मेरा जीवन कोरा कागज था कोरा ही रह गया

जितेंद्र जी अपने घर से जल्दी से तैयार होकर निकले क्योंकि उनकी फैक्ट्री  एक अकाउंटेंट चाहिए था उसी के इंटरव्यू के लिए कैंडिडेट  आए होंगे। 

ऑफिस पहुँचकर एक-एक करके कई लोगों का इंटरव्यू लिया लेकिन कोई भी उनको पसंद नहीं आ रहा था जिसको वह अपने ऑफिस में रख सके। 

जितेंद्र जी इंटरव्यू ले कर थक चुके थे लेकिन कोई भी उनको अभी तक जंचा नहीं उन्होंने अपने पीउन  से कह दिया कि अब आज के लिए रहने दो अब कल इंटरव्यू लेंगे।  उनका पियून बोला सर अब सिर्फ एक ही कैंडिडेट बचा है वह भी लड़की है उसको भी निपटा ही देते।  उन्होंने उस लड़की को केबिन में आने के लिए बोला। 

जैसे ही लड़की केबिन  में प्रवेश की जितेंद्र जी ने लड़की को देखकर कहा, “अरे किरण तुम।” लड़की ने कहा, “नहीं सर मेरा नाम तो  रागिनी है।” 

 जितेंद्र जी ने उस लड़की को सॉरी बोला और कहा बिल्कुल तुम्हारे जैसी एक लड़की है जिसका नाम किरण है। 

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रागिनी ने मन ही मन सोचा कि मेरी मां का नाम भी किरण है और लोग हम दोनों जब एक साथ चलते हैं तो लोग कहते हैं कि हम दोनों मां बेटी नहीं बल्कि ट्विन सिस्टर हैं।  कहीं यह मेरी मां की बात तो नहीं कर रहे हैं।   लेकिन रागिनी चुप रही।  इंटरव्यू लेने के बाद जितेंद्र जी को रागिनी पसंद आ गई थी और उसे नौकरी पर रख लिया था उन्होंने रागिनी से जाते हुए कहा चलो अंत भला तो सब भला। तुम मंडे  से ऑफिस ज्वाइन कर सकती हो। 



रागिनी के जाते ही जितेंद्र जी 25 साल पीछे लौट गए। दिल्ली यूनिवर्सिटी के  हिंदू कॉलेज में पहली बार कक्षा में किरण  को देखने के बाद बस, देखते रह गए थे. उन के मन को क्या हुआ, वे स्वयं नहीं समझ पाए. गुलाब सा खिला मासूम सौंदर्य, उस पर भी जब नाम किरण  सुना तो मन अनजाने, अनचाहे किसी डोर से बंधने सा लगा. तब जितेंद्र जी  ने इसे महज प्रमाद समझा और झटका दे कर इस विचार को निकाल फेंकना चाहा लेकिन वह अपनी इस कोशिश में नाकामयाब रहे. कक्षा में किरण  को देख कर दर्शनमात्र से जैसे उन्हें ऊर्जा मिलती. किरण  जब भी कक्षा में न होती तो उन्हें एक प्रकार की बेचैनी घेर लेती. उस दिन वे सिरदर्द का बहाना बना कर कक्षा छोड़ देते. वे नहीं जानते थे कि जो अनुभव वह कर रहे हैं क्या किरण  भी वही अनुभव करती है? वह किरण   के बारे में और बहुतकुछ जानना चाहते थे पर किस से जानें? क्या उससे बात करना सही रहेगा दिमाग कहता अभी नहीं और वे वक्त का इंतजार करने लगे.

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क्योंकि जितेंद्र जी अपने क्लास के होनहार छात्र थे तो धीरे धीरे किरण से उनकी दोस्ती हो गई। 

सेकंड ईयर  में जाने के बाद किरण और जितेंद्र जी की  रिश्ता दोस्ती से कुछ ज्यादा हो गया था लेकिन अभी प्यार से कम था।  लगता तो था कि दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन किसी ने इजहार करने की हिम्मत नहीं दिखाई  थी। 



जितेंद्र जी नोट कर रहे थे कि सामने आते ही किरण  के गाल लाज से आरक्त हो उठते, आंखें झुक जातीं. इस का अर्थ वह क्या लगाएं, समझ ही नहीं पा रहे थे. क्या किरण भी उन्हीं की तरह सोचती है? रह रह कर यह सवाल उन के मन में उठता। 

एक दिन जितेंद्र जी कैंटीन मे बैठ किरण का इंतजार कर रहे थे, तभी किरण आ गई और सामने के चेयर पर बैठ गई अपने बैग में से एक किताब निकालकर जितेंद्र को देते हुए बोली, “लो जितेंद्र यह किताब मैंने पूरी पढ़ ली है।” 

जैसे ही उन्होंने किताब ले कर सामने मेज पर रखी कि सर्द हवा के झोंके से किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे और उन के बीच से एक ताजा गुलाब का फूल नीचे आ गिरा. एकएक कर उस गुलाब की पंखुडि़यां कुरसी के नीचे बिखर गईं.

