(भाग्य खराब होना)
सीता सब्जी खरीद रही थी, अचानक से उनके सर पे किसी ने मारा, सीता जोर से बोली कौन है,पागल अरे—–तू—— , सिम्मी ,कैसी है तू? सिम्मी ने बोला,तुम खुद ही देख लो,, एकदम मस्त हूँ?। सीता तुमने क्या हाल बना रखा है अपना? कुछ ठीक नही लग रही तुम ,क्या हुआ?सब ठीक तो है ना?सीता ने बोला ,ठीक हूँ बस जिन्दगी परीक्षा ले रही है, सीता, पहेलियां मत सुनाओ, बताओ भी क्या हुआ है?
सिम्मी ने बोला मेरी तो” तकदीर ही फुट गयी है”रोहन सात महीने से बिस्तर पर है, सारा घर ,बाहर का काम , हमको ही देखना पड़ रहा है।ऑफिस में भी बहुत काम रहता है, ऊपर से सास ससुर भी सर पे सवार है मेरे । ऊफ़्फ़फ़—जाने दो लेकिन मैडम सिम्मी आपको देख के मन खुश हो गया। तुम पहले जैसी ही स्मार्ट लग रही हो, औऱ तो औऱ जिंस टॉप में और भी कमाल लग रही हो।
सिम्मी ने बोला। हा मैं तो पूरा टाइम अपने आपको देती हूँ तो स्मार्ट तो दिखूंगी ही। सीता ने बोला बस औऱ बताओ, तुम्हारी जिंगदी कैसी चल रही है, मैं तो खूब घूमती हूँ, मस्ती करती हूँ। एक छोटी सी जॉब करती हूं बस।। सीता ने बोला तेरी फैमिली मैं कौन कौन है?
कोई नही है मैडम, कोरोना सबको ले गया।।।।।
सीता ये सुन के बोली,, सबको? क्या मतलब है तुम्हारा? सिम्मी ने बोला मतलब , पति , दोनो बच्चे सास ससुर , सब को ।।।सिम्मी औऱ सीता दोनो की आँखों में ऑसू थे। तभी सिम्मी का कॉल आ गया। सिम्मी ने सीता को अपना फोन नंबर दिया औऱ बोली चलती हूँ कुछ ऑफिस का कुछ जरूरी काम आ गया है।
और हा मेरी प्यारी सीता तुम “बहुत तकदीर वाली हो “तुम्हारे पास अपना परिवार है, जीने का मकसद है। बस थोड़ा जिंदगी को देखने का नजरिया बदलो। वैसे भी किसी पड़ोसी के लिये मेहनत नही करती तुम , अपने पति ,बच्चों के लिए करती हो समझी । खुश हो के रोहन की सेवा करोगी तो जल्दी ठीक हो जायेगे । थोड़ा अच्छे से तैयार हो के रहा करो । खुब एन्जॉय करो लाइफ में पता नही कब कौन साथ छोड़ जाय।इतना बोल सिम्मी निकल गयी।
फिर क्या था,सीता सब्जी का थैला ले के भागी अपने घर । घर पहुँच अपने रोहन को गले लगाया।मानो कई महीनों बाद मिली हो, सबके लिये तरह तरह का पकवान बनाया,सासु माँ ने बोला कुछ हैं क्या बहू आज? सीता ने बोला माँ जी मैंने सोचा आज पार्टी की जाए। बहुत खुश हूँ मैं ,पूरा परिवार ठहाका मार हँसने लगा।सीता बहुत खुश थी आज।
“जो है आपके पास उसमें खुश रहिये। “भाग्य किसी का खराब नही होता ” बस देखने का नजरिया सही होना चाहिए ।
रंजीता पाण्डेय