सुनैना को लगा कब तक तिरस्कर, अपमान और बेज्जती, सहन करनी पड़ेगी!— आखिर मेरा कसूर क्या है? मैंने अपने बच्चे को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया और इतने संघर्ष के बाद भी उसकी पसंद की शादी की जब तक पति जिंदा थे अपने बेटे आकाश को अच्छी परवरिश दी बेटे की नौकरी भी अच्छी लग गई इंजीनियर बन गया। लेकिन——- बेटे को शादी अपनी पसंद की लड़की स्नेहा से ही करनी थी! इस कारण शादी करने में देरी हुयी।
आकाश की छोटी बहन वर्षा आकाश से 3 साल छोटी थी उसकी पढ़ाई भी पूरी हो गई थी!— और बैंक में उसका सिलेक्शन भी हो जाता है, इस कारण घर में सब उसके लिए लड़का भी ढूंढने लगते हैं——- देखते देखते वर्षा की शादी भी इंजीनियर लड़के से कर देते हैं!
वर्षा और उसका पति वैभव दोनों ही सुंदर थे और वैभव के परिवार में सभी लोग वर्षा को बहुत चाहते थे!—- उनकी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी पर, एक दिन—– अचानक ज्यादा तबीयत खराब होने के कारण—– अमर को हार्ट अटैक हो जाता है! और वह सबका साथ छोड़कर चले गए।
अब सुनैना के लिए बहुत ही कठिनाई का समय था! लेकिन उसकी नौकरी सरकारी थी इस कारण उसने भी हिम्मत नहीं हारी और—– अपने बच्चे की शादी के लिए प्रयास किया बेटे आकाश को जो लड़की स्नेहा पसंद थी उसी लड़की से किसी तरह शादी की और अपनी नौकरी में व्यस्त हो गई। देखते-देखते सुनैना रिटायर्ड हो गई। इतने साल कब निकल गए पता ही नहीं चला अब उम्र के हिसाब से अकेले रहना ठीक नहीं—- इसलिए बेटे ने भी निर्णय किया अब तो आप हमारे पास ही रहोगी।
समय बीतता गया रिटायरमेंट के बाद—- सुनैना बड़ी खुश थी और अपने बेटे और बहू के साथ-साथ अपनी छोटी सी पोती आस्था के साथ उसका समय अच्छा व्यतीत होने लगा!—– लेकिन सुनैना कभी भी खाली नहीं बैठती थी घर के कामों में भी उसे बहुत अच्छा लगता, घर के काम वैसे काम वाली मेड करती थी, फिर भी वह कुछ ना कुछ काम करती रहती, साथ ही पेंटिंग और कहानी का भी उसे बहुत शौक था उसके बाद जो समय बचता अपनी पोती आस्था के साथ व्यतीत करती लेकिन शायद भगवान को—- यह भी मंजूर नहीं था।
सुनैना ने देखा कि—– धीरे-धीरे उसकी बहू का व्यवहार बदलता जा रहा है। जब भी वह अपनी बहू से बात करना चाहती तो—- बहू मुंह फेर कर खड़ी हो जाती बहू और बेटे कहीं घूमने का प्लान बनाते! और जाते समय बेटा तो मां से बोल देता—– हम घूमने जा रहे हैं!—-
बहू मां की तरफ देखती भी नहीं और पीठ करके चल देती! यह सब देखकर सुनैना—- बहुत दुःखी रहने लगी! सुनैना ने यह सब रवैया देखकर मन ही मन अपनी जिंदगी का रास्ता सोच लिया और मन में बोली “अब और रतिरस्कार नहीं” जब बेटा आकाश बहु स्नेहा से कहता मां को भी घुमाने ले चलेंगे तो बहू बोल देती कि मुझे नहीं जाना! आप अकेले ले जाओ यह देखकर बेटा भी निराश हो जाता।
अपनी बहू के ऐसे व्यवहार से सुनैना बहुत दुःखी रहने लगी और तो और—– जब सुनैना बीमार हो जाती तो अपने कमरे में लेटी लेटी सोचती कि— बेटा तो मुझसे हाल-चाल पूछ लेता है!— मेरी सेवा भी कर देता है, लेकिन बहू कभी सुनैना से—–
तबीयत का नहीं पूछती ऐसा लगता कि जैसे पड़ोस में—- मैं रह रही हूं! मेरी पोती आस्था को भी कभी-कभी मेरे पास नहीं आने देती इससे मुझे बहुत दिमागी परेशानी रहने लगी——- और ऐसा लगने लगा जैसे मैं अपने बेटे की सगी मां नहीं हूं! कोई पड़ोसन हूं! जिसका बिल्कुल “तिरस्कार कर दिया गया हो”! ना कोई उसकी इज्जत है, ना मान सम्मान, बेटा यह सब देखकर बहुत दुःखी रहने लगा! और उसको कई बीमारी लग गईं क्योंकि उसे अपनी मां की चिंता लगती थी पर गृह क्लेश के कारण कुछ कर नहीं पाता था!