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किरण  जल्दी से नीचे झुकी, तभी जितेंद्र जी के हाथ भी झुके. दोनों की उंगलियां परस्पर टकरा गईं. फूल की कुछ पंखुडि़यां किरण के हाथ आईं, कुछ जितेंद्र  के.

जितेंद जी  ने एक भरपूर नजर किरण पर डाली. किरण चुपचाप दुपट्टे के कोने को अपनी उंगली में लपेटती वहां से चली गई.

आज पूरा एक गुलाब उन की मुट्ठी में कैद था. जिस स्पर्श को वे पाना चाहते थे आज वह स्वयं उन के मानस को सहला गया था. उन के विचारों को जैसे पंख लग गए.

उस दिन के बाद से किरण कभी कॉलेज नहीं आई अगले महीने 11  जून को जितेंद्र जी का जन्मदिन था 1 दिन पहले किरण की एक सहेली ने जितेंद्र जी को एक लिफाफा पकड़ाया जितेंद्र जी ने लिफाफा खोला तो उसमें एक जन्मदिन का बधाई पत्र था और उसमें लिखा हुआ था, “जितेंद्र मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं लेकिन किस्मत को हम दोनों का मिलना मंजूर नहीं है।  मैंने कॉलेज छोड़ दिया है और आप को मेरी कसम है कि आप भी मुझे भूल जाएंगे  और आज के बाद  ना मुझे से मिलने की कोशिश करेंगे और ना मेरे बारे में पता करने की कोशिश करेंगे- आप की किरण।” 



जितेंद्र जी ने बहुत प्रयास किया किरण का पता ढूंढने की लेकिन किरण का पता नहीं चल सका कॉलेज में भी उन्होंने पता लगाया लेकिन कॉलेज प्रशासन ने जितेंद्र जी को यह कह कर पता नहीं बताने से मना कर दिया कि उनकी तरफ से कहा गया है कि वह किसी को भी उनके घर का पता ना दें। 

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 समय बीता गया लेकिन हर साल 11 जून से पहले किरण का एक जन्मदिन का बधाई पत्र जितेंद्र जी के पास जरूर आता था।  लिफाफे पर फ्रॉम में “सिर्फ आप की किरण” लिखा हुआ होता था बाकी कुछ नहीं कहां से लेटर आता है यह आज तक पता नहीं चल पाया। 

किरण  के याद में 25 साल गुजार दिए लेकिन उन्होंने किसी से शादी नहीं की घर वालों ने  कितनी कोशिश की जितेंद्र की शादी करने के लिए लेकिन उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया था। 

 कॉलेज खत्म होने के बाद अपना फैमिली बिजनेस जॉइन कर लिए थे। 

 शाम के 7:00 बजने को आ गए थे पियून बाहर इंतजार कर रहा था कि अब साहब निकले तो वह भी ऑफिस बंद कर घर को जाए।  रोजाना तो 6:00 बजे जितेंद्र जी घर चले जाते थे लेकिन आज 7:00 बज गया पीउन ने  केबिन का बैल बजाया।  उन्होंने देखा की 7:00 बज गए हैं।  जल्दी से घर के लिए निकल गए। 

 उधर इंटरव्यू देकर रागिनी अपने घर जा रही थी पूरे रास्ते यही सोचती रही कि आखिर सर ने मुझे देखकर मां का नाम क्यों लिया जरूर कुछ ना कुछ कनेक्शन तो है। 



 रागिनी  ने कई बार अपनी मां को  चुपके से एक फोटो को देखते हुए देखा है लेकिन जब भी अपनी मां से पूछती है मां कहती है समय आने पर बता दूंगी और उसने आज तक उस फोटो को भी नहीं दिखाया है कि उस फोटो में कौन है।  रागिनी ने सोच लिया था कि आज उस फोटो का राज पता करके रहेगी आज वो चुपके से उस फोटो को देखेगी उस फोटो में कौन है। 

 रागिनी घर पहुंच कर अपनी मां से बोली माँ मेरा सिलेक्शन हो गया है मंडे से ज्वाइन करने के लिए बोला गया है तुम फटाफट से एक कड़क चाय बना दो। 

