सुगनी काकी  – पुष्पा जोशी

यशोधरा ने रोते हुए घर में प्रवेश किया, रोते-रोते उसका बुरा हाल था, मॉं ने कहा- ‘क्या बात है क्या आज फिर सुगनी काकी ने तुझसे कुछ कहा?’ वह कुछ नहीं बोली सीधे अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई उसका रोना रूक ही नहीं रहा था.’अब तो हद ही हो गई, पीछे ही पढ़ गई है मेरी बेटी के, यह सीधी सादी है, तो क्या हमेशा इसे टोकती ही रहेगी,

कभी ऐसे कपड़े मत पहनो, ऐसे मत चलो, क्या खिलखिला रही है बन्दर की तरह, दिन भर उछलकूद करती है, कुछ लाव लक्षण सिखाए ही नहीं मॉं ने.बस अब बहुत हो गया.’ फिर अपने पति से बोली सुनो जी सुगनी काकी  की यह दिनभर की किटिर-पिटिर मुझे समझ में नहीं आती, वे बड़ी हैं, अकेली हैं, इसलिए हम उनका लिहाज करते हैं,

कुछ कहते नहीं.मगर अब मैं बर्दाश्त नहीं करूँगी कि कोई रोज- रोज मेरी बेटी को रूलाए, आज चलकर उनसे बात करनी ही पड़ेगी.’  ‘ठीक है भागवान उनसे बात करेंगे पहले अपनी बेटी से तो पूछो कि वह क्यों रो रही है.’ राजेश्वर बाबू ने कमली से कहा. ‘ठीक है मैं पूछती हूँ, मगर अगर सुगनी काकी ने मेरी बेटी को रूलाया है, तो आपको मेरे साथ चलना पढ़ेगा. ‘ठीक है पहले तुम यशोधरा से बात तो करो.’

सुगनी काकी, गॉंव में अकेली रहती थी.वह तेरह वर्ष की थी तब ब्याह कर इस गॉंव में आई थी, उसके सास -ससुर, जेठ-जेठानी और एक ननन्द थी.पति सुमेर मंदबुद्धि था और शरीर से बेहद कमजोर था.परिवार में सिर्फ मॉं थी जो उससे प्यार से बोलती थी.वह कुछ काम काज नहीं कर पाता था, इसलिए उसके पिता और भाई -भौजाई  उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे.

सुगनी दिखने में बहुत खूबसूरत थी,और बहुत गरीब परिवार की लड़की थी.जेठ जिठानी  की कोई बच्चा नहीं था और जेठ की बुरी नजर थी उस पर. ननन्द की शादी हो गई थी, छोटी सी सुगनी घर में सभी का कार्य करती, उछलती कूदती घर में डोलती रहती.सब उसे बहुत प्यार करते थे.वह सबसे प्रेम से बोलती थी,मन से पवित्र जरा भी पक्का पना नहीं था.

एक दिन सुमेर घर से बाहर गया था, उस दिन बहुत तेज बारिश हुई,उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, उसे भूख लगी थी तो उसने किसी से कुछ मांग कर खा लिया,पूरी रात एक दुकान के ओटले पर पढ़ा रहा,बारीश में पूरी तरह से भींग गया था.रातभर घर नहीं आया.जब पानी रूका तो सब उसकी तलाश में निकले रूपेश को भाई की चिंता जरा भी नहीं थी,

वह तो इस ताक में था कि कब वह सुगनी को अकेले पाए और वह उसके साथ…….!और वह अवसर उसे मिल गया, रूपेश की पत्नी मायके गई थी, और माँ और बाप सुमेर को ढूंढ रहै थे, वह भी सुमेर को ढूंढने के लिए माँ ,बाप के साथ निकला तो था, मगर तरकीब से घर आ गया.पास पड़ोस के लोग भी सुमेर को ढूंढने निकले थे.

रूपेश ने सोचा इससे अच्छा अवसर उसे नहीं मिलेगा उसने सुगनी के साथ कुकृत्य करना चाहा, मगर सुगनी ने पास में पड़ा लट्ठ उठाकर उसके सिर पर मारा तो वह गिर गया.सुगनी ने कमरे का दरवाजा बाहर से लगाया और वहाँ से भागी, मगर यह क्या सामने से उसके सास, ससुर  रोते-रोते आ रहै थे.और एक ठेला गाड़ी में सुमेर का पार्थिव शरीर लेकर पड़ोस के लोग आ रहै थे.




कानाफूसी चल रही थी, लोग रूपेश को ढूंढ रहै थे.सुगनी की सास अपनी बदहवास बहू का हाथ खींचकर घर में ले गई. वह सोच रही थी कि शायद इसे सुमेर की मृत्यु की खबर लग गई है, इसलिए यह हाल है, बेचारी १६ सुगनी कुछ समझ ही नहीं पा रही थी, एक तरफ यह हादसा और दूसरी तरफ पति की मृत्यु.वह क्या करे ?किससे कहें.? सब रूपेश के बारे में बातें कर रहै थे. सास ने प्यार से सुगनी के सिर पर हाथ रखा तो वह फफक कर रो पड़ी.उसने धीरे से कहा जेठ जी को मैंने, उस कमरे में और फिर वह निढाल हो गई, सास ने उस कमरे को खोला और रूपेश को उस समय कुछ नहीं कहा,उसकी पारखी नजर सब जान गई थी.उसने एक दो बार पहले भी रूपेश को जेठ की मर्यादा समझाई थी, और कहा था कि कुछ गलत सोचना भी मत. समय की नजाकत को देखकर सब मौन थे. सुमेर की अन्तिम यात्रा की तैयारी थी, भारी मन से सारा चालचलावा किया गया.सुगनी की सास माया देवी पर दौहरी जिम्मेदारी थी, एक तो शांति से सुमेर की तेरहवीं का कार्यक्रम निपटाना और सुगनी को भी सम्हालना.

