सुरक्षित – विजय शर्मा 

आइये आइये रागिनीजी ! बहुत दिनो बाद चक्कर लगा हैं इस बार । वृद्धाश्रम की संचालिका जोशी मैडम ने उनका स्वागत करते हुए कहा । रागिनी गुमसुम सी चुपचाप कुर्सी पर मुंह लटकाए बैठ गई । जोशी मेम समझ गई जरूर कुछ गड़बड़ है । हर बार तो वे आते ही प्रसन्न मुद्रा मै हाथ हिला कर अभिवादन का जवाब देती है ।

इस बार कोई साथ में भी नहीं है । हर बार तो एक दो नौकर फलो के टोकरे,कपड़ो के गट्ठर, अनाज, आदि लिए होते है । यह क्रम बरसो से चला आ रहा है । रागिनीजी बरसो से इस आश्रम में आती रही है । सर्दी- गर्मी, बरसात कैसा भी मौसम हो उनका यह क्रम लगातार बना रहा है ।

आज इस आश्रम के विशाल स्वरूप में उनका बड़ा योगदान रहा है । सारा शहर उन्हे इज्ज़त की नज़रों से देखता है । सभी सामाजिक कार्यो में उनकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है । इस आश्रम के निर्माण के समय उनके पति ने एक मोटी रकम दान की थी ।

उनके पति की औद्योगिक क्षेत्र में खिलौने बनाने की फेक्टरी है। उनकी फेक्टरी में बने खिलौने उच्च कोटि के होने के साथ निर्यात भी किए जाते है । दस वर्ष पूर्व रागिनीजी ने अपने पति के स्वर्गवासी होने के बाद सारा कारोबार सम्हाल लिया था। बहुत ही कम समय मे उनकी खिलौने की फेक्टरी शहर की सबसे बड़ी फेक्टरी कहलाने लगी थी । टर्नओवर काफी अच्छा था और मुनाफा भी हो रहा था । सहृदय रागिनीजी पहले से ज्यादा दान देने लगी थी ।

समय का चक्र तेज़ी से चलता रहा ।

रागिनी जी के बालो में सफेदी आ गई थी, तो दूसरी ओर उनके तीनों बच्चे जवान हो गए थे । बड़ी बिटिया के ब्याह के दो वर्ष बाद दोनों छोटे जुड़वा बेटो का ब्याह करके वह काफी बेफिक्र सी हो चली थी । सारी जिम्मेदारियों से फारिग जो हो गई थी ।

पति के जाने के बाद से लेकर बच्चो के ब्याह तक उन्होने रात दिन एक करके कठोर परिश्रम से यह मुकाम हासिल किया था । अब उन्हे लग रहा था कि जीवन सरल हो जाएगा ।

उन्हे क्या पता था कि जीवन व्यवहार की दुर्गम घाटियां उनकी कठिन परीक्षा लेने मुंह बाएँ खड़ी थी ।


पिछले कुछ माह से घर का माहौल लगातार बिगड़ता जा रहा था । दोनों पुत्रवधुओं को उनकी सादगी भरी जीवन शैली और वृद्धाश्रम को मुक्त हस्त से दान देना फूटी आँखों नही सुहा रहा था ।

छोटी बहू जो कि बहुत उच्श्रंखल स्वभाव की थी, वो तो कई बार यहाँ तक कह चुकी  कि –

“माताजी इस तरह से दान करती रही तो ऐसा ना हो कि हम सब को किसी अनाथ आश्रम की शरण लेनी पड़ जाए…!”

रोज़ रोज़ इस तरह की बातें अप्रत्यक्ष रूप से सुनकर रागिनीजी का तनाव में आना स्वाभाविक था ।

दोनों पुत्र भी उनके विरोधी होने लगे थे । बातों बातों में कई बार जिक्र भी कर चुके थे कि – “माताजी कारोबार का सब भार हमें संभलाकर आप निश्चिंत हो जाइए। अब आप आराम करें बहुत सालों तक आपने काम कर लिया”।

घर के बदलते समीकरण और बच्चो कि मानसिकता,रागिनीजी के कानों में आने वाले समय की पदचाप सुना रहे थे ।

दो बार घर में चोरी हो चुकी थी । सोने चांदी के जेवर और लाखों के नगदी चले गए पर कोई सुराग न लगा । पुलिस का कहना था कि कोई घर के व्यक्ति का ही हाथ है । जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो कोई क्या कर सकता है ।

उधर फेक्टरी में ऑडिट के दौरान वित्तीय विभाग में कई गड़बड़ियाँ पाई गई । बेलेंस शीट घाटा दिखाने लगी थी । नतीजा, उनके बेटों ने घर और फेक्टरी के पुराने विश्वसनीय कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब जो नए कर्मचारी थे वे सब बड़े बेटे के आदेशों की पालना करने लगे थे ।

रागिनीजी यह सब बर्दाश्त नही कर पा रही थी पर घरेलू मामला होने की वजह से वह खून का घूंट पीकर चुप थी क्योंकि समाज में अभी भी वर्चस्व तो उनका ही था ।

अब वे चुप चुप और गंभीर सी रहने लगी थी । उनका अच्छा स्वास्थ और लंबी उम्र भी अब तो घर के लोगो को अखर रही थी । इस बात का प्रमाण था दूध में मिली नींद की गोलियां, सीढ़ियों पर फैला हुआ तेल, और कभी उनकी कार के ब्रेक फ़ेल !

एक दिन वे गहरी नींद में सो रही थी । करवट लेते ही उन्होने अधखुली आँखों से देखा कि उनका नया नौकर एक हाथ में तकिया और दूसरे हाथ में चाकू लेकर खड़ा था । वह जब हड़बड़ाकर उठी तो नौकर कमरे से गायब हो चुका था ।


उन्होने उपरोक्त सब बातें सिलसिलेवार अपने बेटों को बताई तो दोनों बेटे उन्हे मानसिक चिकित्सालय की राह दिखाने लगे थे ।

वे अब अच्छे से समझ चुकी थी,कि इस घर में उनकी उपस्थिति अपरिहार्य और खलने वाली हो चुकी थी ।

आज सुबह नाश्ते के बाद अपने कुछ जरूरी कागजात और कपड़े लिए वे बिना किसी को बताए सीधी  वृद्धाश्रम आ गई थी । जोशी मैडम ने उनके कंधे पर हाथ रखकर बड़े ही अपनत्व भाव से उनकी उदासी का कारण पूछा तो रागिनीजी कि आँखों से अविरल अश्रुधारा बह चली ।

आंसुओं कि भाषा बिना कुछ बोले ही काफी कुछ बयान कर चुकी थी ।

थोड़ी देर बाद कुछ सहज होने पर उन्होने अपनी सारी आपबीती जोशी मैडम को बताते हुए कहा –

“आज से मैं भी यहीं रहूँगी । मुझे यह स्थान घर से ज़्यादा अच्छा और सुरक्षित लगा है

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