 उधर रागिनी की माँ किरण चाय बनाने रसोई  में गई और इधर रागिनी चुपके से अपनी मां का लॉकर खोल उस फोटो को देखने लगी फोटो में देखा कि यह तो जितेंद्र सर का फोटो है।  क्योंकि यह फोटो जवानी का था अब उम्र ज्यादा हो गया है तो चेहरा भरा पूरा मोटा हो गया है लेकिन उसे यकीन हो गया था कि जितेंद्र सर का ही  फोटो है। 

इस घर में रागिनी और उसकी मां किरण अकेले  ही रहते थे पापा का देहांत कुछ साल पहले ही हो गया था एक बड़ा भाई था तो वह अपने पत्नी के साथ अमेरिका में सेटल था।  लेकिन वह कहने को ही सिर्फ भाई था उसे कोई मतलब नहीं था कि उसकी बहन और मां कैसे इंडिया में रह रहे हैं बस कभी-कभार फॉर्मेलिटी में फोन पर बात हो जाती है। 

 मंडे से रागिनी ने  जितेंद्र जी का ऑफिस ज्वाइन कर लिया था।  लेकिन उसके मन में एक सवाल बार-बार आ रहा था कि आखिर जितेंद्र सर और मेरी मां का राज क्या है दोनों एक दूसरे को कैसे जानते हैं उसने सोच लिया था कि कभी न कभी वह जरूर पता करके रहेगी। 

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 धीरे-धीरे रागिनी और जितेंद्र जी में काफी ही लगाव हो गया था जितेंद्र जी रागिनी को बेटी की तरह मानने लगे अब तो दोनों लंच भी एक साथ ही करने लगे थे। 



1 दिन लंच करते करते रागिनी ने जितेंद्र जी से पूछा सर आपके  कितने बेटे-बेटियां हैं और वह क्या करते हैं।  जितेंद्र जी ने बताया कि बेटा या बेटी तो तब होगी जब मैं शादी करूंगा ।  रागिनी बोली इसका मतलब आपने शादी ही नहीं की क्यूँ सर  जब रागिनी ने उसका कारण पूछा तो उन्होंने बोला।  तुम्हें याद है जब तुम इंटरव्यू देने आई थी तो मैंने तुम्हें देखकर किरन बोल दिया था। 

 बिल्कुल तुम्हारे जैसी थी हुबहू मैं उससे प्यार करता था लेकिन एक दिन अचानक से वह गायब हो गई उसके बाद वह कभी मिली नहीं लेकिन हर साल लगातार पिछले 25 सालों से मेरे जन्मदिन पर उसका खत जरूर आता है उसी के इंतजार में मैंने 25 साल गुजार दिए। 

 रागिनी अब सब कुछ समझ गई थी उसकी मां और जितेंद्र सर दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे।  लेकिन उसके मन में अब एक सवाल यह था कि जब मम्मी जितेंद्र सर से प्यार करती है तो फिर शादी क्यों नहीं की। 

रागिनी ने मजाक मजाक में जितेंद्र जी से बोली सर क्या किरण जी आपको अभी मिल जाएंगी तो क्या आप उनसे शादी करने के लिए तैयार हैं।  जितेंद्र जी रागिनी से बोले रागिनी तुम भी अच्छा मजाक कर लेती हो अब क्या हमारी शादी करने की उम्र है  तुम्हें क्या लगता है कि किरण भी मेरी तरह अविवाहित होगी उसने अपना घर बसा लिया होगा। 

उस दिन के बाद से ही रागिनी ने सोच लिया था कि वह अपनी मां और जितेंद्र जी का मिलन जरूर कराएगी  क्योंकि उसे पता था कि भाई तो मां का देखभाल करने से रहा उसकी भी कुछ  सालों में शादी हो जाएगी माँ फिर अकेली हो जाएगी जब सर और माँ एक दूसरे से प्यार करते हैं तो एक दूसरे से शादी करने में कोई बुराई नहीं है। 

 लेकिन वह यह सब कैसे करेगी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।  उसने सोचा पहले एक दिन अपनी मां और सर का आमना सामना कराती हूं उसके बाद देखती हूं इन दोनों का क्या रिएक्शन होता है। 

 1 दिन संडे को रागिनी ने जितेंद्र जी को अपने घर लंच के लिए निमंत्रित किया। 



 ठीक 1:00 बजे जितेंद्र जी रागिनी के  दरवाजे पर पहुंच चुके थे दरवाजे पर पहुंचकर कॉल बेल बजाई।  फौरन दरवाजा खुल गया दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं रागिनी की मां किरण थी क्योंकि रागिनी जानती थी कि अभी सर ही आए होंगे जानबूझकर अपनी मां को दरवाजा खोलने के लिए भेजी।  जितेंद्र जी किरण को देखते ही उनके मुंह से निकला किरण तुम यहां कैसे? किरण जी ने भी यही सवाल जितेंद्र जी से पूछा पहले तुम बताओ तुम यहां कैसे? 

 किरण जी ने बताया यह मेरा ही घर है,जितेंद्र जी ने कहा तो क्या रागिनी तुम्हारी बेटी है।  इतने मे रागिनी वहां आ चुकी थी। 

रागिनी उन दोनों का परिचय जैसे ही कराना चाही  जितेंद्र जी बोले रागिनी तुम्हें अब परिचय कराने की जरूरत नहीं है हम दोनों एक दूसरे को तुम्हारे जन्म के पहले से जानते हैं। 

लंच करने के बाद रागिनी अपनी मां और  जितेंद्र जी को अकेला छोड़ अपने सहेली के पास चली गई यह बोलकर आप लोग दोनों बैठ कर बातें करो मैं 1 घंटे तक आती हूं। 

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रागिनी के जाते ही किरण जी ने जितेंद्र जी से पूछा और बताओ कैसे हो बीवी बच्चे कैसे हैं।  जितेंद्र जी ने कहा जब शादी होगी तब तो बीवी बच्चे होंगे ना। 

 मैंने तो तुम्हारे उस खत से ही शादी कर लिया है बस हर साल इंतजार करता हूं कि कब तुम्हारा खत आए। 

 जितेंद्र जी ने किरण से पूछा तुम कहां चली गई थी और तुमने मुझसे मिलना क्यों छोड़ दिया मुझे आज सब कुछ जानना है। 



किरण जी ने जितेंद्र जी को बताया कि उसकी बड़ी बहन  को कैंसर हो गया था और वह एक बेटे को छोड़कर स्वर्ग सिधार गई।  दीदी की बेटे को देखभाल सही से हो जाए मेरे घरवाले ने मेरे जीजा से मेरी शादी तय  कर दिया। और यह शादी इतनी जल्दबाजी में हुई मैं कुछ सोच नहीं पाई । 

 उसके बाद मैं नहीं चाहती थी कि हम दोनों एक दूसरे से मिले क्योंकि इसमें हम दोनों को दर्द के सिवा कुछ नहीं मिलता क्योंकि मेरी शादी हो चुकी थी। 

रागिनी के पापा की भी मृत्यु के बाद से हम मां बेटी ही अकेले इस घर में रह गए हैं मेरे दीदी का बेटा बड़ा होकर अमेरिका में सेटल हो गया है। 

  एक दूसरे से बात करते-करते कब एक घंटा बीत गया पता भी नहीं चला कुछ देर में ही रागिनी अपने सहेली से मिलकर वापस भी  आ गई।  सहेली से मिलने जाना तो उसका सिर्फ बहाना था वह अपने मां और जितेंद्र सर को एक दूसरे से मिलने का वक्त देना चाह रही थी। 

रागिनी के आने के बाद जितेंद्र जी ने रागिनी से कहा

‘‘जो बात तब न कह सका, अब कहना चाहता हूं. पहले ही काफी देर हो चुकी है किरण , क्या यह सफर एक खूबसूरत मोड़ ले कर आगे नहीं बढ़ सकता?’’

हाथ में चाय की ट्रे लिए रागिनी  ने ड्राइंगरूम में घुसते हुए कहा, ‘‘बढ़ सकता है सर . मैं आपके और मां के सफर को आगे बढ़ाऊंगी,’’ हाथ में पकड़ी चाय की ट्रे को सेंटर टेबल पर रख वह मां के पास आ कर बैठ गई और उन का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

‘‘सर , मैं ने मां को कितनी ही बार आप का फोटो देखते देखा है. मैं जानती हूं कि मां आप को बहुत प्यार करती हैं. मैं भी पापा के प्यार को तरस रही हूं. मेरी शादी के बाद आखिर मां को भी तो अपना दुख-सुख बांटने वाला कोई चाहिए. आप और मां एक हो कर भी अलग-अलग हैं. अब अलग नहीं रहेंगे.’’

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‘‘तू जानती है, क्या कह रही है?’’ आंखें झर रही थीं किरण  की.

‘‘सच बताना मां, तुम्हें इन आंसुओं की कसम, जो मैं चाहती हूं वह आप नहीं चाहतीं? सर , क्या आप को पापा कहने का हक है मुझे?’’ रागिनी ने दोनों से एक ही लफ्ज में अपना सवाल पूछ दिया.

जितेंद्र जी  ने किरण को अपने कंधे से लगा कर उस का माथा चूम लिया, ‘‘सारी दुनिया की खुशियां आज अचानक मेरी झोली में आ गईं. पहली बार पापा बना हूं. पहली बार बेटी मिली है. मैं मना कर ही नहीं सकता,’’ जितेंद्र जी  कहतेकहते भावविभोर हो उठे.

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