स्वाभिमान – अनामिका मिश्रा 

रश्मि के पति को कैंसर हो गया था, उसके दो बच्चे थे। अपने पति को व तड़पते हुए देख रही थी।

घर से बाहर के जो काम आज तक उसने न किए थे उसे समझ में नहीं आ रहा था,क्या करे। 

बैंक से पैसे कैसे निकाले,डॉक्टर के पास शहर के बाहर जाना हो, टिकट कैसे करवाएं, इधर उधर पड़ोसियों से मदद लेना पड़ रहा था। 

उसके पति ने कहा, “मैं कहता था रश्मि तुमसे, बाहर के काम भी सीख ले, तो तू कहती आपके रहते मुझे कोई परेशानी नहीं,मेरे बिना तू कैसे रहेगी!”

 फफक कर रो पड़ी। तभी उसने देखा उसके पति की बहन उसे देखने आई। 

“अरे,कमला दीदी!”कह कर रोने लगी। 

कमला भी अपने भाई की हालत देख खुद को रोक ना पाई। तभी उसकी बेटी रुचि आकर बोली, “मां मैं बगल वाले रमेश भैया को बोली हूं, टिकट करवाने के लिए, पैसे दे दो, दे कर आती हूं!”

कमला ने कहा “तू करवा ना, आजकल तो ऑनलाइन बुकिंग होती है, मैं भी चलूंगी,ला मोबाइल!”

रश्मि मोबाइल लेकर आती है।

कमला रश्मि और रुचि को तरीका बताती है, टिकट कंफर्म हो गया और पेमेंट भी हो गया। 

कमला के साथ रश्मि अपने पति जयंत को ले जाती है। हॉस्पिटल में कमला रश्मि और रुचि से कहती है,”डॉक्टर से बात करो, ट्रीटमेंट के लिए!”



पर डॉक्टर तो जवाब दे चुके थे। निराश हो सब वापस आ जाते हैं।

कमला बाहर के सारे काम रुचि और रश्मि से करवाने लगी। रुचि को कहीं बाहर जाना था,एग्जाम के लिए,वो जॉब की तैयारी कर रही थी। 

कमला ने कहा,”तू खुद जा,अब तेरे पापा तेरे साथ नहीं जाएंगे, भाई भी तेरे साथ कहां कहां जाएगा!”

रुचि पहली बार शहर के बाहर अकेले एग्जाम देने गई थी । उसके बाद उसका हौसला बढ़ गया।

इधर रश्मि भी बैंक,स्कूल की जिम्मेदारी संभालना सीख  गई थी। 

इसी बीच उसके पति दुनिया से विदा ले चले गए। 

सब कुछ तो था, पर अब घर के घर खर्च कैसे चले,पति के इलाज में सारे पैसे लगभग खत्म हो चले थे।

उसका भाई आया हुआ था।

उसने कहा, रश्मि सुन यहांँ सब बेच बाच दे,चल हमारे साथ वहीं रहना!”

पर रश्मि ने कहा,”नहीं भैया, पति की जगह मुझे नौकरी मिल सकती है, पर मैं नौकरी नहीं कर पाऊंगी, मैंने रुचि के लिए कहा है,वो काबिल है, शायद उसे ले ले,तब तक मैंने दुकान खोलने का सोचा है,इनकी इच्छा थीनीचे वाले हॉल में दुकान खोलने की, मैं घर नहीं बेचूंगी और न जाऊंगी!”

उसके भाई ने कहा, “चलो सुन कर खुशी हुई,मेरी बहन स्वावलंबी है, और उसके अंदर स्वाभिमान भी हैअगर कोई जरूरत हो तो जरूर बताना, तेरा ये भाई कुछ कर सके!”

रश्मि दवाइयों की दुकान खोल ली, जो धीरे-धीरे चल निकला और उसके पिता की जगह रुचि को काम मिल गया,रश्मि और रुचि तो पति और पिता की कमी महसूस करती रही,पर कमला के उत्साहवर्धन और सहायता ने उन्हें स्वाभिमान से जीना सिखा दिया था। 

स्वरचित अनामिका मिश्रा 

झारखंड जमशेदपुर

 

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