सुमेर का तेरहवी का कार्यक्रम हो गया.माया देवी ने सुगनी को अपने कलेजे से लगाकर रखा, सुगनी अपने मायके गई, सफेद साड़ी में लिपटी सुगनी अपनी माँ से कहती रही-‘ मॉं !मुझे घर के एक कौने में पड़ी रहने दे,मुझे अब वहाँ नहीं जानाजाना.’ मगर, माँ भी अपने पति और बच्चों के आगे विवश थी.महिने भर बाद सुगनी की सास उसे लेकर घर वापस आई, उसे किसी पर विश्वास नहीं था.सुगनी की जिठानी को माया देवी ने कह दिया था, कि वह अपने पति को बस में रखे, इस जमीन जायदाद से अपना हिस्सा लेकर अपने पति के साथ दूसरे गॉंव में जाकर बस जाऐ. जेठानी तो यही चाहती थी.उसने अपने पति को साफ कह दिया कि इस गाँव को छोड़कर कहीं और चलो नहीं तो वह भी उसके साथ नहीं रहेगी.

गाँव में वैसे भी उड़ती-उड़ती खबर सब तक पहुँच गई थी, और कोई रूपेश की इज्जत नहीं करता था, वे अपना हिस्सा लेकर दूसरे गाँव चले गए. मायादेवी ने अपने पति से कह दिया था,कि वह जब तक जिन्दा है, सुगनी का साथ नहीं छोड़ेगी.मगर विधि का विधान वह भी सुगनी का साथ ज्यादा समय तक नही दे पाई, बेटे का गम और बुढ़ापा.बिमार रहने लगी और एक दिन सुगनी को छोड़कर चली गई. वह सुगनी को हमेशा समझाती ‘बेटा हमेशा हिम्मत से काम लेना, मन पवित्र रखना, मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है.’ मायादेवी के जाने के एक साल बाद ससुर भी शांत हो  गए. दुनियाँ में वह अकेली रह गई थी.उसका मन बिल्कुल निर्मल था, और जहाँ उसे लगता कि कोई गलती कर रहा है, या कुछ गलत आचरण कर रहा है, उन्हें समझाती, टोकती.नई पीड़ीको बुरा लगता और वे उनसे कतराते थे.यशोधरा भी रोज घर आकर सुगनी काकी की शिकायत करती थी.इसलिए उसकी माँ सुगनी काकी पर भड़क रही थी.

रामेश्वर बाबू और कमली ने प्यार से यशोधरा से पूछा-‘क्या बात है बेटा, क्या सुगनी काकी ने……. वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था और  यशोधरा ने कहा- माँ अगर आज सुगनी काकी ने मुझे नहीं बचाया होता तो तेरी यह बेटी किसी को मुह दिखाने लायक नहीं रहती.यशोधरा फिर रोने लगी थी, कमली ने कहा बेटा घबराओ मत हमें पूरी बात बताओ.वह बोली माँ आज शोभा स्कूल नहीं गई थी, मैं अकेली स्कूल जा रही थी,सड़क के पार जो कच्चा रस्ता है वहाँ बलदेव ने मुझे पकड़ लिया, उसका एक साथी भी था उसके साथ.ऊंची एड़ी की चप्पल के कारण मैं चल भी नहीं पा रही थी, घबराहट में नीचे गिर गई, वे दोनों मेरे साथ छेड़खानी कर रहै थे तभी सुगनी काकी ने आकर उनकी पिटाई की और भगा दिया, फिर मुझे घर के बाहर छोड़ कर गई.मैं इतनी घबरा  गई थी कि उन्हें अन्दर आने के लिए भी नहीं कहा.आप उनके घर जाकर उन्हें धन्यवाद जरूर देना.मॉं हम उनके बारे में गलत सोचते थे, वे बाहर से जितनी सख्त है, मन से उतनी ही उजली हैं, वे हमारी भलाई के लिए ही टोकती है.कमली सुगनी के घर धन्यवाद देने के लिए गई तो उन्होंने कमली को भी नहीं छोड़ा कहा  ‘कैसी मॉं हो बच्चों को जरा भी शिक्षा नहीं दी, बच्चे कहॉं गलती कर रहे हैं, उनपर नजर रखना चाहिए, धिक्कार है तुम पर जो अपनी बच्ची का ध्यान नहीं रखा.अब, जाओ सम्हालो उसे, बेचारी रो रही होगी.

कमली घर आ गई. वह सोच रही थी सुगनी काकी के दोहरे रूप के बारे में उसका बाह्य रूप इतना सख्त और अन्तर्मन दया से ओतप्रोत.नहीं तो, उन्हें क्या जरूरत थी,बलदेव से उसकी बच्ची को बचाने की, वह बलदेव का इरादा भांप गई थी और उसके पीछे पीछे गई थी.कमली सुगनी काकी के उपकार के आगे नतमस्तक थी.

#दोहरे_चेहरे 

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित, अग्रसारित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!