लगाना और हाँ घर पर बोल देना हो सकता है हम सुबह लौटे।”

सुबह!! मन ही मन वेदांत बड़बड़ाता है। रात के दस बजे तक भी मुश्किल है। नहीं इस बार तो मैं अपनी मर्जी से जाकर रहूँगा, अगर कोई टोकेगा तो उसी बहाने अपने दिल की सारी भड़ास निकाल दूँगा।

वेदांत घर पहुँचा और बिना खाना खाए ही अपने कमरे में आराम करने चला गया। माँ सुरेखा उसे देख रही थी और उसकी ऐसी हालत उन्हें और परेशान कर रही थी लेकिन उन्होंने उससे बहस करना सही नहीं समझा। सुबह ही वेदांत के पापा नमन उसे समझा गए थे

“तुम ज्यादा सख्त हो रही हो वेदांत के साथ, थोड़ी नरमी के साथ पेश आओ। इस उम्र में बच्चे विद्रोही हो जाते हैं।”

पति की बात पर उन्होंने भी भी गंभीरता से कहा था

“विद्रोही भी हो जाते हैं या बहक भी जाते हैं, मेरा काम है उसे दिशा देना हाँ तरीका शायद कठोर है पर मैं सीख रही हूँ, कोशिश कर रही हूँ, ऐसे नहीं छोड़ सकती हूँ।बाहर माहौल आपको पता ही है मोहल्ले के लड़कों को देखा है? कभी-कभी मुझे डर लगता है।”

 

“डरने की कोई बात नहीं है सुरेखा! अपने संस्कारों पर भरोसा रखो। “

कहकर नमन ऑफिस चले गए थे।




शाम हुई तो सुरेखा ने देखा सज धज के नमन कमरे से बाहर निकला।

“कहाँ जा रहे हो?”

“मैं अनंत की बर्थडे पार्टी में जा रहा हूँ और हो सकता है देर हो जाए या फिर हम सारे दोस्तों का उसी के यहाँ नाइटआउट का प्लान बन जाए। अब मैं बच्चा तो नहीं हूं इसीलिए प्लीज मुझे कोई ज्ञान मत दीजिएगा।”

वेदांत के मुँह से ऐसी कठोर बात सुनकर सुरेखा का दिल तार-तार हो रहा था। उसे मन में आया कि वह वेदांत को साफ मना कर दे फिर खयाल आया कि वह कहीं और गुस्से में ना आ जाए। यह सोचते हुए सिर्फ सिर हिलाकर हामी भर दी।

“हाँ जाओ पर पहुँचते ही कॉल करो।”

सुरेखा निश्चित थी क्योंकि अनंत की माँ से सुरेखा की अच्छी दोस्ती थी और वह कॉल पर वेदांत का हाल ले सकती थी। हाँ रात भर घर से बाहर रुकना या उनके घर के नियमो के खिलाफ था पर आज वह विधान से कोई बहस नहीं करना चाहती थी।

वेदांत कुछ पल के लिए आश्चर्यचकित हुआ। माँ ने रोका क्यों नहीं? खैर! वह जानता था कि उसने झूठ बोला है और आज झूठ बोलते समय उसकी जबान भी नहीं कांपी। अनजाने में ही सही विक्रम का प्रभाव वायरस की तरह उस पर काबिज हो रहा था जिसका पता वेदांत को भी नहीं लग रहा था। गेट के बाहर जाकर वेदांत खड़ा हो गया कुछ देर बाद विक्रम गाड़ी से आया और वेदांत को खड़ा देख मुस्कुराने लगा।

 

 

“क्या बात है भाई? बड़े डेसपरेट हो रहे हो आज तो… हॉर्न बजाने की नौबत ही नहीं आने दी। चलो आ जाओ अच्छी बात है।”

गाड़ी में बैठते ही वेदांत ने देखा कि तीन-चार लड़के और हैं जिन्हें वो नहीं पहचानता था पर उनके चमकीले कपड़ों और परफ्यूम की तेज खुशबू कार के माहौल को कुछ अलग ही हवा दे रही थी। गाड़ी में तेज म्यूजिक के साथ ही थोड़े ही देर में माहौल बनने लगा था। विक्रम हवा की रफ्तार से गाड़ी चला रहा था। थोड़ी ही देर में वेदांत का जी घबराने लगा वह ऐसे माहौल का आदी नहीं था। हालांकि फिल्मों में दिखाए जाने वाली पार्टियां और तेज संगीत उसे बड़ा आकर्षित करते थे पर जाने क्यों उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। तभी उनमें से एक लड़का अपनी सीट से लगभग उछल पड़ा।

“अबे तुम लोग को पता है, क्या मैटर हो गया है? इतने बड़े स्टार का लड़का देखो नशे के कांड में पकड़ा गया है!!”




“क्या बात कर रहा है?” स्टार का नाम सुनते ही विक्रम भी गाड़ी की रफ्तार को धीमे करते हुए साइड में लगा कर पीछे की ओर मुखातिब हुआ।

“प.. पता है… हमारी पार्टी का ऑर्गेनाइजर भी यही बंदा है “

अब पसीने की कुछ बूंदे सबके चेहरे दिख रही थी।

” नहीं नहीं! हमें पार्टी में नहीं जाना चाहिए!”

