स्वार्थी संसार… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

खटाल के भीतर और बाहर कई लोग जमा थे… किशोरी लाल बारी बारी से गाय भैंसों का दूध निकाल रहा था… और सब में बांटता जा रहा था… उसके पास ही खड़ा उसका बेटा बबलू… हर आने जाने वाले को ललचायी आंखों से देखता रहता…

 किशोरी लाल जब तक डब्बा भरता वह लड़का नजर गड़ाए वहीं खड़ा रहता… भीतर से उसकी मां एक दो बार हांक भी लगाती, लेकिन वह लड़का अनसुना कर जाता…

 यह उसका रोज का हो गया था… बाप दूध बांटता और लड़का नजर गड़ाए दूध की धार गिनता रहता था… संपत लाल ड्यौढ़ी में खटिया लगाए लेटे रहते… सुबह शाम खटाल में आने वाले लोगों से राम-राम करते… बबलू के दादा संपत लाल भी उसे बुलाकर अपने पास बिठा लेते… लेकिन वह फिर जाकर वहीं लग जाता था…

 अच्छा खासा दूध का व्यापार था किशोरी लाल का… संपत लाल के दोनों बेटे पक्का व्यापारी थे… अपने काम में उस्ताद… बड़ा बेटा किशोरी लाल दूध का व्यापार कर रहा था… तो छोटा बंसीलाल राशन की दुकान चला रहा था… दोनों का व्यवसाय संपत लाल ने ही खड़ा किया था…

 खुद तो सरकारी नौकर थे… साठ साल में रिटायर हुए… लेकिन बच्चों का भविष्य नहीं बन पाया था… दो बेटियां थीं उनका कन्यादान अच्छे घरों में हो गया था… लेकिन बेटों की नाव अटकी हुई थी…

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 संपत लाल ने बेटों की रुचि का ध्यान रखते हुए… एक को दूध के कारोबार में… तो दूसरे को दुकानदारी में लगा दिया… स्वयं इतनी पेंशन मिली जाती थी, जिसमें घर चल सके…

 धीरे-धीरे बेटों का ब्याह हुआ… उनके भी बेटे हुए… अब केवल संपत लाल के पेंशन से घर का गुजारा मुश्किल हो गया था… लेकिन बेटे अपनी कमाई की एक पाई भी घर में नहीं लगाते थे…

 जब तक संपत लाल की पत्नी जिंदा थी… तब तक तो लक्ष्मी बेटों से कुछ ना कुछ मांग लेती… बेटे उसे ना नहीं करते… एक गाय भी अलग से घर के लिए थी… जिसका दूध बच्चों और घर के काम आ जाता था… लेकिन संपत लाल की पत्नी लक्ष्मी और गाय दोनों ने साथ ही दुनिया छोड़ दिया…

 लक्ष्मी के जाने के बाद से, बेटों ने बिल्कुल ही घर खर्चे से किनारा कर लिया… गाय चली गई तो घर में दूध आना भी बंद हो गया…

 किशोरी लाल अपनी गाय भैंसों का एक बूंद दूध, घर में देकर जाया नहीं करता था… संपत लाल तो कभी कुछ नहीं कहता, हां बबलू की मां जरूर कहती कि घर में थोड़ा दूध दे दे… इसका सीधा जवाब था किशोरी लाल के पास…

” बंसीलाल ने आज तक मुफ्त में चावल का एक दाना दिया है घर में…जब राशन का सारा सामान नगद गिन कर लिया जाता है, तो दूध के भी पैसे मिलेंगे तब घर में दूंगा…!”

” लेकिन घर तो आपका है… बबलू को दूध से कितना प्यार है… आप नहीं जानते क्या… अपने बच्चों की खातिर तो थोड़ा दूध दे दो…!”

” बबलू की मां… घर खर्चे में से अगर मुझे दूध के पैसे मिलेंगे तभी मैं दूध दे पाऊंगा… वरना फालतू दूध बांटने के लिए मेरे पास नहीं है… इतना ही मन है तो बोलो ना अपने ससुर जी को… पूरा पेंशन तो घर में लगा नहीं रहे… इतना तो मुझे भी पता है कि कुछ पैसा बचा कर अपने पास रखते हैं… बोलो उसमें से मुझे दूध के पैसे दे दें तो मैं दूध दे दूंगा…!”

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 संपत लाल अपने बेटे की मंशा अच्छे से जान रहे थे… मगर बीस हजार की पेंशन में से पंद्रह घर में देने के बाद जो पांच हजार वे हाथ में रखते, बेटे की नजर उसी पर है यह बात जानकर उन्हें बहुत दुख होता था … मगर उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था…

एक शाम किशोरी लाल दूध बांट चुका था… बबलू दादा के पास खाट पर बैठा बैठा गाय भैंसों को ताड़ रहा था… बंसीलाल भी अपनी दुकान बंद कर घर आ चुका था… संपत लाल ने अपने बेटों को आवाज लगाई… दोनों बाहर खटिया के अगल-बगल खड़े हो गए… संपत लाल ने बेटों से कहा…

” … अब तुम दोनों का व्यापार अच्छे से जम गया है… इसलिए मैं सोचता हूं कि अब तुम दोनों का बंटवारा कर दूं…!”

 दोनों सकते में आ गए…” नहीं पापा… इसकी क्या जरूरत है…!” दोनों साथ में बोल पड़े…

 बहुएं भी घर से निकल आईं…” ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी… बंटवारे का क्या काम… कितने प्यार से हम लोग रहते हैं…!”

 संपत लाल चुप हो गए… फिर आवाज तेज कर बोले…” देखो बच्चों… इस स्वार्थी संसार में पैसा ही सब कुछ है… और मैं जानता हूं अब तुम दोनों अपना घर चलाने लायक कमाने लगे हो… इसलिए अपने-अपने परिवार का पालन करो… इसके लिए जरूरी है कि तुम्हारा बंटवारा कर दिया जाए…!”

 लड़कों को लगा कि अब तो बंटवारा होकर ही रहेगा तो किशोरी लाल बोला…” ठीक है पिताजी… लेकिन आपकी पेंशन का भी तब बंटवारा होगा…!”

 संपत लाल गुस्से से लाल हो गए… बेटे को तीखे स्वर में कहा…” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई… ऐसा कहने की… मेरी पेंशन का कोई बंटवारा नहीं होगा…मैं अब अपनी पेंशन का एक पैसा तुम लोगों को नहीं दूंगा… अब तुम लोग अपना अपना घर चलाओ… मैं एक महीने एक महीने करके तुम दोनों के साथ रहूंगा… और जब जहां मुझे जरूरत समझ में आएगी… अपनी पेंशन का इस्तेमाल करूंगा…!”

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 पिता के बदले हुए सुर देखकर दोनों लड़के शांत हो गए… आखिर उनका सब कुछ तो पिता का जमाया हुआ ही था… कुछ ही दिनों में घर में चूल्हे बंट गए…

 अब दोनों घरों में पिताजी को खुश रखने की होड़ रहती… जिससे उनका पैसा उन्हें मिले…

 बेचारे बबलू को भी अब दूध के लिए गाय भैंसों का मुंह नहीं देखना पड़ता… किशोरी लाल के घर में दूध, दही, पनीर, मक्खन की अब कभी कमी नहीं रहती… इसलिए कहते हैं इस स्वार्थी संसार में इंसान को स्वार्थी बनना ही पड़ता है… वरना अपने ही लोग आपके सीधेपन का फायदा उठाते रहेंगे…

रश्मि झा मिश्रा

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