स्वाभिमान – गीता वाधवानी

आज अंजू जब कॉलेज से आई तब उसने देखा कि उसकी दादी की सहेली रमा जी और उनकी बेटी राजू दीदी बैठी हुई है।

वैसे तो राजू दीदी का नाम राजकुमारी था पर सब उन्हें राजू कहते थे।

उन्होंने बताया कि कल बहुत वर्षों बाद उनकी बुआ जी अपनी पोती मीना के साथ मुंबई से मेरठ उनके यहां 15 दिन रहने आ रही है।

अंजू की, दादी जी और मम्मी ने उन्हें कहा कि उन्हें हम से मिलवाने के लिए हमारे घर भी लेकर आइएगा।

2 दिन बाद वे सब लोग अंजू के घर आए। अंजू और मीना की बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। मीना का अंजू के घर बहुत मन लगता था।

देखते देखते कैसे 15 दिन बीत गए पता ही ना चला। मीना को अंजू इतनी भा गई थी कि उसने अपनी दादी से उसे अपनी भाभी के रूप में घर लाने को कहा। दादी ने कोई रुख नहीं दिखाया। तब मीना ने उन्हें कहा-“दादी, जब से मैं अंजू से मिली हूं मैंने उसका व्यवहार नोट किया है। वह बहुत सरल और मधुर व्यवहार वाली है। मेरे भाई का जीवन खुशहाल हो जाएगा और मुझे विश्वास है कि अंजू परिवार में घुल मिलकर रहेगी।”

दादी को अपनी अमीरी पर बड़ा गर्व था और अंजू का परिवार मध्यम परिवार था। दादी ने इस रिश्ते के लिए साफ मना कर दिया। दोनों वापस मुंबई चली गई। यह सारी बातें दादी की सहेली  ने हीं अंजू की दादी जी को बताई थी।

इस बात को काफी समय बीत चुका था। एक दिन अंजू की दादी की सहेली उनके घर आई और उसने बताया कि मुंबई जाकर दादी जी ने अपने पोते की शादी एक अमीर लड़की से करवा दी थी, उस लड़की ने परिवार में कलह करवा दी है। अपना खाना परोस कर अपने पति के साथ अलग कमरे में जाकर खाती है। सबके साथ बैठकर खाना नहीं चाहती। दादी और मम्मी को बिना बताए बाहर घूमने चली जाती है। घर का कोई काम करना नहीं चाहती और घर के बुजुर्गों को खरी खोटी सुनाती है। मीना की दादी अपने फैसले पर पछता रही है।

इस बात को कुछ दिन बीते। तब एक दिन अंजू के घर मीना की दादी का फोन आया। उन्होंने कहा -“क्या आप अपनी छोटी बेटी मीनू का विवाह मेरे छोटे पोते से करना चाहेंगे, मैं उसका रिश्ता आपसे मांग रही हूं।” मीना की दादी को यह बात पता थी कि पहले रिश्ते वाली बात अंजू के माता-पिता तक तक पहुंच चुकी है।

अंजू के माता पिता ने विनम्रता से उनके इस रिश्ते को मना कर दिया। आखिर उनका भी तो कोई स्वाभिमान था।

स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

गीता वाधवानी दिल्ली

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