उनमें से एक बोला।

“कितने डरपोक हो तुम लोग? एक पार्टी पर रेड बढ़ने से क्या शहर की सारी पार्टी बंद हो जाती है? फालतू बातें माहौल खराब नहीं करते हैं। चल कर देखते हैं। पार्टी कैंसिल होगी तो वापस आएंगे वरना ऐश करेंगे। “

 

कहकर विक्रम ने गाड़ी स्टार्ट की।

“नहीं!! मुझे वापस घर छोड़ दो”

वेदांत ने कहा।

“अब यह कौन सी बात हुई वेदांत? तू खामखा डर रहा है। “

“जो भी हो… मेरी तबीयत कुछ सही नहीं लग रही है, तुम प्लीज मुझे घर छोड़ दो।”

विक्रम ने सोचा कि वैसे ही माहौल सही नहीं है वेदांत के चलते कहीं पार्टी में कोई गड़बड़ ना हो जाए। उसने गाड़ी की दिशा बदल दी और वेदांत को उसके घर छोड़ दिया।

माँ ने देखा वेदांत तेजी से आया और अपने कमरे में चला गया। वह सोच रही थी कि ऐसा क्या हो गया यह पार्टी में नहीं गया? पर शाम को लिए गए अपने निर्णय के चलते उन्होंने उसे नहीं कारण नहीं पूछा। मोबाइल पर समाचार एप्प पर आ रही न्यूज़ वेदांत को कानों में हथौड़े की तरह लग रही थी। धड़कन कई गुना बढ़ चुकी थी। यह वह क्या करने जा रहा था? आज एक बड़ी मुसीबत को न्योता दे रहा था। उन्हीं लोगों में शामिल हो जाता जिनसे दूर रहने की सलाह सुनते हुए और बड़ा हुआ था। वेदांत की मन:स्थिति बहुत बुरी थी। उसे मन हो रहा था कि वह चीख कर रोये या माँ से जाकर लिपट जाए और माफी मांगे। पर ऐसी हालत में उसे सब बताना पड़ता है.. हालाँकि वह सब बताना भी चाहता था। वेदांत ने देखा सोशल मीडिया पर लगातार उस एक्टर को लोग भला-बुरा कह रहे थे कि उसने अपने बच्चे की परवरिश सही ढंग से नहीं की… उसे संस्कार नहीं दिए…तरह तरह से लोग उस लड़के के मां-बाप को कोस रहे थे। वेदांत की आंखों में आंसू भर आए। उसे उसी पल उस लड़के के मां-बाप से सहानुभूति होने लगी। इनकी क्या गलती है? हो सकता है वह लड़का भी मेरी ही तरह अपने मन की करने निकला हो!! पता नहीं… जो भी हो मैं गलत था और माँ हमेशा सही।




अपने कमरे से निकलकर वेदांत माँ के कमरे में आया।

“माँ! डिनर में कुछ बचा है?”

“नहीं बेटा! तुमने ही कहा था तुम पार्टी में जा रहे हो.. पर भूख लगी है तो मैं तुम्हारे लिए तुरंत पोहे बना देती हूँ… तुम्हें पसंद है ना!”

अक्सर वेदांत माँ से डिनर में पोहे मांगता पर वह यह कहकर टाल देती कि यह तो नाश्ते की डिश है।

वेदांत मुस्कुरा उठा।

खाने की प्लेट पर झुके हुए गरम-गरम आंसू अनायास ही उसकी आंखों से लुढ़क पड़े।

“वेदांत! क्या हुआ? कुछ कहना चाहते हो?”

” माँ! आपने न्यूज़ सुनी?”

“हाँ बेटा! सुनी, बड़ा दुख हुआ मुझे उस लड़के के लिए, बेचारे की उम्र ही क्या है? इसी उम्र में कानूनी पंचड़ो में फंस कर मानसिक सुकून मिट्टी में मिल जाएगा। जाने कब तक उसके दिल पर यह दंश रह जाएगा। बचपन में ऐसे अनुभव नहीं होने चाहिए।”

“माँ! आपको ऐसे बुरे लड़के से कैसे हमदर्दी हो सकती है? अच्छा हुआ ना उसके साथ जो अपने मम्मी पापा की बात नहीं सुनता होगा। आज परिणाम भुगत रहा है।”

“ऐसा नहीं है वेदांत हर बच्चे से गलती हो जाती है और ये उम्र ही ऐसी है आपको अच्छी बातें भी बुरी लग सकती हैं। मुझे उस बच्चे से और उनके माँ बाप से सहानुभूति है, कोई अपने बच्चों को परेशानी में नहीं देख सकता है बेटा। खुद अगर गलत कामों में फंसे हो तो भी हर कोई अपने बच्चे के लिए बेहतर भविष्य ही चाहता है ताकि वो ये सब ना करे। मोह की डोर है बेटा! थोड़ा अनुशासन कुम्हार की तरह है जो जीवन को सही रूप देता है.. या तुम्हारी भाषा में जीपीएस समझ लो, भटकने से बचाता है।”

 

 

वेदांत अचानक माँ से लिपट गया,

“मुझे माफ़ कर दो माँ… मैं जानता हूँ आप मेरा भला ही सोचते हो.. मुझे ढेर सारी बातें करनी है आपसे.. ढेर सारी”

“हाँ करेंगे ना बेटा! पर अभी रात गहरी हो चली है.. एक काम करो तुम्हें चाहिए तो आज हमारे कमरे में सो सकते हो…कल आराम से बात करेंगे।”

वेदांत को लगा जैसे किसी गहरे अंधेरे कुऍं में गिरने से अचानक माँ ने हाथ पकड़ थाम लिया और गिरने से बचा लिया।

-सुषमा तिवारी

दोस्तों थोड़ा सा अनुशासन, ढेर सारा प्यार! हमारा अंश हमे समझेगा यह समझना ज़रूरी है। भरोसा खुद पर रखना होगा।

 

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