अवस्थी जी एक स्कूल में प्रिंसिपल थे। ईश्वर की कृपा से सभ कुछ तो था उनके पास। वे सज्जन पुरुष थे सभी उनका सम्मान भी बहुत करते थे। बस कमी थी तो एक संतान की।
जिसके लिए उन्होंने ईश्वर का कोई दर नहीं छोड़ा था। लेकिन भगवान ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी। उन्होंने इसे ईश्वर की मर्जी मानकर स्वीकार कर लिया। अवस्थी जी के एक भाई और थे। उन्होंने अपने मन को भी समझाया और अपनी पत्नी को भी दिलासा देते रहते, कि उनके बच्चे भी तो हमारे ही बच्चे हैं।
दोनों अपनी ममता और प्यार अपने भतीजा-भतीजी पर लुटाने लगे। अवस्थी जी ने अपने छोटे भाई के दोनों बच्चों को पढाने की जिम्मेदारी अपने आप ले ली।
क्योंकि उनका छोटा भाई आर्थिक रूप से कमजोर था। राधा उनके घर में काफी समय से काम करने आती थी। वह अपनी बेटी सलोनी को भी साथ ले आती। संगीता जी को सलोनी पर बहुत प्यार आता था। उन्होंने एक दिन राधा से पूछा तू इसे रोज यहाँ क्यों ले आती है। इसकी तो स्कूल जाने की उम्र है। अरे आंटी जी इसकी पढ़ाई का खर्चा उठाऊँ या फिर इसका पेट भरूँ।
संगीता जी ने राधा से कहा तू इसे स्कूल भेज। इसकी पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊँगी। ठीक है आंटी जी। ऐसी बात है तो मैं कल ही इसे स्कूल भेजने का इंतजाम करती हूँ। संगीता जी ने अवस्थी जी से बताया। वे बोले बहुत अच्छी बात है संगीता अगर हम किसी का जीवन संवार सकें। और हमें करना ही क्या है।
भाई, मैं तेरी तरह स्वार्थी नहीं हूं। – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi
अब उनका भतीजा डॉक्टर बन गया था। भतीजी की शादी हो गई थी जिसमें उन्होंने खुले हाथ से पैसे खर्च किए थे। अपना फायदा देख उनका भाई और उनके बच्चे उनके आगे पीछे घूमते।
एक महीने पहले उनका रिटायरमेंट हुआ था। अब वे सारा दिन घर पर रहते। और संगीता जी के साथ समय बिताते। संगीता जी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। ना ही बाहर के कामों में ज्यादा रुचि लेती थी। पर अब अवस्थी जी का स्वास्थ्य गिरने लगा था। भविष्य के बारे में सोचकर वे संगीता जी को बैंकों के बारे में अपनी प्रॉपर्टी के बारे में बताते।
वे ज्यादा रुचि नहीं लेती थी। संगीता समझो इन सब चीजों को। कल को अगर मुझे कुछ हो गया तो तुम कैसे करोगी। यह सब सोचकर अवस्थी जी अपनी पत्नी के लिए परेशान रहते। क्यों कि उन्हें अपने भाई भतीजे से भी कोई उम्मीद नहीं थी। भाई और उनके बच्चे अब अपना स्वार्थ सिद्ध होते ही अवस्थी जी को पूछते भी नहीं थे। जो जब उनसे पैसों की जरूरत थी उनके आगे पीछे घूमते थे।
एक दिन अवस्थी जी को दिल का दौरा पड़ा। और उन्होंने हमेशा के लिए आंखें बंद कर ली। संगीता जी का रो-रोकर बुरा हाल था। उन्हें तो कोई सहारा ही नजर नहीं आ रहा था।
उन्होंने अपने देवर को फोन करके बताया। उनकी देवरानी ने आने से पहले ही अपने पति से कह दिया, खबरदार अगर उन्हें यहाँ लाने की बात की तो। मेरे बस का किसी की तीमारदारी करना नहीं है बुढ़ापे में। भतीजा भी अपने आप में व्यस्त था। जबरदस्ती आया। जब उसके पापा ने कहा कि समाज क्या कहेगा। अंतिम संस्कार करने के लिए आजा।
तेरह दिन का समय उन लोगों ने संगीता जी के साथ बड़ी मुश्किल से पूरा किया। तेरहवीं की रस्म होते ही दिखावटी आंसू दिखाकर देवर ने अपनी भाभी को दिलासा दी। चिंता ना करें। हम आते-जाते रहेंगे। लेकिन दो महीने हो गए। आने की बात तो दूर किसी का फोन तक नहीं आया। संगीता जी एक दिन बैंक गई। घर में रखे पैसे भी खत्म होने को आए थे। वहां पर कई लोगों से उन्होंने पैसे निकालने का फॉर्म भरने के लिए कहा। लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा था।
तभी बैंक में काम करने वाली सलोनी की नजर उन पर पड़ी। वह उन्हें पहचान कर उनके पास आई। आप संगीता आंटी है ना। हां बेटा लेकिन तुम…। मैं सलोनी। आपके कारण में आज यहां नौकरी कर पाई हूंँ। नहीं तो शायद मैं भी घरों में झाड़ू बर्तन ही कर रही होती। संगीता जी उसे देखकर बहुत खुश हुई।
सलोनी ने संगीता जी से उनके बारे में पूछा। तो उन्होंने उसे सारी बात बताई। आंटी मैं आपको अकेले नहीं रहने दूंँगी। इस उम्र में आपको किसी के साथ की जरूरत है। संगीता जी ने कहा बेटा तुमने इतना सोचा यही बहुत है। नहीं तो मेरा तो इस स्वार्थी संसार से विश्वास ही उठ गया था।
नहीं आंटी मैंने सोचा ही नहीं करके भी दिखाऊँगी। मैं अपनी मां राधा के साथ-साथ आपकी भी सेवा करूँगी। एक ने मुझे जीवन दिया है तो दूसरी ने इस जीवन को संवारा है।
नीलम शर्मा