काश हमने सारे पैसे अपने बेटे बहू को नहीं दिए होते

साहिल  अपने पापा से गुस्से में कह रहा था, “पापा आप ऐसा कैसे कर सकते हैं कोई बाप  क्या अपने बेटे के ऊपर केस करता है. एक बाप अपने बेटे के लिए जो करता है वह उसका फर्ज होता है मैं भी तो अपने बेटे को पढ़ा रहा हूं उसका खर्चा चला रहा हूं इसका मतलब क्या मैं अपने बेटे के ऊपर केस कर दूंगा।  पापा आपने यह सही नहीं किया है ये गांव समाज क्या कहेगा.  सब मुझ पर और आप पर थु थु करेंगे।” 

दयाशंकर जी पहले तो काफी देर चुप रहे उसके बाद अपने बेटे से कहा, “सही कह रहे हो बेटा थू थू तो जरूर करेंगे लेकिन मुझ पर नहीं तुम पर कि  यह कैसा बेटा है कि अपने मां बाप का नहीं हुआ एक बाप को अपने बेटे के ऊपर भरण-पोषण के लिए केस करना पड़ा।” 

 सुनो बेटा,  एक बाप तो शायद तुम्हें माफ भी कर दे लेकिन तुम भूल गए हो कि मैं किसी का पति भी हूं और एक पति अपनी अर्धांगिनी के लिए कुछ भी कर सकता है ।  जिस मां-बाप ने अपने पूरे जीवन की कमाई तुम्हें पढ़ाने लिखाने में लगा दिया है। उसके इलाज के लिए तुम्हारे पास  पैसे नहीं है   तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे पैदा होने से पहले तुम्हारी मां भी  मेरे साथ ही  स्कूल में शिक्षक थी लेकिन तुम जब पैदा हुए उसने अपने नौकरी से रिजाइन कर दिया। 

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उसने अपने नौकरी को प्रमुखता नहीं दी बल्कि तुमको प्रमुखता दी। वह बोली  पैसा सब कुछ नहीं होता तुम्हारे लिए उसने अपनी नौकरी तक ठुकरा दी लेकिन आज जब तुम्हारी मां को कैंसर हो गया है और उसे पैसे की जरूरत है तो तुमने अपनी मां के लिए क्या किया।  तुमने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि सब कुछ हमारे हाथों में नहीं होता है जो दुनिया में आया है उसे  तो एक न एक दिन जाना ही है।  मां की उम्र ही कितनी बची है मां के लिए 15 लाख  रुपए खर्च करना  फिजूलखर्ची है। 



 यह कहते-कहते दया शंकर जी के आंखों से आंसू निकल आए तभी उनका वकील आया और बोला दयाशंकर जी जल्दी चलिए जज साहब इंतजार कर रहे हैं। 

2 लोगों के बाद इनका तीसरा नंबर था कुर्सी पर बैठे बैठे दयाशंकर जी अपने अतीत के के पन्ने पलटने लगे। दयाशंकर जी को आज भी वह दिन याद है जब शादी के 7 साल हो गए थे लेकिन संतान सुख नहीं मिल पाया था उन्होंने संतान के लिए क्या-क्या नहीं किया मंदिर,मस्जिद और  गुरुद्वारा हर जगह माथा टेका।  देश के सभी बड़े डॉक्टरों से इलाज कराया उसके बाद उनके बेटे साहिल का जन्म हुआ। 

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साहिल  के पैदा होने के बाद मालती जी ने फैसला कर लिया था कि वह अब दुबारा से नौकरी रही करेंगी उन्होंने अपने बेटे को प्रमुखता दी।  क्योंकि एक लंबे इंतजार के बाद मालती जी का गोद भरा था। 

साहिल  बड़ा होकर  दिल्ली के एक बड़ी कंपनी में चार्टर्ड अकाउंटेंट था। 

 साहिल को उसी कंपनी में एक लड़की से प्यार हो गया और उन दोनों ने शादी करने का निर्णय किया।  जबकि मालती जी ने बहुत पहले से ही अपने बेटे के लिए एक लड़की देख रखी थी और उनका मन था कि अपने बेटे की बहू उसी लड़की को बनाए लेकिन जब बेटे ने ऑलरेडी एक लड़की को पसंद कर लिया था तो अब उस लड़की से बात करना बेमानी थी मालती और दया शंकर जी आधुनिक ख्याल के लोग थे।  उनको लगा कि अगर बेटे की खुशी उसी लड़की में है तो उसी से शादी कर ले और उन्होंने खुशी-खुशी अपने बेटे की शादी उस लड़की से कर दी। 



 शादी से पहले साहिल  रोजाना अपने मां पापा के पास फोन करता था धीरे-धीरे उसके फोन  सप्ताह में 2 दिन आने लगे अब तो 15 दिन पर एक बार फोन आता था  धीरे-धीरे तो ऐसा हुआ कि ज्यादातर बार फोन साहिल  के मां-बाप को ही करना पड़ता था कि बेटा बहू सही से है या नहीं। 

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दयाशंकर जी जब रिटायर हुए तो बेटे-बहू ने आकर कहा, “पापा जी हम लोग अपना फ्लैट खरीदना चाहते हैं उसमें अगर आपकी मदद हो जाती तो हमें बहुत कम ईएमआई देना पड़ेगा।  दयाशंकर जी ने बिना सोचे समझे अपने बेटे को हां कर दी उन्होंने बोला हां बेटा मेरे रिटायरमेंट के सारे पैसे ले जाओ आखिर यह सब तुम्हारा  ही तो हैं। 

कुछ दिनों बाद से मालती जी बीमार रहने लगी जब जांच कराया गया तो पता चला कि उनको ब्लड कैंसर है और उन्हें मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में जाकर इलाज कराना होगा और वहां का खर्चा कम से कम ₹15 लाख  है। 

 लेकिन अब दया शंकर जी के पास 15 लाख रुपये  कहां से आए जो भी रिटायरमेंट के पैसे थे उन्होंने तो बेटे को घर खरीदने के लिए दे दिया था उन्होंने बेटे से इसके लिए बात करी तो  बेटे ने साफ इंकार कर दिया पैसे देने से वह बोला पापा जी हमारे पास पैसे कहां है जो भी हमारे पास पैसे हैं वह हमने घर में लगा दिए और वैसे भी अब मम्मी की उम्र ही कितनी है मम्मी के इलाज में इतने पैसा खर्चा करना मुझे सही नहीं लगता। 

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 अपने बेटे के मुंह से यह बात सुनकर दयाशंकर जी को बहुत गुस्सा आया उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी कि उनका बेटा अपनी मां के बारे में ऐसी सोच रखता है वे  मन में सोच रहे थे कि मालती को जब यह पता चलेगा कि जिस बेटे के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया उसने अपनी नौकरी तक छोड़ दी आज वह बेटा उसकी के इलाज के लिए एक फूटी कौड़ी तक देना नहीं चाहता। 



 दयाशंकर जी बैंक से लोन लेने गए लेकिन लोन लेने के बाद भी 15 लाख  रुपए नहीं हो पा रहे थे।  उन्होंने अपने बेटे से कहा बेटा घर बेच दो जिंदगी रही तो घर दोबारा खरीदा जा सकता है लेकिन तुम्हारी मां दोबारा नहीं आ सकती है। 

बेटे और बहू ने घर बेचने से साफ इनकार कर दिया था।  अब दया शंकर जी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था आखिर में उन्होंने कानूनी रास्ता अपनाया और अपने बेटे और बहू के खिलाफ केस दर्ज कराया कि उन्होंने अपने बेटे और बहू को रिटायरमेंट के सारे पैसे दिए हैं वह पैसे उन्हें वापस चाहिए वह भी ब्याज सहित। 

तभी एडवोकेट ने दया शंकर जी के पीठ पर हाथ रख कर बोला आपका नंबर आ गया है।  जज साहब ने दया शंकर जी और उनके बेटे का मुकदमा  सुना। 

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 उसके बाद उन्होंने कहा मेरे जीवन में पहली बार ऐसा कोई मुकदमा आया है जिस पर एक बाप ने एक बेटे के खिलाफ इसलिए मुकदमा दायर किया है कि बेटा को पढ़ाने लिखाने के बाद वह अपने मां-बाप के काम नहीं आया।  और बता दें कि आज का यह फैसला जजमेंटल होने वाला है आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख बनेगी जब बेटा छोटा होता है तो हम उसकी देखभाल करते हैं उसकी हिफाजत करते हैं जो भी हमारी हैसियत होती है उस अनुसार उसकी पालन पोषण करते हैं इसलिए बेटों के भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने मां बाप का पालन पोषण करें। 



 जज साहब ने फैसला सुनाया कि  1 महीने के अंदर रोहित 15 लाख रुपए  मूलधन के और ₹2 लाख ब्याज के यानी कि 17 लाख रुपए अपने पिताजी को चूकाएगा अगर वह 1 महीने के अंदर नहीं चुकाता है तो कोर्ट आदेश देती है कि वह घर नीलाम कर दिया जाए और उस पैसे से दया शंकर जी की पत्नी का इलाज कराया जाए। 

 जज साहब के इस फैसले को  को सुनकर साहिल  चुपचाप देखता रह गया साहिल  के वकील ने कहा अगर आप चाहें तो हम हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं।  लेकिन साहिल ने साफ मना कर दिया उसने कहा नहीं एक बेटा कभी भी अपने बाप से नहीं जीत सकता अगर वह जीत भी जाए तो जीत, जीत नहीं  हार ही कहलाएगा।  मैं कल ही घर बेचकर मम्मी के इलाज कराऊंगा। 

अब तेरे बिन जी लेंगे हम

 मालती जी का उस पैसे से इलाज हुआ और थोड़े दिनों में ठीक हो कर आ गई उनको अपने बेटे पर गर्व महसूस हो रहा था कि उनका बेटा उनकी इलाज के लिए अपना घर तक बेच दिया है वह अपने बेटे को यही आशीर्वाद दे रही थी भगवान सबको साहिल  जैसा ही बेटा दे। 

 दयाशंकर जी वही खड़े मन ही मन सोच रहे थे कि अगर जिस दिन मालती को अपने बेटे की  कुकृत्य का पता चलेगा उस दिन कहेगी कि ऐसा बेटा किसी को ना दें।  लेकिन मैं मालती को दोबारा से मारना नहीं चाहता हूं बड़ी मुश्किल से वह जिंदा होकर आई है। साहिल  अपने पिता से नजर नहीं मिला  पा रहा था उसे डर था कि कहीं पिता ने उसकी मां को सारी बात बता ना दे। 

साहिल अपने पापा के पैरों में गिर कर बोल दिया था पापा यह बात आप मम्मी को मत बताना नहीं तो एक मां का दिल एक बेटे के लिए हमेशा हमेशा के लिए टूट जाएगा दयाशंकर जी ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन मौन रहकर भी यह जता दिया कि जाओ बेटा मैं मालती से कुछ भी नहीं कहूंगा।  उसके के बाद से साहिल अपने मां-बाप को अपने साथ ही रखने लगा।

– मुकेश पटेल

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