रूपा और उसकी सहेली को ऑफिस के काम से दूसरे शहर जाना था इसलिए उन्होंने अपनी सहूलियत के हिसाब से अपनी ही कार को माध्यम चुना सुबह जल्दी निकल पड़ी क्योंकि दोपहर तक पहुँचना जरूरी और रास्ता चार पाँच घन्टे का लगभग तीन घंटे का रास्ता तय कर चाय पीने की ललक ने एक चाय स्टॉल के आगे उनको रूकवा दिया ।
रूपा ने देखा एक महिला चाय बना रही उसने चाय का ऑडर दिया और चाय स्टॉल के आगे बने सुन्दर बगीचे फूल पौधों को निहारने लगी । रूपा ने उस महिला से हल्की फुल्की बातचीत शुरू कर दी कितना कमा लेती हो, बाल बच्चों की जानकारी वगैरा। महिला बताती है बस दीदी क्या बताये कितना कमा लेते हैं ? रूखी सूखी मिल ही जाती है।
जब से शादी हुई किस्मत ही साथ नहीं देती अपनी, किस्मत में तो ‘तक़दीर फूटना’ ही लिखा है। रूपा बोली अरे ऐसा क्यों बोलती हो, तक़दीर फूटना ऐसा कुछ नहीं होता इंसान की मेहनत ही रंग लाती है। बताओं तुमको परेशानी क्या है ? महिला बोली अपना मर्द मजदूरी करता बड़ी मेहनत से मकान बनाया सामान जोड़ा एक दिन आग लग गई सारा जुड़ा जुड़ाया नष्ट हो गया।
इतना ही नहीं मर्द का मजदूरी करते वक्त पैर भी टूट गया अब हम भी क्या कर सकत ये चाय दुकान लगा ली इसी से घर चल जात है मर्द का इलाज दवा सभी करना तो देर रात तक चाय बेचते कभी अच्छी बिक्री हो जाती दो बच्चे वो देखिए सामने खेल रहे महिला हाथ के इशारे से दिखाती है। रूपा ने देखा चार पांच की उम्र के लड़का लड़की मिट्टी में लोट रहे।
रूपा महिला का कहती हैं देखों तुम चाहो तो तुम्हारी अतिरिक्त कमाई हो सकती है। ये जो फूल तुमने लगाये इसके बीज एकत्र कर पौधे उगाकर नर्सरी बना लो छोटे गमलों या प्लास्टिक में पैकिंग कर बेचना शुरू कर दो, साथ ही फूलों के गुलदस्ते बना बेच सकती हो । महिला को बात समझ आ जाती है कहती हैं दीदी पूरी कोशिश करेगी।
रूपा की सहेली उसे कहती बेकार दिमाग खपाती रहती हो ये महिला कुछ नहीं करने वाली । एक साल बाद दुबारा रूपा उसकी मित्र उसी रास्ते से गुजरते चाय पीने वहीं रूकते हैं। देखते है टिन तप्पड़ दुकान की जगह मजबूत दुकान बन गई और साथ ही किनारे रंग बिरंगे फूलों की नर्सरी जहां फूलों के गुलदस्ते भी बिक रहे लेने वालों की भीड़ है ।
तभी चाय बनाती महिला की नजर रूपा पर ज्यों ही पड़ी वो दौड़ती आई नमस्ते दीदी अब तो उसके रंग ढंग बदल गये थे पहचानी ही नहीं जा रही।रूपा बोली और कैसी हो ? तक़दीर फूट रही या नहीं महिला लज्जित हो बोलती है आपने सही कहा था ये तक़दीर फूटना कुछ नहीं होता अपने कर्म से तक़दीर बदली जा सकती है । दीदी बच्चे स्कूल जाने लगे हैं मर्द का पैर काफी ठीक हो गया
नर्सरी की देखभाल वही करता यहां जो भी चाय पीने रूकते फूल के गुलदस्ते पौधे भी खरीद लेते काम बहुत अच्छा चल रहा है। रूपा अपनी सहेली की तरफ प्रश्न भरी नजरों से देखती है। सहेली झेंपते हुए कहती है मैं तो हर जगह फेल हो जाती हूँ मेरी तो किस्मत में तक़दीर फूटना ही लिखा है। रूपा मुस्कुराये बिना नहीं रह पाती ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
तक़दीर फूटना
मुहावरा लघुकथा