अपने देवर संजय की शादी के लिए बहुत जोर शोर से तैयारियां कर रही थी । लड़की इसी शहर की थी,
इसलिए शॉपिंग करने के लिए नीतू को भी साथ ले लिया । सासु मां नाक, मुंह सिकुड़ने लगी । बोली, शादी के पहले यह सब ठीक नहीं लग रहा है।
तुम उसका अभी से भाव बढ़ा रही हो बहू?
सुचिता बोली- मां जब कपड़े नीतू को पहनने हैं तो उसकी पसंद के होने चाहिए?
संजय भी खुश था कि नीतू को दोबारा देखने का मौका मिल गया।
कुछ दिन के बाद शादी का मुहूर्त निकला । बरात लड़की वालों के घर पहुंची । वहां सभी रस्मों-
रिवाज के साथ शादी संपन्न हुई । विदाई के समय माहौल बहुत ही गमगीन था । नीतू की मां सुचिता के पास आकर बोली- बेटा! मेरी बेटी का ख्याल रखना अगर कोई गलती हो जाए तो…… और हाथ जोड़ लिए। सुचिता मां के हाथों को अपने हाथ में लेते हुए बोली…. मां आप चिंता मत करें । नीतू मेरी छोटी बहन जैसी है । मैं अपने अस्तित्व को लेकर इस घर से जा रही हूं । मैं उसका हमेशा ख्याल रखूंगी, यह वादा करती हूं।
विदाई के बाद बारात वापस आ गई। सास ने संजय और नीतू की अगुवाई करते हुए आरती की। इसके बाद चावल से भरा लोटा गिराना, जल भरी थाली में अंगूठी ढूंढना यह सब रस्मो रिवाज पूर्ण हुए ।
दूसरे दिन मेहमान सब अपने-अपने घर जाने लगे । बहू नीतू को उठने में देर हो गई, सासू मां ने पूरा घर सिर पर उठा लिया… महारानी अभी तक नहीं उठी, इतनी बेला हो गई? सुचिता सास को एकांत में ले गई और समझाने लगी- मां थोड़ा धैर्य से काम लीजिए, सब ठीक हो जाएगा….नीतू का पहला दिन है । मैं उसे इस घर के तौर तरीके धीरे-धीरे सब समझा दूंगी। समझा देना उसको… अगर उसने ऐसा दोबारा किया तो हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकाल दूंगी? सास गुस्से में बोली। अगर संजय भी पीछे-पीछे चला गया तो? सुचिता बोली… सास ने घूरकर सुचिता की तरफ देखा और देखती रही…उसने कभी यह अंदाज भी नहीं लगाया कि ऐसा भी हो सकता है ।
सासू मां कुछ सोचने लगी… उनका गुस्सा थोड़ा कम हुआ । सुचिता ने सास को समझाते हुए कहा- मां…. “कोई भी पौधा जब एक जगह से दूसरी जगह पर लगाया जाता है, तो वह या तो मुरझा जाता है या पनप नहीं पाता”? उसको “प्यार, ममता, और अपनत्व की खाद,पानी देकर सींचा जाता है, तभी वह पौधा दूसरी जगह पर फल फूल सकता है”
बहू की बात सास को समझ आई, और वह चुप हो गई ।
दूसरे दिन सासू मां, रानू द्वारा लाए हुए उपहारों को देखकर बोली- मेरे दामाद के लिए कपड़ा नहीं आया क्या? सुचिता ने स्थिति को संभालते हुए कहा,मां आया है कपड़ा… मैं अभी लाती हूं…..शायद इधर-उधर हो गया होगा।
सुचिता के पति का कपड़ा सिलाई करने के लिए रखा था, वह लाकर दे दिया… बोला यह है। नीतू ने सुचिता की तरफ आंखों ही आंखों में कृतज्ञता दिखाई । नीतू सुचिता को गले लग कर बोली… दीदी, मैं बहुत भाग्यशाली हूं,कि आप के रुप में मुझे बड़ी बहन मिली….कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंँगी।
सुचिता ने कहा,मैं तुम्हारी मां को वचन देकर आई हूं, कि तुम्हें छोटी बहन के जैसा …..रखूंगी । कुछ दिनों के बाद छोटी बहू नीतू ने भी धीरे-धीरे बड़ी बहू को देखकर सब तौर-तरीके सीख लिए। उनका घर एक खुशहाल घर है। सास भी बड़ी बहू की समझदारी की दाद देती है।
– सुनीता मुखर्जी श्रुति
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल