मिस्टर दास और जया अपने घर के लौन में आराम से चाय पी रहे थे कि तभी दीप्ति ने राजेश के साथ घर में प्रवेश किया। दीप्ति की भरी हुई मांग को देखकर दोनों हैरान हो गए। इससे पहले कि वह कुछ भी कहते राजेश ने मिस्टर दास और जया के पैर छुए। दीप्ति ने मिस्टर दास की और मुखातिब होते हुए कहा पापा हम दोनों ने आज कोर्ट मैरिज कर ली है। लेकिन ऐसे क्यों? जया के पूछने पर दीप्ति ने कहा, मुझे नहीं लगता कि हमें बिना वजह ही बहुत से पैसे खर्च करके स्वार्थी लोगों को बुलाकर कोई पार्टी करनी चाहिए। परंतु हमें बताती तो सही?
इतना सुनने पर दीप्ति ने कहा हमारा यह रिश्ता नानी को मंजूर था। आज से राजेश हमारे साथ ही रहेगा इसलिए कोई औपचारिकता की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मैं नहीं चाहती कि आपको भी कभी नानी की तरह ही अपना सब कुछ बेचकर हमारे पास आना पड़े। हम खुद ही आपके साथ रहेंगे। जिस दिन भी आपको लगे कि हमें आपके साथ नहीं रहना चाहिए आप कह दीजिए हम नोएडा में ही फ्लैट लेकर रह लेंगे। राजेश अंदर चलो नानी की फोटो के सामने हम दोनों हाथ जोड़ ले और उनसे आशीर्वाद लें, माता-पिता को हैरान हुआ छोड़कर दोनों अंदर कमरे में चले गए।
जया जी तो पुरानी यादों में खो गई। मिस्टर दास और जया की शादी कोलकाता में ही हुई थी। शादी के बाद जब मिस्टर दास की नौकरी दिल्ली में लग गई तो वह जया को लेकर दिल्ली ही आ गए। दिल्ली में ही उन्हें सरकारी मकान भी मिल गया था और फिर पब्लिक डीलिंग की नौकरी से उन्होंने इतना पैसा तो कमाया था कि दिल्ली में ही अपना एक 400 वर्ग मीटर का घर भी खरीद लिया था। जो ज्यों-ज्यों उनके पास में पैसे बढ़ रहे थे मिस्टर दास की पैसों की भूख भी उतनी ही बढ़ रही थी। अपनी इन्हीं व्यस्तताओं के कारण उन्होंने कोलकाता में अपने आठ बहन भाइयों के परिवार से लगभग नाता ही तोड़ लिया था।कहीं वह भी उनसे पैसे ना मांगने लगें ,बस केवल माता-पिता के मरने पर ही वह कोलकाता गए थे।
यह महज़ एक संयोग था कि जैसे जया अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी वैसे ही दीप्ति भी उनकी इकलौती बेटी ही थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद मां का ख्याल रखने के लिए जब-जब भी जया कोलकाता जाती, दीप्ति घर को अच्छे से संभाल लेती थी परंतु मिस्टर दास को बहुत असुविधा होती और उनकी हुई असुविधा जया की मम्मी से छुपी नहीं रहती थी। अपनी बेटी की इसी असुविधा को दूर करने के उद्देश्य से वह कोलकाता में अपना सब कुछ बेचकर अपनी बेटी के साथ दिल्ली आ गई।
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उन्होंने अपने पैसे मिस्टर दास को और गहने बेटी के सुपुर्द कर दिए थे। उन्हीं पैसों से ही मिस्टर दास ने घर को दो मंजिला भी बनवा लिया और बहुत सुंदर भी बनवा लिया था। जया की मम्मी अपनी दोहती और बेटी के साथ उसे घर में बहुत खुश थी परंतु मिस्टर दास की रिटायरमेंट के और जया की मम्मी के सारे पैसे खर्च होने के उपरांत मिस्टर दास को अपनी पत्नी जया का हर समय अपनी मां के साथ ही रहना अच्छा नहीं लगता था। यही कारण था कि जया की मम्मी ने स्वयं को ऊपर के कमरों में ही दीप्ति के साथ खुद को सीमित कर लिया था। भाषा की समस्या और जगह के बदलाव के कारण वह बाहर सब के साथ घुलमिल नहीं पाती थी।
पड़ोस में किराए पर एक कमरा लेकर रहने वाले राजेश के घर वह कभी कभी चली जाती थी। राजेश की सौतेली माता और सौतेले भाइयों के कारण उसके पिता ने दसवीं से ही राजेश को अलग किराए पर कमरा दिलवा रखा था। राजेश को दीप्ति की नानी से बहुत अपनापन मिलता था। दीप्ति और राजेश एक ही क्लास में थे इसलिए वह दोनों भी पढ़ाई की बातें कर पाते थे। नानी कई बार राजेश के घर में ही उसके लिए खाने को कुछ अच्छा भी बना देती थी।
कुछ समय बाद 12वीं करने के बाद दोनों की कुरुक्षेत्र के इंजीनियरिंग कॉलेज में सिलेक्शन हो गई थी। दीप्ति के जाने के बाद नानी बहुत अकेली और अवसाद ग्रस्त भी हो गई थी। कभी जब दीप्ति घर आती तो वह नानी की राजेश से भी बात करवाती थी। नानी ने राजेश और दीप्ति के विवाह की दोनों को मूक स्वीकृति भी दे दी थी।
अकेलापन और अपनी बेटी और दामाद द्वारा की गई अवहेलना के कारण नानी की बीमारियां बढ़ती गई और वह दीप्ति की कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। दीप्ति के लिए यह खबर बहुत दुखद थी हालांकि दीप्ति नानी से फोन पर बात करके अपने आने का दिलासा तो देती थी परंतु वह नानी का अकेलापन नहीं दूर कर पाई।
दीप्ति और राजेश की कैंपस सिलेक्शन नोएडा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में हो गई थी। वापस आने के बाद राजेश ने फिर किराए पर घर ले लिया था और दोनों मेट्रो से नोएडा तक साथ ही आते जाते थे। विवाह का फैसला तो उन्होंने कर ही लिया था। स्वार्थी रिश्तों को दोनों ने ही बहुत करीब से देखा था और वह अपने विवाह में शामिल करने के लिए किसी की भी जरूरत नहीं समझते थे।
दीप्ति को अपने कर्तव्य का भान था वह नहीं चाहती थी कि उसके माता-पिता भी नानी के जैसे अकेलापन और अवसाद ग्रस्त जिंदगी जिएं इसलिए उसने राजेश को कहा था कि हम दिल्ली में अपने माता-पिता के साथ ही रहेंगे और अगर उन्हें हमसे भी कोई असुविधा हो रही हो तो हम दोनों अपना घर संसार अलग ही बसा लेंगे। इसी विश्वास के साथ दोनों नानी की फोटो के आगे सर झुकाए खड़े थे। तभी उन्होंने महसूस किया कि उनके पीछे उनके माता-पिता मिस्टर दास और जया दोनों आंखों में आंसू लिए नानी की फोटो के आगे ही हाथ जोड़ रहे थे।
अब उन दोनों की आंखों में आंसू पश्चाताप के थे या खुशी के या किस कारण से बह रहे थे, मालूम नहीं परंतु मिस्टर दास ने दोनों के सर पर हाथ रखा और जया ने दीप्ति को गले से लगा लिया। मिस्टर दास ने दोनों को लौन में आकर चाय पीने के लिए कहा।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
स्वार्थी रिश्ते प्रतियोगिता के अंतर्गत
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