एक दिन सुनैना सुबह उठी और—– किचन में चाय बनाने लगी बहू ने उसको देखा तो मुंह फेर कर वापस चली गई जैसे कोई अपशगुनी को देख लिया हो!—– यह देखकर सुनैना को बहुत फील हुआ और उसने बहु को बेटे से कहते हुए सुना कि– अगर मां को कहीं घुमाने ले जाओगे तो मैं नहीं जाऊंगी! उनसे कहो वह— कमरे में ही रहें ना उनसे हंसो, ना बोलो, सुनैना बीमार हो जाती तो बेटा अगर डॉक्टर को दिखाने ले जाता तो—- बहू लड़ने को तैयार हो जाती मां को—— डॉक्टर के पास छोड़ कर आजाओ वह अकेली दिखा आएंगी उन्हें ना कोई डॉक्टर को दिखाओ, ना कभी उनसे कुछ पूछो! बस ऐसे ही अकेले सुनैना के दिन निकलने लगे! और उसे लगा में सबके साथ होते हुए भी—- बिल्कुल अकेली हूं! यह बहू है या दुष्ट औरत! जिसको मैंने सबसे लड़ाई झगड़ा करके अपने बेटे की पसंद का ध्यान रखते हुए शादी की थी। जबकि बहू के पिताजी तैयार नहीं थे। सुनैना को मन ही मन पछतावा होने लगा इससे तो सब की बात मान जाती और इस लड़की से अपने बेटे की शादी नहीं करती बस तभी से सुनैना ने एक फैसला लिया।
दूसरे दिन सुनैना आकाश से बोली बेटा—– अब बहुत हुआ! मैं तुम्हें खुश देखना चाहती हूं! तुमने बहू का—ऐसा व्यवहार देखा न—- कहने की और बताने की जरूरत अब नहीं है!—- हां मां— मैंने देखा! इसीलिए मैं आपकी चिंता कर रहा हूं, कि आपको कुछ ना हो जाए, नहीं मैंने फैसला कर लिया है! मैं जा रही हूं “तिरस्कार कब तक” सहन करूंगी जहां मैं नौकरी करती थी वहां पर एक छोटा सा अपना मकान है—- मैं वापस उसी में चली जाती हूं! कभी-कभी मिलने आ जाया करूंगी क्योंकि मैं अपनी पोती को बहुत चाहती हूं! दूसरे दिन मां को बेटा ट्रेन से जाने के लिए रेलवे स्टेशन छोड़ने जाता है, और पोती रोती रह जाती है! दादी मत जाओ! लेकिन बहू एक शब्द नहीं बोलती जाते-जाते भी मां को नहीं रोकती!— जो अकेली मां के संग ऐसा व्यवहार करता है “पत्थर दिल” ही होता है सुनैना– अपनी आंखों में आंसू लिए चुपचाप अपनी पोती को प्यार कर चल देती है।
इसीलिए कहते हैं की बहू को सास—– कितना भी चाहे लेकिन बहू अपने पति की मां से—- बिल्कुल प्यार नहीं करती और उसे दूसरा समझ कर उनसे ऐसा व्यवहार करती है ताकि वह अपना घर छोड़ कर ही चली जाऐं यह कभी नहीं सोचती कि मां अकेली कैसे रहेंगी।
सुनीता माथुर
मौलिक अप्रकाशित रचना